भारतीय साहित्य के आधुनिक और उत्तर-आधुनिक कालखण्ड को उदय प्रकाश की रचनाओं ने उसी प्रकार से समृद्ध किया है जैसे गैब्रिएल गार्सिया मार्ख़ेज़ ने जादुई यथार्थवाद को, सिमोन द बोउआर ने स्त्री-विमर्श को, जूलिया क्रिस्टेवा ने जेंडर के सामाजिक ध्रुवीकरण को ध्वस्त करने की प्रक्रिया को और सैल्वाडोर डाली ने अतियथार्थवाद द्वारा जीवन की सांसारिक और एक ढर्रे की दृष्टि को खण्डित करने की प्रक्रिया को।
कुल मिलाकर उदय प्रकाश वह प्रस्थान बिन्दु हैं जिसने हिन्दी साहित्य में प्रचलित विचारधाराओं को कुछ विराम लेने और आत्ममन्थन करने पर मजबूर किया। उदय प्रकाश के साहित्य के समग्र मूल्यांकन के लिए भविष्य को इतिहास बनने की प्रक्रिया से गुज़रना ही होगा।
उदय प्रकाश हिन्दी साहित्य के जानेमाने कवि, कहानीकार व पटकथा लेखक हैं। विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित उनकी रुचि पत्रकारिता में भी रही है। इसके अतिरिक्त ‘भारतीय कृषि का इतिहास’ पर टीवी सीरियल का निर्देशन भी उन्होंने किया है।
उदय प्रकाश ने विजयदान देथा की कहानियों को पटकथा में बदल कर और ‘बिज्जी’ नाम से देथा के जीवन पर आधारित डॉक्यूमेंट्री तैयार की है। आधुनिक नाटक के जन्मदाता भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पर भी उन्होंने डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म का निर्माण किया है।
प्रस्तुत आलेख ‘हाईवे 39’ की रचना एक फ़िल्मी पटकथा के रूप में की गयी है। उदय प्रकाश का साहित्यिक अनुभव उनके पटकथा-लेखन में भी दिखाई पड़ता है। स्पष्ट दृश्य विधान और पात्रोनुकूल संवाद उनके लेखन की ताकत रही है। ये विशेषता उनकी पटकथा में भी दिखाई देती है।
‘हाईवे 39’ का कथानक नाटकीय के साथ-साथ यथार्थ के धरातल पर भी उतना ही गहरे रूप से जुड़ा हुआ है। वास्तविक अर्थों में और गहरे जाकर उसका अनुशीलन किया जाय तो यह द्वन्द्व, दुविधा, कशमकश, ऊहापोह से लिपटा-सिमटा ऐसा कथानक है जो भ्रम के आवरण को छाँट कर यथार्थबोध की स्थापना करता है और अन्ततोगत्वा जिसका उद्देश्य है सत्य और झूठ का विभेदीकरण। यथार्थवोध इस आधुनिक या तथाकथित उत्तर-आधुनिक युग का सबसे बड़ा रूप है जो प्रत्यक्ष रूप से व्यक्ति के अस्तित्व और अस्मिता से जुड़ा है।
कथानक का पूरा विधान और ताना-बाना इस तरह बुना गया है जिसमें आप स्वाभाविक तौर पर इससे प्रभावित होते हो और जकड़े जाने में आनन्दित। इसी प्रभावोत्पादकता के लिए उदय प्रकाश प्रसिद्ध हैं। ऐसी ही प्रभावोत्पादकता हमें लुई पिरांडेलो के नाटक ‘हेनरी द फोर्थ’ और जे.बी. प्रीस्टले के नाटक ‘एन इंस्पेक्टर कॉल्स’ में भी देखने को मिलती है।
पहले जहाँ शब्दों के माध्यम से उदय प्रकाश बिम्बों, रूपकों और प्रतीकों को साकार करते थे, इस बार वही काम उन्होंने कैमरे की आँख से किया है और कहना होगा कि वह इसमें पूरी तरह से सफल रहे हैं।
बेशक यह अपने आप में एक फ़िल्म के लिए लिखी गयी पटकथा है लेकिन यदि चाहें तो इसे एक नाटक के रूप में भी मंच पर प्रस्तुत किया जा सकता है।
-अदिति माहेश्वरी
( कार्यकारी निदेशक, वाणी प्रकाशन ग्रुप )