विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में लोकतांत्रिक मूल्यों के आधार पर संवैधानिक तरीके से लगभग 500 वर्षों के अनवरत संघर्ष के पश्चात् अयोध्या में भगवान् श्रीराम की जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण करने का सौभाग्य रामभक्तों को प्राप्त हुआ है। इस स्वर्णिम अवसर को प्राप्त करने के लिए हिन्दू के अनवरत संघर्ष की गाथा किसी भी समाज के लिए अत्यंत गौरव का विषय है। 1528 से निरंतर चले इस संघर्ष ने यह सिद्ध कर दिया कि हिन्दू समाज अपने इष्ट की प्रतिष्ठा को पुनर्स्थापित करने के लिए किसी भी सीमा तक जाकर संघर्ष कर सकता है। 1984 में रामजन्मभूमि मुक्ति आंदोलन प्रारंभ करने से राम मंदिर के पुनर्निर्माण की यह यात्रा बहुत ही अद्भुत रही। 13 करोड़ से अधिक रामभक्तों की सहभागिता ने इसे विश्व का सबसे बड़ा जन-आंदोलन बना दिया। इस आंदोलन के कारण जो जन-जागरण हुआ, उसने इसे हिन्दू समाज का एक नवजागरण आंदोलन बना दिया, जिसका परिणाम जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में दिखाई दिया।
यह सर्वविदित है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश पर ही भारत सरकार ने ‘श्रीरामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास’ का गठन किया, परंतु सरकार ने पहले ही दिन अपनी भूमिका स्पष्ट कर पूरे देश को एक मार्गदर्शन दे दिया कि मंदिर बनाना और मंदिर चलाना सरकार का काम नहीं है। यह सरकारी ट्रस्ट नहीं होगा, अपितु इस ट्रस्ट में वही लोग होंगे, जो इस आंदोलन को यहाँ तक लेकर आए हैं। इसलिए इस ट्रस्ट में महंत नृत्यगोपाल दासजी, चंपत रायजी, युगपुरुष परमानंदजी, गोविंद देव गिरिजी महाराज को प्रमुख स्थान दिया गया और उनकी सहायता हेतु भारत सरकार द्वारा कुछ प्रशासकों को भी जिम्मेदारी दी गई। फिर हमें ध्यान आया कि यह मंदिर तो देश के जन–जन का मंदिर है, भगवान् राम तो देश के जन–जन के साथ जुड़े हुए हैं, इसलिए हम सरकार से भी पैसा नहीं लेंगे। सोमनाथ का मंदिर एक उदाहरण के रूप में हमारे सामने उपस्थित है, हालाँकि वह सरदार वल्लभ भाई पटेल की प्रेरणा से बना था, परंतु गांधीजी और स्व. राजेंद्र प्रसाद की इच्छा थी कि उसके निर्माण में सरकार का एक पैसा भी न लगे। अभी तक लाखों–करोड़ों रामभक्त श्रीराम मंदिर आंदोलन के साथ जुड़े थे।
अब उन्हें भगवान् राम के भव्य मंदिर निर्माण के साथ जोड़ना है और इस प्रकार सभी रामभक्तों को लगेगा कि गिलहरी की तरह उनका भी कुछ योगदान है, जब भगवान् राम का नाम गाँव–गाँव तक जाएगा तो वह विद्युत की तरह एक स्पंदन उत्पन्न करेगा और पूरे देश में अद्भुत जागरण होगा, यही सोचकर ‘तीर्थ क्षेत्र न्यास’ ने निर्णय लिया कि हम समाज के पास जाएँगे। कई बड़े–बड़े उद्योगपति स्वयं आए और उन्होंने भगवान् राम के भव्य मंदिर के निर्माण का सारा खर्चा स्वयं वहन करने के लिए कहा। न्यास ने उनको भी विनम्रतापूर्वक अस्वीकार इसलिए किया, क्योंकि सभी जानते हैं कि दिल्ली में एक लक्ष्मी नारायण मंदिर है। उसको श्री घनश्याम दास बिड़लाजी ने बनवाया था, अत: आज लोग उसे बिड़ला मंदिर के नाम से जानते हैं। हम चाहते हैं कि भगवान् राम के भव्य मंदिर से लोग स्वयं को जोड़ें, उन्हें गर्व हो कि यह मंदिर उनका है, इसके निर्माण में उनका भी सहयोग है, इसलिए न्यास ने निधि समर्पण के इस महाभियान का निर्णय लिया।
