मेरे माँ पापा हम लोगों से ऐसे बात करते मानो हम वयस्क हों। वे उपदेश नहीं देते थे, हम जो भी सवाल करते वे उनके जवाब देते थे, चाहे वे हमारी उम्र के लिहाज से कितने ही बड़े सवाल क्यों न रहे हों। वे अपनी सुविधा से किसी बहस को ख़त्म नहीं होने देते थे। हम घंटों बात करते, अक्सर इसका कारण यह होता था कि क्रेग और मैं अपने उन बातों के लिए उनकी खिंचाई कर दिया करते थे जिन बातों को हम नहीं समझते थे। जब हम छोटे थे तब हम पूछते थे “लोग बाथरूम क्यों जाते हैं?” या “आपको नौकरी क्यों करनी पड़ती है?” और इसके बाद एक से एक सवाल पूछकर हम उनको परेशान कर देते थे। शुरुआती बहसों में मुझे एक बार जिस सवाल के कारण जीत मिली थी वह सवाल अपने हित से जुड़ी हुई थी: “नाश्ते के लिए हम लोगों को अंडे क्यों खाने पड़ते हैं?” जिसके बाद इस बात को लेकर बहस छिड़ गई कि प्रोटीन खाना कितना जरूरी था, जिसके बाद मैंने यह पूछा कि पीनट बटर को प्रोटीन क्यों नहीं कहा जाता था। जिसके बाद काफी बहस के बाद आखिरकार मेरी माँ को अण्डों को लेकर अपने रुख से पीछे हटना पड़ा। मुझे अंडे खाना वैसे भी पसंद नहीं था। अगले नौ साल तक इस बात को जानते हुए कि मैंने इसको हासिल किया था, मैं नाश्ते में पीनट बटर और जेली सैंडविच बनाकर खाती रही और मैंने कभी अंडा नहीं खाया।
बड़े होने के बाद हम ज्यादा बातचीत ड्रग्स और सेक्स और जीवन के विकल्पों को लेकर करने लगे, हम नस्ल और असमानता तथा राजनीति के बारे में बातें करते थे। हमारे माँ-पापा यह नहीं चाहते थे कि हम संत बन जाएँ। मुझे याद है मेरे पिता ने कहा था कि सेक्स मस्ती के लिए होता था। जीवन की सख्त सच्चाइयों को लेकर भी वे कभी मीठी मीठी बातें नहीं करते थे। उदाहरण के लिए, एक साल गर्मियों के मौसम में क्रेग ने बाइक खरीदी, उसके ऊपर सवार होकर वह पूर्व की तरफ मीशिगन लेक की तरफ गया, रेनबो बीच के साथ पटरी पर बाइक चला रहा था, जहाँ पानी से होकर आती ठंडी हवा को महसूस किया जा सकता था। जहाँ उसको पुलिस ने यह कहते हुए पकड़ लिया कि वह बाइक चुरा कर लाया था, वह इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं थे कि कम उम्र का एक अश्वेत लड़का ईमानदार तरीके से एक नई बाइक पर सवार था। (उस अफसर को, जो खुद भी अफ़्रीकी अमेरिकी था, मेरी माँ ने जमकर फटकार लगाईं, और क्रेग से माफ़ी मांगने के लिए मजबूर किया)। जो कुछ हुआ उसके बारे में हमारे माँ-पापा ने हमें बताया कि यह बात अनुचित तो थी लेकिन दुःख की बात थी कि यह असामान्य भी नहीं था। हमारे त्वचा की रंगत हमें निशाने पर ले आती थी। इस बात का हमें हमेशा ध्यान रखना पड़ता था।
