लिमिटलेस लाइफ : ईश्वर और विश्वास की राह

लिमिटलेस लाइफ

पूरी दुनिया में निक वुईचिक को एक ऐसे इनसान के तौर पर जाना जाता है, जिनके न हाथ हैं न पैर, फिर भी उनकी सोच जबरदस्त रूप से सकारात्मक है। जैसा कि निक 'लिमिटलेस Life ' में कहते हैं, उनके लिए अपने जीवन में इससे बड़ा सुकून और कुछ नहीं कि वह लोगों का परिचय ईश्वर से कराते हैं, जो उनके बारे में कुछ भी नहीं जानते। आखिर यह कैसे होता है? पाँच दिन के धार्मिक प्रवचन से हमें निक के मूल संदेश की जानकारी मिलती है, जो हमें इस संसार को ईश्वर में अपना विश्वास जताने की प्रेरणा देती है, जो कृपा की उम्मीद के लिए तरस रहा है।

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इस पुस्तक को उठाते समय आपके मन में संभवत: यही पहला सवाल उठा होगा कि एक इनसान, जो कि बिना अंगों के पैदा हुआ हो, वह ईश्वर का हाथ व पैर कैसे बन सकता है?

मैं मानता हूँ, कृपया हाथ नीचे कर लें कि यह अपने आप में बहुत अच्छा सवाल है। जब मैं विकसित हो रहा था, तब मैं भी खुद से यही सवाल अनगिनत बार करता रहता था। बिना अंगोंवाले इनसान को धरती पर जीवित रखकर ईश्वर का कौन सा उद्देश्य पूरा हो सकता है?

तो आप कल्पना कर सकते हैं कि इस सवाल का जवाब मुझे अविला की संत टेरेसा के ऊपर के कथन से मिला और इसका मुझ पर काफी गहरा असर पड़ा। उनके शब्दों ने मेरी जिज्ञासाओं को शांत किया और मुझे प्रेरणादायक वक्ता एवं ईसाई रोल मॉडल बनने के मेरे उद्देश्य को पूरा करने के क्रम में तमाम कदमों की दिशा तय की, ताकि मैं आस्था से जुड़ी बातें दूसरों से साझा कर सकूँ। मैं सबकुछ नहीं कर सकता, लेकिन मैं इतना जरूर कर सकता हूँ कि लोगों को विवश करूँ कि वे ईश्वर का घर भर दें। ईसाई होने के नाते हम सभी का यह फर्ज बनता है, हम सभी का।

इस सच्चाई की पुष्टि कि हम कौन हैं, इसी से तय होती है कि हम दैनिक जीवन में कैसे रहते हैं? अगर आप दूसरों पर अपना प्रभाव छोड़ना चाहते हैं तो सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि आपको उन सिद्धांतों, विशिष्टताओं और विश्वास के ज्वलंत उदाहरण के तौर पर नजर आना होगा, जिनकी आप वकालत करते हैं। ईसाइयों के लिए खासतौर पर यह सच है। अपनी आस्थाओं को साझा करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप उनको किसी कीमत पर न छोड़ें, चाहे आप कितने ही दबाव में हों, यहाँ तक कि जब चुनौतियाँ बढ़ें और एक के बाद एक कठिनाई आप पर हावी होने लगे, उस दौरान भी आपका मन न डिगे।

जो भी आपके इर्द-गिर्द हों, वे आपको देख रहे होंगे और इस बात को दर्ज कर रहे होंगे कि आप जीवन के कठोरतम क्षणों में कैसी प्रतिक्रिया देते हैं? वे यह भी गौर करेंगे कि आप दूसरों से कैसे स्नेह करते हैं और कैसा रवैया अपनाते हैं? वे आपकी विश्वसनीयता को परखेंगे कि आप खुद को कैसे सँभालते हैं और क्या घनघोर अँधेरे के दिनों में भी आप अपने किए दावों के मुताबिक चल पाए या आपके कदम जरा सी कठिनाई में ही डिग गए?

लिमिटलेस लाइफ

समझदारी इसी में है कि हम हालात के मुताबिक प्रतिक्रिया दे सकें और यह अच्छी तरह जानते हों कि कब हमें सख्ती से प्रतिक्रिया देनी है और कब चीजों को आगे बढ़ जाने के लिए छोड़ देना है? महज बहादुरी का दिखावा करें या जबरदस्ती की मुसकान बनाए रखें या केवल खानापूर्ति के लिए सकारात्मक रुख अपनाएँ, इससे कुछ हासिल नहीं होता। ताकत आपके अंदर से आनी चाहिए, बजाय इसके कि निराशा के दलदल में धँसते जाएँ, छोटे-छोटे उपाय करके, एक-एक कदम बढ़ाते हुए सकारात्मक समाधान हासिल करते जाना चाहिए।

