इन दिनों पढ़ें कुछ खास किताबें

इन दिनों पढ़ें कुछ खास किताबें

प्रभात प्रकाशन ने इन दिनों कुछ खास किताबों को प्रकाशित किया है। इनमें प्रेम जनमेजय की पुस्तक 'सींगवाले गधे', नीरज बधवार का व्यंग्य संग्रह 'बातें कम स्कैम ज्यादा', ऋचा लखेड़ा का ​सस्पेंस और थ्रिल से भरा उपन्यास 'एक सुपरस्टार की मौत' शामिल है। इसके अलावा 'ख़नक (का इश्क़)', 'दलित राजनीति और हिंदू धर्म' और 'कलम को तीर होने दो' भी बेहद पठनीय हैं।

सींगवाले गधे / प्रेम जनमेजय

सींगवाले गधे / प्रेम जनमेजय

प्रेम जनमेजय से मिलकर, बात कर, कभी नहीं लगता कि ये व्यंग्य विधा की राह के पहुँचे हुए मुसाफिर हैं। ऐसा ही श्रीलाल शुक्लजी के साथ था। वे कभी बातचीत में व्यंग्य नामक हथियार का इस्तेमाल नहीं करते थे। ये ऐसे व्यंग्य-गुरु हैं, जो अपनी तिरछी नजर पर मृदुता, मस्ती और मितभाषिता का चश्मा लगाए रहते हैं।

ममता कालिया के शब्दों में : कुछ लोगों का खयाल है कि व्यंग्य लेखक एक किस्म के कार्टूनकार होते हैं, जिन्हें सारी दुनिया आँकी-बाँकी दिखाई देती है। एकदम गलत धारणा है यह। जैसे कविता, कहानी, उपन्यास नाटक और निबंध, साहित्य की विधाएँ हैं, वैसे ही व्यंग्य तथा हास्य, व्यंग्य की विधाएँ हैं। कमजोर हाथों में पडक़र ये विद्रूप और फूहड़ हँसी-ठट्ठा का रूप लेती होंगी, लेकिन प्रेम जनमेजय उन इलाकों में जाते ही नहीं हैं। वे हरिशंकर परसाई, शरद जोशी और श्रीलाल शुक्ल की परंपरा में व्यंग्य विधा में संलग्न हैं। उनके लिए व्यंग्य एक गंभीर कार्य और चिंतन है, जिससे वे समाज की विसंगतियों और समय के अंतर्विरोधों पर रोशनी डाल सकें। परिवर्तन काल सुविधा के साथ-साथ सक्रांति काल भी लाता है।

प्रेम जनमेजय ने बहुत समझदारी और गहन अध्ययन से अपनी साहित्य-विधा चुनी है। व्यंग्य विधा पर चाहे जितना हमला किया जाए, सब जानते हैं कि बिना व्यंग्य-विनोद के कोई भी रचना पठनीय नहीं हो सकती। प्रेमजी में एक कथातत्त्व समानांतर चलता है। इसी कथा-जाल में वे धीरे से अपना काम कर जाते हैं।

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बातें कम स्कैम ज़्यादा / नीरज बधवार

बातें कम स्कैम ज़्यादा / नीरज बधवार

'हम सब फेक हैं' के लेखक नीरज बधवार की नई पुस्तक का नाम है 'बातें कम स्कैम ज़्यादा'। यह पुस्तक व्यंग्य को एक नए स्तर तक ले जाती है।

नीरज बधवार के शब्दों में : मेरा मानना है कि अच्छा हास्य-व्यंग्य कभी उपदेश का चोला पहनकर नहीं आता। वो आपको हमेशा सही-गलत पर ज्ञान नहीं देता। वो हरदम गिरते नैतिक मूल्यों की बात कर मनहूस शक्ल बनाए नहीं बैठता। वो एक हँसमुख दोस्त की तरह आता है। खूब हँसी-मजाक करता है। माहौल को हल्का करता है और जाते-जाते कुछ ऐसा कह जाता है कि आप रुककर उस पर विचार करने लगें।

