कारोबार चलाने को लेकर अगर सलाह लेनी हो, तो राम वह शख्स था, जिस पर भरोसा किया जा सकता था। अयोध्या में अगर कारोबार से जुड़ी कोई भी समस्या हो, तो देश के एक प्रतिष्ठित प्रबंधन संस्थान से गोल्ड मेडलिस्ट होने के नाते राम के पास उसका कोई-न-कोई हल जरूर रहता था।
व्यवसाय के लिहाज से अयोध्या उसका घोषित साम्राज्य था, जिसके चप्पे-चप्पे की उसे जानकारी थी, जिसका श्रेय उसके पक्के ग्राहकों, परिवार और सहयोगियों को दिया जा सकता था। सबकुछ ठीक चल रहा था, जब तक कि उम्मीदें हदों को पार नहीं करने लगीं, हालात बिगड़ने नहीं लगे और मदद के वादे जरूरत से कुछ ज्यादा नहीं किए जाने लगे। राम को जब एक बड़ा झटका लगा, तब उसने सोचा भी नहीं था कि उसे ऐसा धोखा मिलेगा कि जिन्हें वह अपने सबसे करीब समझता था, वही उसे उखाड़ फेंकेंगे।
‘रामायण से स्टार्टअप सूत्र’ चौदह वर्षों में शून्य से अपना कारोबारी साम्राज्य खड़ा करने की राम के संघर्ष की कहानी है। इसके लिए उसने अपने अतीत को भुलाकर कड़ा संघर्ष किया और दृढ़संकल्प के साथ फिर से खुद को स्थापित किया। राम की विख्यात बुद्धिमत्ता का वर्णन करनेवाली ये कहानियाँ रामायण से प्रेरित हैं।
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वे विदेशी धरती पर खड़े होकर पूरी तरह तबाह हो चुके मंजर को देख रहे थे। राम शांत थे, पूरी तरह खामोश। कुछ समय पहले तक वे बुरे दौर से गुजर रहे थे। वे अब मन-ही-मन शांत थे कि अब सिर्फ कुछ वक्त की बात है, जब सब ठीक हो जाएगा। वास्तव में, राम ने वर्षों से कड़ी मेहनत की थी और बड़े उपायों के बाद इस कंपनी को हासिल करने के लिए तैयार थे। वे धैर्यपूर्वक देखते रहे और सही समय का इंतजार कर रहे थे। वे चाहते थे कि जब लोहा गरम हो, तब वे इस कंपनी को हासिल करने के लिए अपने सहयोगियों के साथ बोर्ड रूम में दाखिल हों और अपनी रिसोर्स मैनेजमेंट फर्म को समुद्र के पार ले जा सकें। Lank.co एक मजबूत और स्थिर इंटरप्राइज था, जो रावण के मजबूत नेतृत्व में आक्रामक रूप से बढ़ रहा था। वह एक स्थापित बिजनेसमैन था, जो भारतीय बाजार में अपनी पैठ बनाना चाहता था, जहाँ राम पहले से बाजार पर अपना एकाधिकार पाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे और सबका विश्वास जीतने की कोशिश कर रहे थे। वे अपनी असफलताएँ पीछे छोड़ चुके थे और नहीं चाहते थे कि जो खेल अभी बाकी है, उस पर उनकी पकड़ ढीली हो। इस बार वे दृढ़ थे कि वे इस तरह से काम करेंगे कि सबको साथ लेकर चलें। अपने प्रतिद्वंद्वियों के साथ-साथ उन लोगों पर भी नजर रखेंगे, जो उनके लिए परेशानी पैदा करते हैं।
यह एक बहुत लंबा और कठिन 14 साल का वक्त रहा। जब से राम ने अपना घर छोड़ा, वहाँ का आराम और सबसे जरूरी विफलता की शर्मिंदगी छोड़ी। वैसे, ईमानदारी से बात की जाए तो यह नाकामयाबी उनकी अपनी नहीं थी, बल्कि उनसे जुड़े लोगों की थी।
