लोककथाएँ शृंखला (भाग-1)

लोककथाएँ शृंखला

प्रभात प्रकाशन ने लोककथाएँ शृंखला के तहत कुल 18 पुस्तकों का प्रकाशन किया है। इसमें असम, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक आदि की लोककथाओं को शामिल किया गया है।

विश्व के सभी भागों में लोककथाएँ सदियों से कही-सुनी जाती रही हैं और आज भी उनका महत्त्व कम नहीं हुआ है। हर उम्र के लोग उन्हें बहुत चाव से पढ़ते हैं और एक धरोहर की तरह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सौंपते चले आ रहे हैं। लोककथाएँ ऐसा दिलचस्प माध्यम हैं, जिनसे किसी भी देश के लोक-जीवन और संस्कृति के बारे में जाना जा सकता है। लोककथाओं से उस स्थान, राज्य या क्षेत्र की परंपरा व संस्कृति की झलक तो मिलती ही है, साथ ही उनमें सामाजिक व भौगोलिक स्थितियों व समाज का चित्रण भी नजर आता है। वहाँ के रीति-रिवाजों और धार्मिक विश्वासों का भी बोध होता है।

भारत लोककथाओं के संबंध में विश्व के समृद्ध स्रोतों में से एक रहा है। लोककथाओं की विशेषता यह है कि वे भिन्न–भिन्न रीति-रिवाजों और प्रथाओं को एक सूत्र में बाँधने में भी सहायता करती हैं। यही वजह है कि लोककथाओं का भारतीय साहित्य में एक विशिष्ट स्थान है।

हमारे देश भारत में लोककथाएँ लिखने का आरंभिक प्रयास आंध्र के विद्वान् गुणाढ्य ने ईसवी की प्रथम शती में किया था। उनका लिखा ग्रंथ ‘बृहत्कथा’ तो मूल रूप से अब उपलब्ध नहीं है, लेकिन संस्कृत में रचित बृहत्कथा मंजरी तथा ‘कथा सरित्सागर’ में उसके प्रमाण प्राप्य हैं। लोककथाएँ जनमानस में आत्म-विश्वास की भावना जाग्रत् करती हैं, उनको शक्ति प्रदान करती हैं और जीवन में संघर्ष एवं आपदाओं में स्थिर रहने की शक्ति को भी जन्म देती हैं। लोककथाएँ कभी गुदगुदाती हैं, कभी कुछ सोचने पर मजबूर कर देती हैं, तो कभी प्रेरित करती हैं। बेशक ये अकसर कल्पनाओं पर टिकी होती हैं और वास्तविकता से दूर लगती हैं, फिर भी इन्हें सभी रस ले-लेकर पढ़ते हैं। मनोरंजन का एक बेहतरीन साधन होने के कारण हर उम्र के लोग इन्हें चाव से पढ़ते हैं। ~सुमन वाजपेयी.

असम की लोककथाएँ
असम की लोककथाएँ 
विद्वानों का मत है कि ‘असम’ शब्द संस्कृत के ‘असोमा’ शब्द से बना है, जिसका अर्थ होता है-अनुपम या अद्वितीय। किंतु अधिकतर विद्वानों का मानना है कि यह शब्द मूल रूप से ‘अहोम’ से बना है। असम राज्य में संस्कृति और सभ्यता की एक प्राचीन और समृद्ध परंपरा रही है। इसका प्रभाव यहाँ के लोकसाहित्य में भी देखने को मिलता है, जिसे पीढ़ी-दर-पीढ़ी सौंपा जाता जा रहा है। इसकी लोककथाओं के माध्यम से यहाँ के लोगों के जीवन और संस्कृति के विविध पहलुओं को जानने का अवसर मिलता है। असम में प्रचलित लोककथाओं को ‘साधु कथा’ कहा जाता है। यहाँ की लोककथाएँ अलौकिक घटनाओं से परिपूर्ण होती हैं। असम तंत्र-मंत्र, जादू-टोना एवं आध्यात्मिकता का केंद्र है। अतः लोककथाओं में तंत्र-मंत्र का समावेश भी देखने को मिलता है और रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी घटनाओं को जोड़कर भी कथाएँ बनाई गई हैं। कल्पना और वास्तविकता के समन्वय और उनके रहन-सहन और परिवेश का आईना हैं असम की लोककथाएँ। उनकी बोली, खान-पान और गुजर-बसर करने के तरीकों के बारे में भी इन लोककथाओं के माध्यम से जानने का मौका मिलता है।

