कुबेर की जीवन-गाथा के जरिए सामाजिक और आर्थिक विचार

कुबेर : लंका का पूर्व राजा

आशुतोष गर्ग पौराणिक कथाओं के ऐसे पात्रों के बारे में खोजपूर्ण और तार्किक लेखन करते आ रहे हैं जिनके बारे में लोग जानते तो हैं, लेकिन पर्याप्त जानकारी उनके पास नहीं है। वे कल्पना के सहारे जहां मनोरंजक सामग्री भी इन कथाओं में जोड़ने में सिद्धहस्त हैं, वहीं हज़ारों वर्ष पुरानी इन कथाओं को वर्तमान के साथ लयबद्ध करने में भी कुशल हैं। यही वजह है कि उनकी सभी किताबें पाठक-रुचि के साथ पढ़ते हैं।

मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने आशुतोष गर्ग की नई किताब 'कुबेर : लंका का पूर्व राजा' को प्रकाशित किया है। यह एक उपन्यास है। इसके शीर्षक से ही पता चलता है कि कुबेर भी कभी लंका का राजा था। यह तो सभी जानते हैं कि कुबेर धन का देवता है। यह कम ही लोगों को पता होगा कि रावण से पूर्व लंका पर कुबेर का राज था। इस उपन्यास में लेखक ने पौराणिक कथाओं तथा अपनी कल्पनाओं के मिश्रण से कुबेर के जन्म से लेकर लंका का राजा बनने, लंका उससे छिनने आदि की बहुत ही मनोरंजक पटकथा तैयार की है। कुबेर की जीवन-गाथा के जरिए सामाजिक और आर्थिक विचार भी प्रस्तुत किए गए हैं।

कुबेर : लंका का पूर्व राजा

उपन्यास में कई ऋषि-मुनियों के शाप और वरदान अपना महत्त्व बनाए हुए हैं, साथ ही पाण्डवों से संबंधित एक विशेष घटना भी जुड़ी है। यही नहीं राम-रावण संघर्ष की घटनायें भी जुड़ गयी हैं। लेखक के मुताबिक कुबेर और रावण सगे मौसेरे भाई थे। लंका पर कब्जे को लेकर दोनों में शत्रुता बरकरार रही। फलस्वरुप दोनों के झगड़े में सोने की लंका किसी के भी पास नहीं थी।

संस्कृत के विद्वान कवि तुलसीदास का मेघदूत भी कुबेर के साथ चलता रहा है। कुल मिलाकर यह किताब पौराणिक कथाओं पर भरोसा करने वालों के लिए ज्ञानवर्द्धक है और अन्य पाठकों के लिए मनोरंजक सामग्री प्रस्तुत करती है।

आशुतोष गर्ग के शब्दों में : 'धन के देवता कुबेर के माध्यम से आज की एक गंभीर सामाजिक-आर्थिक समस्या को भी उठाया गया है। कलियुग में हमारे समक्ष दो विकल्प हैं। हम उनमें से कौन-सा विकल्प चुनते हैं, इस बात से तय होगा कि नियति हमें पतन की ओर ले जाएगी अथवा हमारे जीवन का उद्धार होगा।'

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कुबेर : लंका का पूर्व राजा
लेखक : आशुतोष गर्ग
पृष्ठ : 236
प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस
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