आज से पाँच वर्ष पूर्व मेरी जिंदगी में कुछ बड़ी समस्याएँ आईं। मुझे कुछ लोगों ने धोखा दिया। ये आर्थिक समस्याएँ थीं और इन समस्याओं ने मुझे झकझोरा और तब मैंने यह जानने की कोशिश की कि आखिर ये सब क्यों और कैसे होता है और वास्तव में जिंदगी क्या है? तब मैंने यह तय किया कि समस्याओं को, तनाव को, हताशा को, निराशा को समझा जाए और तब मेरा यह कार्य आरंभ हुआ। मैं प्रतिदिन इस खोज में लग गया कि आखिर मैं कौन हूँ? क्या मैं स्वयं के अंदर चलता हुआ विचार हूँ, भावना हूँ या कुछ और? बहुत सारी पुस्तकें पढ़ीं, इंटरनेट पर गया, खोजा और तब इस पुस्तक की शुरुआत हुई, जिसका नाम है-‘स्वयं की खोज’। मुझे लगता है कि कोई भी इनसान खुद की खोज तभी करना चाहता है, जब जिंदगी उसे कुछ परेशानियाँ देती है।
अकसर हम यही समझते हैं कि हमारी जिंदगी में परेशानियों का कारण बाहर है, लेकिन जब मैंने बहुत खोज की तो पाया कि ऐसा नहीं है। वास्तव में जिंदगी आशा और निराशा दोनों से मिलकर बनती है। जिंदगी खुशी और गम दोनों से मिलकर बनती है। निराशा व हताशा के समय हम लोग बहुत घबरा जाते हैं और कुछ लोग तो जिंदगी से रुखसत होने की भी सोचने लगते हैं, लेकिन वास्तव में हमारा सही मायने में विकास तो इसी कारण से आरंभ होता है। इसलिए मैंने यह निश्चय किया कि मैं जिंदगी को बारीकी और गहराई से समझूँ और मैंने यह तय किया कि मैं अपने अनुभवों को प्रतिदिन लिखूँगा। पिछले 5 वर्षों से मैंने खुद की खोज करने का प्रयास किया, मैंने लिखना आरंभ किया। मैं जैसे-जैसे आगे बढ़ा तो मुझे खुद के अंदर छुपी अनंत संभावनाओं का अहसास होने लगा। मुझे यह महसूस होने लगा कि हम कितने खुशनसीब हैं और जिंदगी कितनी शानदार है, जब हम हारते हैं, तब हम सीखते हैं; जब हम जीतते हैं, तब हम आगे बढ़ते हैं। मेरी यह यात्रा जैसे-जैसे आगे बढ़ती जा रही थी, मुझे मन-ही-मन खुशी, शांति और आनंद का अहसास हो रहा था।
यह पुस्तक आपके जीवन में निराशा को खत्म कर देगी. आपके जीवन में आशा लेकर आएगी. आपमें प्रेम और त्याग को लाएगी. आपके कार्य करने की क्षमता और अधिक बढ़ जाएगी.
इस दौरान मैं लगातार बच्चों और उनके अभिभावकों से जुड़ा रहा। उनसे उनके मन में उठ रहे सवाल पूछता रहा और मैंने उन सवालों के जवाब ढूँढ़े। इस दौरान मैंने टी.वी. सीरियल बनाए। जिसमें बच्चों की जो समस्याएँ थीं, बच्चों के जो प्रश्न थे, उन्हें मैंने सीधा जवाब देने की कोशिश की। दूरदर्शन पर ‘द काउंसलर शो’ का प्रसारण किया। बहुत से विद्यालय व शिक्षक मेरे संपर्क में आए। उनकी बातों को सुना और जाना। अभिभावकों दूरदर्शन मिला और उनकी बातों को समझा। मेरी इच्छा हुई कि मैं इस बेशकीमती अनुभव को सारांश रूप में आप लोगों के सामने लाऊँ।
मैंने यह भी महसूस किया कि हम में से जो ज्यादातर लोग बहुत कम जागरूक हैं या यूँ कहूँ कि वे पूरी तरह होश में भी नहीं हैं। हमारे जीवन की बहुत सारी क्षमताएँ, संभावनाएँ दबी रह जाती हैं, फिर मेरे मन में स्वाभाविक इच्छा हुई कि हम पता लगाएँ कि हम जागरूकता व चैतन्यता से जीवन को कैसे जीएँ और मैंने लगातार इसकी खोज की, यह जानने की कोशिश की कि स्वयं को किस तरह से चैतन्य बनाया जाए और इस दौरान योग व ध्यान पर भी मैंने बहुत काम किया और जो कुछ भी मैं अनुभव करता गया, उसे मैं प्रश्न और उत्तर के रूप में लिखता गया।