मैंने अपने जीवन में जिन चुनौतियों का सामना किया है, उनके बारे में लिखा भी है और उनके बारे में अकसर बातें भी की हैं; क्योंकि मैं जरूरी अंगों की कमी के साथ धरती पर पैदा हुआ था। अपने सफर के बारे में बताते हुए मैंने गौर किया है कि मेरे अंदर ईश्वर के प्रति आस्था की कमी थी और मेरे अंदर निराशा व तनाव का ही यह नतीजा था कि मैंने आत्महत्या का भी प्रयास किया। मैंने गौर किया कि कैसे मैंने यह समझ लिया कि मैं ईश्वर की गलती नहीं हूँ, बल्कि ईश्वर ने किसी योजना के तहत और किन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपने अद्वितीय बच्चे को धरती पर भेजा है।

मेरे जीवन की कहानी मेरी पूर्व की पुस्तकों में सिलसिलेवार ढंग से दर्ज है। मेरे पिता की पुस्तकों में भी इसका जिक्र है कि मुझे किन कठिनाइयों से पाला गया और अपने भाषणों एवं वीडियोज में भी मैंने इनका जिक्र किया है। इस पुस्तक में मैंने अपने जीवन की हालिया बड़ी घटनाओं और कुछ गहरे जख्मों पर अपना फोकस रखा है और इसमें मेरे जीवन के कार्यों से कहीं ज्यादा घटनाओं का जिक्र है। इसका भी जिक्र है कि कैसे मेरे विचार धरती पर ईश्वर के हाथ व पैर बन गए, कैसे हाल की कुछ चुनौतियों ने मेरे विचारों को पुख्ता बनाया तथा मजबूती प्रदान की और कैसे मैंने सोचा कि आप व मैं मिलकर अपने प्रभाव को विस्तार दे सकते हैं और कैसे हम अपनी आस्था पर चलते हुए प्रेरणा-स्रोत बनकर, स्नेह देकर, दूसरों की सेवा करके ईश्वर के बच्चों को ज्यादा-से-ज्यादा ईश्वर से जोड़ सकते हैं!

मैंने तो सोचा था कि इस पुस्तक का नाम ‘एडवेंचर्स इन इवेंजलिज्‍म’ रखूँगा, लेकिन दुर्भाग्य से ‘इवेंजलिज्‍म’ शब्द दुनिया के कुछ हिस्सों में कई बरसों से नकारात्मक रूप में देखा जाता है। मैं समझ गया।

लिमिटलेस लाइफ : ईश्वर और विश्वास की राह

मेरा मानना है कि सभी की यह जिम्मेदारी है कि वे अपनी आस्था को ज्यादा-से-ज्यादा लोगों में साझा करें और दूसरों को ईश्वर के करीब ले आएँ। उनके अनुयायी आखिरकार महिला और पुरुषों के रूप में ‘मछुआरों’ की मानिंद हैं। हम नाव में महज यात्री बनकर नहीं रह सकते। हमें अपनी जिम्मेदारी तय करनी ही होगी; क्योंकि हम ऐसे लोगों के महासागर में हैं, जिन्हें ईश्वर के स्नेह के रूप में उद्धार की शक्ति के बारे में जानना जरूरी है। मैं उम्मीद करता हूँ कि यह पुस्तक आपको अपना खुद का तरीका तलाशने के लिए प्रेरित करेगी, जो आपके लिए सबसे बेहतर हो और स्वर्ग में स्थित पिता की सर्वश्रेष्ठ रूप में सेवा करने का आपको अवसर प्रदान कर सके।

बहुत सारे ऐसे भी लोग हैं, जो पुनरुद्धार के लिए प्रार्थना करते हैं। यह ऐसा शब्द है, जो अत्यधिक प्रयुक्त हो चुका है, विशेष रूप से अमेरिका और ग्लोब के अन्य पश्चिमी हिस्सों में। पुनरुद्धार किस तरह से दिखता है? मैं निजी तौर पर इस राय से सहमति रखता हूँ कि लोगों को धर्म-सिद्धांत की बातें बताऊँ और लोगों को ईश्वर के करीब जाते हुए देखूँ, उन्हें उनके साथ सक्रिय संबंध शुरू करते हुए पाऊँ, दैनिक आधार पर उनमें परिवर्तन को महसूस कर सकूँ और लोगों को ईश्वर का सच्चा अनुयायी बना सकूँ।

बहुत सारे लोग उस एक पल का इंतजार कर रहे होते हैं, जब दरअसल ईश्वर ने हमसे उस मूलभूत चीज के बारे में कहा कि लोगों को यह बताया जाए कि वह जीवित है-ऐसा हमेशा नहीं होता। हम कहते हैं, “ईश्वर चलायमान है।” ईश्वर कहता है, “मैं तभी चलायमान हूँ, जब आप वैसे हों, यानी आपके साथ-साथ मैं चलता हूँ।” 

-निक वुईचिक.

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लिमिटलेस लाइफ 
लेखक : निक वुईचिक
अनुवाद : राहुल त्रिपाठी
पृष्ठ : 304 
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन 
पुस्तक लिंक : https://amzn.to/3B8HKwK
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