इस पुस्तक में ऐसी ही कुछ लोककथाएँ संगृहीत हैं, जो असम की गौरवशाली विरासत व संस्कृति का बोध कराती हैं।

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उत्तर प्रदेश की लोककथाएँ
उत्तर प्रदेश की लोककथाएँ
इस पुस्तक में हिंदी की पोषक उत्तर प्रदेश की जनपदीय लोकभाषाओं की कथाएँ हैं। उत्तर प्रदेश की मुख्य लोकभाषाएँ या हिंदी की बोलियाँ हैं- अवधी, आदिवासी, कौरवी, ब्रज, बुंदेली, भोजपुरी आदि। वही कथाएँ प्रायः सभी लोकभाषाओं में पाठ भेद के साथ मिलती हैं। उत्तर प्रदेश की सभी बोलियों, उपभाषाओं का लोककथा साहित्य रोचक, प्रेरक और समृद्ध है। यह दावा नहीं किया जा सकता कि कौन सी कथा किस बोली-क्षेत्र की है। सब में एक ही मूल भाव, लोकमंगल उपस्थित है। कथा के अंत में कहा जाता है कि ‘सबके अच्छे दिन बहुरे...’अर्थात् किसी के साथ बुरा न हो।

संकलन में जो लोककथाएँ हैं, उनमें धार्मिक-पौराणिक कथाएँ, हास्य कथाएँ, नीति संबंधी कथाएँ, प्रकृति से जुड़ी कथाएँ तो हैं ही, व्रत-पर्व, त्योहारों से जुड़ी ऐसी कथाएँ भी हैं, जिनमें देवी-देवताओं के कथानक, उनकी महिमा और कृपा, व्रत के फल, विधि-विधान तथा व्रत-पर्वों के महत्त्व का वर्णन है।

यह पुस्तक उत्तर प्रदेश की लोक संस्कृति, परंपराओं और मान्यताओं का दिग्दर्शन करवाती पठनीय लोककथाओं का संकलन है।

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ओडिशा की लोककथाएँ
ओडिशा की लोककथाएँ
ओडिशा की कला, साहित्य और संस्कृति में शास्त्रीय (वैदिक परंपरा) देव श्रीजगन्नाथजी के तत्त्व और कथानक भी जुड़े हैं। श्रीजगन्नाथ के लोकतात्त्विक स्वरूप से जुड़ी अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। 

ओडिशा में राज-परिवारों का शासन रहा है। अतः लोकजीवन उनसे पर्याप्त रूप में जुड़ा रहा है। कुछ अंशों को छोड़ दें तो इस लोकजीवन में राजघरानों या राज परिवारों का अत्यंत उत्कृष्ट रूप मिलता है। वे समृद्ध करते हैं, उन्हें सताते नहीं। वैसे वाणिज्य और व्यवसायी वर्ग भी अत्यंत उज्ज्वल रूप में रहे हैं। विदेशी वाणिज्य से उत्कल की समृद्धि संभव हुई। जीवन का यह अभिन्न अंग भी रहा है। इन लोककथाओं में उनका चरित्र उभरकर आ रहा है।

उत्कल की लोककथाओं का भंडार विराट् है। उसके एक बहुत छोटे से अंश का संकलन यहाँ प्रस्तुत है, जिससे ओडिशा की समृद्ध लोकसंस्कृति और लोकजीवन की झाँकी मिल पाएगी।

