कोंकणी की लोकप्रिय कहानियाँ जब हिंदी क्षेत्र में पहुँचीं तब वे साहित्य राष्ट्रीय प्रवाह में जा पहुँचीं। केवल साहित्य से नहीं, संपूर्ण कोंकणी संस्कृति, कोंकणी लोगों का रहन-सहन, खाना-पीना, उनका लोक साहित्य, उनका इतिहास आदि से भारत के लोग परिचित हो गए। इस कथा-संग्रह में हमने पंद्रह कोंकणी कहानियों का समावेश किया है। भारतीय भाषाओं के साथ शामिल होने का अधिकृत सम्मान कोंकणी को सन् 1975 में प्राप्त हुआ, जब कोंकणी को साहित्य अकादमी मान्यता प्राप्त हुई। कोंकणी कथा लिखनेवाले लगभग 50 से ज्यादा लेखक हैं, लेकिन इस कथा संग्रह में सिर्फ पंद्रह कथाएँ हैं। वास्तव में, कोंकणी की प्रतिनिधिक कहानियों को इस संग्रह में स्थान देने का प्रयत्न किया गया है।
कथाकार चंद्रकांत केणी का कथा क्षेत्र में एक अलग ही स्थान है। उन्होंने आज तक सैकड़ों कथाएँ लिखीं। छोटी चटपटी कहानी लिखने में उनका कोई प्रतिस्पर्धी नहीं। पूरा भारत घूमने और बहुत किताबें पढ़ने के कारण अनुभव से समृद्ध क्षमता उनके पास थी। चंद्रकांत केणी को आधुनिक कोंकणी कथा का बुनियादी रचनाकार माना जा सकता है।
ऑलिव्हीन गॉमीश की गोवा के ईसाई जीवन का वर्णन करनेवाली उनकी कथाएँ, समाज में आए बदलाव और बदले हुए जीवन मूल्यों में जान-बूझकर दखल देती हैं।
सरस्वती सम्मान पुरस्कार से सम्मानित श्री महावकेश्वर सैलन कोंकणी के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में से एक हैं, इस पुस्तक में उनकी लक्षणीय कहानी ‘घुटन’ वैधव्य से हताहत आधुनिक शिक्षित युवा स्त्री की विकलता एवं विफलता का अत्यंत प्रभावी ढंग से उद्घाटन करती है।
पुंडलीक नायक, नाटककार, कथाकार से जन सामान्य के जीवन की युगों-युगों की व्यथाएँ, सुख-दुःख और वेदनागू कथा के माध्यम से गोवा की मिट्टी की गंध लेकर आनेवाले प्रतिभावान लेखक हैं। आदर्शवादी की उनकी प्रतिभा उनके नाटकों में तो है ही, लेकिन कथाओं में स्त्रियों की प्रतिमा को और भी ऊँचाई पर ले जाता है। इस संग्रह में पुंडलीक नायक की ‘अग्निदिव्य’ दक्षिण-मध्य गोवा के फोंडा प्रांत के संदर्भ में उन सरल, ग्रामीण, गरीब, श्रद्धालुओं के सांस्कृतिक परिवेश को बखूबी प्रस्तुत करती है।
कोंकणी साहित्य में अगर पुरुष और स्त्री साहित्यकारों का विश्लेषण किया जाए, तो एक बात सामने आएगी कि स्त्रियों के साहित्य का प्रमाण कम है, लेकिन जो लेखिकाएँ लिखती हैं, उनके साहित्य का दरजा कतई कम नहीं। स्त्रियों का साहित्य भले ही संख्या में कम हो, मगर गुणवत्ता में किसी से भी कम नहीं है।
