इकिगाई में जीवन में खुशियाँ समाई हैं। यह हमारे होने का कारण है। इकिगाई की मदद से आप जीवन में हर दिन संतुलन, प्रसन्नता और तृप्ति ढूँढ़ पाते हैं।
इकिगाई मात्र एक जीवन-दर्शन या विचारधारा नहीं बल्कि एक परिवर्तनकारी मानव-अनुभव है।
इकिगाई किसी कंपास की तरह कॅरियर और जीवन के फैसलों में राह दिखा सकता है।
विश्व की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक के पालने में बसा एक ऐसा द्वीप है, जिसकी प्रसिद्धि भी उतनी ही आश्चर्यजनक है। ओकिनावा विश्व के पाँच ब्लूजोन (जहाँ सबसे अधिक दीर्घायु वाले और स्वस्थ लोग रहते हैं) में से एक ओकिनावा एशिया में उपोष्णकटिबंधीय वर्षा वन के सबसे बड़े क्षेत्रों में से एक है। इन वर्षा वनों को ‘यानबारू’ कहा जाता है, जहाँ वनस्पतियों और जीवों की स्थानीय प्रजातियाँ पाई जाती हैं। लेकिन ओकिनावा की प्रसिद्धि पारिस्थितिक विविधता तक ही सीमित नहीं है। ओकिनावा विश्व के उन स्थानों में शामिल है, जहाँ सबसे अधिक शतायु वाले लोग हैं-वहाँ प्रति 10,000 लोगों में से लगभग 6.5 लोग सौ वर्ष या उससे अधिक आयु के होते हैं। तो दुनिया के सबसे प्राचीन क्षेत्रों में से एक, जो स्वास्थ्य एवं कल्याण के लिए जाना जाता है, का संबंध लोगों के दीर्घायु होने से कैसे है?
इसका उत्तर संभवतः उन सबसे पुरानी विचारधाराओं मेंसे एक में निहित हो सकता है, जो अभी भी मौजूद हैं।
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इकिगाई
उत्पत्ति
तो इकिगाई क्या है?
यह ‘इकिरु’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है-‘जीवन’ और ‘काई’, जिसका अर्थ है-‘यह समझना कि व्यक्ति क्या आशा करता है।’ इन दोनों शब्दों को जोड़ दिया जाए तो बनता है-इकिगाई, जिसका अर्थ होता है-‘जीने का कारण’।
आइए, इकिगाई के बारे में थोड़ा और जानें।
इस अवधारणा की उत्पत्ति चौदहवीं शताब्दी में दिखाई पड़ती है। ऐतिहासिक महाकाव्य ‘ताइहेइकी’ में इसका उल्लेख किया गया है। बाद में बीसवीं शताब्दी की शुरुआत के ग्रंथों, जैसेकि नात्सुम सोसेकी के 1912 के ग्रंथ ‘कोजिन’2 में भी इसका उल्लेख किया गया है।
सीधे शब्दों में कहें तो इकिगाई जीवन में खुशियाँ लाता है।
जापानी शब्दकोश इकिगाई को इस तरह परिभाषित करते हैं, जैसे- ‘इकिरु हरिआई’, ‘योरोकोबी’, ‘मीएट’ (जीने के लिए कुछ, जीवन का आनंद और लक्ष्य) और ‘इकिटे इरु डाकेनो नेउची, इकिटे इनु कोफुकु, रिएकी’ (जीने योग्य जीवन, जीवित होने की खुशी और लाभ)।
विभिन्न व्याख्याओं को मिलाकर इकिगाई को इस प्रकार वर्णित किया जा सकता है-
💙अस्तित्व / जीवित रहने का कारण।
💙जिस कारण से आप सुबह उठते हैं।
💙सीधा अनुवाद है-‘व्यस्त रहने की खुशी’।
सरल ढंग से कहा जाए तो इकिगाई आपको अपने दैनिक जीवन में संतुलन, आनंद और संतुष्टि की खोज करने में मदद करता है।
जापानी मनोवैज्ञानिक मिचिको कुमानो (2017) ने कहा है कि इकिगाई स्वस्थ रहने की एक स्थिति है, जो उन गतिविधियों के प्रति समर्पण से उत्पन्न होती है, जिनसे व्यक्ति को आनंद मिलता है और जो संतुष्टि भी देती है।
इकिगाई केवल एक जीवन-दर्शन या विचारधारा नहीं है, बल्कि एक परिवर्तनकारी मानवीय अनुभव है। ये ऐसे सिद्धांत हैं, जिन पर आप अपने जीवन का आधार तैयार कर सकते हैं। ये आपको कठिनाई के समय में प्रेरणा और लचीलापन दे सकते हैं; साथ ही ये आपको आपके वास्तविक स्वरूप से परिचित कराते हैं, जिससे आप वास्तव मेंजो हैं, सच्चे अर्थों में वही बन सकें। लंबी जीवन प्रत्याशा ऐसी स्वस्थ और सचेत जीवन-शैली का एक परिणाम या परिणति मात्र है।
लेकिन क्या इकिगाई का बस, यही अर्थ है? कुछ प्राचीन अवधारणाएँ हैं, जो आपको प्रसन्नता दे सकती हैं!
