अरुणिमा : घरेलू सहायिकाओं के जीवन के उपेक्षित और अनछुए पहलुओं को दर्शाता उपन्यास

अरुणिमा / रीता कौशल

प्रवास में रहकर हिंदी साहित्य की धारा को सुदृढ़ करनेवाले साहित्यकारों में रीता कौशल एक जाना–पहचाना नाम हैं। संवेदनशील और मानवीय मुद्दों पर कहानियाँ लिखकर अपना विशेष पाठक वर्ग सुनिश्चित करनेवाली रीता कौशल का यह पहला उपन्यास है, जो ‘अरुणिमा’ नाम से सामने आया है। उपन्यास हालातों और मजबूरियों के कारण निर्धन देशों से धनाढ्‍‍य देशों में ले जाई जानेवाली घरेलू सहायिकाओं के जीवन के उपेक्षित और अनछुए पहलुओं को हमारे सामने रखता है, जो त्रासदपूर्ण होने के साथ ही कारुणिक भी हैं। अति आधुनिक और संभ्रांत कहे जानेवाले परिवारों में घरेलू मेड्स का किस हद तक और किन–किन बहानों से शोषण किया जा सकता है, लेखिका ने अपनी पैनी नजर से इसका खुलासा किया है। 

उपन्यास की नायिका अरुणिमा के जीवन की विभिन्न घटनाओं को पढ़ते हुए पाठकों को ऐसा महसूस होता है मानो वे एक ऐसी अँधेरी सुरंग से गुजर रहे हैं, जिसमें हर तरफ अंधकार है, न जीने की कोई किरण है, न उससे बाहर निकलने का कोई रास्ता। इस सुरंग में परत-दर-परत संघर्षों की कभी न खत्म होनेवाली वे गलियाँ हैं, जहाँ छोटी-छोटी गलतियों पर भयंकर जुरमाना लगाया जाता है, बात-बात पर धमकियाँ दी जाती हैं, मालिकों पर डोरे डालने का आरोप लगाकर चरित्र-हनन किया जाता है, विदेश में अकेले होने पर भी किसी से बातचीत करने तक पर प्रतिबंध लगाया जाता है, व्यक्तिगत अवकाश के नाम पर एक दिन भी नहीं दिया जाता। शोषण की हद तो तब सामने आती है, जब शारीरिक संबंध बनाने और बच्चा पैदा करने की गलती हो जाने के कारण इन मेड्स को ब्लैकलिस्टेड करके वापिस देश भेजने के दंड विधान का हवाला दिया जाता है। मानसिक और शारीरिक शोषण सबकुछ सहने के बावजूद घुटती-दबती आकांक्षाओं के साथ जीने के अलावा इनके पास कोई विकल्प नहीं, क्योंकि आर्थिक मजबूरियों के चलते देश वापसी संभव नहीं होती। 

अरुणिमा / रीता कौशल

कथावस्तु को विस्तार देते हुए उपन्यासकार ने खुशी और नाखुशी के भँवर में झूलते माँ-बाप के उस संवेदनात्मक पहलू को भी रेखांकित किया है, जो विवशतावश अपनी बेटियों को विदेशों में भेजते हैं। वे उन एजेंट्स के चक्रव्यूह में प्रवेश करके उसे भेदित करने का यत्न भी करती हैं, जो मेड्स की मजबूरियों का फायदा उठाकर उनकी सैलरी से अपना नाजायज हिस्सा बनाते हैं और मालिकों से कमीशन लेकर ऐशपूर्ण जीवन बिताते हैं। रीता कौशल कहानी के बीच-बीच में देश के उन चर्चित मामलों की भी बात करती चलती हैं, जो मेड्स के मूलभूत अधिकारों और देश की न्यायिक प्रक्रिया की जानकारी देते हैं। ऐसा करके वे न केवल देश के संविधान को गरिमा देती हैं, बल्कि उपेक्षित वर्ग के जख्मों पर आहिस्ता से मरहम भी लगा जाती हैं। 

अपनी विषयगत मौलिकता और पठनीयता के कारण उपन्यास लंबे समय तक चर्चा में रहेगा और अपना स्थान भी बनाएगा, इस बात की आश्वस्ति है।

-डॉ. नूतन पाण्डेय
सहायक निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय,
शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार

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अरुणिमा
लेखक : रीता कौशल
पृष्ठ : 200 
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन 
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