आयुर्वेद, प्रकृति, हमारा स्वास्थ्य इसके बारे में भी मैंने बहुत सारी जानकारियाँ इकट्ठी कीं, जानी-समझीं। इतिहास और ब्रह्मांड की रोचक जानकारियाँ भी इसमें मैंने एकत्रित की, वैसे तो ‘भगवद्गीता’ व ‘अष्टावक्र गीता’ विश्वविख्यात पुस्तक हैं, लेकिन उनकी कुछ विशिष्ट बातें, साइकोलॉजी की बातें भी मैंने इकट्ठी कीं और सबसे ज्यादा मजा तो तब आया, जब हम अपनी यात्रा के आखिरी पड़ाव तक पहुँचे और मुझे ईश्वर की समझ मिली। ईश्वर के बारे में मैंने जो बातें समझीं, मैंने उनको लिखा। इस दौरान वेद, पुराण, उपनिषद्, रामायण व भगवद्गीता पढ़कर निश्चित रूप से ईश्वर को जानने के बाद तो ऐसा लगने लगा है कि जिंदगी बहुत सरल हो गई। यह सब जो कुछ मैंने सीखा, उसे एक सामान्य पुस्तक के रूप में मैंने लिखा और इकट्ठा किया। मेरी इच्छा थी कि इस अमूल्य धरोहर को, इस अमूल्य खोज को आप तक पहुँचाऊँ, जिसका नाम है-‘स्वयं की खोज’। मुझे पूरा विश्वास है कि अगर आप इस पूरी पुस्तक को जब पढ़ चुके होंगे तो आपका सोचने का तरीका बहुत अद्भुत हो चुका होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि अगर इस पुस्तक को पूरे विश्वास व आस्था के साथ आप पढ़ लेंगे तो आपका जीवन के प्रति नजरिया बहुत सकारात्मक हो जाएगा। आपके मन में जो स्वाभाविक जिज्ञासा कभी-न-कभी उठी होगी, उनका इसमें निश्चित रूप से कोई-न-कोई समाधान अवश्य मिल जाएगा। जीवन के बारे में आपकी समझ बहुत विशिष्ट हो जाएगी।
मैं यह भी बताना चाहता हूँ कि इस पुस्तक का इस्तेमाल आप कैसे करें, जिससे आपको अधिकतम लाभ हो। मैं बताना चाहूँगा कि इस पुस्तक के हर अध्याय में जो प्रश्न हैं, उन्हें पहले पढ़ें और कोशिश करें कि आपके मन में उनका क्या जवाब है और उसके बाद ही इस पुस्तक में लिखे जवाब को पढ़ें। इस तरह आपके लिए यह पुस्तक न सिर्फ रोचक बन जाएगी, बल्कि आपके पढ़ने को गहरा बना देगी। इस पुस्तक को घर-परिवार व मित्रगणों के मध्य बैठकर प्रश्नोत्तरी के रूप में भी पढ़ा जाए तो विषय बहुत रुचिकर बन जाएगा। इस तरह से जब आप पढ़ेंगे तो आपके समझने का तरीका बहुत विशिष्ट हो जाएगा। मुझे नहीं लगता कि इस पुस्तक को एक साथ पढ़ा जाना चाहिए। इस पुस्तक का हर एक अध्याय एक ही बार में पढ़ा जाए और बहुत धीरे-धीरे पढ़ा जाए, ताकि हम इस पुस्तक को अपनी व्यावहारिक जिंदगी से नाप-तौल सकें व जिंदगी को भलीभाँति समझा जा सके।
मेरा विश्वास है कि यह पुस्तक आपके जीवन में निराशा को खत्म कर देगी, आपके जीवन में आशा लेकर आएगी। आपको अधिक ऊर्जा के साथ काम करना सिखाएगी। आपमें प्रेम और त्याग को लेकर आएगी। यह पुस्तक आपके जीवन में सहजता और सरलता को लेकर आएगी और इस पुस्तक को पढ़कर आपको, स्वाभाविक रूप से लगेगा वाह! मजा आ गया! वास्तव में जिंदगी तो बहुत खूबसूरत है। इस पुस्तक को पढ़ने के पश्चात् आपके कार्य करने की क्षमता और अधिक बढ़ जाएगी। मुझे ऐसा भी लगता है कि आपके जीवन में निराशा, हताशा, कुंठा भले ही रहे, परंतु उन्हें डील करने का तरीका आपका काफी हद तक बदल जाएगा। आप इन सब परिस्थितियों को हँसी-खुशी से लेने लगेंगे।
-डॉ. संजय बियानी.
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स्वयं की खोज
लेखक : डॉ. संजय बियानी
पृष्ठ : 232
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
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