“अब कभी भी मैं किसी भी ऐसे व्यक्ति पर भरोसा नहीं कर सकता, जो पहले मेरी इजाजत लिये बिना कोई महत्त्वपूर्ण फैसले कर सके।” अयोध्या के ऑफिस से अपना सामान समेटते समय मानो उन्होंने यही शपथ ली। बिल्डिंग के मालिक को चाभी सौंपते समय उन्हें तकलीफ हो रही थी-इसलिए नहीं कि उन्हें हार महसूस हो रही थी, बल्कि इसलिए कि बहुत लोग उनके बिजनेस और कौशल पर भरोसा कर रहे थे। लोगों को भरोसा था कि वे उनके छोटे स्टार्टअप और फैमिली बिजनेस को अच्छे से चलाने में मदद करते। क्यों न हो, आखिर उन्होंने एक नामी मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट से ग्रेजुएशन में गोल्ड मेडल हासिल किया था। यदि अयोध्या में किसी को भी बिजनेस से जुड़ी कोई समस्या होती तो राम के पास उसका समाधान होता था।
एक दिन राम शहर के एक पुराने आर्किटेक्चर फर्म के मालिक को कुछ सलाह दे रहे थे। उन्हें ऐसा करते देख उनके छोटे भाई लक्ष्मण ने उनसे कहा कि आप इससे कोई बिजनेस क्यों नहीं शुरू करते? यह एक अच्छा अवसर हो सकता है। आप लोगों को बिजनेस की सलाह दें, उनका बिजनेस शुरू करने में मदद करें, यहाँ तक कि यदि जरूरत पड़े तो उनके लिए फंड का भी इंतजाम करें और अपने इन प्रयासों के लिए 1 प्रतिशत चार्ज भी करें। लक्ष्मण अपने बड़े भाई राम के सबसे बड़े प्रशंसक, उनके सबसे करीबी दोस्त और सबसे वफादार साथी थे।
काफी सोच-विचार के बाद भाइयों ने मिलकर अयोध्या में एक छोटी बिजनेस कंसल्टेंसी फर्म खोली थी। वे बिजनेस करनेवालों के लिए मार्केट रिसर्च करते, विश्लेषण करते, बिजनेस एवं फाइनेंशियल मॉडल तैयार करते और जरूरी हो तो शहर के आसपास के उभरते बिजनेस के लिए वित्तीय सहायता भी मुहैया कराते।
सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था। यह एक नए तरह का बिजनेस था। उससे भी बड़ी बात थी कि यह अयोध्या के सीधे-सादे लोगों के बीच बिजनेस की समझ या जानकारी के अभाव के एक बड़े अंतर को दूर कर रहा था।
राम और लक्ष्मण इधर-उधर भाग रहे थे। वे अपने काम में डूब गए थे। कई प्रोजेक्ट्स उनके हाथ में थे। अपने होम टाउन के लोगों के शोर-शराबे के बीच वे दोस्त-दुश्मन के बीच फर्क समझ रहे थे, जो सहायता के लिए उनके पास आया करते थे।
वे जिन्हें बहुत चाहते थे या जिनका बहुत सम्मान करते थे, उन्हें लेकर कई बार उनके ऊपर एक तरह का दबाव होता। “राम, मेरे बेटे की एक छोटी सी दुकान है। अभी वह खराब वक्त से गुजर रही है। लेकिन मैं जानता हूँ, जब तक वह ठीक नहीं हो जाती, आप उन्हें कुछ रुपए देने से मना नहीं करेंगे। वह आपका रुपया जरूर वापस कर देगा।”
यहाँ तक कि उनकी सौतेली माँ कैकेयी भी अपना दुःखी चेहरा लेकर उनके पास आ जातीं। वे ऐसा करनेवाली अकेली नहीं थीं; जो कोई भी राम को जानता था, उससे यह बात छुपी हुई नहीं थी कि राम कितने सीधे-सादे और दयालु थे, जो किसी भी जरूरतमंद के किसी आग्रह को मानने से इनकार नहीं कर सकते थे।
लक्ष्मण को यह ठीक नहीं लगता। वे हमेशा राम को समझाते, “भैया, आपको अपनी इस तरह की छवि नहीं बनानी चाहिए। बिजनेस की दुनिया में जहाँ गला-काट प्रतियोगिता है, वहाँ आपको कुछ कड़े फैसले लेने पड़ेंगे, वरना हर कोई आपका लाभ उठाएगा।” लक्ष्मण राम से कहते, “अक्लमंदी से काम लीजिए, भैया। किसे कितना बताना है या किसको अपने आइडियाज बताने हैं, ऐसा करते समय थोड़ा सावधानी रखिए। मेरा यकीन मानिए, दुनिया उतनी आदर्शवादी नहीं है, जितना आप समझते हैं।”