यह वास्तव में कैसे कार्य करता है?
इकिगाई आपके अस्तित्व को ऊर्जा से परिपूर्ण करता है, क्योंकि यह उन सभी पहलुओं को जोड़ने में आपकी मदद करता है, जो आपको उस आनंद को खोजने में मदद करते हैं-परिवार, दोस्त, जुनून, जीवन-शैली, शौक, ऐसी चीजें-जिनका हम अपने बचपन में भरपूर आनंद लेते हैं और जिन्हें हम बड़े होने के साथ-साथ पीछे छोड़ते चले जाते हैं।
लेकिन हम उस संतुलन, आनंद और संतुष्टि को कैसे पुनः प्राप्त करें?
इसके लिए आइए, अब हम मानव सभ्यता की सबसे बड़ी त्रासदियों में से एक-द्वितीय विश्व युद्ध से उभरनेवाले कार्यों और एक मनोचिकित्सक के कार्यों पर नजर डालें, जिसका कार्य उस समय लोगों द्वारा सहन की गई कठिनाइयों पर आधारित था।
लॉगोथेरैपी के समर्थक न्यूरोलॉजिस्ट व मनोचिकित्सक विक्टर फ्रैंकल ने यह सिद्धांत प्रस्तुत किया कि उद्देश्यपूर्ण जीवन की खोज के लिए अभिप्रेरित रहना मानव का स्वभाव है।
फ्रैंकल ने 1940 के दशक में नाजी कंसेंट्रेशन शिविरों में अपने अनुभव के बाद मनोचिकित्सा की एक पद्धति के रूप में लॉगोथेरैपी का विकास किया था। यह इस सिद्धांत पर आधारित है कि जीवन का अर्थ एवं उसके उद्देश्य की खोज लोगों को जीवन में कठिनाई और पीड़ा सहनेमेंसहायता कर सकती है।
लॉगोथेरैपी रोगियों को उनके न्यूरोसिस का सामना करने के लिए अपने जीवन के उद्देश्य की खोज करने को प्रेरित करती है। अपनी नियति को पूरा करने की उनकी इच्छा, उन्हें अतीत की मानसिक जंजीरों को तोड़कर और रास्ते में आनेवाली सभी बाधाओं को पार कर आगे बढ़ने को प्रेरित करती है।
अनेक पश्चिमी चिकित्सा-पद्धतियाँ रोगी की भावनाओं को नियंत्रित करने या संशोधित करने पर ध्यान केंद्रित करती हैं। पश्चिम में चिकित्सा-पद्धति इस तथ्य पर केंद्रित होती है कि हम जो सोचतेहैं, वह प्रभावित करता है कि हम कैसा महसूस करतेहैंऔर फिर वह हमारे कार्य करने के तरीके को प्रभावित करता है।
इसके विपरीत, एशिया में मोरिता थेरैपी जैसी पद्धतियों के समर्थक रोगियों को उनकी भावनाओं को नियंत्रित करने की कोशिश किए बिना उन्हें स्वीकार करना सिखाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं; क्योंकि उनका मानना है कि ऐसे रोगियों की भावनाएँउनकेअपने कार्यों केपरिणामस्वरूप बदल जाएँगी।
जापानी मनोचिकित्सक शोमा मोरिता द्वारा विकसित मोरिता थेरैपी ज़ेन बौद्ध धर्म के सिद्धांतों पर आधारित है। इस पद्धति को शुरू में एंग्जाइटी न्यूरोसिस के उपचार के रूप में विकसित किया गया था। समय बीतने के साथ इसे उन लोगों के इलाज के अनुकूल बनाया गया, जिन्हें अस्पताल में भरती करने की जरूरत नहीं रहती और इस पद्धति को भावनात्मक स्वास्थ्य, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को हल करने की दृष्टि से विकसित किया गया।
