कोरोना की तीसरी लहर खत्म होने को है। हर साल आने वाले कोरोना के कहर से अब हम सब परिचित हो गये हैं। मगर कल्पना करिये जब कोरोना की पहली लहर दो साल पहले आयी थी तब हम अच्छी तरह जानते भी नहीं थे इस अदृश्य खतरे और जानलेवा बीमारी को, वैसे इस महामारी से निपटना कितना कठिन था उन प्रशासनिक अधिकारियों को जिनके जिम्मे भोपाल जैसे बड़े शहर के लाखों लोगों को इस बीमारी से बचाने की जिम्मेदारी थी। भोपाल के कलेक्टर रहे भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी तरुण पिथोड़े की किताब 'द बैटल अगेंस्ट कोविड : डायरी ऑफ ए ब्यूरोक्रेट' इस मायने में अनोखी किताब है कि उन्होंने देश प्रदेश और भोपाल शहर में आयी कोरोना की महामारी के पहले से लेकर हजार केस के आने और उससे कैसे मुकाबला किया उसकी कहानी रोचक अंदाज में कही है।
देश में कोविड का पहला केस भले ही 27 जनवरी 2020 को आया हो मगर मध्यप्रदेश में कोविड का पहला केस जबलपुर में 20 मार्च 2020 को सामने आया और इसी के साथ देश और दुनिया में जंगल की आग की तरह कोरोना फैलने लगा। कोरोना से कैसे निपटे इसके लिये रणनीति बनने लगी। आइसोलेशन वार्ड या सेंटर कहां कैसे बनाये जायें ये सोचा जाने लगा। भोपाल के अस्पताल इस बीमारी से आने वाले मरीजों के लिये तैयार हैं या नहीं इसका अनुमान लगाया जाने लगा। भोपाल प्रशासन नगर निगम और स्वास्थ्य विभाग साथ में एम्स ने मिलकर रणनीति बनाई और नेशनल डिजास्टर एक्ट के तहत नये-नये आदेश जारी किये गये। मगर भोपाल में पहला केस लंदन से लौटी लड़की का आया जिसके पिता कमलनाथ के इस्तीफे के ऐलान वाली पत्रकार वार्ता में पहुंचे थे और जब उनकी कांटेक्ट ट्रेस की गयी तो उनसे डेढ़ सौ से ज्यादा लोग मिले थे। इसके बाद इन सभी के घरों पर आइसोलेशन के पोस्टर लगाये गये जिससे विवाद हुआ। साथ ही पत्रकार महोदय के मोहल्ले में ऐसी बैरिकेडिंग की गयी कि पूरे मोहल्ले में तनाव हो गया।
लेखक के सामने बड़ी चुनौती देश ओर विदेश से लौटकर आ रहे लोगों को ट्रेस करने की थी उनकी टेस्टिंग और आइसोलेशन की थी। ये काम कैसे प्रभावी तरीके से किया जाये। इसके लिये नगर निगम कमिश्नर और डीआईजी और प्रशासनिक अधिकारियों की अनेक बैठकें हुईं। इसके अलावा भोपाल के संकीर्ण और संकरे इलाकों में रहने वाले लोगों के बीच कैसे कोरोना का फैलाव रोका जाये ये ऐसा काम था जिसे सोच कर ही लेखक के हाथ पैर फूल जाते थे।
कोरोना के विस्तार को रोकने लॉकडाउन एक उपाय तो था मगर इस लॉकडाउन के चलते शहर की बड़ी आबादी को रोजमर्रा की जरूरत की चीजें कैसे मिलें ये भी बड़ा टास्क था। दूध सब्जी किराना कैसे उपलब्ध हो इसके लिये लगातार नयी-नयी योजनाएं बनती रहीं बिगड़ती रहीं।
पुराने भोपाल के जहांगीराबाद में कोरोना जोरों से फैला था। उस इलाके से संक्रमित लोगों को निकाल कर आइसोलेशन सेंटर में रखना भी ऐसा काम था जिसमें आमतौर पर जनता सहयोग नहीं करती थी। मगर वो काम करना जरूरी था। इलाके में अपनी पहचान रखने वाले नये-नये अफसरों को इस काम में लगाया और ये काम भी किया गया। जरूरत के काम के लिये लोगों की आवाजाही कम करना भी बड़ा काम था। कलेक्टर तरुण के साथ डीआईजी इरशाद वली ने लगातार सड़कों पर रहकर जनता को समझाइश दी कि जरूरत पर ही निकलें इसका असर हुआ। महामारी में पुलिस नगर निगम और अस्पताल के कर्मचारी रात दिन काम करते थे। उन कर्मचारियों को लगातार काम के लिये प्रेरित करना भी बड़े अफसर का बड़ा काम होता है। इसके अलावा इस किताब में वो प्रसंग बहुत भावुक हैं जिनमें लेखक और डीआईजी अपने घरों से दूर रेस्ट हाउस में रहते थे और जब दिन में एक बार घर जाते थे तो बच्चे पूछते थे आप वापस घर में कब रहने आओगे तो जबाव नहीं सूझता था। इस लंबी चलने वाली आपदा में अफसरों को कैसे रातों की नींद और दिन का सुकून त्यागना पड़ता है इस किताब में तरूण ने बेहतर तरीके से अपनी मर्यादा में रहकर बताया है। भोपाल के पहले बड़े निजी कोविड अस्पताल चिरायु कैसे मेडिकल कॉलेज से कोविड अस्पताल बना इसके बारे में भी किताब में अच्छा उल्लेख है ये सारी वो बातें हैं जो कभी सामने नहीं आतीं।
भोपाल के अलावा पीलीभीत, गांधी नगर, रूपनगर, मुंबई और दिल्ली में प्रशासनिक अफसरों ने किस रणनीति से कोविड का मुकाबला किया वो भी तरुण ने अपने इस किताब में विस्तार से लिखा है। मगर भोपाल की कहानी पढ़ते-पढ़ते बीच में दूसरे शहरों की ये कहानियां किताब का प्रवाह तोड़ते हैं। कुछ और बेहतर किस्सों की उम्मीद इस किताब में की गयी थी जो पूरी नहीं हुयी। आपदा में आये राजनीतिक दबाव की बातें भी होती तो किताब और रोचक होती।
~ब्रजेश राजपूत.
(लेखक ABP न्यूज़ से जुड़े हैं. उन्होंने कई बेस्टसेलर पुस्तकें लिखी हैं)
द बैटल अगेंस्ट कोविड : डायरी ऑफ ए ब्यूरोक्रेट
लेखक : तरुण पिथोड़े
प्रकाशक : ब्लूम्सबरी
पृष्ठ : 242
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