लक्ष्मण ने भी वही शिक्षा हासिल की थी, जो राम ने की थी; लेकिन वे राम की तुलना में ज्यादा व्यावहारिक थे। वहीं दूसरी तरफ, राम आदर्शवादी थे, जो अच्छाई में विश्वास करते थे और किसी की भी भलाई करना अपना कर्तव्य समझते थे।
लक्ष्मण की बातें सुनकर राम बड़े सकारात्मक लहजे में उन्हें समझाते, “ओह, लक्ष्मण! तुम्हें दुनिया के बारे में इतनी निराशा भरी बातें नहीं करनी चाहिए। मैं आशावादी हूँ और मानता हूँ कि आप जितने आशावादी होते हैं, दुनिया में उतनी ही खुशियाँ आती हैं।” साफ कहा जा सकता है कि एक व्यक्ति के रूप में राम महान् थे, लेकिन एक बिजनेसमैन का ऐसा होना फायदेमंद नहीं था।
धीरे-धीरे राम के नाम और उनके बिजनेस की शोहरत अयोध्या के आसपास के शहरों में फैलने लगी। यहाँ तक कि भारत के उत्तरी व दक्षिण भाग में भी राम का नाम प्रसिद्ध होने लगा था। काम बढ़ने के साथ उन पर जिम्मेदारियाँ ज्यादा आ गईं और उत्तरदायित्व भी बढ़ रहे थे। राम इस बात की कम परवाह करते थे कि उन्हें कितना लाभ मिल रहा है!
एक भारतीय युवा, जिसकी समाज में बहुत इज्जत हो, प्रोफेशनली भी वह बहुत अच्छा कर रहा है, लेकिन फिर भी वह सिंगल हो, यह असंभव-सा लग रहा था। कंसल्टेंसी फर्म में खुद को रमा लेने से पहले से ही राम के रिश्तेदार और करीबी दोस्त उन्हें यह कहने लगे थे कि अब उन्हें जीवन में अगला कदम उठाना चाहिए, यानी अपने लिए एक उपयुक्त जीवनसाथी ढूँढ़ लेना चाहिए। उपयुक्त से उनका तात्पर्य होता—ऐसा जीवनसाथी, जो शारीरिक और आर्थिक रूप से उनके अनुकूल तो हो ही, उनकी मान-मर्यादा और प्रतिष्ठा के अनुरूप भी हो। एक नरम दिल भारतीय युवा की तरह राम भी अपने रिश्तेदारों की चुभती नजरों को टाल नहीं पाए और आखिरकार ‘हाँ’ कह दिया।
“ठीक है, मैं विवाह करूँगा; लेकिन मैं अपने लिए योग्य दुलहन खुद ही चुनूँगा और कोई मुझे जल्दी निर्णय लेने के लिए दबाव नहीं डालेगा।” राम ने अपना आखिरी फैसला सुना दिया। लेकिन उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि किसी ने उनसे एक भी सवाल नहीं पूछा।
कुछ समय बाद राम ने ऑनलाइन डेटिंग मैट्रीमॉनियल एप्स को डाउनलोड किया। उनके प्रोफाइल पर लिखा था—ऐसा जीवनसाथी चाहिए, जिसकी अक्लमंदी मुझे वैसे ही प्रभावित कर सके, जैसे मेरी आत्मा उसे...। राम के नाम और उनके लुक्स को लेकर उन्हें अकसर राइट स्वाइप मिलते; लेकिन अब तक उन्हें कोई भी ऐसा नहीं मिला, जो पाँच मिनट से अधिक चैट पर उनका ध्यान खींच सके।
कौशल्या यह जानने की कोशिश करतीं कि राम को किस तरह का जीवन साथी चाहिए? वे कहतीं, “तुम्हें थोड़ा खुलना पड़ेगा, राम। केवल यहाँ बैठकर इंतजार मत करो कि कोई सर्वगुणी लड़की तुम्हारी जिंदगी में आ जाएगी।” राम अपनी माँ की सलाह को खारिज नहीं करना चाहते थे, इसलिए अपना सिर हिलाते और मुसकरा देते। राम रोमांटिक व्यक्ति नहीं थे, बावजूद वे जानते थे कि उनकी किस्मत में जो लिखा होगा, अपने आप हो जाएगा। अपने पेशेवर मोरचे पर कई कामों को सँभालते हुए राम अपने परिवार की देखभाल में भी लगे रहते थे। सप्ताहांत पर राम लक्ष्मण के साथ अकसर उन क्लाइंट्स