भारत विभाजन और पाकिस्तान के षड्यंत्र

भारत विभाजन और पाकिस्तान के षड्यंत्र

पहले 14 अगस्त सिर्फ एक तारीख थी। अचानक यह दिन एक टीस, त्रासदी, विभीषिका की याद और उससे मिलनेवाले सबक का प्रतीक बन गया है। कारण स्पष्ट है। ज्यादा दिन नहीं हुए, बात 2021 की है। लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि “मेरे प्यारे देशवासियो! अब से हर वर्ष 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में याद किया जाएगा। जो लोग विभाजन के समय अमानवीय हालात से गुजरे, जिन्होंने अत्याचार सहे, जिन्हें सम्मान के साथ अंतिम संस्कार तक नसीब नहीं हुआ, उन लोगों का हमारी स्मृतियों में जीवित रहना भी उतना ही जरूरी है। आजादी के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का तय होना, ऐसे लोगों को हर भारतवासी की तरफ से आदरपूर्वक श्रद्धांजलि है।”

यह एक बात है। दूसरी यह कि उसी दिन भारत विभाजन की घोषणा से पाकिस्तान अस्तित्व में आया। यह पुस्तक ‘भारत विभाजन और पाकिस्तान के षड्यंत्र’ अपने ढंग की संभवत: पहली और अकेली है। भारत विभाजन पर इन 75 सालों में करीब-करीब हर साल कोई नई पुस्तक आ जाती है। ज्यादातर पुस्तकें यह बताने के लिए लिखी गई हैं कि भारत विभाजन के कारण क्या थे? अनेक कारण खोजे गए हैं और यह सिलसिला रुका नहीं है। रुके भी तो कैसे? क्योंकि पूरे तथ्य और घटनाक्रम जो दिखते हैं, वे सतह पर हैं, लेकिन बहुत कुछ बातें इतिहास की अँधेरी गुफा में दबी पड़ी हैं। जो कभी कुछ किसी के हाथ लगता है तो वह एक नई पुस्तक से बताने का प्रयास करता है। इस क्रम में यह पुस्तक कहाँ अपना स्थान बनाती है, इसे इसके पाठक तो निर्धारित करेंगे ही, पर मुझे लगता है कि यह पुस्तक सब पर भारी पड़ेगी। मैंने इसे पूरा पढ़ा है। इस आधार पर कह सकता हूँ कि इस पुस्तक के हर अध्याय की सामग्री से पाठक अनुभव करेगा कि इसके तथ्य और कथ्य अपने शीर्षक को हर दृष्टि से सार्थक करते हैं।

षड्यंत्र से बने देश की षड्यंत्रकारिता

जो लोग इसे भारत विभाजन की कहानी जानने के लिए पढ़ेंगे, वे अवश्य उन तथ्यों से परिचित हो सकेंगे, जो मूल कारण पर रोशनी डालते हैं। यहाँ यह स्पष्ट करना चाहिए कि इस पुस्तक की रचना भारत विभाजन को समझाने के लिए नहीं हुई है। फिर सवाल उठता है कि इसका प्रधान विषय क्या है? पुस्तक के शीर्षक से यह स्पष्ट है। संदर्भ तो भारत विभाजन है, लेकिन इस पुस्तक का फोकस उन षड्‍यंत्रों पर है, जिससे पाकिस्तान बना और फिर अपनी जन्म-कुंडली को खोलते हुए पाकिस्तान स्वयं जिन षड्‍यंत्रों को रचने लगा। कोई देश नवजात हो या पुराना, वह पड़ोसी के विरुद्ध षड्‍यंत्र क्यों रचता है? यह प्रश्न पुस्तक के पन्नों से उभरता है और उन्हीं पन्नों पर उसका उत्तर भी मिल जाता है। वह यह कि पाकिस्तान अपनी मनोग्रंथियों, मनोरोगों, आत्महीनता और अपनी पहचान के खोखलेपन के कारण ऐसा करता है।

