चाणक्यमेंट : आचार्य चाणक्य से सीखें मैनेजमेंट के गुण

चाणक्यमेंट : आचार्य चाणक्य से सीखें मैनेजमेंट के गुण

अपने हाथ में एक भी हथियार उठाए बिना एक साधारण शिक्षक ने एक पूरे साम्राज्य को उखाड़ फेंका, नंदवंश को नष्ट कर दिया और मौर्यवंश की स्थापना की। ऐसा क्या था उस शिक्षक के पास? सूक्ष्म संचालन शक्ति! कौन था वह शिक्षक? कौटिल्य...और कौटिल्य का अर्थ है-चाणक्य। मूल नाम आचार्य विष्णुगुप्त, जिन्हें अपने पिता के नाम ‘चाणक’ से ‘चाणक्य’ नाम की उपाधि मिली थी।

दुनिया के महान् राजनीतिज्ञों ने जिस पुस्तक को पढ़ते ही उसमें बताई गई बातों को मान्यता दे दी, वह पुस्तक है-‘कौटिल्य का अर्थशास्त्र’। आचार्य चाणक्य ने उस शास्त्र में राज्य-व्यवस्था के संचालन के विषय में जो ज्ञान दिखाया है, वह ‘न भूतो, न भविष्यति’ जैसा है। चाणक्य का वह ज्ञान अद्वितीय व शाश्वत है।

अपनी पुस्तक ‘अर्थशास्त्र’ में ‘अर्थ एवं प्रधान इति कौटिल्य’, यानी कह सकते हैं कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष-इन चार पुरुषार्थों में अर्थ की प्रधानता पर जोर दिया गया है। अर्थ का मतलब है धन, जो मानव जीवन का मुख्य आधार है। दुनिया में किसी भी प्रणाली की नींव इसी अर्थ के आधार पर टिकी हुई होती है। दुनिया की कोई भी प्रणाली, चाहे वह सामाजिक व्यवस्था हो, राज्य-व्यवस्था हो, राष्ट्र-व्यवस्था हो या कोई अन्य व्यवस्था हो-सबको इस बात को स्वीकार करना ही होता है। आचार्य चाणक्य ने इस विचार को सही ढंग से समझा, उस अर्थ में आचार्य चाणक्य एक प्रखर अर्थशास्त्री थे, वे एक महान् संचालक थे और इसलिए आज भी यदि कोई व्यक्ति सर्वश्रेष्ठ मैनेजमेंट का उदाहरण देता है तो उसे ‘चाणक्य’ की उपाधि मिलती है।

अब बात करते हैं मैनेजमेंट की। मैनेजमेंट के मामले में चाणक्य एक माइलस्टोन हैं, जिसे जो कोई भी पढ़ता है, उसे वह स्वीकार ही करना पड़ता है। मैनेजमेंट मानव जीवन का सबसे अनिवार्य हिस्सा है। जितने पहलू मानव जीवन के, उतने ही पहलू मैनेजमेंट के भी हैं। जब हम ‘मैनेजमेंट’ शब्द को केवल व्यापार के संदर्भ में देखते हैं, तब वह बहुत संकुचित अर्थ दरशाता है। वास्तव में, मैनेजमेंट एक बहुत बड़ी चीज है, जो जीवन के हर पहलू को कवर करती है। हम देखते हैं कि मनुष्य भौतिक, मानसिक, आर्थिक, धार्मिक, आध्यात्मिक, नैतिक, कूटनीतिक, वैचारिक, पारिवारिक, सामाजिक-हर चीज में लाभ कमाना चाहता है। वह हर क्षेत्र में सफलता के शिखर पर पहुँचना चाहता है...वह हर चरण में कुछ नया करना चाहता है, यही शाश्वत सत्य है और इसलिए जीवन के प्रत्येक चरण में मैनेजमेंट न केवल आवश्यक है, बल्कि अनिवार्य भी है।