पिल हिल तक मेरे पिता गाड़ी से शायद इसलिए लेकर जाते थे क्योंकि यह शायद उनकी ख्वाहिश से जुड़ी बात थी, वे शायद हमें यह दिखाना चाहते थे कि अच्छी शिक्षा हमें क्या दिला सकती थी। मेरे माँ पापा ने लगभग अपना सारा जीवन शिकागो के कुछ वर्गमील के अन्दर ही बिताया था लेकिन उनको इस तरह का कोई भ्रम नहीं था कि मैं और क्रेग भी वैसा ही करें। शादी से पहले दोनों ने ही कुछ समय सामुदायिक कॉलेज में बिताया था, लेकिन दोनों ने डिग्री हासिल करने से बहुत पहले पढ़ाई छोड़ दी थी। मेरी माँ अध्यापिका बनने के लिए पढ़ाई कर रही थीं लेकिन उनको यह समझ में आया कि उनको सेक्रेटरी के रूप में काम करना चाहिए। मेरे पापा के पास फीस देने के लिए पैसे ही नहीं रह गए, उन्होंने सेना की नौकरी कर ली। उनके परिवार में कोई ऐसा नहीं था जो उनको स्कूल की पढ़ाई वापस शुरू करने के लिए कह सके, इस बात का कोई ढांचा नहीं था कि ज़िंदगी किस तरह की होनी चाहिए। इसलिए उन्होंने दो साल सेना की अलग अलग टुकड़ियों के साथ बिताए। जबकि मेरे पिता का सपना था कि कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके वे कलाकार बनें, उन्होंने जल्दी ही अपने सपनों की दिशा को मोड़ दिया, और वे अपनी कमाई से अपने भाई को वास्तुकला की पढ़ाई करवाने लगे।
तीस साल से कुछ अधिक उम्र के होने के बाद मेरे पापा ने अपना ध्यान हम बच्चों के लिए बचत करने पर लगाया। हमारा परिवार घर खरीद कर गरीब नहीं हुआ, क्योंकि हम लोगों ने कभी घर खरीदा ही नहीं। मेरे पापा व्यवहारिक स्थान से काम चलाते रहे, क्योंकि उनको इस बात की समझ थी कि संसाधन सीमित थे और शायद समय भी। जब वे गाड़ी नहीं चला रहे होते थे तो वे आसपास घूमने के लिए छड़ी का इस्तेमाल किया करते थे। मेरी बुनियादी शिक्षा समाप्त होने से पहले वह छड़ी बैसाखी में बदल गई और जल्दी वे दो बैसाखी के सहारे चलने लगे। अन्दर ही अन्दर मेरे पिता को जो भी खाए जा रहा था, उनकी मांसपेशियां कमजोर पड़ती जा रही थी और नसें उभरने लगी थीं, वह इन बातों को अपनी निजी चुनौती के रूप में देखते थे, जिसका चुपचाप सामना किया जाए।
हमारा परिवार थोड़ी बहुत सुख सुविधाओं के साथ जीता रहा, जब क्रेग और मुझे स्कूल से रिपोर्ट कार्ड मिलते थे तब हमारे माँ-पापा इटालियन फिएस्टा से पिज़्ज़ा आर्डर करते और जश्न मनाते, जो हमारी पसंदीदा जगह थी। गर्मी के मौसम में हम पैक आइसक्रीम खरीदते थे, जिसमें चाॅकलेट, बटर पेकन और चेरी होता था- और कई दिनों तक उसको खाते थे। हर साल एयर एंड वाटर शो के दौरान हम सामान पैक करते थे और पिकनिक मनाने के लिए उत्तर में लेक मिशीगन की तरफ निकल जाते, उस बाड़ से घिरे प्रायद्वीप की सीमा तक, जहाँ पापा का पानी साफ़ करने का संयंत्र लगा हुआ था। साल में वही कुछ दिन होते थे जब कर्मचारियों के परिवारों को गेट के अन्दर जाने दिया जाता था, जहाँ झील के सामने घास का मैदान था, जहाँ से युद्धक विमान पानी के ऊपर जिस तरह से आकृतियाँ बनाते हुए गुजरते थे कि उनको देखना झील के तट के किसी पेंटहाउस को भी टक्कर दे सकता था।