लॉगोथेरैपी और मोरिता थेरैपी दोनों भावनात्मक अनुकूलन को नियंत्रित करनेवाले व्यक्तिगत अनुभवों का पता लगाकर भावनात्मक एवं मानसिक अंतर का इलाज करने के दृष्टिकोण पर आधारित हैं। चूँकि लॉगोथेरैपी और मोरिता थेरैपी दोनों ही उद्देश्य को काफी महत्त्व देते हैं तो आइए, अब हम उद्देश्य और इकिगाई में इसकी भूमिका का पता लगाएँ।
उद्देश्य और इकिगाई विषय पर इस पुस्तक में एक अलग अध्याय में विस्तृत चर्चा की गई है; लेकिन जीवन के उद्देश्य और हमारे स्वास्थ्य के बीच संबंध को इंगित करने के पर्याप्त वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद हैं। आइए, देखें कि यह आपसी संबंध कितना मजबूत है।
इस क्षेत्र में कई अध्ययन हुए हैं, जिनमें जीवन के उद्देश्य का पता लगाने और ऐसा करनेवाले लोगों के स्वास्थ्य के बीच संबंध को उजागर किया गया है। एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन से पता चला है कि जिन लोगों के जीवन में किसी उद्देश्य की भावना होती है, उनमें मृत्यु और हृदय रोग का खतरा कम होता है। क्यों? शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग अपने जीवन में कुछ उद्देश्य महसूस करते हैं, वे प्राय: स्वस्थ जीवन-शैली अपनाते हैं। वे अधिक प्रेरित व लचीले होते हैं और उनके तनाव एवं थकान से ग्रस्त होने की आशंका कम होती है।
दूसरे शब्दों में, अच्छे स्वास्थ्य के कारण लंबे समय तक जीने की संभावना।
अध्ययनों से यह भी पता चला है कि उद्देश्य की परिभाषा एक भौगोलिक क्षेत्र से दूसरे में भिन्न होती है। अमेरिका के लोगों ने ‘उद्देश्य’ को ‘दूसरों के लिए उपयोगिता’ के रूप में परिभाषित किया है; जबकि जापान के लोगों ने उद्देश्य को खुशी की अधिक गहरी, अधिक विस्तृत व्याख्या के रूप में परिभाषित किया है।
कुछ अर्थों में, इकिगाई कॅरियर और जीवन दोनों को दिशा देने में एक कंपास के रूप में कार्य कर सकता है, जिसकी-ऐसा लगता है कि-लोगों को अब पहले से कहीं अधिक जरूरत है। अध्ययनों से पता चला है कि 20 प्रतिशत से अधिक मिलेनियल्स (वर्ष 1981 से 1996 के बीच जनमे लोग) और जेन एक्स (वर्ष 1965 से 1980 के बीच जनमे लोग) ने कहा है कि उनका दीर्घकालिक लक्ष्य ऐसा कार्य करना है, जिसके प्रति उनमें जुनून है।
इकिगाई : नए व पुराने को जोड़ना
इकिगाई के अनेक सिद्धांत उस प्राचीन ज्ञान पर आधारित हैं, जिसमें संयम में आहार, व्यायाम, मजबूत सामाजिक संबंध, परिवार एवं दोस्तों की बात कही गई है।
पश्चिमी हेडोनिज्म (सुखवाद) ने अस्तित्व से जुड़ी निराशा को जन्म दिया है, जो परस्पर विरोधी इच्छाओं से उत्पन्न होती है। एक ओर लोग अर्थपूर्ण और परिणामपरक जीवन जीना चाहते हैं; वहीं दूसरी ओर, वे जीवन-शैली और पैसे से मिलनेवाली सुख-सुविधाओं के आदी हैं।
