इतना तो याद है मुझे : अनकही-अनसुनी फिल्मी बातें

इतना तो याद है मुझे : अनकही-अनसुनी फिल्मी बातें

फिल्मों की तरह उनसे जुड़ी कहानियाँ भी कम फिल्मी नहीं होतीं। 'इतना तो याद है मुझे' प्रभात प्रकाशन से प्रकाशित ऐसी पुस्तक है जो हमें फिल्मी दुनिया के ऐसे किस्से और कहानियों से अवगत कराती है जिन्हें जानकर हम हैरान हो सकते हैं। फिल्मी जगत से जुड़ी ऐसी बातें भी इस किताब का हिस्सा हैं जिनसे पर्दे के आगे और पीछे  की दिलचस्प दुनिया के अलग-अलग रंगों का पता चलता है।

इस महत्त्वपूर्ण खोजीपरक पुस्तक के लेखक हैं बॉबी सिंह जो सिनेमा से लंबे समय से जुड़े हैं। बॉबी सिंह के लेख आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते हैं। अपनी वेबसाइट पर भी वे नियमित लिखते हैं। 

'इतना तो याद है मुझे' पुस्तक में सत्यजीत रे, बिमल रॉय, गुलज़ार, दिलीप कुमार, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल, शम्मी कपूर, देवानंद, हृषिकेश मुखर्जी, अमिताभ बच्चन, मीना कुमारी आदि की अनसुनी-अनकही बातें हैं।

पुस्तक के बारे में बॉबी सिंह कहते हैं -'यह पुस्तक एक सच्चा प्रयास है, जो खासतौर से उन युवा दोस्तों के लिए लिखी गई है, जो हमारे हिंदी सिनेमा की यादगार कृतियों, उनके संगीत और उनके निर्माण से संबंधित कम प्रचलित जानकारी और कहानियों के बारे में विस्तारपूर्वक पढ़ना और उन्हें फिर से जीना चाहते हैं।'

यह पुस्तक नई व पुरानी फिल्मों से संबंधित अफवाहों, कलाकारों के आंतरिक प्रेम-संबंधों अथवा परदे के पीछे की अनिश्चित, विवादास्पद कहानियों का लेखा-जोखा नहीं है। यह पुस्तक फिल्मों से जुड़े तथ्यों पर आधारित है, जिसे आप यू-ट्यूब या ऑनलाइन मूवी पोर्टल पर संबंधित फिल्में देखकर और अधिक विस्तार से जान सकते हैं।
इतना तो याद है मुझे
विश्वप्रसिद्ध फिल्मकार-लेखक सत्यजीत रे पर पहला अध्याय लिखा गया है जिसमें बॉबी सिंह ने उनसे जुड़ी कुछ भ्रांतियों पर चर्चा की है। सत्यजीत रे इकलौते भारतीय हैं जिन्हें चलचित्रों की दुनिया में उनके अद्भुत कौशल के लिए 'ऑस्कर लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड' दिया गया। साल 1992 में पुरस्कार की घोषणा के समय वे कलकत्ता के अस्पताल में बिस्तर पर थे। उन्हें हार्ट अटैक आया था।

सबसे दिलचस्प यह है कि सत्यजीत रे ने अपने करियर में सिर्फ दो उर्दू/हिंदी फिल्में बनाईं -शतरंज के खिलाड़ी और सद्गति। दोनों मुंशी प्रेमचंद की कहानियों पर आधारित थीं। उनकी पहली बांग्ला फ़िल्म 'पाथेर पांचाली' थी जिसे 1955 में बहुत सीमित बजट में बनाया गया था। इस फ़िल्म के लिए किशोर कुमार ने भी आर्थिक सहयोग किया था। यह फ़िल्म विश्व की सौ सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में शामिल है।

सत्यजीत रे ने फ़िल्म निर्माण से जुड़े हर विभाग में कार्य किया। संगीत निर्देशन और चित्रकारी भी की। कहानियाँ भी लिखीं जिन्हें आज भी खूब सराहा जाता है। अपने दादा की पत्रिका 'संदेश' को उन्होंने पुनर्जीवित किया। अपने अंतिम दिनों तक उससे जुड़े रहे। पत्रिका के लिए लेख, कहानियाँ, चित्र आदि का योगदान देते रहे।

पुस्तक में चर्चित फिल्म 'अंगूर' पर एक अध्याय लिखा गया है। दरअसल यह फिल्म 1982 में बनाई गई थी जिसे गुलजार द्वारा लिखा और निर्देशित किया गया था। फिल्म विलियम शेक्सपियर के नाटक 'द कॉमेडी ऑफ़ एरर्स' पर अधारित थी। लेखक ने पाठकों को 'अंगूर' और 'दो दूनी चार' देखने की सलाह दी है 'क्योंकि इस तरह एक खास विषय पर दो अलग लेखक-निर्देशकों के भिन्न दृष्टिकोण को समझने का एक नया अनुभव मिलता है।' 'दो दूनी चार' के निर्माता बिमल रॉय थे जबकि गीत और संवाद गुलज़ार ने लिखे थे। 'अंगूर' गुलजार की एकमात्र हास्य कृति है। गुलजार का शेक्सपियर के साथ जुड़ाव बाद में भी दिखाई दिया जब उन्होंने विशाल भारद्वाज की फिल्मों के लिए गीत लिखे।

