उर्दू का पहला कहानीकार कौन है और पहली कहानी कौन सी है, यदि इस बहस को छोड़ दिया जाए तो यह सर्व-सम्मति से स्वीकार किया जाता है कि उर्दू में कथा साहित्य का आरंभ उन्नीसवीं सदी के अंतिम दशक में हुआ। इससे पहले दास्तान और कहानी की मजबूत परंपरा ने इसके लिए मार्ग प्रशस्त किया। मुंशी प्रेमचंद, सज्जाद हैदर यलदरम और राशिदुल खैरी सहित अन्य की कहानियों ने इसकी शानदार शुरुआत की। इस दौर में लिखी जानेवाली अधिकांश कहानियों में राष्ट्रीय संघर्ष, आंदोलन और सामाजिक विषय प्रमुख रहे। इस दौर के कथाकारों ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला और भारतीय समाज और घटनाओं को बीसवीं शताब्दी के आरंभ में अपने कथा साहित्य का विषय बनाया। प्रेमचंद ने देश के सामान्य और निम्न वर्ग के नागरिकों के जीवन का वर्णन किया और उनकी जीवन शैली पर प्रकाश डाला तो राशिदुल खैरी ने विशेष रूप से मुसलिम समाज और महिलाओं के आंतरिक मामलों और समस्याओं पर महत्त्वपूर्ण कहानियाँ लिखीं। इसी अवधि में सुल्तान हैदर जोश, चौधरी मुहम्मद अली रदोलवी, अली महमूद, नियाज फतेहपुरी, महाशय सुदर्शन और ख्वाजा हसन निजामी ने भी श्रेष्ठ कहानियाँ लिखीं।
बीसवीं शताब्दी के दूसरे और तीसरे दशक में अंग्रेजी और तुर्की कथाओं का अनुवाद भी शुरू हुआ और इस तरह उर्दू कथा साहित्य में नई प्रवृत्तियाँ जुड़ गईं। इन कथाओं में, प्रेम और सौंदर्य के रंग, भाषा और अभिव्यक्ति की शक्ति और मनोवैज्ञानिक और दार्शनिक अंतर्दृष्टि का विशेष महत्त्व है। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद रूसी, फ्रेंच और अंग्रेजी की स्तरीय कथाओं के अनुवाद उर्दू में बहुतायत से प्रकाशित होने लगे। मंसूर अहमद, ख्वाजा मंजूर हुसैन, जलील किदवई और अन्य लेखकों ने पश्चिम की रचनाओं का उर्दू में अनुवाद किया जिसमें कला और तकनीक की उन्नत अवधारणा मिलती है। उर्दू कथा साहित्य पर भी इसका प्रभाव पड़ा।
इस काल के उर्दू कथा साहित्य में तीन प्रवृत्तियाँ प्रमुख हैं। सबसे महत्त्वपूर्ण प्रवृत्ति प्रेमचंद और अनुकरण करनेवालों जैसे सुदर्शन, अली अब्बास हुसैनी, आजम करीवी और उपेंद्रनाथ अश्क की यथार्थवादी प्रवृत्ति थी। उन्होंने भारत में सामाजिक जीवन की बदलती परिस्थितियों पर नजर रखी। उन्होंने अपनी कथाओं में गाँवों और गाँवों की समस्याओं को प्रमुखता दी। उनका दिल सामान्य व्यक्ति के दुःख और पीड़ा से बेचैन हो उठता था और वह उनके जीवन की परिस्थितियों को इतनी भावनात्मकता से प्रस्तुत करते हैं कि पाठक के मन में उसके प्रति सहानुभूति और हमदर्दी पैदा हो जाती है। उस समय की एक और उल्लेखनीय प्रवृत्ति जीवन की रोमांटिक और भावनात्मक व्याख्या थी। इसका प्रतिनिधित्व सज्जाद हैदर यलदरम, नियाज फतेहपुरी और मजनूँ गोरखपुरी ने किया था। उनकी कथाएँ वास्तविकता से अधिक कल्पनाशील हैं। उनका कथा साहित्य रोमांटिक विचारों और अवधारणाओं से भरा हुआ है। वे मानवीय भावनात्मक संबंधों, विशेष रूप से प्रेम संबंधों को बहुत महत्त्व देते हैं। वे इन संबंधों को सामाजिक परंपराओं और पुराने नैतिक