श्रेष्ठ बनने के मार्ग पर 7 डिवाइन लॉज़

स्वामी मुकुंदानंद : श्रेष्ठ बनने के मार्ग पर 7 डिवाइन लॉज़

हम सबकी इच्छा होती है बेहतर होने की। अपने सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व को जगाने की इच्छा हमारे लिए वैसे ही स्वाभाविक है, जैसे आग के लिए ऊष्मा। हम चाहे जितने भी अच्छे हो जाएँ, एक इच्छा बरकरार रहती है-‘मुझे और सुधार करना है। मैं अभी अपने स्वयं के आदर्श स्वरूप तक नहीं पहुँच सका हूँ।’

हमारे काम में भी विकास की ऐसी ही उत्कंठा हिलोरें मारती है। इसके बावजूद कि हमने जीवन में अब तक क्या-क्या हासिल कर डाला है, अंदर से एक आवाज उठती है, ‘मैं अब भी संतुष्ट नहीं हूँ; मैं इससे भी बेहतर करना चाहता हूँ। मैं और बेहतर अभिभावक/बच्चा बनना चाहता हूँ; एक बेहतर पति/पत्नी, एक बेहतर अधिकारी/कर्मचारी, एक बेहतर शिक्षक/छात्र।’ यह सूची अंतहीन होती है...

हमारी इस लालसा का स्रोत क्या है और यह इस कदर हमारा अभिन्न हिस्सा कैसे है? विकास की उत्कंठा रचनाकार की ओर से खुद आती है। श्रीमद्भगवद्गीता में लिखा है-
ममैवांशो जीवलोके जीवभूत: सनातन:। (15.7)

अर्थात् ‘इस देह में यह जीवात्मा मेरा ही सनातन अंश है।’

आत्मा का विकास

अपने चारों ओर हम इस बात के गवाह हैं कि धरती की कोख में प्रकृति कार्बन के विकास को सहेज रही है, जो करोड़ों वर्षों में हीरे के रूप में हमारे सामने आता है। बेहद कम समय में कीचड़ घास में बदल जाता है, जिसे गायें खाती हैं और वह दूध में बदल जाता है। वही दूध आगे चलकर दही में परिवर्तित होता है, जिससे मक्खन निकाला जाता है; और अंतत: मक्खन घी में तब्दील हो जाता है, जिसे शुद्धता के प्रतीक के तौर पर पवित्र वेदी पर चढ़ाया जाता है।

हालाँकि, भौतिक उत्पादों, जैसे घी एवं हीरे, की रचना करना ही परम सत्ता की महानतम योजना का मूल उद्देश्य नहीं है; बल्कि प्रकृति का मुख्य उद्देश्य समस्त आत्माओं के विकास को पोषण देना है, ताकि वे जीवन की निरंतरता में परम चेतना की ओर बढ़ें। और जब तक हम उस दैवीय योजना को पूरा नहीं कर लेते, हम संतुष्ट नहीं हो सकते।

स्वामी मुकुंदानंद : श्रेष्ठ बनने के मार्ग पर 7 डिवाइन लॉज़
अमेरिकी दार्शनिक राल्फ वाल्डो इमर्सन ने अपने निबंध ‘द ओवर-सोल’ में बहुत बुद्धिमत्ता के साथ लिखा है-
हम मान लेते हैं कि मानव जीवन मतलबी है। लेकिन हमें कैसे पता चला कि यह मतलबी है? इस पुराने असंतोष का आधार क्या है? इच्छा और अज्ञानता की यह सार्वभौमिक भावना क्या है, जबकि बारीक सहज ज्ञान के जरिए आत्मा अपना बड़ा दावा करती है?

हमारी आत्मा पर डाला गया परोक्ष दवाब, जिसकी ओर इमर्सन इशारा कर रहे हैं, उसे हमारे रचनाकार ने हमारे भीतर लिख रखा है, ताकि हम हमेशा आगे की ओर बढ़ना सुनिश्चित कर सकें। यह तभी शांत होगा, जब हम अपने अंदर मौजूद अनंत क्षमता को आजमा लेंगे।

प्रिय पाठक, आपने भी प्रगति के लिए अपनी आत्मा के इस दवाब को महसूस किया है और इसलिए आपने अपने सर्वश्रेष्ठ व्यक्तित्व को जगाने के लिए इस पुस्तक को चुना है।

उलझन, जो हम झेलते हैं

समस्या यह नहीं है कि हम पूर्णता नहीं चाहते हैं। समस्या यह है कि हम इसके लिए साल-दर-साल प्रयास करते हैं, लेकिन सफलता हासिल नहीं कर पाते। यह हमारी दशा है। हम सितारों तक पहुँचने की ख्वाहिश रखते हैं, लेकिन खुद को अपनी छोटी प्रवृत्ति से चिपका हुआ पाते हैं। हम अपना सिर आकाश की ओर तो रखते हैं, लेकिन हमारे पाँव धरती पर होते हैं।

व्यक्तिगत विकास और जीवन-परिवर्तन इतना मुश्किल क्यों है? क्या सृष्टि हमारे असफल होने की कामना करती है? बिल्कुल नहीं! ब्रह्मांड के भव्य डिजाइन के पीछे का उद्देश्य हमें सफल बनाना है। ब्रह्मांड के विधानों को लेकर हमारी खुद की अज्ञानता बाधा पैदा करती है। विकास और सिद्धि ज्ञान का नतीजा होते हैं, अज्ञानता का नहीं।

अध्यात्म रामायण कहती है- अज्ञानमेवास्य हि मूलकारणम् (उत्तरकांड 5.9)

अर्थात् ‘अज्ञानता ही समस्त विकासहीनता का मूल कारण है।’

इस संबंध में एक मजेदार उदाहरण देखिए- मैंने एक बिलबोर्ड विज्ञापन में एक कुत्ते को गुर्राते और एक बिल्ली को मन-ही-मन प्रसन्न देखा। कुत्ते के चेहरे पर यथासंभव आक्रामकता झलक रही थी और वह बिल्ली पर झपटने की कोशिश कर रहा था। फिर भी, मात्र कुछ कदमों की दूरी पर होते हुए भी बिल्ली बगैर किसी शिकन के सुकून से बैठी हुई थी और उसकी हरकतों पर आनंदित हो रही थी।

उस विज्ञापन में नीचे कैप्शन में लिखा था-ज्ञान की शक्ति!

