किताब अंश : शादी का लड्डू

किताब अंश : शादी का लड्डू

कामयाब कॅरियर और आरामदेह जीवनशैली से संतुष्ट वेद अरोड़ा की जिंदगी मस्त चल रही है। किसी को डेट करने या शादी करने का उसका कोई इरादा नहीं, और यही बात हर बात में दखल देनेवाले उसके परिवार को परेशान कर रही है।

सब ठीक चल रहा था कि अचानक एक दिन, उसका सामना अकीरा से हुआ और तबाही मच गई। उसकी वजह से वेद की दुनिया में तूफान खड़ा हो गया। अकीरा में जो कुछ है, उससे वेद नफरत करता है और वेद की दुनिया में ऐसा कुछ नहीं, जिसमें अकीरा की दिलचस्पी हो। तो पुरुष और स्त्री की यह जंग क्या जारी रहेगी या वेद आखिरकार हथियार डाल देगा और शादी का कहावती लड्डू खा लेगा?
-----------------------------------------------------------------

पहला अध्याय -

"तुमने shaadi.com ध्यान से देखा?”

“हाँ।” गहरी साँस लेते हुए, स्वयं पर नियंत्रण लाते हुए वेद ने संक्षिप्त रूप में हामी भरी। 

“जीवनसाथी?” (Jeevansathi?) 

जी” फिर गहरी साँस छोड़ते हुए वेद ने जवाब दिया। 

“भारत मैटरीमोनी?” (Bharat Matrimony?) एक और ‘हाँ’।

“फिर? कोई पसंद नहीं आई तुम्हें?”

“नहीं मम्मी! नहीं आई”, चिल्लाते हुए वेद ने उत्तर दिया। अपना माथा खुजाते हुए वेद अपनी कॉफी को देख रहा था। उसे जीवन में बहुत ही कम चीजें पसंद थीं, जिनमें से ‘एस्प्रेसो’ कॉफी एक थी। रात वेद की आँखों में कटी थी, इसीलिए सुबह वह व्यापार की ताजा खबरें, कॉफी और सुबह के एकांत के मजे लेना चाहता था। किंतु उसकी माँ ने वेद के ब्याह से संबंधित प्रश्न पूछने की ठान रखी थी। शुरू में तो उन्होंने (माँ ने) आगे बढ़कर शादी की वेबसाइट पर बेटे की शादी की जरूरी जानकारी देते हुए शादी की प्रोफाइल बना ली थी। माँ ने अपने बेटे से पूछना भी जरूरी नहीं समझा। और बिना सोचे-समझे कई लड़कीवालों की तरफ से आए प्रस्तावों पर विचार भी करने की सोची। केवल इतना ही नहीं, मुश्किलें और भी बढ़ गईं, जब वेद का फोन नंबर ही संपर्क के लिए दिया। सभी वेबसाइटों पर वेद का ही फोन नंबर पंजीकृत किया गया। वेद को अनगिनत फोन आते। जाहिर है, बेटियों के माता-पिता अच्छे वर के लिए और किसे संपर्क करते? वेद पूरी तरह हैरान और बौखला गया था।

“क्यों? इसमें क्या गलत है?” पिंकी वेद के पास आकर बोलीं।

“कुछ गलत नहीं है माँ!” वेद ने उत्तर दिया। पिंकी ने गंभीरता से अपने पुत्र की ओर देखते हुए कहा, “मैं बस तुम्हें इतना याद दिलाना चाहती हूँ कि तुम इस वर्ष 30 साल के हो जाओगे। और यदि तुमने शादी के लिए लड़की चुनने में और देर की तो तुम्हारी पसंद की लड़की मिलने की संभावना कम होती जाएगी।”

“हे भगवान्! माँ, तुम कई बार ऐसी बातें करती हो कि बस, आदमी शर्मसार हो जाए।” तकरीबन चिल्लाते हुए वेद ने माँ से कहा।

“शर्मसार?” माँ ने गुस्से में घूरते हुए वेद से कहा। “मैं बताती हूँ तुम्हें कि शर्मनाक बात असल में क्या है? शर्मनाक यह है कि अभी तक तुम खुद के लिए सुशील लड़की ढूँढ़ नहीं पाए।”

वेद ने धीरे से माँ से कहा, “प्लीज माँ! क्या इस बारे में हम शांति से बात कर सकते हैं?”

“नहीं।” माँ ने जिद से नकारते हुए कहा, “आज तुम इस बात से भाग नहीं सकते। तुम कब तक सच्चाई से भागते रहोगे? यह जिंदगी का सच है कि तुम्हें शादी करनी चाहिए और यदि तुम यह सोच रहे हो कि अचानक तुम किसी लड़की से टकरा जाओगे और तुम्हें प्यार हो जाएगा तो तुम गलत समझ रहे हो।”

वेद थककर सोफे पर बैठते हुए बोला, “लेकिन मुझे यह सब अच्छा नहीं लगता।”

“क्या?” पिंकी ने भौंहें टेढ़ी करते हुए पूछा।

“ये सब” अपने मोबाइल की ओर इशारा करते हुए वेद ने कहा, “ये मेरी इंटरनेट पर खरीदारी।”

“ओह, मैं समझती हूँ” पिंकी ने सहानुभूति से वेद के घुटने पर हाथ रखते हुए समझाते हुए कहा, “मैं समझ रही हूँ कि यह सबकुछ थोड़ा अजीब है, लेकिन हम सब यही चाहते हैं कि तुम जीवन में एक जीवनसाथी का चुनाव करके आराम की जिंदगी बसर करो। कहीं तो ठहरना पड़ेगा।”

अपने स्वभाव के विरुद्ध वेद चुप रहा। पिंकी ने सोचा कि अच्छा मौका है कि वेद के गले कुछ बातें उतारी जाएँ।

“एक दोस्त, अच्छा दोस्त, जो हमेशा साथ रहे, अच्छा खयाल नहीं है क्या?”

पिंकी वेद से बराबरी के जवाब की उम्मीद कर रही थी, लेकिन वेद ने कुछ नहीं कहा। हैरानी से पिंकी ने आँखें ऊपर करते हुए त्यौरियाँ चढ़ाईं। शायद उस समय माँ-बेटे में और नाटक हो सकता था। पिंकी के लिए वैसी स्थिति आम बात थी, लेकिन उसने दुःख से सिर नीचे करते हुए कहा, “कोई और बात है तो बता दे वेद!”

“नहीं। ऐसा कुछ नहीं है, कोई और नहीं है मेरी जिंदगी में।” वेद ने कहा।

“फिर दिक्कत क्या है?” पिंकी बड़बड़ाई और उँगलियों पर एक-एक करके शिकायत गिनाते हुए स्वर में प्रश्न करने लगी। “अभी तक तुमने कोई गर्लफ्रेंड क्यों नहीं बनाई? तुम डेट पर क्यों नहीं जाते? कबीर के अलावा तुम्हारे जीवन में कुछ और है क्या? सामाजिक जीव के नाम पर क्या है तुम्हारे जीवन में? न ही तुम सिगरेट पीते हो, न शराब! न तुमने किसी लड़की को आज तक चूमा। भगवान् के लिए सोचो! यह सबकुछ असाधारण सा है।”

अब शायद वेद के गले बात उतरी। माँ के मुँह पर हाथ रखते हुए वेद ने कहा, “भगवान् के लिए चुप हो जाओ माँ!”

उसकी माँ ने आखिर क्या करने की कोशिश की? जो लड़का रोमांटिक पिक्चर नहीं देखता, उसके लिए माँ का प्रेम-प्रसंगों या प्रेम-विषय पर इतना खुलकर बोलना, मानव हत्या से कम नहीं था। उन्हें कैसे पता कि जीवन में उनके बेटे ने किसी को किस (चूमा) किया कि नहीं? वह सोच के ही शर्म से लाल हो गया।

वेद रो ही देता अगर उसे परेशान करनेवाली उसकी बहन के आने की आहट नहीं सुनाई देती। अभी वेद कुछ कहता, कमरे में वेदिका ने प्रवेश किया। वेदिका ने वेद के कंघी किए हुए उलझे बालों में हाथ फिराते हुए वेद और पिंकी के बीच हिल-डुल के जगह बनाई और बैठ गई। वेद सिर्फ देखता रह गया। सिर हिलाकर उसने वेदिका की उपेक्षा करनी चाही। एक इनसान एक समय एक ही युद्ध लड़ सकता है।