से व्यक्तिगत तौर पर मिलने के लिए जाया करते, जो अपनी समस्याओं को लेकर कॉन्फ्रेंस कॉल या वीडियो कॉलिंग पर संतुष्ट नहीं हो पाते। ऐसी ही एक यात्रा पर भाइयों को अपनी छुट्टी बढ़ानी पड़ी। अगली निर्धारित मीटिंग से पहले सप्ताहांत पर भाइयों ने कुछ मनोरंजक करने के बारे में सोचा। आखिरकार, उन्होंने एक स्थानीय आर्ट कैफे में जाने का सोचा, जहाँ एक प्रदर्शनी चल रही थी। वहाँ उन्होंने कई युवा लड़के व लड़कियों से घिरी सीता को देखा, जो बिजनेस इथिक्स पर अपनी बात कह रही थीं। यह एक छोटा सा अनौपचारिक समूह था, जहाँ मेधावी युवा आनेवाली प्रदर्शनी पर चर्चा कर रहे थे।
लक्ष्मण ने भी एक कुरसी खींच ली और समूह में शामिल हो गए और बड़ी हैरानी से राम से कहा, “हे भगवान्! लगता है, जैसे मैं आपके स्त्री रूप को सुन रहा हूँ, जैसा कि आप हमेशा इस तरह के सिद्धांतों और नैतिकता के विकल्पों की बात करते रहते हैं।” राम खामोश रहे और चुपचाप देखते रहे। चर्चा सही-गलत के विकल्पों पर होने लगी। अब राम भी कुछ कहना चाहते थे और सीता के कुछ तर्कों का विरोध करने का मन हो रहा था।
राम ने कहा कि अगर आप मुझे इजाजत दें तो मैं यह कहना चाहता हूँ कि दोनों को आपस में अलग होने की जरूरत नहीं है। वास्तव में, मेहनत और कुछ दिक्कतों को सहते हुए बिजनेस के लिए क्या सही है और क्या अच्छा है, उसे अपनाना और करना दोनों संभव है। उदाहरण के लिए, नए पुल कैब्स एप को लीजिए। वे न केवल शेयर्ड टैक्सी के लिए बड़ा बाजार तैयार कर रहे हैं, बल्कि प्रदूषण और ट्रैफिक समस्या को भी सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं। राम ने इस बात पर जोर दिया कि वे महसूस करते हैं कि आधुनिक समय में नैतिक रूप से यह अच्छा बिजनेस प्रोडक्ट है।
ऐसा लगा, जैसे दोनों में तत्काल एक रिश्ता बन गया। एक ऐसी शक्ति दोनों को खींच लाई, जिसने दो लोगों को एक-दूसरे के प्रति आकर्षित कर दिया। तब शायद ऐसा था कि दोनों ने सोचा है कि वे केवल आकर्षित होने के बजाय एक-दूसरे का सम्मान करेंगे। एक-दूसरे की प्रशंसा दोनों को करीब ले आई और वे प्रेम के बंधन में बँध गए। वे अकसर सोचते थे, यहाँ से चीजें केवल वहाँ से बेहतर होंगी; लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हुआ।
अभी-अभी हासिल किए Lank.co की पचासवीं मंजिल पर खड़े होकर राम सोच रहे थे कि सभी अनुमानों और भविष्यवाणियों के बावजूद वे दक्षिण में पहुँच गए हैं। अयोध्या, जो बिजनेस मैनेजमेंट में राम का घोषित राज्य बन गया था, पूरी तरह उनकी पकड़ में था, जहाँ उनके वफादार ग्राहक, परिवार और सहयोगी थे। ऐसा लग रहा था, मानो सारे सपने सच हो गए हैं।
जब तक वे नहीं थे। जब महत्त्वाकांक्षाएँ जरूरत से ज्यादा बढ़ने लगीं, सीमाएँ पिघलनी शुरू हो गईं और एहसान अधिक हो गया।
राम तब तक कल्पना नहीं कर पाए थे, जब तक कि बड़े थपेड़े ने उन्हें मारा नहीं। उन्हें उनसे धोखा मिलेगा, जिन्हें वे अपना करीबी मानते थे।
रामायण से स्टार्टअप सूत्र
लेखक : प्राची गर्ग
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 152
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