आदमी बनने के क्रम में : मनुष्यता और प्रेम की वैचारिक पृष्ठभूमि तैयार करती कविताएँ

आदमी बनने के क्रम में

अच्छे कवि कैसे होते हैं? अमेरिकी कवि लॉन्गफेलो की एक बात को थोड़ा तोड़-मरोड़कर अपने तरीक़े से कहूँ, तो यह की- उनकी जड़ें उनके 'निज' में गहरे धंसी होती हैं, लेकिन उनकी शाखाएँ 'अन्य' को छाया देती हैं। 

हिंदी के युवा एवं उभरते कवि अंकुश कुमार का सद्य: प्रकाशित प्रथम कविता संग्रह 'आदमी बनने के क्रम में' मनुष्यता और प्रेम की तमाम बातों को लेकर समाज के सामने आता है। इनके संग्रह की कविताओं में भरा-पूरा लोक है, खुद के अलावा पूरा परिवार है, माँ-बाबू-बीवी-बच्चे हैं, इंसानों की रोजमर्रा की चीजें यथा- नींबू ,खीरा, चाय और बिस्कुट हैं, मित्रगण हैं, अजनबी संसार हैं, आबाद दुनिया हैं, लेकिन अकेलापन का एक सुखद और अनोखा अहसास भी अनवरत इस कविता संग्रह में मिलता रहता है। अंकुश कुमार की कविताएँ न केवल कागजों पर चित्रित और अंकित होती हैं वरन इनकी कविता आम जनमानस की जरूरतों का भी पूरा ख्याल रखती हैं। इनकी कविताओं के विषय में और ज्यादा जोर देते हुए गीत चतुर्वेदी इसकी भूमिका में लिखते हैं-"अंकुश की कविताओं के सार-तत्व को समझने के लिए भले कुछ ख़ास शब्द हमारी मदद करते हो जैसे- अकेलापन, प्रश्नाकुलता, बेचैनी और संशयबोध, लेकिन जो शब्द सबसे महत्वपूर्ण लगता है, वह है- यात्रा।"

सही की तलाश में ग़लत से मुठभेड़ हो, तो यात्रा हमारी अनुभव- संपदा में वृद्धि कर देती है। जीवन का अनुभव, मानवता का सुखद एहसास, अभिव्यक्ति और मौन का अनुभव। इन अनुभवों के सारे चित्रों का जीता जागता उदाहरण है यह कविता संग्रह। अंकुश कुमार अपनी इस कविता संग्रह के आभार नोट में लिखते हैं-"यह रचनाएँ मेरे पिछले चार-पाँच साल समेटे हुई हैं। मेरे आस-पास जो कुछ हो रहा था उसकी एक चमक या तस्वीर इन सभी रचनाओं में मिलेगी। मेरे हिसाब से रचनाओं की कल्पनाशीलता का पुट जितना कम होगा वे उतनी ही बेहतर होंगी। इसके लिए गीत चतुर्वेदी सर का विशेष आभार! उन्होंने मेरी कविताएँ पढ़ी और भूमिका लिखने के मेरे आग्रह को स्वीकार किया।"  
आदमी बनने के क्रम में

अंकुश कुमार के कविता संग्रह 'आदमी बनने के क्रम' में कुल 111 कविताएँ संकलित है। यह कविता संग्रह 'हिंद युग्म प्रकाशन' नोएडा, उत्तर प्रदेश से प्रकाशित है। इस संग्रह की अधिकांश कविताएँ मनुष्यता और प्रेम की एक समतल पृष्ठभूमि तैयार करती दिखलाई पड़ती हैं। जिससे मनुष्यता के मर्म को समझने में आसानी होती है। इस संदर्भ में इस कविता संग्रह की शीर्षक कविता 'आदमी बनने के क्रम में' की पंक्तियों को समझना बेहद जरूरी है-"एक आदमी बनने के क्रम में/जो समय लगता है/वह एक प्रगतिशील प्रक्रिया का/हिस्सा होता है/जो नहीं बिठा सके सामंजस्य/समय के साथ/वे पिछड़ गए" 

-वेद प्रकाश सिंह.
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आदमी बनने के क्रम में
लेखक : अंकुश कुमार
पृष्ठ : 158
प्रकाशक : हिन्द युग्म
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