शादी का लड्डू / चैताली हातीसकर
“माँ, मैं शादी करना चाहता हूँ...पर उसके लिए कोई लड़की तो हो।”...वेद ने अपना तर्क प्रस्तुत किया। और जहाँ तक बाकी प्रेम व अन्य बातों की बात है, मैं बहुत से क्ष्‍ाण उस विशेष व्यक्ति के साथ ही बाँटना चाहूँगा।”

“बुद्धू!” वेदिका ने बीच में ही बात काटते हुए कहा। “लोग आइसक्रीम भी खाते हैं तो हर विशिष्ट स्वाद का पहले रस चखते हैं।”

“वेदिका!” पिंकी ने झिड़की भरी आवाज में वेदिका को फटकार लगाई। “वेदिका! तमीज में रहो।”

“ठीक है, माँ! मैं तुम्हें दूसरा उदाहरण देती हूँ। हम कार खरीदने से पहले कई गाड़ियाँ चलाकर देखते हैं और फिर निश्चित करते हैं कि कौन सी गाड़ी खरीदें! और जहाँ हमें लगता है कि यह गाड़ी हमारी जरूरतें पूरी कर सकती है, वही गाड़ी खरीदते हैं।”

वेद आँखें बंद करके बैठा रहा। वेदिका के विचार, ब्लैकबोर्ड पर कील चलाने पर जो कर्कशता उत्पन्न होती है, वैसे थे। उसे आश्चर्य हुआ कि उसके माता-पिता वेदिका का अनाड़ीपन चलने कैसे देते हैं?

“कार और लोगों में अंतर होता है वेदिका! कुछ तो लिहाज करो।” वेद ने उसे डाँटते हुए कहा।

“मैं बस इतना कह रहा हूँ कि किसी भी लड़की से थोड़ा सा भी जुड़ने पर मैं उसके साथ घूमने डेट पर जाऊँगा, लेकिन पहले मिले तो!”

“माँ, थोड़ी तो छूट दे दो इसे। यह 40 वर्ष पुरानी भारतीय लड़की ढूँढ़ रहा है और इसीलिए ऐसा है।” वेदिका ने वेद के गाल खींचते हुए कहा।

“अपनी बकवास बंद करो।” वेद चिल्लाया।

“क्या?” वेदिका ने वेद को गुस्से से घूरा।

वेद ने लाचारी दिखाते हुए पिंकी को देखा और कहा, “माँ!”

“वेदिका, बस बहुत हुआ।” पिंकी ने थोड़े सख्त मिजाज दिखाने की कोशिश की। हालाँकि पिंकी भाई-बहन की खींचा-तानी के मजे भी ले रही थी, लेकिन वह वेद को परेशान नहीं करना चाहती थी। वह वेद की ओर मुड़ी और कहा, “तुम कुछ कहना चाहते हो?” वेद को इस विषय को जितना हो सके, टालना था। उसने कुछ देर सोचा और मन-ही-मन योजना बना डाली।

एक शिक्षित व गरिमामय व्यापारी की तरह बाँहें मोड़कर वेद सोफे पर बैठा और पिंकी से बोला, “मुझे छह महीने की मोहलत दे दो। यदि इस बीच कुछ नहीं हुआ तो तुम लोग जैसा चाहोगे, मैं वैसा ही करूँगा।”

“एक महीना, उससे ज्यादा नहीं।” पिंकी ने धमकाया।

वेद हक्का-बक्का रह गया। वह आश्चर्यचकित होकर माँ को देख रहा था; उसे न अपने कानों पर विश्वास हो रहा था और न ही आँखों पर। उसका दिमाग काम ही नहीं कर रहा था।

“माँ, मुझे नहीं लगता कि जीवन साथी के लिए और वह भी अच्छी जीवन-संगिनी को ढूँढ़ने के लिए एक महीना काफी है।” उसने (वेद ने) अत्यधिक परेशानी में शब्द चुनते हुए कहा।

“मुझे नहीं पता”, कड़ी आवाज में पिंकी ने कहा। “मैंने तुम्हारी एक शर्त सुनी, तुम्हें भी मेरी शर्तें माननी होंगी।”

“लेकिन...” वेद ने माँ से वाद-विवाद के लिए कुछ कहना चाहा।

पिंकी ने हाथ के इशारे से ही वेद के विरोध को दबाते हुए कहा, “इस बारे में और कोई सौदा तय नहीं हो सकता। एक महीना...।”

वेदिका जोर से हँस पड़ी। वह वेद की शांत दिखाई देनेवाली जिंदगी में हलचल और प्रलय स्पष्ट रूप से देख पा रही थी और मजे भी ले रही थी। वेद का स्वाभिमान! वेद की गरिमा!

