किसी संकटग्रस्त इलाके में रहना-जीना तो मुश्किल होता ही है मगर उससे ज्यादा कठिन होता है वहां रहकर पत्रकारिता करना। पत्रकार आशुतोष भारद्वाज ने इंडियन एक्सप्रेस मे काम करने के दौरान रायपुर में चार साल बिताये और संकटग्रस्त बस्तर पर ऐसा अनोखा लिखा जिसे भुलाना मुश्किल होगा। आशुतोष की किताब 'मृत्यु-कथा : नक्सल देश की मरीचिका' चौंकाने वाली किताब है। जिसमें बस्तर के किरदारों आदिवासी, नक्सली, पुलिस की दिल को छू लेने वाली कहानियाँ हैं। ये सच्ची कहानियाँ आशुतोष ने बस्तर के जंगलों से, पुलिस थानों की फाइलों से और आंध्रप्रदेश के कस्बों से निकाली हैं। आशुतोष ने इन कहानियों को अलग अंदाज में लिखा है। जिसे पढकर कई दफा आप चौंक जायेंगे तो कहीं-कहीं आपके रोंगटे खडे हो जायेंगे। पत्रकार की सच्चाई और कथाकार की गहराई दोनों आपको आशुतोष की इस एक किताब में मिल जायेगी।
किसी संकटग्रस्त इलाके में रहना-जीना तो मुश्किल होता ही है मगर उससे ज्यादा कठिन होता है वहां रहकर पत्रकारिता करना। पत्रकार आशुतोष भारद्वाज ने इंडियन एक्सप्रेस मे काम करने के दौरान रायपुर में चार साल बिताये और संकटग्रस्त बस्तर पर ऐसा अनोखा लिखा जिसे भुलाना मुश्किल होगा। आशुतोष की किताब 'मृत्यु-कथा : नक्सल देश की मरीचिका' चौंकाने वाली किताब है। जिसमें बस्तर के किरदारों आदिवासी, नक्सली, पुलिस की दिल को छू लेने वाली कहानियाँ हैं। ये सच्ची कहानियाँ आशुतोष ने बस्तर के जंगलों से, पुलिस थानों की फाइलों से और आंध्रप्रदेश के कस्बों से निकाली हैं। आशुतोष ने इन कहानियों को अलग अंदाज में लिखा है। जिसे पढकर कई दफा आप चौंक जायेंगे तो कहीं-कहीं आपके रोंगटे खडे हो जायेंगे। पत्रकार की सच्चाई और कथाकार की गहराई दोनों आपको आशुतोष की इस एक किताब में मिल जायेगी।
''बस्तर में जिंदगी बहुत सस्ती है। यह संविधान की किताब से नहीं चलती बंदूक की गोली पर टिकी रहती है। एक कारतूस भी अगर ठीक जगह छुए इंसान को, उसे चुप लाश बनाता है। बंदूक के घोड़े को दबाती अंगुली भूलवश बेरहम मान ली जाती है, मगर वह महज अपने ऊपर मंडराते भय पर मंत्र फूंक रही होती है।'' इस किताब की ये पंक्तियाँ बस्तर में चल रहे नक्सली और पुलिस के बीच के अनचाहे संघर्ष को कितनी सच्चाई से बयान करती हैं देखिये। इस संघर्ष के बीच पिस रहे आदिवासियों की अपनी अंतहीन दर्द की कथाएं हैं। वो आदिवासी जो नक्सलियों के कहने पर बंदूक उठाते हैं, पुलिस को दुश्मन मानते हैं और जान हथेली पर लेकर अबूझमाड़ के जंगल में मौत के साये में दिन बिताते रहते हैं। इसी जंगल में पनपती हैं प्रेम कथाएं। और यही प्रेम वो काम करता है जो मौत का भय और पुलिस का डर नहीं कर पाता यानी कि प्रेम में बाकी ज़िंदगी बिताने के लिये नक्सली का अपने साथी के साथ समर्पण। ऐसी कुछ सफल तो कुछ असफल प्रेम कथाओं को लेखक ने कड़वी सच्चाई के साथ लिखा है।
बस्तर मृत्यु का अजायबघर है। बस्तर देश का नक्सल मुख्यालय है। बस्तर में सक्रिय नक्सलियों के जुनून, उनकी ज़िंदगी, उनकी दरिंदगी, उनका प्रेम, उनकी विचारधारा, उनका मोहभंग कुछ भी तो नहीं छोड़ा आशुतोष ने, सब कुछ बहुत सच्चाई के साथ लिखा है। आदिवासियों पर हुए अत्याचार, उनकी मौतें और मौतों के बाद उनकी पोस्टमार्टम रिपोर्ट से लेखक ने ऐसी कहानियाँ बुनीं हैं जो बस्तर से बाहर रहने वालों के लिये किसी अजूबे से कम नहीं हैं। लेखक अपने आपको डेथ रिपोर्टर कहते हैं। क्योंकि बस्तर में होने वाले धमाकों या मुठभेड़ में एक दो नहीं अनेक मौतें होती हैं और उसके बाद होती हैं सिर्फ जांच। जांच रिपोर्ट की खोजबीन कर लेखक ने बस्तर में चल रहे अंतहीन संघर्ष और उनके किरदारों के बारे में भी ऐसे संस्मरण लिखे हैं जो दिल को छू लेने वाले हैं।
आशुतोष जितने अच्छे पत्रकार हैं उससे बेहतर कथाकार हैं और उनके इन दोनों किरदारों ने मिलकर ये बेजोड़ किताब लिखी है। जिसे हर पत्रकार और कथाकार को पढ़नी चाहिये। हर अच्छा पत्रकार चाहेगा कि वो भी संकट वाले इलाकों से ऐसी ही यादगार किताब लिखे जैसी नक्सल इलाके से आशुतोष ने 'मृत्यु-कथा' लिखी है। पहले ये किताब अंग्रेजी में आयी है जिसे कई प्रमुख पुरस्कार मिल चुके हैं। दिलचस्प ये है कि ये किताब मूल तौर पर हिंदी में ही लिखी गयी मगर इसके बाद भी हिंदी मे आने में इसे वक्त लगा मगर आयी तो इसके लिये प्रकाशक का धन्यवाद।
-ब्रजेश राजपूत
(लेखक ABP न्यूज़ से जुड़े हैं. उन्होंने कई बेस्टसेलर पुस्तकें लिखी हैं)
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मृत्यु-कथा : नक्सल देश की मरीचिका
लेखक : आशुतोष भारद्वाज
पृष्ठ : 282
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
पुस्तक लिंक : https://amzn.to/3AC8yoe
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