सिद्धांतों और नियमों के बंधनों से मुक्त करना चाहते हैं। तीसरी प्रवृत्ति उन लोगों की है, जो सुधारवादी दृष्टिकोण से मुसलमानों के मध्यम वर्ग की घरेलू समस्याओं को प्रस्तुत करते हैं और इनमें प्रमुख नाम नजीर अहमद, सुल्तान हैदर जोश, राशिदुल खैरी और अजीम बेग चुगताई आदि के हैं; जिन्होंने अपने स्वयं के अवलोकन और अनुभवों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने मुस्लिम समाज को अलग-अलग प्रकार से अपनी कल्पनाओं का विषय बनाया।
दिसंबर 1932 में अहमद अली ने ‘अंगारे’ नामक कथा-संग्रह का प्रकाशन किया, जिसमें खुद अहमद अली के अलावा सज्जाद जहीर, रशीद जहाँ और महमूद उज-जफर की कहानियाँ शामिल थीं। इन कहानियों के विषय ऐसे थे, जिनके प्रकाशन से उर्दू कहानी में एक आंदोलन का जन्म हुआ। यहाँ से उर्दू कथाओं में साहस और निडरता दिखाई देने लगी। 1935 में प्रगतिशील आंदोलन शुरू हुआ। इसका सबसे अधिक प्रभाव उर्दू कथा-साहित्य पर पड़ा। इस आंदोलन के प्रभाव से उर्दू कथा साहित्य में नई प्रवृत्तियों का जन्म हुआ। इस युग के प्रतिनिधि कथाकारों में कृष्ण चंद्र, राजेंद्र सिंह बेदी, इस्मत चुगताई, सआदत हसन मंटो, अहमद नदीम कासमी, ख्वाजा अहमद अब्बास और हयातुल्लाह अंसारी शामिल हैं। अब भारत के सामूहिक जीवन के सभी मुद्दों का उल्लेख उर्दू कथा कहानियों में किया जाने लगा। गुलामी, गरीबी, अज्ञानता, भुखमरी, बेरोजगारी, अंधविश्वास, वर्ग-संघर्ष, मध्यम वर्ग की खोखली दिखावट, किसानों का शोषण, भावनात्मक और यौन दुराचार आदि उर्दू कथा साहित्य का विषय बन गए।
सन् 1947 में स्वतंत्रता-प्राप्ति के साथ देश का विभाजन भी हो गया था। विभाजन के बाद दो देश भारत और पाकिस्तान अस्तित्व में आए और दोनों देशों को नई समस्याओं का सामना करना पड़ा। व्यापक दंगे, विस्थापन, प्रवासन, पुनर्वास और कई अन्य मुद्दों पर कहानीकारों का ध्यान केंद्रित हुआ। आरंभ में विभाजन और दंगों के वर्षों की आपात-स्थितियों और परिणामों के बारे में कई कहानियाँ लिखी गईं। विशेषकर मंटो, कृष्ण चंद्र, बेदी और अहमद नदीम कासमी आदि ने इस विषय पर बहुत प्रभावी और उत्कृष्ट कहानियाँ लिखीं। कुर्तुल-ऐन हैदर, गुलाम अब्बास, बलवंत सिंह, शौकत सिद्दीकी और इंतेजार हुसैन ने भी अपनी गंभीर सोच और व्यापक अध्ययन और अवलोकन के द्वारा उर्दू कहानी को विकास की नई दिशा दी।
उर्दू साहित्य में आधुनिकता की प्रवृत्ति साठ के दशक में शुरू हुई। उनके प्रभाव में उर्दू कथा साहित्य के विषय और शैलियों में नाटकीय परिवर्तन हुए। इस अवधि के दौरान दो प्रकार के कथाकार उभरे। आधुनिक कथाकारों का एक समूह और आधुनिक प्रगतिशील कथा लेखकों का दूसरा समूह। प्रथम वर्ग में अनवर सज्जाद, बलराज मैनरा, अनवर अजीम, रशीद अमजद आदि तथा दूसरे समूह में रामलाल, इकबाल मजीद, इकबाल मतीन, काजी अब्दुल सत्तार, रतन सिंह और जोगिंदर पाल आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