वेद ने अपनी झेंप मिटाने को नाक पकड़ी और सोचने लगा, ‘ये सब किस चक्कर में पड़ गए हैं? इतनी जल्दी क्यों है इनको?’

पिंकी ने शांत स्वर में कहा, “तो यही बात पक्की रही।” वेद समझ चुका था कि पिंकी के विरुद्ध जाना अब बेकार होगा। एक बार माँ जब कुछ तय कर लेती थीं तो उसी बात पर अड़ जाती थीं। सो वेद ने चुप रहना ही उचित जाना। वेद खून का घूँट पीकर रह गया, पर कुछ नहीं बोला। “ठीक है, वादा करता हूँ।” वेद ने कहा। “ये हुई न बात, बिल्कुल ठीक।” पिंकी खुशी से फूली नहीं समा रही थीं।

“ये हुई न बात, बिल्कुल ठीक।” पिंकी खुशी से फूली नहीं समा रही थीं।

वेद ने एक नजर अपनी एस्प्रेसो कॉफी की ओर देखा। कोई कैसे इतना पागलपन सहे? परिस्थिति का सामना तो छोड़ो, इस मुश्किल से बाहर कैसे निकले, वह सोच ही नहीं पा रहा था। अपने भाग्य को कोसते हुए उसने अपनी चीजें सँभालते हुए वहाँ से भागने की सोची और कहा, “चलो, अब मुझे ऑफिस जाना है।”

अत्यधिक निराश और बेहाल वेद पैर घसीटते हुए बाहर चला गया। वेदिका अपने भाई को देखकर हँसी। भाई को उसने इतना हताश कभी नहीं देखा था। भाई-बहन के प्यार भरे झगड़े में उसकी जीत हुई थी। उसे पूरी घटना का वीडियो बनाकर आजीवन साथ में रखने की इच्छा थी।

अत्यधिक निराश और बेहाल वेद पैर घसीटते हुए बाहर चला गया। वेदिका अपने भाई को देखकर हँसी। भाई को उसने इतना हताश कभी नहीं देखा था। भाई-बहन के प्यार भरे झगड़े में उसकी जीत हुई थी। उसे पूरी घटना का वीडियो बनाकर आजीवन साथ में रखने की इच्छा थी।

वेदिका ने पिंकी को कंधे से पकड़कर घुमाया और कहा, “माँ, ये जीवन के 29 वर्ष में कोई लड़की नहीं ढूँढ़ सका, तुम्हें ऐसे क्यों लगता है कि वह अब ढूँढ़ लेगा? और वो भी केवल एक महीने में?”

“मेरी प्यारी बिटिया, वो इसलिए कि जब तक हम पीछे नहीं लगेंगे, वो कुछ नहीं करेगा।”

“ओह!”

“हाँ जी।” पिंकी ने आँख मारते हुए चौड़ी सी हँसी दिखाते हुए वेदिका से कहा, “हम भी कच्चे खिलाड़ी नहीं हैं। मैं भी अच्छी-खासी बिजनेस वूमन रह चुकी हूँ। मैं भी जानती हूँ कि ग्राहकों को खुश करने की योजनाएँ कैसे बनाई जाती हैं?”

“मान गए माँ! तुम तो गजब निकली।” अपनी माँ के गाल चूमते हुए वेदिका ने कहा, “मैं तो आगे का तमाशा देखने को उत्सुक हूँ।”

पिंकी ने ठहाका मारते हुए कहा, “मैं भी कहाँ रुक पा रही हूँ?”

शादी का लड्डू
लेखक : चैताली हातीसकर
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 296
किताब लिंक : https://amzn.to/3A3FQMa