विजयी भव : बहुत सारे आयामों को खोलती किताब

विजयी भव / डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

‘अनाज और मिट्टी का मिलन’, ‘स्वर्ग की शांति की ऊँचाई’, ‘ब्राउनियन गति और देश’ जैसे अध्याय यह बताते हैं कि डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कितने भिन्न-भिन्न प्रकार के विषयों पर प्रकाश डाला है। शिक्षा व शिक्षण की पृष्ठभूमि पर मानव जीवन-चक्र, परिवार के लोगों के बीच संबंध, कार्य की उपयोगिता, नेतृत्व के गुण, विज्ञान की प्रकृति, अध्यात्म तथा नैतिकता पर बात की गई है। इन विषयों पर विचार करते हुए वे न सिर्फ भारत के आधुनिक व पारंपरिक ज्ञान, बल्कि विश्व के अनेक लेखकों व विचारकों के बारे में भी अपनी रुचि का सुपरिचय देते हैं।

डॉ. कलाम ने अपने भावनात्मक, नैतिक एवं बौद्धिक विकास के बारे में इस प्रकार बताया है कि यह पुस्तक निश्चित ही पाठकों को उन लोगों और संस्थानों की याद दिलाएगी, जिन्होंने स्वयं पाठकों के सफल होने में मदद की। इस पुस्तक ने मुझे भी अपनी माँ के कविता सुनाने और अपने दादा की लिखी हुई पुस्तक की याद दिला दी। मेरे दादा साधारण पृष्ठभूमि के एक ऐसे इनसान थे, जिन्होंने अपनी पढ़ाई स्वयं की। उन्होंने राजस्व विभाग में नौकरी करने के साथ-साथ स्कॉटलैंड के निबंधकार थॉमस कार्लाइल (1795-1881) के बारे में एक पुस्तक भी लिखी। उन्होंने ही मुझमें गणित विषय के प्रति रुचि व अनुराग की नींव रखी।

विजयी भव / डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

पुस्तक के दूसरे अध्याय ने मुझे एडवर्ड VI (1537-1553) द्वारा लंदन शहर के लिए बनवाए गए अनाथालय एवं क्राइस्ट अस्पताल की याद दिला दी, जो अभी भी शानदार तरीके से गरीब बच्चों की शिक्षा के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह कर रहे हैं। इस विद्यालय में अनुशासन और आजादी के बीच बहुत सुंदर संतुलन बनाया गया है।

अपनी पढ़ाई के बाद के वर्षों में जब मैं विज्ञान और गणित में विशेष व औपचारिक अध्ययन कर रहा था तब मैं तीन विदेशी भाषाओं के साथ-साथ कला की समझ भी बना पाया और भिन्न-भिन्न विषय पढ़ने लगा।

उच्च माध्यमिक स्तर पर ऐसी समृद्ध और संवेदी शिक्षा पाने के बाद शुरू में तो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय कुछ अच्छा नहीं लगा, पर इसने भी मुझे बहुत कुछ दिया, जो हमेशा मेरे साथ रहेगा। वहाँ हर सप्ताह एक निबंध लिखना भी सीखने का एक महत्त्वपूर्ण माध्यम था; यह एक ऐसा अभ्यास जो मुझे जीवन भर लिखने की प्रेरणा देता रहा। यह भी एक विरोधाभास ही है कि इस विश्वविद्यालय ने, जो कि महाविद्यालयी परंपरा के लिए विख्यात है, दूरस्थ शिक्षा से मेरे प्रेम के लिए धरातल उपलब्ध कराया। ऑक्सफोर्ड वास्तव में सीखने की जगह है, पढ़ाने की नहीं। शिक्षक कक्षाओं में पढ़ाते जरूर हैं, पर यह वहाँ के बौद्धिक वातावरण का एक छोटा सा अंश मात्र है। पुस्तकालय, निबंध-लेखन और कक्षाएँ ही ज्ञानार्जन के मुख्य तरीके हैं। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन वास्तव में दूरस्थ शिक्षा द्वारा ही है।

यह पुस्तक सोचने-विचारने के लिए बहुत सारे आयामों को खोलती है, अनेक व्यावहारिक चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है और कई महत्त्वपूर्ण सवाल पाठकों के सामने रखती है कि हर पाठक अपनी एक अलग बौद्धिक-यात्रा पर चल पड़ता है। पश्चिमी वातावरण में पढ़ाई-लिखाई करने के कारण इस पुस्तक को पढ़ना मेरे लिए एक चुनौती के साथ-साथ रोमांचकारी भी रहा। यह विश्लेषण से निष्कर्ष तथा व्यक्ति से समूह के बीच बहुत तेजी से पक्ष बदलती है। इसमें शिक्षा के मार्गदर्शन के लिए ब्रह्मांड को ही चुन लिया गया है।