यदि आप किसी भी युग या क्षेत्र के किसी भी सफल व्यक्ति का अध्ययन करते हैं तो आपको स्वतः ही यह अहसास हो जाएगा कि उसमें कुछ ऐसा था, जो दूसरों में नहीं था। ऐसा क्या था उनमें, जो दूसरों में नहीं था? इसका उत्तर है-‘मैनेजमेंट’। संक्षेप में कहें तो ‘मैनेजमेंट’ ही सफलता की आधारशिला है। यदि कोई व्यक्ति या शक्ति सफल है तो इसका श्रेय केवल उसकी संचालन शक्ति को जाता है। सृष्टि के निर्माता और निर्वाहक स्वयं ईश्वर ने भी उसी सत्य को अपनाया है। यदि परमेश्वर के पास सही संचालन शक्ति नहीं होती तो पल-पल तबाही होती, महाविनाश होता। जो होना चाहिए, वह नहीं होता और जो नहीं होना चाहिए, वह होता रहता है। यदि प्रकृति एक पल के लिए भी अपने संचालन पर नियंत्रण खो दे, तो यह एक आपदा बन सकती है। पृथ्वी 24 घंटे में 24 हजार बार अपनी धुरी पर घूमने लगे। सूरज उगना बंद कर दे और समुद्र सूख जाए। संक्षेप में कहें, तो बहुत कुछ ऐसा होता, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते; लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं होता है। कारण? क्योंकि इस समग्र ब्रह्मांड का छोटे-से-छोटा अणु भी नियमबद्ध है। सृष्टि में होनेवाली हर चीज नियमबद्ध होती है। नियमों के खिलाफ कुछ भी नहीं होता है...यही कारण है कि सबकुछ आसानी से हो जाता है। जैसा ईश्वर का है, वैसा ही मनुष्य का है। यदि वह अपनी यात्रा सुचारु रूप से चलाना चाहता है तो उसे नियमों का पालन करना ही पड़ता है और नियमबद्धता ही संचालन है। संचालन सिर्फ आज ही की नहीं, बल्कि हर समय की माँग है, अर्थात् संचालन यानी कि मैनेजमेंट के बिना सृष्टि ठीक से चल ही नहीं सकती। यदि हम मानव जीवन के इतिहास को देखें तो हमें पता चलेगा कि आदिम मनुष्य से आधुनिक मनुष्य तक के मानव जीवन की विकास-यात्रा के दौरान, एक और यात्रा निर्बाध रूप से चल रही है, जिसे ‘मैनेजमेंट की यात्रा’ कहा जाता है। यदि आदिम मनुष्य एक आधुनिक मानव बन सका है तो यह केवल उसी संचालन शक्ति के कारण ही संभव हुआ है।
चाणक्यमेंट : आचार्य चाणक्य से सीखें मैनेजमेंट के गुण

कौटिल्य का अर्थशास्त्र समग्रलक्षी है। यह मानव जीवन के सभी पहलुओं पर प्रकाश डालता है, क्योंकि मनुष्य जो भी कुछ करता है, वह जीने के लिए करता है। जीना ही मानव जीवन का अंतिम लक्ष्य है, लेकिन सिर्फ जीने के लिए ही जीना भी कोई जीना नहीं है...सिर्फ जीने से कैसे जीना चाहिए, यह जानने और समझने के लिए जो रास्ता है, उसे पार करने के लिए जिस शक्ति की जरूरत है, उसे ही संचालन शक्ति कहते हैं। सभी मानवीय अंतर्क्रियाओं में से जिंदा रहने का खयाल सबसे ऊपर है और जीने के लिए धन चाहिए; दूसरे शब्दों में कहें तो धन आजीविका का मुख्य आधार है और यही कारण है कि आचार्य ने अपने अर्थशास्त्र में अर्थ की प्रबलता पर जोर दिया है। हर कोई इस तथ्य को स्वीकार करेगा कि पैसा कमाना मानव जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्ष्य है।

लेकिन पैसा कमाना इतना आसान थोड़ी है! यदि पैसा आसानी से कमाया जाता, प्राप्त या अर्जित किया जा सकता, तो मैनेजमेंट की कोई आवश्यकता ही नहीं रहती!

