बीसवीं सदी के आरंभ से लेकर सोवियत संघ के विघटन तक विश्व में यही मान्यता रही कि पूंजीवाद और साम्यवाद एक-दूसरे के साये के भी दुश्मन हैं। सोवियत संघ के उदय के साथ उपनिवेशिक बस्तियों में स्वतंत्रता के लिए जाग्रति आई। स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए संघर्षों का एक नया दौर आरंभ हुआ। भारत भी स्वतंत्रता के इन प्रयासों से अछूता नहीं रहा। सोवियत क्रांति ने वैश्विक स्तर पर कामगारों, श्रमिकों और किसानों को एक सपना दे दिया, बराबरी का, समानता का। जिसमें कोई श्रेणी वर्ग नहीं होगा, अब मुट्ठी भर धनवान नहीं होंगे, सबका सब पर अधिकार होगा। बीसवीं सदी के आखिरी दशक में सोवियत संघ का विघटन हुआ, जबकि यह सपना तो बहुत पहले ही टूट चुका था, विघटन उस सपने की किरचें थी। फिर रुस में भी पूंजीवाद का बोलबाला हो गया। ये सभी बातें हम जानते हैं, परन्तु ये बातें बहुत कम लोग जानते हैं कि सोवियत क्रांति को वित्तपोषित करने वाले महान् अमेरिका के चंद पूंजीपति ही थे। केवल रुस में ही नहीं, दुनिया के अन्य बहुत सारे देशों में भी क्रांति से पहले और बाद में उन कुछेक पूंजीपति फर्मों की ही भूमिका प्रमुख रही, जो वॉल स्ट्रीट के सरपरस्त थे। जिनमें उल्लेखनीय नाम रहे : जे.पी. मार्गन, जॉन रॉकफेलर, विलियम बॉयस थॉम्पसन, राबर्ट माइनर और भी बहुत नाम इस सूची में शामिल हैं।
वॉल स्ट्रीट और बोल्शेविक क्रांति पुस्तक ऐसे अनेक रहस्यों से पर्दा उठाती है। इस पुस्तक के लेखक एंथनी सी. सटन ने अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाओं की वास्तविकता को साक्ष्यों सहित प्रस्तुत किया। रुस में क्रांति से पहले ट्रॉट्स्की का न्यूयार्क में उच्च स्तरीय जीवन यापन करना, इस बात का सबूत है कि लेनिन, ट्रॉट्स्की या क्रांति के अन्य प्रतिष्ठित व्यक्तियों का मुख्य उद्देश्य सत्ता प्राप्ति प्रमुख था, क्रांति केवल माध्यम था। मैक्सिम गोर्की जैसे अनेक उदारवादी क्रांतिकारियों ने देश में सत्ता प्राप्ति के बाद पार्टी द्वारा किए जा रहे अत्याचारों का विरोध किया, जिन्होंने क्रांति का सपना सही अर्थों में देखा था। ऐसे अथाह रुसियों की आवाज़ें दबा दी गई।
अमेरिकी बैंकरों और पूंजीपति फर्मों ने क्रांति के बाद रुस में उभर रहे नए बाज़ार पर आधिपत्य कर, जर्मनी को, रुस से उखाड़ फेंकने के लिए यह सारा प्रपंच रचा। व्यापक स्तर पर ऐसे कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए सबसे मुफीद साधन राजनीति और उसके आका होते हैं, इसलिए जे.पी. मॉर्गन व जॉन रॉकफेलर की व्यावसायिक फर्मों ने अमेरिकी राज्य विभाग अर्थात् विदेश विभाग के साथ साथ राष्ट्रपति विल्सन को भी अपने तर्कों से कायल किया। क्रांति की संरचना से लेकर, क्रांति के बाद, रुस में बड़े बैंकों की स्थापना से लेकर, जीवन यापन के सभी प्रकार के सामानों को वहां पहुंचाने के लिए सोवियत रुस की शासकीय व्यवस्था ने अमेरिकी फर्मों के साथ अनुबंध किए। सामान भेजने के बदले में रुस ने सोने के रुप में अदायगी की।
यह पुस्तक इतिहास के पन्नों में छिपे सत्य को साक्ष्यों सहित उद्घाटित करती है।
-डॉ. जसविन्दर कौर बिंद्रा.
वॉल स्ट्रीट और बोल्शेविक क्रांति
लेखक : एंटनी सी. सटन
प्रकाशक : रीथिंक पब्लिकेशन
पृष्ठ : 279
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