वैज्ञानिक और तकनीकी खोजों को सही ढंग से मनुष्य के विकास में प्रयोग करने का विचार इस पुस्तक में आरंभ से लेकर अंत तक दिखाई देता है। लेखक का यह मानना है कि विज्ञान और तकनीक के लिए ऐसा अवसर पहले कभी नहीं आया, क्योंकि इस शताब्दी के मध्य तक विश्व की आबादी वर्तमान की तुलना में दोगुनी हो जाने की संभावना है। वे यह कहना चाहते हैं कि नई खोजों से इन लोगों के लिए भोजन, घर, कपड़े, शिक्षा, स्वास्थ्य तथा अच्छा जीवन-स्तर प्राप्त किया जा सकता है। वे लिखते हैं- 
 ‘‘मेरा ऐसा सपना है कि सन् 2020 के स्कूल इमारतें न होकर एक ऐसे केंद्र होंगे, जिनमें विश्व भर का ज्ञान शिक्षक, विद्यार्थियों और समाज को आपस में बाँधेगा और सभी के लिए उपलब्ध होगा। किसी भी प्रकार की सीमाएँ इसमें बाधा नहीं बनेंगी। शिक्षक ज्ञान देने के बजाय विद्यार्थियों द्वारा स्वयं से सीखने में मदद किया करेंगे। शिक्षक सूचना को ज्ञान में परिवर्तित करने में और ज्ञान की समझ में परिवर्तित करने में विद्यार्थियों की मदद किया करेंगे...। सन् 2020 में भारत को ज्ञान पर आधारित पीढ़ी चाहिए, न कि सूचना पर। और उस समय तक हर उम्र के लोग पढ़ा करेंगे, जिससे वे एक नए विश्व का सामना कर सकें।’’

वर्तमान में भारत की जो स्थिति है, उससे डॉ. कलाम के स्वप्न को कैसे साकार किया जा सकता है? यूनेस्को व कॉमनवेल्थ ऑफ लर्निंग में अपने कार्यकाल के दौरान भारतीय शिक्षा के बारे में जानकर मैं प्रसन्न हुआ। मैंने पाया कि भारत के लोगों की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सभी जरूरी संसाधन इस देश में मौजूद हैं। वास्तव में लेखक भारतीयों को अपनी सफलताओं पर अधिक आत्मविश्वास रखने की वकालत कर रहे हैं। इस देश में बहुत सी नीतियाँ और संस्थाएँ हैं। चुनौती है तो यह कि इन सबको ऐसी प्रक्रिया में शामिल करें कि जिसमें शिक्षक, विद्यार्थी तथा तकनीक को एक ऐसे मंच पर लाएँ, जहाँ शिक्षा के लेन-देन के ऐसे आदर्श हों जैसे कि इस महत्त्वाकांक्षी पुस्तक में सुझाए गए हैं।

विजयी भव / डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

मैं एड्यूसेट उपग्रह प्रणाली के बारे में भी बात करना चाहूँगा, जिसके संस्थापकों में डॉ. कलाम भी थे। साथ ही, मैं उन व्यवस्थाओं को भी महत्त्वपूर्ण मानता हूँ, जो भारत अपने विद्यालय व विश्वविद्यालय स्तर पर दूरस्थ शिक्षा के लिए कर रहा है। इस पुस्तक में वर्णित सीखने के समृद्ध वातावरण के सामने दूरस्थ शिक्षा एक अव्यावहारिक और उपहासपूर्ण बात लगती है। लेकिन इस अव्यावहारिकता के पीछे है एक क्रांतिकारी वास्तविकता, जो उन कई सुधारों के लिए एक वाहक का कार्य कर सकती है, जो इस स्वप्न को पूरा करने के लिए चाहिए।

भारत ने खुले विश्वविद्यालय और स्कूल के रूप में संस्थाएँ, तकनीक और नीतियों का ढाँचा बना रखा है, जो उस परिवर्तन के लिए जरूरी है, जिसे डॉ. कलाम लाना चाहते हैं। अब यह दूरदर्शी और प्रेरणादायी लोगों पर निर्भर करता है कि वे इन सभी को सही प्रकार से उपयोग में लाएँ। यह पुस्तक उन सभी के स्वप्नों और प्रेरणाओं को पोषित करेगी।

दूरस्थ शिक्षा का पहला क्रांतिकारी लक्षण है शिक्षा तथा उपयोगी उत्पादों और सेवाओं में तकनीक का प्रयोग करना। प्रकाशित सामग्री से लेकर वेब की दुनिया तक के विभिन्न प्रकार के माध्यमों का प्रयोग करके हम शिक्षा में उपयोग होनेवाले अच्छी गुणवत्ता के उत्पाद कम कीमतों पर तैयार कर सकते हैं। यह प्रयास शिक्षा तक लोगों की पहुँच को आसान बनाएगा और इसे कम कीमत पर उपलब्ध कराएगा। मुक्त विश्वविद्यालय शिक्षकों व विशेषज्ञों की सहायता से अपने पाठ्यक्रम तैयार करते हैं। यह एक ऐसा नवीन प्रयास है, जो शिक्षण को अनुसंधान की भाँति एक सामूहिक प्रयास में परिवर्तित कर देता है। इस प्रक्रिया में शिक्षकों द्वारा बनाई गई उपयोगी शिक्षा सामग्री को साथियों की सकारात्मक सहानुभूति मिलती है और इससे शिक्षा व शिक्षकों दोनों को लाभ होता है। विद्यार्थियों को यह लाभ होता है कि वे भिन्न-भिन्न परिप्रेक्ष्य में विषय को समझते हैं और उन्हें अपने स्वयं के निष्कर्षों पर कसने के लिए प्रोत्साहित होते हैं।

