हर कहानी का अपना रस होता है। हर कहानीकार की अपनी लय होती है। हर कहानी कुछ कहती है, जिसका तरीका अपना होता है।
कहानियाँ जब आसपास की बात करती हैं, कहानियाँ जब उस समाज की बात करती हैं जिसे हमें अच्छी तरह जानते हैं, ऐसी कहानियाँ पराई नहीं लगतीं। उन्हें पढ़कर जो महसूस होता है वह अलग ही अनुभव है। नीलिमा शर्मा की कहानियों का संग्रह 'कोई ख़ुशबू उदास करती है' कुछ ऐसी ही कहानियों को संजोए है जिनका नाता जीवन से है और उस स्त्री से है जो समाज का मजबूत हिस्सा है। स्त्रियाँ अपनी बात कह रही हैं। ये कहानियाँ महिलाओं की आवाज़ हैं। उनके मसले, उनकी दुश्वारियां हैं। उनके जीवन की अलग-अलग परतों को जोड़कर नीलिमा शर्मा ने कहानियों को पिरोया है। सुख-दुख, उतार-चढ़ाव, आदि हमें इन कहानियों में देखने को मिलता है। पुस्तक का प्रकाशन शिवना प्रकाशन ने किया है।
संग्रह की पहली कहानी है -'टुकड़ा-टुकड़ा ज़िंदगी'। कोरोनाकाल के शुरुआती दिनों में लोगों की मनोदशा का दिलचस्प वर्णन किया गया है। किस तरह क्वारंटाइन रहने वालों को मानसिक तौर पर समस्या का सामना करना पड़ता है। लेकिन ज़िंदगी जीने के तरीके भी निकाल लेती है। उदासी को दूर करने के लिए या डिप्रेशन से बचने के लिए यदि हम चाहें तो खुद को बदल सकते हैं। इस तरह के बदलाव सुखद होते हैं। उर्वशी जैसे लोग नसरीन से प्रेरणा ले सकते हैं। मुश्किल कुछ नहीं होता, नज़रिया बदलने से ज़िंदगी ज़िंदादिली से भर जाती है।
पुरुष को हर रिश्ते में स्वतंत्रता चाहिए होती है लेकिन स्त्री को हर रिश्ते से मोह होता है।
'कोई ख़ुशबू उदास करती है' भी अच्छी कहानी है। सबकुछ बहता हुआ चला जा रहा है आँखों के सामने, वो पात्र, वो उनकी बातें, उनके इरादे, उनकी भावनाओं की गर्माहट। दिल जुड़ते हैं, टूटते हैं। चाहत का कोई पैमाना नहीं। कितना चाहना, कितना नहीं, किसे चाहना, किसे नहीं। जुड़कर बिखरना और बिखर कर जुड़ना। एक जगह देखें -'ज़िंदगी ने जब उसका कोमल हृदय तोड़ा था, उसके कच्चे सपनों को जब बारीकी से छिन्न-भिन्न किया गया था, उसके भीतर बसी मोगरे और बल्वरी की मदमाती ख़ुशबू को जब मसालों की महक से सराबोर कर दिया था, तब भी इतना नहीं रोई थी जितना इन बरसों पुरानी डायरी को पढ़कर रो रही थी। अठारह बरस पुरानी डायरी के पन्नों में उदासी की सीलन आज भी ताज़ा थी।...उस दिल से कभी पनीले दर्द की नदियाँ बही होंगी। इस दर्द की नदी में आई बाढ़ का पानी बरसों तक कहीं ठहर गया था।'
इस संग्रह में एक कहानी ऐसी है जिसमें भावुकता के क्षण थोड़ी-थोड़ी देर में आते रहते हैं। 'अंतिम यात्रा और अंतर्यात्रा' कहानी में एक पति अपनी पत्नी को याद कर रहा है। उसकी पत्नी अंतिम यात्रा पर है। वह खुद को कोस भी रहा है, उसे पश्चाताप हो रहा है। लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता है। ज़िंदगी ऐसे ही चलती है। जो आता है, उसे जाना भी होता है। स्त्री-पुरुष संबंधों पर नीलिमा जी ने बहुत खूब लिखा है, देखें : 'पुरुष को हर पल स्त्री का साथ चाहिए होता है। वह बिना स्त्री के जीवन की कल्पना ही नहीं कर सकता है। पुरुष को हर रिश्ते में स्वतंत्रता चाहिए होती है लेकिन स्त्री को हर रिश्ते से मोह होता है।' यह कहानी दिल पर बहुत गहराई तक असर डालती है।
'कोई रिश्ता ना होगा अब', 'उत्सव', 'इत्ती-सी खुशी', 'लम्हों ने ख़ता की' आदि कहानियाँ बहुत दिलचस्प अंदाज़ में लिखी गई हैं। नीलिमा शर्मा की कहानियाँ आसपास की उस दुनिया को दिखाने की कोशिश कर रही हैं, जिनसे हमारा नाता है। उनकी कहानियाँ बिखरी हुई ज़िंदगी को भी संभालती हैं। उनके पात्र जीवन की सच्चाई से पूरी तरह रुबरु हैं। रिश्ते-नाते की महीनता को पहचाते हैं। ये कहानियाँ ज़िंदगी की बारीकियों को समझदारी से प्रस्तुत करती हैं। उन अहसासों को शब्दों के माध्यम से पेश करने की कोशिश करती हैं, जिन्हें पढ़कर पाठक उनसे जुड़ जाता है। उसे अपनापन महसूस होता है।
कोई ख़ुशबू उदास करती है
लेखक : नीलिमा शर्मा
प्रकाशक : शिवना प्रकाशन
पृष्ठ : 144
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