आज आधुनिक तकनीक ने दुनिया को एक छोटा-सा गाँव बना दिया है, एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचने में कुछ घंटों से अधिक समय नहीं लगता है। यदि आप आज कोई व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं, तो आपको कुछ ही सेकंड में उसके बारे में बहुत सारी जानकारी मिल जाएगी, लेकिन नॉलेज-मैनेजमेंट के युग में, सिर्फ जानकारी पर्याप्त नहीं है। आपको यह भी प्रबंधित करना होगा कि आपके द्वारा प्राप्त की जानेवाली सभी जानकारी में से आपके लिए सबसे अच्छी और सबसे सुलभ और तेज जानकारी क्या है! इसके बाद ही अन्य प्रबंधन संभव हैं। चाणक्य की मैनेजमेंट से संबंधित अवधारणाएँ यहाँ बहुत उपयोगी हैं। चाणक्य ने भारतीय क्षेत्रवाद और उसके लोगों की मानसिकता को समझा और पचाया, और उन्होंने जो कहा, वह एक सूक्ष्म अध्ययन की परिणति था। आज से 2300 साल पहले उन्होंने मैनेजमेंट के संबंध में जो कुछ कहा था यदि वह आज भी इतना ही उपयोगी या स्वीकार्य नहीं होता, तो कोई इसे क्यों स्वीकार करता? यदि आज हम चाणक्य को किसी कारण से जानते हैं तो वह उनके शक्तिशाली मैनेजमेंट के कारण।

उचित मैनेजमेंट के बिना एक सामान्य ब्राह्मण पूरे साम्राज्य को उखाड़ सकते थे क्या? नहीं...नहीं...नहीं उखाड़ सकते थे। इसका मतलब यह है कि चाणक्य की योजना बनाने की क्षमता जबरदस्त थी, जिसका हमें भी लाभ उठाना चाहिए। एकमात्र प्रश्न यह है कि क्या हमें चाणक्य के सभी विचारों को एक ही रूप में वह जैसे हैं, वैसे ही स्वीकार कर लेने चाहिए? जवाब है-नहीं।

क्योंकि अतीत से जुड़ी किसी भी चीज को उसी रूप में स्वीकार करने से बड़ी कोई गलती नहीं हो सकती। अतीत की गलतियाँ हमें वर्तमान में टिके रहने और भविष्य में सफल होने का आधार प्रदान करती हैं, इसलिए हम चाणक्य के विचारों को उसी रूप में स्वीकार नहीं करेंगे। हमें बहुत सफल होना है, इसलिए हमें यह पता लगाना होगा कि चाणक्य नीति में ऐसा क्या है, जो हमारे सफल होने के लिए जरूरी है और एक नया मैनेजमेंट बनाने के लिए हमें उन चाणक्य के पुराने सिद्धांतों को आधुनिक रुझानों के साथ मिलाना है। इस डिजिटल युग में केवल यह नया मैनेजमेंट ही हमें टिका पाएगा।

चाणक्य ने जो कहा, वह उनके समय की माँग थी। हमें यह देखना होगा कि हमारे समय की माँगों में चाणक्य हमारी किस तरह से मदद कर सकेंगे।