हर साल जुलाई में मेरे पापा नौकरी से एक सप्ताह की छुट्टी लेते थे क्योंकि बॉयलर के रख रखाव का काम होता था, और हम सब उनकी ब्यूक में मौसी और उनके बच्चों के साथ, हम सात लोग उस दो दरवाजे वाली गाड़ी में घंटों बैठे रहते। हम शिकागो से बाहर निकलते, लेक मिशीगन के दक्षिण की तरफ तब तक गाडी से चलते रहते थे जब तक कि हम मिशीगन के व्हाइट क्लाउड में नहीं आ जाते थे। इसको ड्यूक लोगों का होलीडे रिसोर्ट कहा जाता था। उसमें एक खेलने का कमरा था, वेंडिंग मशीन थी जिससे पॉप के बोतल निकलते थे, और हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि बाहर एक बड़ा सा स्विमिंग पूल था। हम एक केबिन किराए पर ले लेते थे जिसमें किचेन भी होता था और पानी के अन्दर कूदते, बाहर आते हुए हम अपना वक्त बिताते थे।
मेरे माँ-पापा बारबेक्यू करते, सिगार पीते, और मौसी के साथ कार्ड खेलते थे, लेकिन मेरे पापा काफी समय निकालकर हम बच्चों के साथ पूल में भी आते थे। मेरे पापा सुन्दर थे, मूंछें रखते थे, उनकी मूंछें होठों से हंसिये की तरह नीचे की तरफ झुकी हुई थी। उनकी छाती और उनकी बांहें चौड़ी थी और उनकी मांसपेशियां उभरी हुई थी, जो इस बात का सबूत थी कि वे एथलीट रह चुके थे। उन लम्बी दोपहरों में जब वे पूल में होते, तो वे हाथ पाँव मारते और हँसते और हम लोगों के छोटे छोटे शरीर को हवा में उछाल देते, उनके कमजोर पड़ चुके पाँव अचानक उनके लिए हलके बन जाते थे।
गिरावट को माप पाना आसान नहीं होता, खासकर जब आप उससे घिरे हुए हों। हर सितम्बर जब क्रेग और मैं ब्रायन मावर एलेमेंट्री में लौटकर आते तो हम पाते कि खेल के मैदान में पहले से कम श्वेत बच्चे होते। कुछ लोगों को पास के कैथोलिक स्कूल में भेज दिया गया होता था, लेकिन अनेक लोग आसपास को छोड़कर जा चुके होते थे। पहले ऐसा लगा कि श्वेत परिवार वहां से छोड़कर जा रहे थे, लेकिन बाद में यह भी बदल गया। ऐसा लगने लगा कि जिसके पास भी वहां से जाने के लिए साधन थे वह जा रहा था। ज्यादातर बिना बताये और जाने का कारण बताये जाते थे। हम याकर परिवार के घर के बाहर “बिकाऊ” की पट्टी लगे देखते या टेडी के घर के बाहर सामान ले जाने वाली वैन खड़ी देखते तो हम समझ जाते थे कि क्या होने वाला है।
शायद मेरी माँ के लिए सबसे बड़ा झटका था जब उनकी दोस्त वेलमा स्टीवर्ट ने इस बात की घोषणा की कि उन लोगों ने पार्क फाॅरेस्ट नामक उपनगर में एक घर खरीद लिया था। स्टीवर्ट के दो बच्चे थे और वे युक्लिड के एक ब्लाॅक में रहते थे। हम लोगों की तरह वे अपार्टमेंट में रहते थे। मिसेज स्टीवर्ट बहुत मजाकिया स्वभाव की थी और ठहाका मारकर हंसती थीं, जिसके कारण मेरी माँ उनकी तरफ आकर्षित हुई थीं। दोनों रेसिपी का आदान-प्रदान करती और एक दूसरे के साथ बनी रहती लेकिन कभी आस पड़ोस की मम्मियों की तरह गॉसिप नहीं करती थीं। मिसेज स्टीवर्ट का बेटा डॉनी क्रेग की उम्र का ही था और उसकी ही तरह खेलकूद का शौक़ीन, जिसके कारण दोनों में देखते ही दोस्ती हो गई। उनकी बेटी पामेला पहले ही टीनएजर हो चुकी थी और उसकी मुझमें किसी तरह की रूचि नहीं थी, लेकिन मुझे हर टीनएजर रहस्यमय जैसी लगती थी। मिस्टर स्टीवर्ट के बारे में मुझे कुछ ख़ास याद नहीं है सिवाय इस बात के कि वे शहर की एक बड़ी बेकरी कंपनी का डिलीवरी ट्रक चलाते थे और वह, उनके पति और बच्चे बेहद हलकी रंगत वाले अश्वेत थे। वैसी रंगत वाले अश्वेत परिवार से मैं पहले कभी नहीं मिली थी।