भारत विभाजन और पाकिस्तान के षड्यंत्र

इस पुस्तक में शुरू से आखिर तक पाकिस्तानी षड्‍यंत्रों के स्पष्ट उदाहरण दिए गए हैं। इस बारे में पूरी पुस्तक लिखने का प्रयास यह पहला ही है। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि इस विषय पर अब तक कुछ न लिखा गया हो। छिटपुट लेख बहुत छपे हैं। उन लेखों के अलावा समय-समय पर भारत सरकार ने भी अपनी एजेंसियों से प्रामाणिक तथ्य और उसके प्रमाण जुटाए, जिससे दुनिया के देशों को बताया जा सका कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देनेवाला एक देश है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे एक मुद्दा ही बनाया हुआ है। पहले के प्रधानमंत्री इस पर स्वयं नहीं बोलते थे, लेकिन सरकार के प्रवक्ता अवश्य कोई प्रसंग आने पर अपनी बात कहते थे। खासकर जब पंजाब और फिर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की आग पाकिस्तान भड़का रहा था, तब उसके प्रामाणिक तथ्य पुन: खोजे गए। उसे सरकार ने विश्व मंच पर प्रस्तुत भी किया। यह 1991-1996 के दौरान हुआ। उसी दौरान ये तथ्य सामने आए कि ‘गुलाम कश्मीर’ में पाकिस्तान की आई.एस.आई. एजेंसी 85 आतंकवादी शिविर भारतीय सीमा से जुड़े क्षेत्रों में चला रही है। भले ही पाकिस्तान का रवैया न बदला हो, पर इतना जरूर हुआ कि उसके चेहरे से नकाब उतर गया। पाकिस्तान यह नहीं कह सकता कि वह एक सभ्य देश है। वहाँ लोकतंत्र है। लोगों के पैसे पर सरकारी एजेंसियाँ भारत के खिलाफ षड्‍यंत्र रचती हैं, इसे दुनिया जानने लगी है। दूसरी तरफ पाकिस्तान भी अपने रचे जाल में फँसता जा रहा है।

यह पुस्तक पाँच खंडों में है। इसके 80 अध्याय हैं। पहला खंड 55 अध्यायों का है, जिसमें पहला अध्याय ही बताता है कि ‘पाकिस्तान साम्राज्यवादी ताकतों के महाषड्‍यंत्र की उपज है।’ यह अब एक प्रामाणिक और ऐतिहासिक तथ्य है। इस बारे में अनेक पुस्तकें भी आई हैं। जैसे नरेंद्र सिंह सरीला की पुस्तक है, जो ‘भारत विभाजन की असली कहानी’ बताती है। यह पुस्तक गहरे शोध से लिखी गई है। नरेंद्र सिंह सरीला लाॅर्ड माउंट बेटन के ए.डी.सी. थे। उन्होंने प्राइमरी सोर्स पर अपनी पुस्तक लिखी है। ऐसी और भी पुस्तकें हैं। इस पुस्तक के 54 अध्यायों में क्रमवार वे कहानियाँ हैं, जिन्हें पढ़कर जाना जा सकता है कि कैसे पाकिस्तान के शासक सोचते हैं, काम करते हैं और उनकी दिशा-दृष्टि क्या होती है। खंड दो में 10 अध्याय हैं। खंड तीन में सात अध्याय हैं। खंड चार में पाँच अध्याय हैं और खंड पाँच में तीन अध्याय हैं। इस प्रकार यह पुस्तक वृहदाकार है।

कुछ अल्पज्ञात चौंकानेवाले तथ्य 

यह मजेदार पुस्तक है। छात्र जानते हैं कि पाकिस्तान को जिन्ना ने बनवाया। इसके पहले अध्याय में एक शीर्षक है- है। एक अनजान और अकल्पनीय इतिहास से सीधा सामना कराता है। अनुभवी और वयोवृद्ध पत्रकार बलबीर दत्त ने पाठक को उस कालखंड की यात्रा कराते हुए बताया है कि दरअसल पाकिस्तान की योजना अंग्रेजों की थी। उसे रूप-रंग दिया तब के वाइसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने। लेकिन जैसा अंग्रेजों का तरीका था, वे खुद सामने नहीं आते थे, किसी को अपना उपकरण बनाते थे। वह उपकरण उस समय जफरुल्ला खान बने। उसकी पूरी कहानी इस अध्याय में आ गई है। इसे अगर एक गोल घेरे के चित्र से समझना हो तो शुरुआत होती है 1906 से। जब उस समय के वाइसराय की योजना में मुस्लिम लीग बनी, तो पाकिस्तान बनने से गोल घेरा पूरा हुआ।
 इस पुस्तक को मैंने मजेदार इसलिए बताया है, क्योंकि इसके अध्यायों में रोचकता है। इसकी शैली पाठक को एक ऐसी कहानी का आनंद देती है, जिसमें रहस्य और रोमांच तो है ही, इसके अलावा कुछ रोचक प्रसंग भी हैं। जैसे लता मंगेशकर और नूरजहाँ के प्रसंग का अध्याय एक उदाहरण है। यह खंड तीन में है। पुस्तक का 68वाँ अध्याय है। पूरी पुस्तक में पाकिस्तान की उन करतूतों का ब्योरा है, जो छोटी-छोटी खबरों में गुम हो जाता है। उसे जोड़कर जो कहानी बनती है, वह इस पुस्तक में पढ़ी जा सकती है। लेखक ने अपनी प्रस्तावना में एक शब्दचित्र बनाया है। उसे पढ़कर भी पुस्तक का सार-संक्षेप समझा जा सकता है। प्रस्तावना में एक उप शीर्षक है-‘भारत का पिंड छूटा, अच्छा हुआ’। इसमें बलबीर दत्तजी लिखते हैं-“यह एक विचित्र तथ्य है कि पाकिस्तान भारत के मामले में एक तरह के भय की मनोग्रंथि का शिकार है।”