मीना काकोडकर की कथा में वातावरण निर्मिति बहुत ही सुयोग्य दिखाई देती है। भाषा वैशिष्ट्यपूर्ण, प्रवाही, प्रसन्न, हलकी-फुल्की भाषा शैली, मनुष्य के स्वभाव विशेष, छोटी-छोटी बातें चटपटे ढंग से पेश करना, यही मीनाजी की खासियत है। उनकी कथाएँ मार्मिक विनोद की झलक हैं। इस संग्रह में ‘रेड चुरुंगन’ कहानी उतनी ही संवेदनशीलता से उसकी अपत्य-प्रेम से वंचित प्रेमा मौसी की हृदय स्पर्शी मनोव्यथा को भी सक्षमता के शब्दांकित करती है।
गोवा मुक्ति के बाद अविरत रूप से लिखनेवाली कथा लेखिका है, शीला नायक। अपनी सूक्ष्म निरीक्षण-शक्ति से उसने अपने इर्द-गिर्द के विषय अपनी कथा में लिखे हैं। लगता है, मासूम शिशुओं का मानस शास्त्र इनको भली-भाँति ज्ञात है। माँ की भूमिका से, शिक्षकों की नजर से बच्चों का भाव विश्व लेखिका ने अपनी कथाओं में बड़े ही सफलतापूर्वक पेश किया है। उनकी कथाएँ भी स्त्री केंद्रित हैं। इस संग्रह में अपत्यहीन स्त्री का वंध्या या बाँझ कहला कर होता घोर अपमान तथा अपमानित स्त्री की आत्मशक्ति को अवाक करनेवाला अनपेक्षित उद्घाटन असाधारण कलात्मकता के साथ उचित श्रेय ‘मैं बाँझ नहीं हूँ’ में है।
केरल राज्य से होते हुए भी गोवा के अपने बने मूलतः कोंकणी भाषी कहानीकार गोकुलदास प्रभू की कहानी ‘कमल’ समकालीन मानसिकता में आई आत्मकेंद्रित जीवन दृष्टि तथा ऐसे पराएपन की स्थिति में भी अपने प्राकृतिक प्रेम की निरपेक्ष भावना को सँजोए रखने की भावुक अभिव्यक्तियों का प्रयास करती है।
गोवा मुक्ति के बाद ही कोंकणी कथा साहित्य सच्चे अर्थों में बाहर आया। वह फूली-फली, देविदास कदम की ‘वेलकम टू’ समकालीन जीवन को पूरी तरह ग्रस्त करनेवाली उपभोगवादी मनोवृत्ति पर उँगली उठाती है। देविदास कदम ने अपना अलग ही स्थान बना लिया।
इस कालखंड में कथा के क्षेत्र में आई जयंती नायक। समाज के कुचले घटकों की भावनाओं को मुखरित करने का काम उनकी कथा करती है। जयंती की कथा का और एक अनोखापन है-ग्रामीण परिसर। उनके तीज, त्योहार, श्रद्धा, कुलाचार, समाज जीवन, प्रकृति के सान्निध्य का जीवन, उनकी परिवार व्यवस्था, लोक परंपरा, भाव-मोहल्ला, इन सारे घटकों का महत्त्वपूर्ण स्थान है। कोंकणी में नाटक जैसे साहित्य प्रकारों में महिला का योगदान कम है, लेकिन जयंती नायक कोंकणी में नाटक लिखनेवाली प्रथम स्त्री लेखिका हैं।
गजानन जोग नया आयाम देनेवालों में वे मूक प्रतिभावंत कथाकार हैं। इस संग्रह में गजानन जोग की कहानी ‘आखरी महफिल’ में गोवा के संगीत से जुड़ी सांस्कृतिक धरोहर की ओर ध्यान आकृष्ट होता है। साथ ही, यह कहानी व्यक्ति तथा समाज-मानस एवं पारस्पारिक संबंधों की ओर भी आलोचनात्मक दृष्टि डालती है।
जयमाला दणायत लेखिका मीनाजी और शीलाजी की समकालीन हैं। गोवा और गोवा के बाहर स्थायिक हुए गोवावासियों की मध्यवर्गीय जिंदगी और छोटी-मोटी घटनाओं की जानकारी उनकी कथाओं में मिलती है। उनकी कथाओं की खासियत मूक जानवरों की भावना प्रदान करके उनमें से कथा का निर्माण करना है। यह आकर्षक तंत्र उनके लेखन की प्रमुख विशेषता है। जयमाला दणायत मध्यमवर्गीय जिंदगी को झकझोर डालनेवाली लेखिका हैं।
