फ्रॉम लखनऊ टू लुटियंस : यूपी को देखने की नयी नज़र

फ्रॉम लखनऊ टू लुटियंस

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों के वक्त देश के इस सबसे बड़े प्रदेश पर कुछ नयी किताबें आयीं जिनमें इस प्रदेश को नये सिरे से देखने की कोशिश की गयी मगर अधिकतर का मकसद चुनाव के दौरान उपजे हाइप को भुनाना था। इन्हीं दिनों टेलीविजन के जाने माने पत्रकार और देश के अखबारों में कॉलम लिखने वाले अभिज्ञान प्रकाश की किताब 'फ्रॉम लखनऊ टू लुटियंस' भी आयी जो थोड़ी अलग दिखी। इसकी वजह ये थी कि इस किताब में अभिज्ञान ने किसी राज्य पर एक खास तरीके से लिखने के फॉर्मेट को तोड़ा। किताब में सीधे सीधे यूपी की राजनीति की बात करने से बचा गया है मगर प्रदेश की सामाजिक बुनावट में ऐसा क्या है जो प्रदेश की राजनीति के साथ-साथ देश की राजनीति को भी सीधे प्रभावित करता है उसे अंग्रेजी की सरल भाषा में अभिज्ञान ने दिलचस्प अंदाज में लिखा।

ये किताब क्यों लिखी गयी इस सवाल के जवाब में अभिज्ञान लिखते हैं कि वो बनारस की गलियों में पले-बढ़े और जब रोजगार की तलाश में काशी से मुंबई आये तो एक प्रकार का मोहभंग भी हुआ। बनारस के ज्ञान और विद्वता की अकड़ को जब मुंबई में झुकते और पिटते देखा तो उनके मन में ये सवाल आया कि ऐसा क्यों है कि देश को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री देने वाले इस राज्य के लोग इस संपन्न राज्य में मजदूर और भैया बन कर रह जाते हैं क्यों इस प्रदेश के लोगों को मुंबई से लेकर दिल्ली तक उनका हक और सम्मान नहीं मिला। और इसी नजरिये की पड़ताल करते हुए पूरी किताब लिखी गयी है 'फ्राम लखनऊ टू लुटियंस'।

दस सरल अध्यायों में बंटी इस किताब में पहले विशाल उत्तर प्रदेश की राजनीति तो फिर उस राजनीति का जातियों केे जाल में फंसने पर एक अलग राह पर चलना जिसके चलते ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस का उत्तर प्रदेश से तकरीबन सफाये की कहानी, तो उत्तर प्रदेश की पहचान बने जाति के आधार पर आपराधिक गिरोह पनपना, उसके बाद हिंदू-मुसलमान का बड़े पैमाने पर ध्रुवीकरण की कोशिशों का परवान चढ़ना, नेताओं के अपने-अपने इलाके, बीजेपी का राम जी के भरोसे यूपी की सत्ता पर काबिज होना। इसके साथ ही जाति के आधार पर बने दलों के नेताओं का एक दल से दूसरे दलों में उछलने कूदने की कहानी रोचक तथ्यों और बहुत कुछ किस्सागोई अंदाज में लेखक ने सुनाने की कोशिश की है।
फ्रॉम लखनऊ टू लुटियंस

इस किताब के हर पन्ने में यूपी की राजनीति से जुड़ा रोचक किस्सा है। बात चाहे मुलायम सिंह और उनके परिवार की हो या फिर कांशीराम और मायावती की हो, अखिलेश और योगी आदित्यनाथ के साथ ही किताब में डकैत निर्भय गुर्जर, फूलन देवी, ददुआ के अलावा राजनीति में आपराधिक पहचान बने हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताप साही का भी ब्योरा है।

इस किताब में पड़ताल की गयी है कि उत्तर प्रदेश की सरकारों में बार-बार आयी अस्थिरता और राजनीति के बढ़ते अपराधीकरण के कारण ही प्रदेश के विकास में ठहराव लंबे समय तक रहा। जिसकी कीमत जनता ने बढती महंगाई और बेपनाह बेरोजगारी से चुकायी। ये अच्छी बात है कि पिछली तीन सरकारों ने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया और अब आयी सरकार चौथी बार फिर पांच साल के लिये चुन ली गयी है। वरना यूपी में बड़ा दौर राजनीतिक अस्थिरता का चला। कुछ-कुछ समय के लिये सभी पार्टियों के नेता मुख्यमंत्री बने मगर प्रदेश को नहीं चला पाये। वो ठहराव आज भी यूपी में बना हुआ है। जहां देश के सबसे ज्यादा कुशल प्रशिक्षित और राजनीति की समझ रखने वाली जनता है।

किताब की खासियत लेखक अभिज्ञान की सरल प्रवाह वाली भाषा है जिससे ये किताब कहीं भी बोझिल नहीं लगती, साथ ही ऐसी किताबों में मिलने वाली आंकड़ों की बाजीगरी से लेखक ने किताब को गूढ होने से बचाया है। ये किताब कहीं से भी शुरू कर कहीं भी खत्म की जा सकती है। यूपी को लेकर नयी समझ विकसित करने में ये किताब कामयाब होगी।

-ब्रजेश राजपूत
(लेखक ABP न्यूज़ से जुड़े हैं. उन्होंने कई बेस्टसेलर पुस्तकें लिखी हैं)

फ्रॉम लखनऊ टू लुटियंस 
लेखक : अभिज्ञान प्रकाश
प्रकाशक : हार्पर कॉलिंस
पृष्ठ : 272
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