उपनगर में उन्होंने किस तरह से घर खरीद लिया मैं इस बात का अनुमान नहीं लगा सकती थी। यह पता चला कि पार्क फाॅरेस्ट का पहला पूरी तरह नियोजित समुदाय था- वह केवल आवास सम्बन्धी व्यवस्था नहीं थी, बल्कि एक पूरी तरह से नियोजित गाँव था, जिसे करीब तीस हजार लोगों के रहने के लिए बनाया गया था, जहाँ शॉपिंग मॉल, चर्च, स्कूल और पार्क भी बने हुए थे। इसको 1948 में बसाया गया था और यह एक तरह से उपनगरीय जीवन का आदर्श साबित हुआ, जहाँ बड़े पैमाने पर बने बनाये घर थे और कुकी काटने के अहाते बने हुए थे। हर ब्लॉक में कितने अश्वेत परिवार रह सकते थे इसकी संख्या भी निर्धारित थी, हालांकि जब तक स्टीवर्ट वहां गए तब तक वह सीमा समाप्त हो चुकी थी।
उन्हें गए अधिक दिन नहीं हुए थे जब स्टीवर्ट ने हमें आमंत्रित किया कि जिस दिन पापा की छुट्टी हो उस दिन हम उनके पास जा सकते थे। हम लोग खूब उत्साहित थे। हम लोगों के लिए, यह नए तरह का घूमना था, जिन उपनगरों के बारे में किस्से कहानियां सुनते थे उनको देखना। हम चारों ब्यूक में बैठकर एक्सप्रेसवे पर दक्षिण की तरफ शिकागो जाने वाली सड़क पर निकल पड़े, जोश में भरे हुए हम चालीस मिनट बाद खाली पड़े एक शौपिंग प्लाज़ा के बाहर आकर रुके। उसके बाद हम मिसेज स्टीवर्ट के बताये अनुसार खामोश सड़कों पर आड़े तिरछे बढ़ते रहे, एक समान दिखाई देने वाले एक ब्लाक से दूसरे ब्लाक की तरफ मुड़ते हुए। पार्क फाॅरेस्ट ट्रैक्ट होम्स के लघु रूप की तरह था- रैंच की शैली में बने हुए घर और सामने की तरफ हाल में ही लगाए गए पेड़ पौधे, झाड़ियाँ।
“अब कोई सब कुछ छोड़कर यहाँ क्यों रहना चाहेगा?” मेरे पापा ने डैशबोर्ड के सामने देखते हुए कहा। मैं उनसे सहमत थी कि इस बात का कोई मतलब नहीं था। जहाँ तक मैं देख सकती थी मुझे वैसा बड़ा कोई पेड़ नहीं दिखाई दिया जैसा ओक का पेड़ मेरे घर में बेडरूम के बाहर दिखाई देता था। पार्क फाॅरेस्ट में सब कुछ नया था, चौड़ा था और वहां भीड़भाड़ नहीं थी। कोने में बनी शराब की कोई दुकान नहीं थी जिसके बाहर बदमाश किस्म के लड़के खड़े रहते हों। हॉर्न या सायरन बजाती गाड़ियाँ नहीं थीं। किसी की रसोई से संगीत की आवाज़ नहीं आती थी। घरों की सारी खिड़कियाँ बंद दिखाई दे रही थीं।
क्रेग को वह यात्रा बहुत आनंददायक लगी थी, खासकर इस वजह से क्योंकि उसने वहां दूर दूर तक खुले मैदान में डॉनी स्टीवर्ट और उसके नए दोस्तों के साथ दिन भर बॉल खेला था। मेरे माँ-पापा को मिस्टर और मिसेज स्टीवर्ट से मिलकर बेहद ख़ुशी हुई, और मैं पामेला के साथ साथ आसपास घूमती रही, उसके खुले बालों, उसकी सफ़ेद त्वचा और टीनएज में पहने जाने वाले गहनों को देखते हुए।
जब हमने आखिर में अलविदा कहा तब शाम हो चुकी थी। स्टीवर्ट को छोडकर शाम के धुंधलके में चलते हुए हम उस मोड़ तक आये जहाँ पापा ने गाड़ी पार्क कर रखी थी। दिन भर खेलने के कारण वह पसीने पसीने था, उसके पांवों में दर्द हो रहा था। मैं भी बहुत थक गई थी और घर जाना चाहती थी। उस जगह में कुछ ऐसा था जिससे मुझे चिढ़ हो गई थी। मुझे उपनगर वैसे भी कुछ ख़ास पसंद नहीं थे, हालाँकि मैं यह नहीं बता सकती थी कि क्यों।