अस्तित्व से जुड़ा यह संकट आधुनिक पूँजीवादी समाजों की विशिष्ट बात है, जिसमें लोग वही करते हैं, जो उन्हें करने के लिए कहा जाता है या जो दूसरे लोग करते हैं, बजाय इसके कि वे स्वयं क्या करना चाहते हैं; और यही उन्हें तनाव की ओर ले जाता है। यह रचनात्मकता और स्वयं अपने अनुरूप तर्क एवं रचनात्मकता के साथ समस्याओं को सुलझानेवाली सोच को गंभीर रूप से बाधित करता है। लोग, उनसे जो उम्मीद की जाती है और जो वे अपने लिए चाहते हैं, इन दोनों के बीच की खाई को प्राय: आर्थिक शक्ति या भौतिक सुख से या अपनी चेतना को शून्य करके भरने की कोशिश करते हैं।
निरंतर आवश्यकता, इच्छा और चाहत के इस जाल में लोग खुद को और फँसाते चले जाते हैं, तनाव झेलते जाते हैं और भौतिकवाद के जाल में उलझकर अपना पतन करते हैं, जिससे वे खुद को समय से पहले बूढ़ा कर डालते हैं और जीवन-शैली एवं मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े विकार पैदा होते हैं। अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रेस ने इस क्रमिक पतन की प्रक्रिया का पता लगाया है और निष्कर्ष निकाला है कि अधिकांश स्वास्थ्य समस्याएँ तनाव के कारण पैदा होती हैं।
हम क्या चाहते हैं और हमारी जरूरत क्या है, इन दोनों के बीच का यह निरंतर संघर्ष हमारे जीवन में हम जहाँ हैं, उसे लेकर असंतोष को और बढ़ा देता है। धन एवं भौतिक सुख की प्राप्ति के इस निरंतर प्रयास ने लोगों को भौतिक सुख से अलग हटकर स्थिति को समझने और खुशी के अधिक मौलिक निर्धारक की तलाश करने के लिए प्रेरित किया है।
खुशी के संचालकों में से एक उत्सुक आशावाद है। जैसे-जैसे लोग जीवन के रोज के सांसारिक कार्यों में अपने को व्यस्त करते चले जाते हैं, वैसे-वैसे नए अनुभवों के बारे में उनकी उत्सुकता खत्म होती जाती है और वे अपनी एक निश्चित दिनचर्या बना लेते हैं तथा उनमें चकित होने की भावना कम हो जाती है। फिर यह पूरी तरह समाप्त हो जाती है।
जो लोग उन चीजों को छोड़ देते हैं, जिन्हें वे करना पसंद करते हैं और उनमें अच्छा करते हैं, वे जीवन में अपना उद्देश्य खो देते हैं। इसलिए, समाज के हित में काम करना, दूसरों की मदद करना, समाज की प्रगति में योगदान देना और अपने आसपास की दुनिया को बनाना, आकार देना एवं विकसित करना इतना महत्त्वपूर्ण है।
इकिगाई का तरीका
ऐसे कई अध्ययन हुए हैं, जिनमें ओकिनावा निवासियों के दीर्घायु होने के कारणों का पता लगाया गया है-
आहार: आहार स्पष्ट रूप सेअच्छे स्वास्थ्य के निर्माण में एक बड़ा कारक है। क्षेत्र के निवासियों के खान-पान में ग्रीन टी के साथ बड़ी मात्रा में सब्जियाँ व फल; सोया उत्पाद, जैसे टोफू एवं कम चीनी की खपत पर आधारित स्वस्थ आहार प्रमुख रूप से शामिल प्रतीत होता है। इसके अलावा, लोग एक बार में थोड़ा ही खाना खाते हैं और केवल उतना ही भोजन करते हैं, जितने में उनका पेट 80 प्रतिशत तक ही भरे।
