पिछले पच्चीस सालों से अखबार दैनिक भास्कर में हर रोज फिल्मों पर लिख रहे लोकप्रिय स्तंभकार जयप्रकाश चौकसे पर लिखी किताब 'परदे के सामने' पढ़ते वक्त हमेशा ऐसा ही लगता है कि आप उनका लोकप्रिय कालम पर्दे के पीछे ही विस्तार से पढ़ रहे हों। कई सालों से लगातार छप रहे इस कॉलम को पढ़ कर कभी हैरत भी होती है कि कोई कैसे बिना रुके इतना रोज लिख सकता है। लिखने के लिये कितना खाद-पानी चाहिए ये लिखने वाले ही जानते हैं मगर पाठक तो उस कॉलम को रोज की आदत के मुताबिक पढ़ते हैं। वो नहीं जानते कि हर दिन बेहतर नये-नये विषयों पर लिखना कितना कठिन श्रम और अनुशासन मांगता हैं। लगातार अच्छा पढ़ना और लिखने की आदत की दम पर कैसे मध्यप्रदेश के एक छोटे से कस्बे बुरहानपुर का युवक इस मुकाम पर पहुंचा, ये इस किताब के माध्यम से जाना जा सकता है।
जयप्रकाश चौकसे की इस आत्मकथात्मक किताब को भोपाल की पत्रकार डॉ. रितु पांडेय शर्मा ने लिखा है। किताब में चौकसे जी की कहानी को शब्द देने के साथ साथ चौकसे के दोस्त और उनके प्रशंसकों से भी लिखवाया गया है। बुरहानपुर के लकड़ी व्यवसायी परिवार के बेटे से लेकर पढ़ने पढ़ाने के शौक में चौकसे ऐसे रमे कि क्रिकेट खेलने के साथ शहर से पाक्षिक अखबार संगम भी निकाला। इंटर कॉलेज पढ़ने सागर विश्वविद्यालय गये तो बिठ्ठल भाई पटेल से जिंदगी भर की दोस्ती कर ली और फिल्म में काम करने वाले लोगों से संपर्क का सिलसिला ऐसा शुरू हुआ कि राजकपूर और सलीम खान के पारिवारिक मित्र बन गये। इंदौर के होलकर कॉलेज में हिंदी पढ़ने गये और जगह ना मिली तो अंग्रेजी से एमए कर कालेज में ऐसा पढ़ाया कि उनके छात्र आज भी फिल्मों में पगी उनकी तकरीरों को याद करते हैं। चौकसे ने इंदौर से मुंबई तक फिल्म से जुड़े अनेक काम किये। फिल्में बनाई, फिल्मों की कहानियां, संवाद और पटकथा लिखीं, फिल्म का डिस्ट्रीब्यूशन किया। टीवी सीरियल्स लिखे। कहानियां, उपन्यास और अब कॉलम लिख रहे हैं। फिल्म एक ऐसा व्यवसाय है जिसमें उतार चढ़ाव आते हैं तो जीवन के उन बुरे दिनों को भी चौकसे जी ने ईमानदारी से याद किया है। फिल्म वितरण में भारी घाटा होने पर कैसे सलीम खान और मनमोहन शेट्टी ने मदद की और फिर कैसे उससे उबरे, किताब में बेहतर तरीके से बताया गया है।
जयप्रकाश चौकसे को पहचान उनके कॉलम लेखन के चलते मिली है। ये जिम्मेदारी उनको जब दी गयी तो बड़े बेमन से उन्होंने स्वीकार की। उस दौर के संपादक श्रवण गर्ग ने तब उनसे कहा था कि इस कॉलम में तीन चीजें ही होंगी- एंटरटेनमेंट, इनफारमेशन और एनलाइटमेंट। मगर इतने सालों में ये कॉलम इससे बहुत आगे निकल कर लाखों पाठकों का प्रिय बन गया है। उधर चौकसे जी भी इस कॉलम को गंभीर बीमारी या अन्य कोई भी मुश्किल घड़ी में कभी लिखना नहीं छोड़ते। पच्चीस सालों से वो लगातार लिखे जा रहे है। उनके कॉलम में उनकी पढ़ाई की रेंज झलकती है। फिल्मों से लेकर हिंदी अंग्रेजी साहित्य की बातें तो होती ही हैं मगर बात फिल्मों की करते-करते वो कब जिंदगी की उलझनों और उनके सुलझाने के नुस्खे गिना देते हैं पाठक को पता ही नहीं चलता। यही उनके कॉलम के लोकप्रियता की वजह है। भास्कर के लाखों पाठक की आदत है उनका कालम 'परदे के पीछे'। इस कॉलम में लिखने के कारण उनको अनेक बार विरोध का सामना भी करना पड़ा मगर लिखना जारी रहा। चौकसे मानते हैं कि वो नेहरूवादी विचारधारा से प्रभावित रहे और राज कपूर से उनकी गहरी छनने की वजह भी यही रही। राजकपूर की टीम में आजादी के बाद के अनेक आदर्शवादी लेखक, कवि, कथाकार और कलाकार थे जिनमें चौकसे ने भी अपना अलग स्थान बनाया।
इस किताब की वजह से चौकसे जी को उनके कॉलम के सहारे जानने वाले पाठकों को उनके घर परिवार पत्नी उषा जी और बच्चों की बातें भी पढ़ने मिलेंगी। साथ ही उनके दोस्त यार और प्रशंसक अपने जेपी के बारे में क्या सोचते हैं इसे भी लेखक ने बडी मेहनत से इस किताब में संजोया है।
~ब्रजेश राजपूत.
(लेखक ABP न्यूज़ से जुड़े हैं. उन्होंने कई बेस्टसेलर पुस्तकें लिखी हैं)
जयप्रकाश चौकसे : परदे के सामने
लेखक : डॉ. ऋतु पाण्डेय शर्मा
प्रकाशक : इंद्रा पब्लिशिंग हाउस
पृष्ठ : 196
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