आज, ऐसे समय में जब पूरी दुनिया पूँजीवादी विचारधारा की ओर झुक रही है, बाजार में लगातार प्रतिस्पर्धा होगी, जिसका अर्थ है कि यह युग तीव्र प्रतिस्पर्धा का युग होगा। इस समय में हम तभी बचेंगे, जब हम कुछ नया और दूसरों से अलग करेंगे। इसके अलावा, हम जानते ही हैं कि लगातार नवाचार करने की प्रवृत्ति ने ही आदिमानव से हमें आधुनिक मानव बनाया है। जो लोग उद्योग, संस्थान, समाज, राज्य और राष्ट्र इस नई गतिविधि में पिछड़ जाते हैं या धीमे रह जाते हैं, वे फिर ‘विकासशील’, ‘अविकसित’, ‘विकास की दिशा में अग्रणी’ के रूप में जाने जाते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए भी चाणक्य का मैनेजमेंट अध्ययन का विषय बन जाता है। 

अब हमें यह भी जानना होगा कि मैनेजमेंट के बारे में दुनिया के महानतम संचालन विशेषज्ञों का क्या कहना है। श्री हेल्ली फेलोय, जो कि एक फ्रांसीसी संचालन शास्त्री हैं, जिन्हें आधुनिक संचालन विज्ञान का जनक भी माना जाता है, उनके अनुसार-
(1) “संचालन का अर्थ है-पूर्वानुमान और योजना बनाना, सिस्टम बनाना, आदेश देना, समन्वय और नियंत्रण करना!”

तो महान् संचालन शास्त्री जी.आर. टेरी ने संचालन की कुछ इस तरह की परिभाषा बनाई है- 
(2) “संचालन एक विशेष प्रक्रिया है, जिसमें आयोजन, उत्तेजना और नियंत्रण शामिल हैं, जो लक्ष्यों को निर्धारित करने, जनशक्ति और अन्य उपकरणों का उपयोग करके निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।”

श्री लॉरेंस, एक प्रसिद्ध अमेरिकी संचालन विशेषज्ञ, संचालन की कुछ ऐसी परिभाषा बताते हैं-
(3) “संचालन व्यक्तियों के विकास की प्रक्रिया है, चीजों की व्यवस्था करने की नहीं। संचालन का कार्य मुख्य रूप से योजना और नियंत्रण करना है।”

एक विचार के अनुसार, संचालन अधिकारी को तीन मुख्य कार्य करने होते हैं- 
• तय करें कि आप लोगों से क्या करवाना चाहते हैं। 
• नियमित अंतराल पर कार्यों की जाँच और मूल्यांकन करते रहना। 
• ऐसी रणनीति और तकनीक अपनाना, जिससे लोग उस कार्य को सही तरीके से कर पाएँ। 

इन सभी परिभाषाओं को बहुत देर से लिखा गया था। इन सभी विचारों को बहुत देर से प्रस्तुत किया गया था। महान् अर्थशास्त्री चाणक्य ने 2300 साल पहले ही अपने अर्थशास्त्र में इन सभी विचारों को पेश किया था और उन्हें सफलतापूर्वक लागू भी किया था। उनके गहन संचालन कौशल्य से ही चंद्रगुप्त मौर्य चक्रवर्ती राजा बने और वर्षों तक एक विशाल साम्राज्य पर शासन किया। संचालन कौशल्य पर आचार्य की शक्तिशाली विचारधारा को पेश करने के उद्देश्य से ही यह पुस्तक आपके समक्ष प्रस्तुत की जा रही है।

यह पुस्तक चाणक्य के ‘अर्थशास्त्र’ और ‘पूर्ण चाणक्यनीति’ पर आधारित है। इसमें से बुद्धिमान् पाठकों को वह दृष्टि मिल जाएगी, जो वे चाहते हैं। शासक को शासन के संबंध में, व्यापारी को व्यवसाय के संबंध में, गृहस्थ को अपने घर के संबंध में और व्यवस्थापक को संचालन के संबंध में कुछ-न-कुछ तो मिल ही जाएगा।

-चंद्रेश मकवाणा.

चाणक्यमेंट
लेखक : चंद्रेश मकवाणा 
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 280
किताब लिंक : https://amzn.to/3JUMBEz