सामुदायिक जुड़ाव: दीर्घायु होने का एक बड़ा कारक समुदायों के साथ हमारे संबंध प्रतीत होते हैं। ओकिनावा में प्रत्येक व्यक्ति एक ‘मोई’ या समान हितों वाले लोगों के सहायता समूह का हिस्सा होता है, जो एक-दूसरे का ध्यान रखते हैं। यह परिवारों के समूहों के लिए न केवल बड़ा सहारा होता है, बल्कि कठिनाई के समय में लोगों की सहायता भी करता है।
मानसिक स्वास्थ्य: ओकिनावा निवासी मानसिक स्वास्थ्य को बहुत महत्त्व देते हैं। तथ्य यह है कि एक स्वस्थ मन उतना ही महत्त्वपूर्ण है, जितना कि एक स्वस्थ शरीर और यह समाज में सार्थक सकारात्मक योगदान देने के लिए लगातार काम करता है।
व्यायाम: यह सच्चाई है कि कम से मध्यम स्तर का दैनिक व्यायाम व्यक्ति का अच्छा स्वास्थ्य बनाने में मदद करता है। ओकिनावा के निवासी बहुत चलते हैं और अपने बगीचों की देखभाल में समय लगाते हैं। लोग योग, ताई ची या चीगोंग जैसे निम्न से मध्यम तीव्रतावाले खेलों में भी भाग लेते हैं।
इससे पहले कि हम इकिगाई के बारे में और बात करें, हमें दो और अवधारणाओं के बारे में बात करने के लिए थोड़ा समय देना होगा-
• प्रवाह (Flow)
• सचेतनता (Mindfulness)
प्रवाह
उस समय को याद करें, जब आपने किसी चीज का इतना आनंद लिया था कि आप उसमें लगे घंटों के बारे में चिंता नहीं करते थे।
इसे ही मनोवैज्ञानिक मिहाली ने‘सिक्सजेंटमिहाली प्रवाह’ केरूप में परिभाषित किया है।
सिक्सजेंटमिहाली प्रवाह की अवधारणा को इस तरह परिभाषित करते हैं- “वह स्थिति, जिसमें लोग किसी गतिविधि में इतने मगन हो जाते हैं कि उनके लिए और कुछ भी मायने नहीं रखता प्रतीत होता है। यह अनुभव अपने आप में इतना आनंददायक होता है कि लोग बड़ी-से-बड़ी कीमत पर भी सिर्फ इसे करने के लिए ही करते हैं।”
इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए हमें उन गतिविधियों पर लगनेवाले समय को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा, जो हमें इस प्रवाह की स्थिति में लाती हैं, बजाय इसके कि हम उन गतिविधियों में फँस जाएँ, जो तत्काल संतुष्टि प्रदान करती हैं; जैसेकि डिजिटल विकर्षण (फोन, लैपटॉप, कंप्यूटर आदि पर बेवजह समय गँवाना); छोटे-छोटे कार्य, जो हमारा पूरा समय खा जाते हैं, लेकिन हमारे समग्र मानसिक एवं भावनात्मक विकास में बहुत कम योगदान देतेहैं।
कई कलाकारों ने ‘प्रवाह’ का अनुभव करने की बात बताई है-एक अत्यधिक रचनात्मक क्षेत्र, जिसमें उनका रचनात्मक कार्य अन्य, गैर-प्रवाहवाले समय की तुलना में सबसे अधिक रहा है। कला और इसका अभ्यास करते समय यह जो आनंद उत्पन्न करती है, वह इकिगाई है, जो हमारे जीवन में खुशी और उद्देश्य ला सकता है। सृजन की प्रक्रिया अपने आप में ही बहुत संतुष्टि एवं आनंद उत्पन्न करती है और यह हमारी मूल प्रकृति का मौलिक तत्त्व है।
इकिगाई मानसिकता के लिए आप क्या कर सकते हैं?