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कर्नाटक की लोककथाएँ
कर्नाटक की लोककथाएँ
कर्नाटक प्रमुख रूप से प्रचीन मैसूर प्रांत; हैदराबाद-कर्नाटक जिला; उत्तर कर्नाटक/उत्तर कन्नड़ प्रदेश तथा दक्षिण कन्नड़ जिले में बँटा हुआ है।

कर्नाटक के चारों भागों में लोककथाओं का विपुल भंडार है। इस संग्रह में इन सबका प्रतिनिधित्व है। भूताराधम से संबंधित लोककथाएँ दक्षिण कन्नड़ जिले में खूब प्राप्त होती है। दक्षिण कन्नड़ जिले की तरह उत्तर कन्नड़ जिले की भी कई लोक-जीवन से जुड़ी कहानियाँ प्राप्त होती हैं। कारवार-गोकर्ण आदि की कहानियों पर कोंकण जिले का प्रभाव गहरा है। धारवाड़-हूली पर मराठी संस्कृति का भी प्रभाव है।

फिर प्राचीन मैसूर संस्थान पर महाराजा, राजघराने, भरतनाट्यम्, दशहरा, चामुंडी, पहाड़, महिषासुर, दुर्गा द्वारा राक्षस संस्कार आदि से जुड़ी लोकसंस्कृति का असर है। विजयपुर (बीजापुर)-गुलबर्ग, जिसे हैदराबाद-कर्नाटक का क्षेत्र कहा जाता है, की लोककथाएँ भी बहुत प्रचलित हैं।

इस संकलन में इन सभी क्षेत्रों में प्रचलित लोकजीवन का प्रतिनिधित्व करनेवाली कहानियाँ संकलित हैं।

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मणिपुर की लोककथाएँ
मणिपुर की लोककथाएँ
मणिपुर पूर्वोत्तर भारत का मैदानी-पहाड़ी भूभागों से मिश्रित एक छोटा सा राज्य है। यहाँ पर मुख्यतः मीतै समाज और नागा-कुकी जनजातीय समाज के लोग निवास करते हैं। इनके बीच मौखिक परंपरा में प्रचलित लोककथाओं को कहने-सुनने की परंपरा आदिकाल से ही विद्यमान है। इस लोककथा-संकलन में मीतै तथा नागा-कुकी समाज की पचपन लोककथाओं को स्थान मिला है, जिनसे पाठकों को मणिपुर की समृद्ध लोक-संस्कृति, लोक-जीवन, और लोक-परंपराओं की जानकारी मिलेगी, जिनसे मणिपुरी समाज को जाने-समझेंगे।

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केरल की लोककथाएँ
केरल की लोककथाएँ
भारतीय लोककथाओं की सुसमृद्ध परंपरा की विशिष्ट कड़ी के रूप में केरल की लोककथाओं का अहम स्थान है। ‘देवता का अपना देश’ पुकारे जानेवाला रमणीय प्रांत केरल विविध प्रकार की लोककथाओं की क्रीड़ाभूमि रही है। एक ओर वे कथाएँ केरल के ऐतिहासिक-प्रागैतिहासिक एवं सांस्कृतिक बहुविध पहलुओं को चिह्नित करती हैं तो दूसरी ओर केरलीय लोक-जीवन के मनोरम चित्र भी उकेरती हैं।

इन लोककथाओं में केरल की उत्पत्ति संबंधी कथा आती है, केरल के ओणम जैसे त्योहारों, प्रसिद्ध मंदिरों, नागतीर्थों से जुड़ी हुई कथाएँ भी सम्मिलित हैं। केरल के विशिष्ट व्यक्तियों, वीरों और वीरांगनाओं के अद्भुत, रोमांचकारी एवं साहसिक कार्यकलापों ने भी इनमें स्थान पाया है। 

ये लोककथाएँ नई पीढ़ी को अपने प्रांत के पुराने व्यक्ति-विशेषों, आचार-विचारों, पर्व-त्योहारों, लोककलाओं एवं जीवन-शैलियों को अवगत कराने में सक्षम हैं।

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