माँ ने बाद में स्टीवर्ट के बारे में एक बात कही कि उनके नए समुदाय में, एक बात यह थी कि वहां रहने वाले सभी निवासी श्वेत लग रहे थे।
“मुझे हैरानी हुई,” वह बोली। “जब तक हम लोग उन लोगों से मिलने नहीं गए थे तब तक किसी को भी यह नहीं पता था कि उनका परिवार अश्वेत था।”
उनको लग रहा था कि अनजाने में हमने उनकी असलियत को उजागर कर दिया, दक्षिण की तरफ से नए घर में आने का तोहफा लेकर अपनी अश्वेत रंगत के कारण। हालाँकि ऐसा नहीं था कि स्टीवर्ट परिवार अपनी नस्ल को जानबूझकर छिपा रहा था, लेकिन शायद इस बारे में वे अपने पड़ोसियों से बात नहीं करते थे। उनके ब्लॉक का जैसा माहौल था उन्होंने उसको अधिक बाधित नहीं किया था। कम से कम जब तक हम लोग गए थे, तब तक तो नहीं ही।
जब मेरे पापा कार के पास पहुंचे तो कोई खिड़की से देख रहा था क्या? क्या परदे के पीछे कोई छाया थी, यह देखने के लिए इन्तजार करती कि सब कुछ कैसे हो? मुझे कभी पता नहीं चलेगा। मुझे यह याद है कि मेरे पापा का शरीर किस तरह तन गया था जब वे गाड़ी के ड्राइवर वाली सीट की तरफ पहुंचे और उन्होंने जो देखा। उनकी प्यारी ब्यूक कार की एक तरफ किसी ने एक लाइन खींचकर खरोंच लगा दी थी। किसी ने गेट से लेकर कार के पीछे की तरफ तक एक पतली लेकिन गहरी लाईन खींच दी थी। लाइन या तो चाबी से खींची गई थी या किसी पत्थर के टुकड़े से लेकिन वह किसी भी तरह से दुर्घटना नहीं थी।
मैंने पहले भी कहा है कि मेरे पापा सहनशील थे, एक ऐसा आदमी जो किसी छोटी बड़ी बात के लिए शिकायत नहीं करते थे, जिनको जो भी दिया जाता था हँसते हँसते उसी को खा लेते, उनको एक डॉक्टर ने वह दिया जो मौत के समान था लेकिन वे अब भी जिन्दा थे। कार के साथ जो हुआ वह भी कोई अलग नहीं था। अगर लड़ाई की कोई गुंजाइश होती या जवाब देने के लिए कोई जरिया होता भी तो मेरे पापा तब भी कुछ नहीं करते।
“हाँ, लगता है मेरे ऊपर कोई अभिशाप होगा,” उन्होंने कार की गेट खोलने से पहले कहा।
उस रात शहर लौटते वक्त हम लोगों ने जो कुछ भी हुआ था उसको लेकर कोई ख़ास चर्चा नहीं की। यह बहुत थकाऊ था। शायद वह बहुत व्याख्या की मांग करता था। हम किसी भी तरह के आयोजन में उपनगर नहीं जाते। मेरे पापा को अगले दिन कार चलाकर यह देखने के लिए जाना पड़ा कि क्या हुआ था, लेकिन इससे उनको कुछ फ़ायदा नहीं हुआ। लेकिन उनका यह गुस्सा बहुत दिनों तक नहीं रहा। जैसे ही समय मिला वे कार को लेकर सियर्स में मिस्त्री की दुकान में गए और उन्होंने उस निशान को मिटवा लिया।
-मिशेल ओबामा.
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बिकमिंग : मेरा जीवन सफ़र
लेखक : मिशेल ओबामा
अनुवाद : कुमारी रोहिणी
पृष्ठ : 424
प्रकाशक : हिंद पॉकेट बुक्स
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