माया खरंगटे की कथा आधुनिक स्त्री की मानसिकता पर ध्यान आकृष्ट करने में सफल रही है। इनकी कथा विश्व स्त्री केंद्रित होकर भी स्त्रीवाद का अंध उद्घोष नहीं करती। ये कहानियाँ समाज की उन विदुषियों के मर्म को उद्घाटित करने का प्रयास है, जो मुक्ति तथा सफलता की प्यास के आगे स्वाभाविक मानवी संबंध, पारिवारिक प्रेम एवं निरपेक्ष अपनेपन की भावना को समझ नहीं पातीं।
आधुनिक कोंकणी कहानी के नूतनतम पर्व के कुछ प्रतिनिधि हैं, वसंत भगवंत सावंत। कोंकणी कथा को नया आयाम देनेवालों में वे प्रमुख कथाकार हैं। उन्होंने दीर्घ कथाएँ लिखी हैं। कहानी में ग्रामीण जीवन का वास्तविक रूप पेश हुआ है। पुरुष साहित्यिकों ने नारी पर लिखी कथाएँ और स्त्री साहित्यकारों ने पुरुष पर लिखी कथाएँ, हम चाहे किसी भी भाषा की कथा पढ़ें, संघर्ष तो संघर्ष ही होता है, दुःख तो दुःख ही होता है, चाहे वह पुरुष का हो या स्त्री का। लेखक की संवेदनाएँ जब तीव्रतर हो जाती हैं, तब दूसरों के अनुभव को निचोड़ लेने की क्षमता उसमें होनी चाहिए।
प्रकाश पर्येकार की कहानी प्रकृति से लोक संस्कृति से संपन्न है। ग्रामीण, गरीब, जन सामान्य के जीवन को नई दिशा, नया मोड़ देने की कोशिश करते हैं। कोंकणी कथा को नया आयाम देनेवालों में वे एक प्रमुख कथाकार हैं।
ज्योती कुंकळकार लेखिका का अनुभव विश्व और अभिव्यक्ति कोंकणी की पहलेवाली और समकालीन कथा लेखिकाओं से विभिन्न है। मध्यवर्गीय जीवनियों की नजरअंदाज हुई अनुभूतियों को वह कथा रूप देती हैं और उनकी नजर औरों से अलग है। ज्योती की कथाएँ विजय महिलाओं के संघर्ष की हैं। फिर भी, उन कथाओं को स्त्रीवादी अथवा फैमिनिस्ट नहीं कहा जा सकता। मानवतावादी दृष्टिकोण रखकर ये कथाएँ रची गई हैं।
बीसवीं सदी के आठवें दशक को कोंकणी कथा के इतिहास का ‘सुवर्णकाल’ माना जा सकता है। इस जमाने में पिछली पुश्त के चंद्रकांत केणी से लेकर अरुण सिंगबाल तक के लेखकों ने दर्जेदार कथाएँ बड़ी तादाद में लिखी हैं, मगर इधर एक बात का जिक्र होना जरूरी है कि कोंकणी आत्मा को जगाने का काम शणै गोंयबाब नामक महात्मा ने किया। कोंकणी में जो कुछ नहीं है, वह सब कुछ निर्माण करने के संकल्प से शणै गोंयबाब ने अपनी कलम और जिंदगी घिस दी। करीबन सत्तर साल पहले उनकी लिखी ‘म्हजी बा खंय गेली?’ नामक यह कथा आधुनिक कोंकणी कथा का मूल स्रोत मानी जा सकती है।
कोंकणी की लोकप्रिय कहानियाँ
सम्पादक : ज्योती कुंकळकार
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 176
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