शोधकार्यों से लगातार यह बात सामने आई है कि दीर्घायु का सकारात्मक दृष्टिकोण और उच्च स्तर की भावनात्मक जागरूकता से गहरा संबंध है। जो लोग भावनात्मक अनुकूलन में निपुण होते हैं, वे जीवन में असफलताओं एवं चुनौतियों के साथ तालमेल बिठाने में बहुत बेहतर होते हैं। ऐसे लोग धीमे व सचेत जीवन को अपनाने और उन्हें अभिभूत कर देने वाले बाहरी दबाव के प्रभाव से बचने में भी सक्षम होते हैं और इस प्रकार, वे तनाव से होनेवाली थकान को कम कर पाते हैं।
एक और अवधारणा, जिसका यहाँ उल्लेख करने की जरूरत है, वह है सचेतनता।
सचेतनता मौजूदा पल में पूरी तरह से बने रहने की क्षमता है-हमारी उपस्थिति, हमारे कार्यों और उनके परिणामों के बारे में और बाहरी या आंतरिक घटनाओं से अत्यधिक प्रभावित हुए बिना, भावनात्मक नियंत्रण में रहते हुए।
सचेतनता के अभ्यास की मूल बातों में विचारशील चिंतन या ध्यान के लिए कुछ समय निकालना, कम आलोचनात्मक होना और हमारे विकर्षणों को कम करना शामिल है।
व्यावसायिक तनाव अगर कम मात्रा में है तो वह फायदेमंद हो सकता है; लेकिन लगातार बने रहनेवाला पुराना तनाव शारीरिक रूप से हानिकारक है और थकान, अवसाद, चिड़चिड़ेपन, अनिद्रा एवं चिंता का कारण बन सकता है। सचेतनता न केवल एकाग्रता को बढ़ाता है, बल्कि स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता में भी सुधार करता है। सचेत जीवन स्वयं और पर्यावरण के साथ अधिक जागरूक और जान-बूझकर सामंजस्यपूर्ण अस्तित्व के मूलभूत निर्धारकों में से एक है। इसलिए यदि कोई इकिगाई का अभ्यास करना चाहता हैतो यह उसके लिए एक महत्त्वपूर्ण पद्धति है।
इकिगाई और आनंद
शोधकर्ताओं ने बार-बार इस सवाल का जवाब तलाशने की कोशिश की है।
क्या इकिगाई का अभ्यास करने से आनंद की प्राप्ति होती है?
हम में से अधिकतर लोगों के जीवन में आमतौर पर बड़ी-बड़ी घटनाएँ नहीं होतीं; लेकिन छोटी और निश्चित तौर पर महत्त्वपूर्ण गतिविधियाँ एवं अनुभव होते हैं, जो हमारे जीवन की धारा को दिशा देते हैं। जापानी दर्शन आनंद एवं संतुष्टि को स्वीकार करता है, जैसा कि यह रोजमर्रा के सांसारिक जीवन में पाया जाता है-यहाँ और अभी में जीने में। यह सचेत जीवन को प्रोत्साहित करता है, जिसमें हर पल का अनुभव किया जाता है और उस सद्भाव पर जोर देता है, जिसके अनुरूप हमें अपने परिवेश के साथ सामंजस्य बिठाकर रहना चाहिए।
इकिगाई आत्म-संतुष्टि और सार्वजनिक हित के बीच नाजुक संतुलन में स्थित है; लेकिन यह महत्त्वाकांक्षा या सामाजिक सफलता या कार्य-स्थल में सफलता से संबंधित नहीं है। इकिगाई किसी भी विषय को लेकर पूरे जोश के साथ प्रयास हो सकता है, हर छोटी चीज में आनंद हो सकता है या प्रकृति द्वारा प्रदान की गई सुंदरता में हो सकता है।
हमारी इकिगाई की खोज एक दिन की गतिविधि नहीं है। इसमें समय और धैर्य दोनों की जरूरत होती है। इस यात्रा का उतना ही आनंद उठाना चाहिए, जितना कि अंतिम परिणाम का।
-डॉ. रश्मि.
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इकिगाई : सर्वोत्तम जीने की कला
लेखक : डॉ. रश्मि
पृष्ठ : 200
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
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