अपने जमाने की चर्चित फिल्म 'गाइड' को अंग्रेजी और हिन्दी भाषाओं में बनाया गया था। अंग्रेजी में फिल्म का नाम 'द गाइड' रखा गया जो बुरी तरह फ्लॉप रही जबकि हिन्दी में फिल्म ने तहलका मचा दिया। शिकागो फिल्म फेस्टिवल में अभिनेत्री वहीदा रहमान को सर्वश्रेष्ठ नायिका का सम्मान मिला। 'गाइड' फिल्म आर.के. नारायण के मशहूर उपन्यास 'द गाइड' पर आधारित थी। हिंदी में फिल्म की पटकथा को नए सिरे से लिखा गया था क्योंकि फिल्म के अंग्रेजी संस्करण का हश्र बुरा हुआ था। 'गाइड' का अंग्रेजी संस्करण बिना गीतों वाला था। यह देवानंद की पहली रंगीन फिल्म भी थी। हिंदी और अंग्रेजी संस्करण का संगीत एस.डी. वर्मन ने दिया था।
इतना तो याद है मुझे

पुस्तक में देव आनंद की उस हॉलीवुड फिल्म 'द इविल विदिन' का भी जिक्र हुआ है जिसमें उन्होंने बतौर हीरो काम किया। उनके साथ जीनत अमान, प्रेमनाथ, इफ्तेखार आदि कलाकार भी थे। यश जौहर इस फिल्म में प्रोडक्शन कंट्रोलर थे। हालांकि ​फिल्म कोई कमाल नहीं दिखा पायी और विवादित कहानी बताकर इसे सेंसर बोर्ड ने भारत में रिलीज करने की इजाजत नहीं दी जबकि इसकी शूटिंग भारत में भी की गयी थी।

पुस्तक में उस गीत के विषय में भी बताया गया है जिसे लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी, किशोर कुमार और मुकेश ने एक साथ गाया था। के.ए. आसिफ का एक उपन्यास 'बॉबी-द कंप्लीट स्टोरी' प्रकाशित हुआ था। उसकी प्रस्तावना में लिखा है —'यह उपन्यास फिल्म से पहले लिखी पटकथा में बहुत ही कम काट छांट के साथ प्रकाशित किया गया है, जिसमें बाद में फिल्म की क्रिएटिव टीम द्वारा हिंदी सिनेमा को ध्यान में रखते हुए जरुरी बदलाव किए गए।' बाद में हिंद पॉकेट बुक्स से 'मेरा नाम जोकर' की पटकथा पर आधारित उनका उपन्यास प्रकाशित हुआ जिसके पहले पृष्ठ पर लिखा था —'उस जोकर के नाम, जो राज कपूर के दिल में रहता है।' कई दशक बाद 'बॉबी' और 'मेरा नाम जोकर' उपन्यास 2012 और 2014 में हार्पर कॉलिन्स ने पुनर्प्रकाशित किए।

अमिताभ बच्चन की शोहरत इतनी रही थी कि उनके नाम से कॉ​मिक सीरीज बाजार में आ गयी थी। 'द एडवेंचर ऑफ़ अमिताभ बच्चन' अंग्रेजी में और 'किस्से अमिताभ के' हिंदी में प्रकाशित किया गया। इसका अंक हर महीने आता था। यह लगातार दो साल तक प्रकाशित की गयी। 

पुस्तक में पाकीजा के उस गीत का भी जिक्र किया गया है जिसे बिना मीना कुमारी के शूट किया गया। साथ में पढ़े गुलजार की उस फिल्म के बारे में जो 80 के दशक में पूरी हो गयी थी जिसे आजतक अधिकृत तौर पर रिलीज ही नहीं किया गया। बीच-बीच में आस जगती रही, लेकिन रिलीज नहीं हो पायी।

लेखक बॉबी सिंह ने संगीतकार रवि पर एक खास अध्याय लिखा है जिसमें वे कहते हैं कि रवि को वह सम्मान नहीं मिल सका जिसके वे हकदार थे। उनका दिया संगीत अमर हो गया है जिसे हम आए दिन सुनते हैं। कुछ गीत देखें -'आज मेरे यार की शादी है', 'बाबुल की दुआंए लेती जा', 'ऐ मेरी जोहरा जबीं', 'दिल के अरमां आंसुओं में बह गए', 'चंदा मामा दूर के', 'चौदहवीं का चांद हो' आदि।

पुस्तक में 'वीर जारा' के उस गीत का भी जिक्र किया गया है जिसकी कंपोजिशन दशकों पहले मदन मोहन द्वारा कर ली गयी थी लेकिन उसे इस्तेमाल नहीं किया गया।

यह किताब इसलिए भी खास है कि यह हमें गुजरे खूबसूरत दौर की सैर कराती है। उस गीत-संगीत की वादियों में ले जाती है जहां मीठी-मीठी खुशबुओं से सराबोर हवाएं आने का अहसास होती है। उन बेहतरीन कलाकारों, फिल्मों के बीच हम खुद को पाते हैं जिनका अपना एक दौर था, अपनी एक दुनिया थी।

बॉबी सिंह ने जिस तरह से इस पुस्तक में तथ्यों को हमारे सामने रखा है, उसमें उनकी जितनी प्रशंसा की जाए कम ही होगी। उन्होंने फिल्मी दुनिया के किस्सों और कहानियों को बहुत श्रम के साथ एकत्र किया होगा और यह संकलन बताता है कि उनकी यह कोशिश सफल सिद्ध हुई है। यह किताब बेहद अच्छी तरह से लिखी गई है जिसे पढ़ने में आनंद आता है।

इतना तो याद है मुझे
लेखक : बॉबी सिंह 
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 192
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