अस्सी के दशक में आधुनिकता की प्रवृत्ति कमजोर पड़ने लगी। आधुनिकता के समापन के बाद शौकत हयात, सलाम बिन रज्जाक, साजिद रशीद, पैगाम अफाकी, सैयद मौहम्मद अशरफ और तारिक छितारी आदि नए कथाकार अलग विचार और प्रवृत्ति रखते थे। इन कथाकारों ने एक मुक्त रचनात्मक शैली को अपनाना शुरू कर दिया।
उर्दू कथा के इन ऐतिहासिक और क्रमिक चरणों को ध्यान में रखते हुए, इस पुस्तक में बारह प्रतिनिधि कहानियों को संगृहीत किया गया है। पहली कहानी मुंशी प्रेमचंद की है, जिसका शीर्षक ‘कफन’ है। मुंशी प्रेमचंद उन कथाकारों में से एक हैं, जिनसे उर्दू कहानियों की एक नियमित शुरुआत हुई। उन्होंने समाज की वास्तविकताओं को सरल और आसान ढंग से चित्रित किया। विशेष रूप से उन्होंने ग्रामीण भारत की सामाजिक समस्याओं और कठिनाइयों को अपने कथा साहित्य का विषय बनाया है, यह उनकी विशेषता के साथ-साथ उनका गुण भी है। ‘कफन’ में मुंशी प्रेमचंद ने दिखाया है कि सामंती समाज इतनी भयानक गरीबी पैदा करता है कि मनुष्य अपनी मानवता खो देता है। यह कहानी हमारे सामने ऐसी त्रासदी लेकर आती है कि कहानी का पाठक सिहर उठता है। इस कथा से यह ज्ञात होता है कि गरीबी किसी भी व्यक्ति को उदासीनता का शिकार बना देती है और फिर वह केवल व्यक्तिगत आराम के बारे में ही सोचता है, उसके आस-पास के लोग या वातावरण उसे प्रभावित नहीं कर पाते।
‘वजीर अदालत’ सुदर्शन की एक रोचक कहानी है। सुदर्शन उर्दू के प्रारंभिक कथाकारों में से एक हैं। वे प्रेमचंद के समकालीन हैं और उन्होंने अपनी कहानियों में प्रेम और रोमांस के अलावा भारत में ग्रामीण जीवन के मुद्दों को चित्रित किया है। ‘वजीर अदालत’ कहानी में महाराजा अशोक और शिशुपाल के पात्रों के माध्यम से समाज में न्याय की स्थापना पर बल दिया गया है।
अली अब्बास हुसैनी उर्दू कथा साहित्य के संस्थापकों में से एक हैं। उन्होंने उर्दू कहानी को वास्तविकता का रंग दिया। भारत और भारतीय सभ्यता और संस्कृति के लोगों में उनकी विशेष रुचि थी और उन्होंने अपनी कहानियों में एक ही बिंदू को अलग-अलग पात्रों के माध्यम से उभारा है, जिसके कारण आरंभ से ही उर्दू कहानी लोगों की पसंद से परिचित हो गई। भारतीय समाज, वर्ग-संघर्ष, विशेष रूप से महिलाओं की विविधता और समाज में इसकी महत्त्वहीनता, उच्च और निम्न वर्ग के बीच के अंतर का सुंदर वर्णन किया गया है। उन्होंने भाषा की सरलता और हास्य व्यंग्य के द्वारा कथानक को आकर्षक और प्रभावी बना दिया है।
दूसरी कहानी उपेंद्रनाथ अश्क की ‘ये मर्द’ है। अश्क को कथालेखन में प्रेमचंद के मार्ग पर चलनेवालों में से एक माना जाता है। उन्होंने समाज के मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों के मध्य से अपनी कहानी का विषय चुना। अपनी कहानी ‘ये मर्द’ में उन्होंने भारतीय समाज में लिंगभेद और स्त्री-पुरुष के मध्य पूर्वग्रही प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है।
सुहैल अजीमाबादी को प्रेमचंद स्कूल के एक महत्त्वपूर्ण और आधिकारिक कथाकार के रूप में पहचाना जाता है। उनके कथा साहित्य की प्रमुख विशेषता यह है कि वह छोटी-से-छोटी समस्या को भी उत्कृष्ट ढंग से करते हैं, जिसे अन्य रचनाकार अनदेखा कर देते हैं। सुहैल अजीमाबादी अपनी कहानियों में इस तरह से वर्णन करते हैं कि उसकी पूरी छवि पाठक के मस्तिष्क में उभरने लगती है। ‘अँधेरे में एक किरण’ उनकी उत्कृष्ट कृतियों में से एक है, जिसमें ग्रामीण भारत की एकता और सांप्रदायिक सद्भाव का उदाहरण देखने को मिलता है। दिखाया गया है, जिसमें दिखाया गया है कि सांप्रदायिक संघर्ष के दौरान एक हिंदू परिवार एक मुस्लिम परिवार की रक्षा कैसे कर सकता है। वह परिवार डटकर खड़ा हो जाता है और अपने जीवन और संपत्ति की परवाह किए बिना दंगाइयों से लड़ता है। यह मिथक भारत की साझा सांस्कृतिक विशेषताओं और सामाजिक भाईचारे के शिक्षाप्रद संदेश को उभारता है।
‘अपने दुःख मुझे दे दो’ राजेंद्र सिंह बेदी की कहानी है। राजेंद्र सिंह बेदी अपने समय के एक महान कहानीकार हैं। उनकी कहानियों में विचारों और अर्थों की दुनिया मध्यम वर्ग के विभिन्न पात्रों, उनके रंगीन परिवेश, मानवीय संबंधों के उतार-चढ़ाव से निर्मित होती है। उन्होंने बच्चों और बुजुर्गों को भी अपने कथा साहित्य का विशेष विषय बनाया है। ‘अपने दुःख मुझे दे दो’ एक ऐसी महिला की कहानी प्रस्तुत करती है जो दो भागों में विभाजित है। एक ओर वह भाभी और बहू है, तो दूसरी ओर उसे पत्नी का कर्तव्य पूरा करना है। बेदी ने इस परस्पर विरोधी कहानी को रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है।
‘काली शलवार’ सआदत हसन मंटो की एक महत्त्वपूर्ण कहानी है। सआदत हसन मंटो साधारण सामाजिक जीवन की कड़वी वास्तविकताओं को भी बड़े साहस से सुनाते हैं, जिसके कारण उनकी प्रशंसा की जाती है और कभी-कभी उनकी आलोचना भी होती है। अपनी कहानियों में, उन्होंने साहसपूर्वक मनुष्य के यौन-दुराचार और उसके विभिन्न पहलुओं की आलोचना की है। कहानी ‘काली शलवार’ में एक वेश्या और उसके घृणित वातावरण के जीवन से जुड़ी कई बातें पाठक के सामने प्रस्तुत की हैं। इस वातावरण में घटनाओं में उतार-चढ़ाव पैदा होता है और वे ऐसे जटिल चरणों से गुजरती हैं कि पाठक माहौल के घिनौनेपन की ओर ध्यान दिए बिना केवल मनोवैज्ञानिक उत्तेजनाओं में दिलचस्पी लेता है, जो पात्रों को एक निश्चित प्रक्रिया में ले जाते हैं। वेश्याओं की कहानी होने के बावजूद ‘काली शलवार’ कहानी पाठक को प्रभावित करती है, क्योंकि इसमें उस परिवेश के दो पात्रों की मानसिक स्थितियों का विश्लेषण है, जिसमें पूरी कहानी की सुंदरता है।
‘आधे घंटे का खुदा’ कृष्ण चंद्र की कहानी है। कृष्ण चंद्र का प्रगतिशील कथाकारों में एक प्रमुख स्थान है। आरंभ में उन्होंने प्रेम पर आधारित कहानियाँ लिखीं लेकिन धीरे-धीरे सामाजिक और लिंगभेद की समस्याओं और नगरीय जीवन के उतार-चढ़ाव की ओर बढ़ गए। ‘आधे घंटे का खुदा’ कहानी में कृष्ण चंद्र ने मोगरी और काशर के चरित्रों में मनुष्य के जटिल मनोविज्ञान को बड़ी कुशलता से चित्रित किया है।