भारत विभाजन और पाकिस्तान के षड्यंत्र

“पाकिस्तान के लोग तो वैसे ही हैं, जैसे भारत के। उनके सोचने में ज्यादा फर्क नहीं है। एक नागरिक के रूप में वे सुखी जीवन जीना चाहते हैं। लेकिन पाकिस्तान की सत्ता शुरू से ही जिनके हाथों में आई, वे गहरे भय के शिकार हैं। राजनीतिक जमात और पाकिस्तान की सेना ही वहाँ की सत्ता को अपने-अपने ढंग से चला रहे हैं। वे ऐसा माहौल बनाए हुए हैं कि भारतीय नेताओं ने मन से देश का विभाजन स्वीकार नहीं किया। इसलिए वे पाकिस्तान को टिकने नहीं देंगे और भारत को फिर से ‘अखंड भारत’ बनाने के प्रयास करेंगे।” इस आशंका का लेखक ने एक जगह उत्तर भी दिया है कि भारत पाकिस्तान का झंझट क्यों मोल लेना चाहेगा? यह भी एक पक्ष है, क्योंकि एक समय था, जब अखंड भारत और भारत-पाक महासंघ जैसी अवधारणाओं पर भारत में राजनीतिक सक्रियता थी, लेकिन जो बात इस पुस्तक के लेखक ने निष्कर्ष रूप में बताई है, वह ही इस समय का यथार्थ है। इसे लेखक के शब्दों में पढ़ें-“अब तो भारत के लोगों में पाकिस्तान के साथ किसी प्रकार का राज्यसंघ या महासंघ बनाने की दिलचस्पी भी बहुत घट गई है। पाकिस्तान की कट्टर मजहबपरस्ती, आतंकवाद, अनुशासनहीन सेना, दयनीय आर्थिक स्थिति, दकियानूसी सोच और षड्‍यंत्रकारी राजनीतिक संस्कृति का अभिशाप भारत क्यों मोल लेना चाहेगा?” 

यह पुस्तक पाकिस्तान के अस्तित्व से प्रारंभ कर जो-जो तथ्य अपने अध्यायों में समेटे हुए है। यह पुस्तक पिछले 75 साल में घटित षड्‍यंत्रकारी घटनाओं का विवरण रोचक ढंग से देती है। अध्याय छोटे हैं, लेकिन सुबोध हैं। उसे पढ़ते हुए अनुभव होता है कि उस इतिहास को हम जान और समझ पा रहे हैं, जो छोटी-बड़ी घटनाओं में दिखता है। फिर उसको आमतौर पर भुला दिया जाता है। यह पुस्तक उसे एक शृंखला में पिरोती है, जिससे यह जाना जा सकता है कि शुरुआत होती है 1947 से और वह सिलसिला रुकता नहीं है। हाँ, यह अवश्य हुआ है कि पाकिस्तान से भी यह आवाज उठने लगी है कि भारत के विरुद्ध षड्‍यंत्र से कुछ हासिल नहीं होगा। भले ही यह आवाज अभी नक्कारखाने में तूती की लगती हो, लेकिन क्या यह कम संतोष की बात नहीं है कि पाकिस्तान अपने मंसूबे और करतूतों को छिपा नहीं पा रहा है।

-रामबहादुर राय.
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भारत विभाजन और पाकिस्तान के षड्यंत्र 
लेखक : बलबीर दत्त
पृष्ठ : 512 
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन 
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