यह पहाड़ों की धार्मिक यात्रा की तरह है, जो आपको घूमने का आनंद तो देती ही है, साथ ही यह गर्व भी दे जाती है कि आपकी यात्रा का एक पवित्र मकसद है। ऐसी यात्रा जहाँ पवित्रता अंतिम गंतव्य है, लेकिन सफर मजे से भरा हुआ है।

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एक सुपरस्टार की मौत / ऋचा लखेड़ा

एक सुपरस्टार की मौत / ऋचा लखेड़ा

हत्यारे एक गलती तो करते ही हैं। वे एक चश्मदीद पीछे छोड़ जाते हैं। चश्मदीद भी ऐसा, जिसके जीने का मकसद प्रतिशोध के सिवाय और कुछ नहीं होता। और समय आने पर जब वह दोषियों से हिसाब चुकता करने निकलता है, तो कई शैतान सामने आते हैं। वेलेंटाइन, एक सुपरस्टार ब्रांड एंबेसडर-जो कीमत मिले तो कुछ भी बेच सकता है। मेडिसी, एक दवा कंपनी, जो धोखाधड़ी से प्रतिबंधित दवाओं का निर्माण करती है। दुष्ट रंगा, और एस्टे, जो एक वेश्या है, जिसके क्रूर रहस्य एक बेटी के होश उड़ा देंगे।

जैसे-जैसे कहानी आगे बढ़ती है, साँसे रोक देनेवाला सस्पेंस पैदा होता है-क्या एक और हत्या होनेवाली है? क्या इंस्पेक्टर सिल्वा एक और अपराध को रोकने के लिए समय पर सुरागों को जोड़ पाएगा? क्या लालच के देवता आखिरकार बेनकाब हो जाएँगे?

'एक सुपरस्टार की मौत' पैसा, सत्ता और सेक्स की भूख की क्रोधित और आक्रोशित कर देनेवाली कहानी है।

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ख़नक (का इश्क़) / श्वेता परमार 'निक्की'

ख़नक (का इश्क़) / श्वेता परमार 'निक्की'

प्यार एक बेहद खूबसूरत अनुभूति है और इसका अहसास हमारे रोम-रोम में रोमांच भर देता है, जीने के प्रति और सजग कर देता है। हर पल एक खुमारी-सी छाई रहती है। उस वक्त सही- गलत कुछ समझ नहीं आता। बस एक ही व्यक्ति के आसपास जैसे सारी दुनिया सिमट आई हो। और कभी-कभी वह प्यार जुनून बन जाता है कि व्यक्ति फिर बस उसी में खुद को ढूँढ़ता है, फिर जैसे सारी कायनात उसे उसके साथी से मिलाने में लग जाती है। लेकिन कभी-कभी वही प्यार नफरत में बदल जाता है, जब उसे अपने ही साथी से अविश्वसनीय विश्वासघात मिलता है।

कई बार ऐसा होता है कि न चाहते हुए भी हमें ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं, जिनके बारे में हम कभी सोच भी नहीं पाते, किंतु शायद वही हमारे लिए सबसे बेहतर होते हैं। हालाँकि जिंदगी कभी-कभी ऐसा मोड़ ले लेती है, जो हम कभी अपने विचारों या मजाक में भी नहीं सोच पाते। हमारे लिए भी कभी-कभी कुछ घटनाएँ अप्रत्याशित होती हैं।

ऐसे ही दो लोगों की जिंदगी की कहानी है यह पुस्तक, जिन्होंने यह सोचा कि उनकी किस्मत में भगवान ने इन दो चीजों के अलावा-जोकि जीने के लिए सबसे जरूरी हैं-सब कुछ लिखा था। और उनसे कुछ भी सँभाला नहीं गया। उन्होंने अपनी नासमझियों की वजह से अपनी ही जिंदगी की कद्र नहीं की और फिर एक समय ऐसा आया कि एक फैसले ने सबकुछ बदल दिया।

