'कर्बला दर कर्बला' कब तक?

karbala dar karbala

कुछ किताबें आपको कथानक स्तर पर प्रभावित करती हैं तो कुछ लिखने की शैली के चलते। कथाकार पत्रकार और प्रकाशक गौरीनाथ की नयी किताब 'कर्बला दर कर्बला' इन दोनों मुद्दों पर खरी उतरती है। बिहार के भागलपुर दंगों पर लिखा गया ये उपन्यास आपको शुरुआत में अटपटे विन्यास के चलते परेशान करेगा मगर उपन्यास जैसे जैसे आगे बढ़ेगा आप जुड़ते जायेंगे और अंत आते आते तो आप स्वयं बुरी तरह परेशान हो जायेंगे और सोचेंगे कि क्या ऐसा जघन्य कांड भी हमारे देश में कहीं हुए होंगे। दंगों के दौरान पल-पल की विभीषिका और उस दौरान हुई सांप्रदायिक हिंसा का निर्मम चित्रण आपको अंदर तक हिला देगा।

ये उपन्यास भागलपुर जिले के गांव से शुरू होता है और कुछ पन्नों के अंदर ही आपको हिंदू-मुसलमान के बीच फैली नफरत का अहसास होने लगता है। ये नफरत और बढ़ जाती है जब उपन्यास गांव से निकलकर भागलपुर शहर पहुंचता है। हालांकि इस नफरत के बीच में शहर के कॉलेज और विश्वविद्यालय में पढ़ रहे युवाओं की दोस्ती और प्रेम की कहानियां भी साथ-साथ चलती रहती हैं। इन कहानियों की मदद से पाठक उस पूरे परिवेश को जानता समझता है। मगर एक जमाने की सिल्क नगरी कही जाने वाले भागलपुर को जल्दी ही नजर लग जाती है। और धीरे-धीरे जल उठता है शहर सांप्रदायिक दंगों की चपेट में। फिर दंगे भी ऐसे कि एक, दो, तीन दिन नहीं, तीन महीने तक सुलगते रहे। कत्ल हत्याएं होती रही। लाशें कहीं पानी में तो कहीं तालाबों में फेंकी जाती रहीं।

इन तीन महीनों में हजार से ज्यादा बेगुनाहों की जानें गयीं और ये वहीं लोग थे जो पहले आस पास एक साथ रहते आ रहे थे मगर जाने कहां से इतना विष भरा था जो जरा से धक्के में ही उबल कर बाहर आ गया और तेजाब जैसा जला बैठा पूरे समाज को। लेखक गौरीनाथ ने इन दंगों को बेहद करीब से देखा है इसलिये उनके ब्यौरे एकदम वास्तविक लगते हैं। किसी तथ्य पर कोई उंगली ना उठाये इसलिये अखबार पत्रिकाओं के ब्यौरे भी फुटनोट पर तारीखों के साथ दिये गये हैं। उपन्यास कहीं फिक्शन तो कहीं नॉन फिक्शन का अहसास पाठक को कराता रहता है। इसलिये उपन्यास में तारतम्यता कम है मगर चूंकि कथानक इतना दमदार है कि उपन्यास एक पल को नह़ी छूटता। दंगों की पृष्ठभूमि में बुनी गयी शिव और जरीना की प्रेम कहानी बेहद खूबसूरत तरीके से कही गयी है और ये कहानी पूरे वक्त उत्सुकता जगाये रहती है। लेखक ने पूरी कोशिश की है तीस साल बाद भी दंगों के नाम पर हुई जघन्य हत्याओं और आदमी के जंगलीपने की कहानी वास्तविक तरीके से सामने आये। गौरीनाथ का कहना है कि दंगों की कहानियों को वो लंबे समय से सीने में छिपाये थे मगर अब जिस तरीके से वैमनस्यता और नफरत फिर फैल रही है इससे लगा कि नफरत कैसे बर्बरता में बदलती है उसे बताने के लिये भागलपुर के दंगों से बेहतर कथा कोई दूसरी नही मिलेगी। फॉर्मेट को तोड़कर लिखे गया ये उपन्यास पाठक को अंदर तक हिला देता है और दूर तक याद किये जाने वाले इस उपन्यास की लेखक को बधाई।

~ब्रजेश राजपूत.
(लेखक ABP न्यूज़ से जुड़े हैं. उन्होंने कई बेस्टसेलर पुस्तकें लिखी हैं)

कर्बला दर कर्बला
राजेश तैलंग 
अंतिका प्रकाशन