विहिप ने इस महाभियान में सहयोग करने का प्रस्ताव किया, जिसे न्यास ने स्वीकार करने की अनुकंपा की, प्रारंभिक बैठकों में ट्रस्ट के लोगों ने और पूज्य संतों ने इस महाभियान के प्रारूप को तय किया। श्रीराम शिलापूजन अभियान के समय भारत के तीन लद्दाख गाँवों तक कार्यकर्ता गए थे और इस महाभियान के अंतर्गत चार लद्दाख गाँवों तक जाएँगे और ग्यारह करोड़ परिवारों से संपर्क करते हुए यह प्रयास करेंगे कि लगभग 50 करोड़ लोगों का योगदान श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण हेतु हो, लेकिन जब प्रांतों की बैठकें हुईं और प्रखंड तक जाना शुरू किया तो देखा कि रामभक्तों का उत्साह देखने लायक था तथा इतना बड़ा लक्ष्य भी बौना पड़ गया, उस उत्साह के सामने। हमने तो मात्र चार लद्दाख तक जाने का ही लक्ष्य रखा था, लेकिन हम 5,23,395 गाँवों तक पहुँचे, जबकि भारत में कुल छह लद्दाख गाँव हैं, इसी प्रकार हमने ग्यारह करोड़ परिवार तक जाने का लक्ष्य तय किया था और हम तेरह करोड़ परिवारों तक पहुँचे तथा 50 करोड़ रामभक्तों तक पहुँचने की संख्या भी अब 65 करोड़ हो गई है, जो कि भारत के हिन्दुओं की कुल जनसंख्या के आधे से भी अधिक है। मुझे लगता है कि विश्व का यह सबसे बड़ा संपर्क अभियान बन गया है। यह विचार किया गया कि देश भर में लगभग दस लद्दाख टोलियाँ निकलेंगी और एक टोली में कुल चार कार्यकर्ता होंगे। इस प्रकार कुल 40 लद्दाख कार्यकर्ता जनसंपर्क करेंगे, जो कि अपने आप में एक विश्व रिकॉर्ड होगा।
वर्तमान पीढ़ी वास्तव में बहुत सौभाग्यशाली है कि वह 492 वर्ष के अनवरत संघर्ष के पश्चात् अयोध्या में भगवान् राम के भव्य मंदिर का निर्माण होते हुए देख रही है। मंदिर निर्माण का कार्य शुरू हो गया है और जब संपूर्ण देश के रामभक्त, जिन्होंने इस भव्य मंदिर के लिए समर्पण किया है, इस भव्य राम मंदिर से अपने आप को जोड़ेंगे तो यह अपने आप में एक अद्वितीय अनुभव होगा। मुझे लगता है कि भगवान् राम का यह भव्य मंदिर रामराज्य की दिशा में जाने के लिए एक लॉन्चिंग पैड बनेगा। राम मंदिर से रामराज्य की ओर जानेवाली यह यात्रा भारत समेत संपूर्ण विश्व के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण होगी, क्योंकि भगवान् राम का जीवन–मूल्य संपूर्ण मानवता के लिए है। इस राम मंदिर निर्माण से एक नए भारत का निर्माण होगा और जो राष्ट्र-विरोधी शक्तियाँ हैं, वे सब निस्तेज होंगी। यही सपना भारत के राष्ट्रपति श्री अब्दुल कलामजी का भी था और उन्होंने अपनी पुस्तक ‘विजन-2020’ में भारत के एक महाशक्ति बनने की बात की थी, अब महर्षि अरविंद घोष, स्वामी विवेकानंद, श्री अब्दुल कलामजी आदि महापुरुषों का वह सपना साकार होता दिखाई दे रहा है।
वर्तमान समय की सहस्राब्दी को मैं भगवान् राम की सहस्राब्दी बनते हुए देख रहा हूँ और आनेवाली पीढ़ियाँ इसी रूप में इसे याद भी करेंगी। लोगों के अंदर इस महाभियान को लेकर जबरदस्त उत्साह दिखाई दिया। कश्मीर के वे लोग, जो कि जम्मू बस स्टैंड तक तीन दिन की यात्रा करके पहुँचते हैं, वे भी चिंता कर रहे थे कि उन तक कूपन कैसे पहुँचेगा? लद्दाख में रहनेवाला बौद्ध कहता है कि “भगवान् बुद्ध भी उसी इक्ष्वाकु वंश के थे, जिस इक्ष्वाकु वंश में भगवान् राम का जन्म हुआ।” शायद भारत में बहुत लंबे अरसे के बाद भगवान् राम और भगवान् बुद्ध को जोड़ा जा रहा है। कश्मीर की घाटी भगवान् राम के पूर्वजों की धरती है, यह चर्चा भी आई थी। यही अनुभव संपूर्ण देश का रहा। पूरे देश के सभी रामभक्तों ने पूर्ण समर्पण के साथ अपने आप को राम के साथ जोड़ लिया। भिक्षुक से लेकर उद्योगपति तक, वनवासी, ग्रामवासी से लेकर नगरवासी तक आबाल-वृद्ध सभी रामभक्त सहयोग देकर अपने आप को धन्य समझ रहे थे। पूरा देश दलगत, जातिगत, क्षेत्रगत सभी बंधनों से ऊपर उठकर समर्पण कर रहा था। सबने देखा कि भगवान् राम पूरे देश को एकसूत्र में जोड़ रहे हैं। हमने कूपन बाँटने प्रारंभ भी नहीं किए थे कि रामभक्तों ने कूपन लेने के लिए स्वयं ही विहिप कार्यालयों से संपर्क करना प्रारंभ कर दिया था। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि भगवान् राम के भव्य मंदिर के निर्माण हेतु रामभक्तों के अंदर एक अभूतपूर्व उत्साह है और राममंदिर से रामराज्य की यात्रा अवश्य प्रारंभ होगी।
-डॉ. सुरेंद्र जैन
(संयुक्त महामंत्री, विश्व हिन्दू परिषद्)
सबके राम
लेखक : डॉ. प्रवेश कुमार, राजीव गुप्ता
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 184
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