दरिया बंदर कोट : कहानी में कहानी और भावनाओं की रेखाओं से उपजा रंग

दरिया बंदर कोट

जब कभी कहानी अपनी शाखाओं को बनाती है, तो नई कहानियाँ उपजती हैं। ऐसा अक्सर तब होता है जब कहानी को ऐसा आकार दिया जाए जो उसके भीतर जन्म ले रही कहानी को मचलकर बाहर आने को विवश कर दे। इस तरह कहानियाँ अलग-अलग तरह से अपनी शाखाओं का निर्माण करती हैं। हर शाखा एक कहानी का रुप लेती है, और हर रुप विस्तार पाता जाता है। कहानियों का मन, उनकी समझ और उनसे उपजा विचार शब्दों को नए रुप में प्रकट करता है। उपासना की कहानियाँ महज कहानियाँ नहीं हैं, उनमें विस्तार होते जाने की हसरतें हैं। यह इसलिए भी कहा जा सकता है क्योंकि उनके वाक्यों को एक के बाद एक कर पढ़ने से ही आगे बढ़ा जा सकता है। उनमें बिखराव की स्थिति नहीं है, लेकिन एक आनंद और जो भाव आना चाहिए या लय, उसके मायने बदल सकते हैं।

'दरिया बंदर कोट' उपासना का कुल ग्यारह कहानियों का संग्रह है। इसे हिन्द युग्म ने प्रकाशित किया है। 

हर कहानी अपने रंग में ढली है। हर कहानी का रंग ऐसा है जिसका असर गहरा है। उपासना ने स्त्री की कहानी कही है। उन्होंने जिंदगी की बदलती लहरों पर पाठक को सवार कर दिया है -फैसला उसे करने दीजिए। रिश्तों की गलियों के शोर को आज़ादी दी है। रिश्तों की डोरियों को भिगो कर उन्हें किसी फ्रेम में सजाने का मौका दिया तो कहीं उन्हें धूप में किसी रस्सी पर सूखने के लिए छोड़ दिया है-रिश्तों का भी एक फ्लेवर होता है।

स्मृतियों का फैलाव इस तरह का कि उसे उन्होंने बिखर जाने दिया। सचमुच यह गुनगुनाता हुआ गीतों का कारवाँ सा भी लगता है कभी-कभी। कभी-कभी स्याही से जिस तरह कोई आकृति बनाई जाती है, उसका रंग वैसा ही होता है जिस किस्म की स्याही होती है।

'सर्वाइवल' पहली कहानी है। यह कहानी पढ़कर थोड़ा रुकने के बाद विचारों का एक समुद्र करीब-सा महसूस होता है। नौकरी और जद्दोजहद और जीवन जिसे रेल की तरह भी समझा जा सकता है। उपासना ने इस कहानी के पहले पन्ने पर लिखा है-'मैंने अपने पंख मोड़ रखे हैं। सपनों की दौड़ में अब मैं ​कविताएँ नहीं लिखता। बजाय इसके गणित, अंग्रेज़ी व री​ज़निंग के सवाल हल करता हूँ। सदर बाज़ार की बेहद तंग गली में, चारमंज़िला बिल्डिंग का एक दड़बानुमा फ़्लैट हमारी दुनिया है।...मैं अपनी छोटी दुनिया से निकलकर बड़ी दुनिया की छत पर चला आता हूँ।'

मिठाईलाल और पिपली का संसार 'प्रत्युषा-ऊषा' कहानी में है जो कई कहानियाँ उभारकर लाता है।

उपासना गाँव-देहात को जोड़कर जीवन के एक छोर को दूसरे छोर से जोड़ने की कोशिश करती हैं। उनकी कहानियाँ सवालों का एक घेरा बनता हुआ छोड़कर पाठक को उससे गुज़रने, उन्हें महसूस करने का अवसर देती हैं।

दृश्यों को उकेरना, तेजी से बढ़ती कहानी को संभालना, आगे होने वाली घटनाओं को समझदारी से पिरोना आदि खूबियाँ हैं उपासना की कहानियों में। मसलन 'पटकथा की सहनायिका' कहानी बहुत तेजी से बढ़ती है। लड़की मन की बातें, सहेलियों की बातें और प्यार की फुहारें कहानी को रोचकता प्रदान करता है। बीच-बीच में उपासना एक वाक्य में इतनी गहरी बात कह जाती हैं कि मन सोचने पर विवश हो जाता है, जैसे -'टूटे सपनों से ज़्यादा दुख अधूरे सपने देते हैं।' और अंत में जब वह ऑटो वाला सीन आता है, तो पाठक थोड़ी देर वहीं रुका रह जाता है। उसकी कल्पना की जाए तो कैसा लगेगा!

उपासना को पढ़कर यह कहा जा सकता है कि उनकी कहानी में कहानी है और भावनाओं की रेखाओं से उपजा हुआ रंग है।

---------------------------------------------
दरिया बंदर कोट
लेखक : उपासना
पृष्ठ : 160 
प्रकाशक : हिंद युग्म 
पुस्तक लिंक : https://amzn.to/3IKYlue
---------------------------------------------