कुत्ता पट्टे से बँधा था; वह अपने दायरे में केवल भौंक सकता था और गुर्रा सकता था। वहीं बिल्ली इस साधारण से तथ्य से अवगत थी-‘कुत्ते में वह ताकत नहीं कि अपना पट्टा तुड़ा सके। जब तक मैं उसके दायरे से दूर हूँ, तब तक सुरक्षित हूँ।’

‘पट्टे के विधान’ के ज्ञान ने उस बिल्ली को आजादी से नवाजा और उसका मन सुकून से रह सका। अगर इतने छोटे से ज्ञान से इतना बड़ा अंतर पेश आ सकता है तो ब्रह्मांड के विधानों को जानने के बाद के लाभों के बारे में क्या कहा जा सकता है?

इस पुस्तक का उद्देश्य आपको अपने जीवन को संचालित करने वाले विधानों से अवगत कराना है और आप स्वयं को उनसे कैसे जोड़ सकते हैं, यह बताना है। पिछले तीन दशकों से मैं लाखों लोगों को इन विधानों के बारे में बता चुका हूँ और मैंने खुद इस ज्ञान के जरिए उनके जीवन में आए बदलावों को महसूस किया है। मुझे पूरा यकीन है कि इससे आपको भी लाभ होगा।

दिव्य विधान

हम सब जानते हैं कि पानी 100 डिग्री सेंटीग्रेड पर उबलता है, इसलिए हम उसे 95 डिग्री सेंटीग्रेड तक तरल रूप में देखकर हैरान नहीं होते, न तो हम इसके 100 डिग्री पर पहुँचते ही वाष्पीकृत होते देखकर चौंकते ही हैं; क्योंकि यह भौतिक विधानों के अनुरूप हो रहा होता है। प्रकृति के इन्हीं विधानों के तहत बिजली, चुंबकत्व, गुरुत्व, स्वास्थ्य, प्रकाश और ऐसी ही तमाम गतिविधियाँ संचालित होती हैं।

हम इंसानों ने भी समाज के नियमन के लिए विधान बनाए हैं। ये मानव-निर्मित विधान एक दिन संस्थागत होते हैं और दूसरे दिन खारिज भी किए जा सकते हैं। हालाँकि, प्रकृति के विधान अलग हैं। वे अनंत काल से वैध हैं और देश, काल व परिस्थिति से परे भी हैं। उदाहरण के लिए, हम चाहे कुतुब मीनार से कूदें या एफिल टावर से, दोनों ही परिस्थितियों में गुरुत्व के चलते हम नीचे जमीन पर आएँगे और हमें झटका लगेगा। इससे बहुत मामूली फर्क ही पड़ेगा कि हम विधानों को जानते हैं या नहीं और उनसे सहमत हैं या असहमत।

श्रेष्ठ बनने के मार्ग पर 7 डिवाइन लॉज़
भौतिक घटनाओं को विनियमित करने वाले विधानों की तरह जीवन की यात्रा को नियंत्रित करने वाले आध्यात्मिक विधान भी हैं। उनका ज्ञान हमें यह समझने में मदद करता है कि सफलता कुछ लोगों को आसानी से क्यों मिल जाती है; जबकि दूसरों के लिए संघर्ष बना रहता है? क्यों कुछ लोग अब भी अपने जूते ही पहन रहे हैं, जबकि बाकियों ने दौड़ पूरी भी कर ली है? इसकी खूबसूरती यह है कि प्रकृति के भौतिक विधानों की तरह जीवन में सफलता और पूर्णता को नियंत्रित करने वाले दिव्य विधान भी हमेशा के लिए मान्य हैं।

इस पुस्तक में हम जीवन के सात सबसे महत्त्वपूर्ण ईश्वरीय विधानों के बारे में चर्चा करेंगे। ये उपदेश, जो मानव अस्तित्व को नियंत्रित करते हैं, वैदिक शास्त्रों से रोशनी पाते हैं-
1. अनंत क्षमता का विधान
2. उत्तरोत्तर विकास का विधान
3. आस्थाओं का विधान
4. आनंद का विधान
5. उदात्तीकरण का विधान
6. प्रेम का विधान
7. संरक्षण का विधान

क्या हैं ये विधान? इनकी जानकारी होने और इन्हें लागू करने से हमारा जीवन कैसे लाभान्वित हो सकता है? मैं पूरी गंभीरता से यह भरोसा करता हूँ कि तमाम सवालों के जवाब जानने के लिए आप उतने ही उत्सुक हैं, जितना कि मैं बताने के लिए व्यग्र हूँ। इसलिए बगैर किसी और भूमिका के आइए आगे चलें-धीरे तथा क्रमबद्ध ढंग से-इस पुस्तक के सात अध्यायों के जरिए एक आनंदपूर्ण यात्रा की ओर।

-स्वामी मुकुंदानंद.
--------------------------------------------------
श्रेष्ठ बनने के मार्ग पर 7 डिवाइन लॉज़
लेखक : स्वामी मुकुंदानंद
पृष्ठ : 192
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पुस्तक लिंक : https://amzn.to/3O2GSOk
--------------------------------------------------