विजयी भव / डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम
प्रस्तुत पुस्तक यह तर्क प्रस्तुत करती है कि कुछ सीखने के लिए शिक्षकों के साथ-साथ उपयोगी वस्तुओं की भी आवश्यकता होती है। दूरस्थ शिक्षा भी ऐसी ही एक व्यवस्था है, जिसकी खोज पुनः की गई है, क्योंकि यह एक प्राचीन परंपरा भी रही है कि शिक्षक व्यक्तिगत रूप से पढ़ानेवाले व्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है। एक प्रभावशाली दूरस्थ शिक्षा प्रणाली में शिक्षक विद्यार्थी के आस-पास ही घूमता हुआ प्रतीत होता है, जैसा कि डॉ. कलाम ने स्वीकृति के बाद कैमस से कुछ पंक्तियाँ पहले अध्याय में उद्धृत की हैं कि ‘मेरे आगे मत चलिए, शायद मैं अनुसरण न कर पाऊँ; मेरे पीछे भी मत चलिए, शायद मैं नेतृत्व न कर पाऊँ। मेरे साथ चलिए, मेरा मित्र बनकर।’

एक अभिलाषा, जो इस पुस्तक में आरंभ से अंत तक है, वह यह है कि ‘सभी उम्र के लोग सीखने की इच्छा रखें।’ कुछ लोग कहते हैं कि वयस्क व्यक्ति की परिपक्वता से ही मनुष्य अपने लिए सत्य को पहचान पाता है। मुक्त विश्वविद्यालयों से संबंधित अनुभव, जो भारत और अन्य स्थानों पर प्राप्त किए गए हैं, उससे यह पता चलता है कि शिक्षा-उपयोगी वस्तुओं के साथ-साथ शिक्षकों की आदर व नम्रतापूर्ण उपस्थिति, अधिक उम्र के लोगों को पढ़ने के लिए आदर्श वातावरण उपलब्ध कराते हैं।

जब मैं कुलपति की तरह कार्य कर रहा था तो सैकड़ों विद्यार्थियों ने बड़ी भावुकता के साथ मुझे बताया था कि कैसे उनके शिक्षक रूपी मित्र ने उन्हें अपने लिए नए सत्यों को खोजने में मदद की और उससे प्राप्त होनेवाला आत्मविश्वास दिलाया। बाद के वर्षों में, पढ़कर ही जान पाए कि ‘वे सफल होने के लिए ही बने हैं।’

जो मुक्त विश्वविद्यालय सफल हुए वे शिक्षा और मानव विकास के आदर्शों की बात करते रहते हैं, जो ‘विच्छेद के दर्द’ से प्रदर्शित होता है और अब यह पारंपरिक शिक्षा प्रणाली में दुर्लभ होता जा रहा है। डॉ. कलाम ने आठवें अध्याय में इसके बारे में लिखा है। मुझे विश्वास है कि डॉ. कलाम चांसलर लॉर्ड फ्रोथर के विचारों से सहमत होंगे, जो सन् 1969 में पहली बार चंद्रमा की यात्रा करके आए अंतरिक्ष यात्रियों की वापसी के कुछ दिनों बाद ब्रिटिश मुक्त विश्वविद्यालय के उद्घाटन अवसर पर बोलते हुए उन्होंने रखे थे। उन्होंने कहा था-
 ‘‘यह कितना महान् अवसर है कि जब मनुष्य के समक्ष अंतरिक्ष का रहस्य खुला है, उसी सप्ताह में हम भी अपना यह कार्य शुरू कर रहे हैं। ब्रह्मांड और अंतरिक्ष की सीमाएँ अनंत हैं और उसी तरह मानव समझ की भी, उससे कहीं अधिक जितना हम विश्वास किया करते थे। मुझे मिल्टन का वह वर्णन याद आ रहा है, जिसमें इससे भी अधिक की आशा की गई है, जितना उस मिशन से हमने अर्जित किया है-सभी ग्रह अपनी-अपनी कक्षाओं में खड़े हुए थे, जब चमकदार रोशनी प्रकट हुई और कहा, ‘हमेशा से बंद रहे दरवाजों को खोलो, स्वर्ग के जीवन के दरवाजों को खोलो। महान् रचनाकर्ता कार्य से वापस आया है, अपने अद्भुत कार्य से, जिसमें उसने छह दिनों में एक नया विश्व बनाया’।’’

-सर जॉन डेनियल
अध्यक्ष
कॉमनवेल्थ ऑफ लर्निंग वैंकूवर
कनाडा

विजयी भव
लेखक : डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम, अरुण कुमार तिवारी
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 176
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