अंशुमान तिवारी की पुस्तक 'उलटी गिनती' और विनोद कापड़ी की पुस्तक '1232 Km.' साल 2021 की सबसे चर्चित किताबों में शामिल हैं।
उलटी गिनती / अंशुमान तिवारी
कोविड महामारी ने भारतीय अर्थव्यवस्था को ऐसे समय तहस-नहस कर दिया जब यह पहले से ही गहरे ढाँचागत मन्दी से जूझ रही थी। करोड़ों लोगों के रोजगार गँवा देने और उनके सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गाँव लौटने के बीच शेयर बाजार न केवल तेजी से पटरी पर लौटा बल्कि जल्दी ही ऊँचाइयों पर पहुँच गया।
बेहद सख्त लॉकडाउन थोपे जाने का सिलसिला शुरू होने के एक साल बाद, ‘उलटी गिनती’ इस आपदा के आर्थिक परिणामों/प्रभावों की समझ बनाने की कोशिश करती है और इसकी पड़ताल करती है कि क्या भारत सुधार-प्रक्रिया की कुछेक अहम उपलब्धियों यानी प्रतियोगिता और गरीबी में तेज गिरावट को, उलटने के करीब है।
भारत के लिए समय तेजी से निकलता जा रहा है। यहाँ तक कि बढ़त के सर्वोत्तम सालों के दौरान, भारत पर्याप्त रोजगार पैदा करने या मानव विकास की दिशा में ठोस प्रगति करने में विफल रहा। अब जनसांख्यिकी लाभांश के दौर के अन्तिम दशक में, भारत की अर्थव्यवस्था को दोबारा गति देने के लिए एक साहसिक नजरिए की जरूरत है।
‘उलटी गिनती’ सतत सुधार के लिए एक खाका पेश करती है जो भारत को तेज बढ़त की पटरी पर वापस ला सकता है और न्यूनतम सम्भव समय में उसकी युवा आबादी के लिए करोड़ों रोजगार पैदा कर सकता है।
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1232 Km. / विनोद कापड़ी
कोरोना के कारण 2020 में घोषित लॉकडाउन ने करोड़ों भारतीयों को अकल्पनीय त्रासदी का सामना करने के लिए विवश कर दिया। नगरों-महानगरों में कल-कारखानों पर ताले लटक गए; काम-धन्धे रुक गए और दर-दुकानें बन्द हो गईं। इससे मजदूर एक झटके में बेरोजगार, बेसहारा हो गए। मजबूरन उन्हें अपने गाँवों का रुख करना पड़ा। उनका यह पलायन भारतीय जनजीवन का ऐसा भीषण दृश्य था, जैसा देश-विभाजन के समय भी शायद नहीं देखा गया था। लॉकडाउन के कारण आवागमन के रेल और बस जैसे साधन बन्द थे, इसलिए अधिकतर मजदूरों को अपने गाँव जाने के लिए डेढ़-दो हजार किलोमीटर की दूरी पैदल तय करनी पड़ी। कुछेक ही ऐसे थे जो इस सफर के लिए साइकिल जुटा पाए थे।
यह किताब ऐसे ही सात प्रवासी मजदूरों की गाँव वापसी का आँखों देखा वृत्तान्त है। उन्होंने दिल्ली से सटे गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश) से अपना सफ़र शुरू किया, जहाँ से सहरसा (बिहार) स्थित उनका गाँव 1232 किलोमीटर दूर था। उनके पास साइकिलें थीं लेकिन उनका सफ़र कतई आसान नहीं था। पुलिस की पिटाई और अपमान ही नहीं, भय, थकान और भूख ने भी उनका कदम-कदम पर इम्तिहान लिया। फिर भी वे अपने मकसद में कामयाब रहे।
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