युद्धों की सार्वभौमिक रूप से निंदा की जाती है, परंतु निरपवाद रूप से आयोजित किए जाते हैं। नाभिक कहीं भी हो, उनका प्रभाव-सैन्य, आर्थिक या सामाजिक-प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सर्वत्र अनुभव किया जाता है। उद्देश्य क्षेत्रीय विस्तार हो या आर्थिक शोषण, वे निश्चित रूप से मनुष्य पर मनुष्य की क्रूरता हैं। बीसवीं शताब्दी के दो महान् युद्ध इसके अपवाद नहीं थे। उनका भारत के लोगों पर सीधा सैन्य प्रभाव नहीं था, परंतु लोगों के सामाजिक और आर्थिक जीवन पर इसका अप्रत्यक्ष प्रभाव था। द्वितीय विश्वयुद्ध में खाड़ी द्वीप समूह के लोगों पर सैन्य, सामाजिक और आर्थिक प्रभाव और इस अवधि के दौरान लोगों की पीड़ा वर्तमान कहानी का एक महत्त्वपूर्ण भाग है।
खाड़ी द्वीप समूह की अद्वितीय सुंदरता और प्राकृतिक भव्यता की प्रशंसा सदियों से सभी यात्रियों द्वारा की जाती रही है। इन द्वीपों में पाँच वर्ष रहने के समय मैं भी न केवल इनकी सुंदरता से अत्यधिक मुग्ध था, अपितु जापानी अधिग्रहण के साढ़े तीन वर्ष के दौरान लोगों की पीड़ाओं से भी अत्यंत व्यथित था। इतिहास की यह छोटी सी अवधि स्थानीय लोगों के लिए यातनाओं का एक लंबा दौर था और दुर्भाग्य से द्वीपों के इतिहास में यह एक पूरी तरह से उपेक्षित अध्याय है। यद्यपि दंड-बस्ती की अवधि के बारे में और आदिवासियों के जीवन के बारे में बहुत कुछ लिखा गया है, परंतु जापानी अधिग्रहण की प्रकाशित सामग्री की कमी ने जबरदस्त कठिनाइयों को प्रस्तुत किया है। इस अवधि के लिखित रिकॉर्ड को अंग्रेजों ने अपने निष्कासन से पूर्व और जापानियों द्वारा उनके आत्मसमर्पण से पहले ही नष्ट कर दिया गया था। स्थानीय लोगों के मौखिक वर्णन से और द्वीपों के बाहर कुछ रिकॉर्ड किए गए स्रोतों से सामग्री को एकत्रित किया गया है। एकत्रित की गई सामग्री को व्यवस्थित रूप से संकलित करके अधिग्रहण की अवधि की सही तसवीर प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। कुछ क्षेत्रों में बूढ़े जीवित पीड़ितों की कमजोर स्मृति पर निर्भर करने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं था। अंतराल को ठीक किया गया है और कुछ पूर्वग्रहों को टाला गया है।
हर दुःख में सुख की झलक छिपी होती है। युद्ध ने दंड-बस्ती को समाप्त कर दिया और काला पानी के प्रति लोगों का दृष्टिकोण पूरी तरह से बदल दिया। द्वीप अब एक पर्यटक स्थल हैं और सेल्यूलर जेल एक राष्ट्रीय स्मारक है। इसमें अब उन दुर्भाग्यपूर्ण देशभक्तों के लिए, जो अपनी मातृभूमि में लौटने के लिए तरस रहे थे, शापित कोठरियाँ नहीं हैं। घृणित जेल के लंबे गलियारे संदिग्ध जासूसों के रोने की आवाज नहीं सुनाते। रॉस पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद की भव्यता नष्ट हो गई है और रहस्यमय अतीत के यह उपेक्षित द्वीप अब मुख्य भूमि की समृद्धि के साथ नियमित वायु, समुद्र और संचार सेवाओं के साथ जुड़े हुए हैं।
तथ्यों को एकत्रित करने और वर्तमान कहानी को पूरा करने के प्रयास में स्थानीय मित्रो ने बहुमूल्य जानकारी दी। उन सभी की प्रेरणा और सहायता के लिए मैं हृदय से आभारी हूँ। इतिहास के संकलन में भारतीय और विदेशी स्रोतों से एकत्रित जानकारी के लिए उद्धृत किए गए सभी लेखकों और प्रकाशकों के प्रति मैं कृतज्ञता प्रदान करता हूँ। मेरी गहरी कृतज्ञता मेरी पत्नी पद्मा के लिए है, जिन्होंने मेरे प्रयास में सदा मुझे प्रेरित किया।
वर्तमान कहानी इन द्वीपों के जापानी अधिग्रहण तक सीमित है, जिसमें स्वाभाविक रूप से स्थानीय निवासियों पर उनके द्वारा किए गए अत्याचार शामिल हैं। नेताजी की यात्रा इस अवधि के इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण भाग है और वर्तमान प्रस्तुति में इसका उचित स्थान है। आत्मसमर्पण, पुनः अधिग्रहण और जापानी युद्ध-अपराधियों के परीक्षण की कहानी पुस्तक के अंतिम अध्याय में है। आदिवासी जनजातियों के जीवन के बारे में एक बहुत संक्षिप्त अध्याय भी जोड़ा गया है।
हम इतिहास पढ़ते हैं, परंतु इससे सीख नहीं लेते। युद्ध, शत्रुता तथा अत्याचार मानव विनाश के स्वनिर्मित कारण हैं और युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं हैं। इस और असंख्य ऐसी ही कहानियों से हम एक दृढ़ निष्कर्ष निकालते हैं कि मानव कुछ सनकियों की घृणा के कारण सदा युद्ध की छाया में रहता है। वर्तमान प्रयास अत्यधिक उपयोगी होगा, यदि यह मनुष्य को घृणा त्यागने और मानवता के अस्तित्व के लिए जीने और काम करने के लिए प्रेरित करता है।
-एस.के. नारंग.
काले पानी की कलंक कथा
लेखक : एस.के. नारंग