‘चौथी का जोड़ा’ इस्मत चुगताई की प्रतिनिधि कहानी है। इस्मत चुगताई सामाजिक मुद्दों, विशेषकर महिलाओं से संबंधित मुद्दों पर लिखनेवाली एक महान् लेखिका हैं। उन्होंने समाज में महिलाओं की व्यक्तिगत और सामाजिक स्थिति को साहसपूर्वक चित्रित किया और उनके जीवन के उतार-चढ़ाव का गहन विश्लेषण प्रस्तुत किया। ‘चौथी का जोड़ा’ एक गरीब विधवा के परिवार की कहानी है, जो यह दरशाती है कि एक गरीब विधवा अपनी युवा बेटियों की शादी के बारे में कैसे चिंतित रहती है और अपनी क्षमता के अनुसार हर संभव प्रयास करती है। इसके बावजूद सामाजिक रीति-रिवाज हमेशा उसके रास्ते की बाधा बन जाते हैं।
‘जग्गा’ बलवंत सिंह के एक कहानी-संग्रह का नाम है और उनकी पहली कहानी का शीर्षक भी है। अपनी कहानियों में बलवंत सिंह ने विशेष रूप से पंजाब के ग्रामीण समाज का गहन अध्ययन प्रस्तुत किया है। उनकी कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता गाँव के परिवेश और रोमांचकारी पात्रों की पुनर्प्राप्ति है। जीवन के बारे में बलवंत सिंह का दृष्टिकोण व्यंग्यात्मक रोमांस से भरा है, जो उनकी कई कहानियों में परिलक्षित होता है। ‘जग्गा’ का कथानक पंजाब के एक गाँव का वातावरण है, जिसमें गरीबी, कड़ी मेहनत, बहादुरी, और अपराध शामिल हैं। इस मिथक की शुरुआत और अंत दोनों में रोमांस हावी है। इस कहानी को बलवंत सिंह की विशेष पहचान के रूप में भी जाना जाता है।
‘सितारों से आगे’ कुर्तुल-ऐन हैदर की कहानी है। कुर्तुल-ऐन हैदर की कहानियाँ और उपन्यास भारत के विभाजन की त्रासदी, मानवीय पीड़ा, राजनीतिक उत्पीड़न, मानवीय मूल्यों, भारतीय तत्त्वों और सूफी शिक्षाओं को बहुत ही सुंदर और रोचक तरीके से प्रस्तुत करती हैं। ‘सितारों से आगे’ कहानी में करतार सिंह, मंजूर, सबिहुद्दीन, हमीदा और शकुंतला जैसे पात्रों की सामूहिक यात्रा का जिक्र है, जो सितारों की रोशनी में की जाती है। इन पात्रों के बीच के संवाद दिलचस्प हैं और जीवन के विभिन्न रंगों को दरशाते हैं।
‘बैक लेन’ जोगिंदर पाल की कहानी है। अपने उपन्यासों में जोगिंदर पाल ने प्रवास की कठिनाइयों और समाज के कमजोर वर्गों को चित्रित किया है। उनकी कहानियाँ भाषा और अभिव्यक्ति के संदर्भ में सरल है और अर्थ और विचार की दृष्टि से गहरी है। अपने मिथकों के कारण भी उन्होंने बहुत प्रसिद्धि प्राप्त की। ‘बैक लेन’ में उन्होंने मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं का ब़डे विस्तार से उल्लेख किया है। मनुष्य और कुत्ते के बीच संवाद और प्रतियोगिता के दृश्य प्रस्तुत करके वास्तव में जोगिंदर पाल ने समाज के साधारण उत्पीड़ित और गरीब व्यक्ति के जीवन की त्रासदी का वर्णन किया है।
गयास अहमद गद्दी आजादी के बाद के प्रमुख लेखकों में से एक हैं। अपनी कहानियों में उन्होंने सामान्य मनुष्यों की भावनाओं का सूक्ष्म रूप से वर्णन किया है और बड़ी निपुणता के साथ मानव मानस को प्रतिबिंबित किया है। प्रतीकात्मक कथा के संदर्भ में गयास अहमद गद्दी की कहानी ‘तज दो तज दो’ का विशेष महत्त्व है। इस मिथक में उन्होंने अंतरात्मा के प्रतीक के रूप में एक मृत कुत्ते को चित्रित किया है। इस कथा में एक मृत कुत्ते के चरित्र का निर्माण करके, कथाकार ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि वर्तमान समय में मनुष्य को जो कठिनाइयों और परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, उसे केवल तभी हल किया जा सकता है जब वह अपनी अंतरात्मा को स्वयं से अलग करता है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा है कि भले ही कोई व्यक्ति अस्थायी रूप से अपनी अंतरात्मा को अलग कर ले, लेकिन उसकी मानवता और सहज वृत्ति जल्द ही उस पर हावी हो जाती है और मनुष्य अपनी अंतरात्मा को लंबे समय तक खुद से अलग नहीं कर सकता है। कहानी का नायक अपनी अंतरात्मा को खुद से अलग करने का पूर्ण रूप से प्रयास करता है, लेकिन किसी भी स्थिति में असफलता ही उसके हाथ आती है।
‘रोने की आवाज’ सुरेंद्र प्रकाश की कहानी है। सुरेंद्र प्रकाश की कहानियाँ देश के विभाजन और उसके बाद के हालात की पीड़ा को दरशाती हैं। सुरेंद्र प्रकाश बौद्धिक और तार्किक आवश्यकताओं के आधार पर अपनी कहानियाँ लिखते हैं। उनको लाक्षणिकता का उपयोग करने का कौशल प्राप्त है। उनकी कल्पना में एक नाटकीय शैली के साथ-साथ भावनाओं और मनोविज्ञान का एक विशेष वातावरण देखने को मिलता है। उनकी कहानियों के पात्र चारों ओर घूमते हुए प्रतीत होते हैं। उन्होंने शुद्ध भारतीय परिवेश में अपनी कहानियों का वातावरण निर्मित किया है। ‘रोने की आवाज’ कहानी में अनेक स्थानों पर स्वयं से बातचीत के माध्यम से एक विशेष वातावरण तैयार किया गया है और इसके साथ ही कथाकार के अनुचित हस्तक्षेप के बिना परस्पर विरोधी विचारों की लहरों को बहने दिया गया है। कहानी का एकमात्र कथावाचक एक अस्तित्ववादी चरित्र है, जो आधुनिक समाज की विभिन्न समस्याओं से ग्रस्त है। इसका अस्तित्व विभिन्न भागों में विभाजित है। वह उदासीनता, अकेलेपन और निराशा से ग्रस्त है। रिश्तों की अस्थिरता व्यक्ति की बेबसी और स्वार्थ को देखकर उसे रोना आता है। इस प्रकार रोने की आवाज मुख्य चरित्र की अंतरात्मा की आवाज का प्रतीक है।
‘मीरास’ इकबाल मजीद की कहानी है। इकबाल मजीद की कहानियों की विशेषता उनकी अनूठी शैली है। वह अपने पात्रों की व्याख्या बहुत ईमानदारी और यथार्थवादी तरीके से करते हैं। न केवल उनके पौराणिक विषयों में विशिष्टता है, बल्कि वे जटिल चरित्र को उभारने में भी बहुत सफल हैं। ‘मीरास’ एक ऐसी कहानी है, जो प्रतीकात्मक अभिव्यक्तियों और चरित्रों के माध्यम से भारत के विभिन्न संप्रदायों के बीच पाए जानेवाले अविश्वास और इसके परिणामस्वरूप एक-दूसरे को डराने-धमकाने की रणनीतियों की ओर इशारा करती है।
उर्दू की ये कहानियाँ विषयों के संदर्भ में बहुत सार्थक और महत्त्वपूर्ण हैं और उन्हें केवल उनके कलात्मक और विषयगत गुणों के कारण ही संकलित करके प्रकाशित किया जा रहा है। आशा है कि पाठकों को यह कहानियाँ पसंद आएँगी।
-शैख़ अक़ील अहमद
[ निदेशक, राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद् नई दिल्ली ]
उर्दू की लोकप्रिय कहानियाँ
सम्पादक : शैख़ अक़ील अहमद
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 176
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