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दलित राजनीति और हिंदू धर्म / डॉ. रानी शंकर, उदय शंकर

दलित राजनीति और हिंदू धर्म / डॉ. रानी शंकर, उदय शंकर

यह पुस्तक बाबा साहेब आंबेडकर के कथन की पुष्टि करती है कि वंशानुगत आधार पर दलित व सवर्ण में कोई अंतर नहीं है एवं तार्किक व्याख्या करते हुए सिद्ध करती है कि शासकों ने जातिगत आधार पर हिंदू धर्म को विभाजित करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। उन्होंने उच्च जाति में श्रेष्ठता का झूठा दंभ भरने की कोशिश की कि वे तो उन्हीं की भाँति भारतीय मूल के लोगों पर शासन करने के लिए यूरोप से आए और निचली जाति में यह हीन भावना भर दी कि वे न केवल गोरे शासकों से, बल्कि उच्चजाति के लोगों से भी हीन हैं। इस प्रकार उन्होंने शासक वर्ग के रूप में अपने और बहुसंख्यक आबादी के बीच एक और श्रेणी बनाने की चेष्टा की, जिसमें वे काफी हद तक सफल भी रहे। यही कारण है कि दलित नेता भारत की आजादी के संघर्ष के लिए याद नहीं किए जाते हैं।

राजनीतिक मजबूरियों के कारण सरकारें देश में विभिन्न जातियों, धर्मों और क्षेत्रों के गरीबों एवं दलितों की दशा में सुधार का दिखावा करने के लिए सैकड़ों आयोगों का गठन और उनकी रिपोर्टों पर कार्य करती रहेंगी, लेकिन इसके वांछित परिणाम नहीं मिलने वाले। समस्या कहीं और है, समस्या भ्रष्टाचार है और यदि इसकी रोकथाम न की गई तो सभी प्रयास बेकार हैं।

इस पुस्तक का उद्देश्य दलित वर्ग को सैकड़ों वर्षों तक अपमानित एवं शोषित रखने के कारणों की तर्कसंगत समीक्षा करना है। राजनीति से प्रेरित कारण सच्चाई से कितनी दूर हैं, यह बात पाठक इस पुस्तक से जान सकेंगे।

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कलम को तीर होने दो / विद्याभूषण

कलम को तीर होने दो / विद्याभूषण

हिंदी सर्जना के आंचलिक परिदृश्य को अगर समग्रता में परखें तो कई बुनियादी सवाल सिर उठाते हैं; जैसे क्या श्रेष्ठ और प्रभावी कृतियों की अंतर्वस्तु का कोई स्थानिक पहलू नहीं होता? क्या कोई आंचलिक या स्थानीय प्रेरणा अभिव्यक्ति के आकार-प्रकार को निर्धारित नहीं करती? क्या कृति और परिवेश के जैविक संबंधों की अनदेखी से रचना का संदेश संदर्भ रहित होकर अमूर्त नहीं रह जाता? सच तो यह भी है कि राजधानियों का लेखक सिर्फ अपने निकट परिवेश से उत्प्रेरित नहीं होता। अपने मूल और गुमनाम स्त्रोतों से सुलभ हो रही दिशा-दृष्टि भी उसे उच्चतर जीवनमूल्यों से जोड़ती है।

यह पुस्तक सृजन और विचार के प्रसंग में, केंद्र और हाशिए के बीच के फासलों पर खोजी नजर डालती है। पुस्तक-संसार में झारखंड की सांस्कृतिक परंपरा पर अधीत सामग्री की कमी नहीं है, लेकिन उसके साहित्य की हिंदी परंपरा के विविध पहलुओं पर समग्र विचार अभी तक प्रतीक्षारत है। निश्चय ही इस पुस्तक में सम्मिलित आलेख सूचनाओं के नए क्षितिजों से निकट परिचय कराएँगे।

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