आख्यान : गोंड जाति के कथा इतिहास का साक्ष्य

आख्यान : गोंड जाति के कथा इतिहास का साक्ष्य

गोंडवानी गायिकी में गोंड प्रदेश के गौरव तथा गोंड राजाओं के शौर्यपूर्ण युद्ध कौशल और उनके भव्य अतीत के विशुद्ध चित्रण मिलते हैं। इनमें गोंड राजाओं पेमलशाह, हिरदेशाह, बैहामारी, कुहीमांछा, बायोडंडी एवं हीराखान सिंह क्षत्रिय की वीर गाथाएं गायी जाती हैं। ये सभी गोंड क्षत्रिय राजा किसी इतिहास के पात्र से अधिक उनकी कल्पना के पात्र हैं। कुछ पात्रों के नाम इतिहास में भी मिलते हैं -पेमलशाह, हिरदेशाह आदि, किंतु उनके चरित्र मनगढ़ंत हैं। लोक कथा गायक पात्रों को स्वयं गढ़ लेता है। गोंड राजाओं की गाथाओं में वीरता के साथ-साथ श्रंगार का वर्णन अधिक मिलता है।

इस संकलन का परायण करने से गोंड प्रदेश में प्रचलित विभिन्न अनुष्ठानों, रीति रिवाजों, मेला बाजार और विवाह आदि की मनोरंजक विधियों का आभास सहज ही हो जाता है। इसके अतिरिक्त धर्म में प्रगाढ़ आस्था तथा धर्म-विमुखता से अथवा खंडित धार्मिक कृत्य से अमंगल होने की आशंका तथा उनकी मौलिक तथा तर्क पूर्ण ​​अभिव्यक्ति, आदिवासी लोक जीवन को एक विशेष कोण से प्रस्तुत करती है।

भाषा और भावों का गठन एवं प्रभोत्पादक गायन शैली से ओजपूर्ण युद्ध वर्णन निश्चित रुप से भारतीय संस्कृति को विशिष्ट गौरव प्रदान करता है।

परधान एक छोटी सी आदिम जाति के लोगों का समूह है। परधान गोंड जाति का अनुज है और उसका वृहद गोंड कुटुम्ब में विशेष स्थान है। परधान जाति के लोग मूलत: गायक हैं। इस जाति के लोगों ने सदा गोंड राजाओं की प्रशस्ति के ही गीत गाये हैं और इस तरह गोंडों के गौरवपूर्ण अतीत की याद ताजा रखी है। अपने गीत तथा कथाओं में अपनी गौरव गरिमा गाने के बजाय उसने सदा गोंडों का बखान किया है। इस प्रकार परधान एक प्रकार से गोंडों के चारण कवि कहे जा सकते हैं।
आख्यान : गोंड जाति के कथा इतिहास का साक्ष्य

इस पुस्तक में संकलित गाथाओं में गोंड राजाओं के विभिन्न प्रसंग उनके जीवन में अपने जातीय इतिहास की स्मृति की लौकिक प्रकृति, जो एक विशिष्ट जनजातीय जीवन और सांस्कृतिक परम्परा की छाया में अपने पुरखों का यशोगान करती है।

सदियों से परधान गायक गोंड यजमानों को, अपने देवताओं और चरितनायकों का यश, गाथा गाकर सुनाते आये हैं, जो उनकी जीविका भी है साथ ही उस स्मृति को सुरक्षित रखने और पीढ़ियों से हस्तांतरित करने की अपनी भूमिका का निर्वाह करते आये हैं जो वाचिकता में कभी रची गयी। यह वाचिकता में प्रवाहित जातीय स्मृति का गाथा इतिहास है। इस स्मृति से ही गोंड जनजाति की धार्मिक-आध्यात्मिक तथा सांस्कृतिक अस्मिता की पहचान स्थापित होती है। गाथा गायन वाचिक स्मृति के इतिहास और साहित्य के साथ एक संगीत परम्परा भी है। इतिहास की रचना का यह भी एक ढंग है। जब हम एक भारतीय काल इतिहास दृष्टि तथा इतिहास आलेखन पद्धति का आग्रह करते हैं तो हमारा आशय यही होता है कि हम अपनी स्थानिक इतिहास रचना की दृष्टि और रुपों पर फिर विचार करें। समय और इतिहास के अपने संदर्भ हमें अन्तत: अपनी परम्परा में ही मिलेंगे।

-कपिल तिवारी.

आख्यान
लेखक : डॉ. विजय चौरसिया 
प्रकाशक : आदिवासी लोक कला व तुलसी साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद्