भारत के जाँबाज : भारतीय सेना के अदम्य साहस की कहानियाँ

भारत के जाँबाज : भारतीय सेना के अदम्य साहस की कहानियाँ

भारतीय सेना के प्रशंसकों के लिए यह सर्वोत्तम और पठनीय पुस्तक है। क्या आपने कभी सोचा है कि एक सैनिक का जीवन कैसा होता है? ‘भारत के जाँबाज’ भारतीय सेना के सबसे जाने-माने अधिकारियों में से एक की ओर से किया गया बेहद अनूठा वर्णन है।

पुस्तक में जान की बाजी लगानेवाले अभियानों और साहसिक सर्जिकल स्ट्राइक की हैरतअंगेज कहानियाँ हैं। जंग लड़नेवाले सैनिक कितने कठोर प्रशिक्षण से गुजरते हैं; एल.ओ.सी. पर जीवन कैसा होता है, और कैसे होते हैं वे जवान, जो अपने देश के लिए सर्वोच्च बलिदान देते हैं—इनका अत्यंत प्रेरक और रोचक विवरण इस पुस्तक में प्रस्तुत है।

इस पुस्तक में आप भारतीय सेना और हमारे शूरवीर जवानों को इतना करीब से देखेंगे जितना पहले कभी नहीं देखा होगा। भारतीय सैनिकों के अदम्य साहस, अप्रतिम त्याग-समर्पण और अद्भुत जिजीविषा का सजीव वर्णन करती पुस्तक, जो हर भारतीय को राष्ट्रप्रेम के लिए प्रेरित करेगी।

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मेरी उम्र दस या ग्यारह साल की रही होगी, जब मैंने तय किया था कि मैं भारतीय सेना में जाऊँगा। सोलह-सत्रह साल की उम्र में जब मुझे नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) में प्रवेश के लिए कॉल लेटर मिला, तब तक मैं एक मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले चुका था। इसलिए मैंने एम.बी.बी.एस. का पहला सेमेस्टर पूरा करते हुए घर आकर अपने माता-पिता से बात की। मैंने अपने माता-पिता को इस बात के लिए मना लिया कि वे मुझे मेडिकल की पढ़ाई छोड़कर सेना में जाने की अनुमति दे दें। मुझे इस बात का कभी कोई पछतावा नहीं रहा।

मैंने एकेडमी में यथोचित प्रदर्शन किया, कमांडो इंस्ट्रक्टर बना और अंततः सेना में लेफ्टिनेंट जनरल के पद से सेवानिवृत्त हुआ। इस दौरान मैंने आतंकवाद-विरोधी ऑपरेशनों में भी विशेषज्ञता हासिल कर ली थी। संभव है कि आपने मेरा नाम न सुना हो, लेकिन आपने उड़ी में हुए आतंकी हमले की जवाबी काररवाई के रूप में वर्ष 2016 में कश्मीर में की गई सर्जिकल स्ट्राइक के बारे में जरूर सुना होगा। कोर कमांडर के रूप में यह मेरा आखिरी ऑपरेशन था।

भारत के जाँबाज

मैंने सशस्त्र बलों को अपने जीवन के 29 साल दिए। इस दौरान तमाम सैन्य अभियानों में मैंने सफलता और असफलता दोनों का स्वाद चखा। कई बार ऐसा हुआ कि मौत मेरे बेहद करीब से होकर निकल गई, लेकिन मैं बच गया। दुर्भाग्यवश, मेरे कुछ प्रिय साथी इन अभियानों में वीरगति को प्राप्त हो गए। सेना में हमारे कई मित्र बने। यूँ कहिए कि सेना में हमारे अपने करीबियों की एक बिरादरी-सी बन गई। यही एक सैनिक की जिंदगी होती है। यही मेरी कहानी है।

मेरी कहानी भी सेना के एक ऐसे अधिकारी की कहानी है, जिसने यह सीखा कि एक सैनिक के रूप में कैसे रहना चाहिए, कैसे प्रशिक्षित करना चाहिए और फिर सिपाहियों के साथ युद्ध में कैसे जाना चाहिए। मैंने सीखा कि ऑपरेशन की योजना किस तरह से बनानी चाहिए, ताकि निर्दोष लोगों को कोई हानि न पहुँचे। सैनिकों का साहसपूर्वक नेतृत्व कैसे किया जाए, स्पष्ट राह नजर न आने पर भी निर्णय कैसे लिया जाए और अपने डर को कैसे जाहिर न होने दिया जाए। मैं हमेशा कहता हूँ—आतंकवाद का मुकाबला करना सबसे कठिन ऑपरेशन होता है। यह गोलियों के साथ शतरंज खेलने जैसा होता है, जहाँ शह और मात का खेल वास्तविकता में होता है।

हर इन्फैंट्री ऑफिसर की ख्वाहिश होती है कि वह उसी यूनिट का सी.ओ. बने, जिसमें उसकी कमिशनिंग हुई थी और वह चाहता है कि लड़ाई में वह अपने सैनिकों का नेतृत्व करे। मुझे वर्ष 1998 की गरमियों में ये दोनों सौभाग्य मिले। उस साल मुझे कर्नल के पद पर पदोन्नत किया गया और 8 जम्मू व कश्मीर लाइट इन्फैंट्री (सियाचिन) की अपनी बटालियन के कमांडिंग ऑफिसर (सी.ओ.) के रूप में नियुक्त किया गया। इस बटालियन को ‘ब्रेवेस्ट ऑफ द ब्रेव’ का आधिकारिक सम्मान प्राप्त है। हमारी यूनिट की तैनाती जम्मू व कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पार, ऑपरेशन की दृष्टि से बहुत ही सक्रिय इलाके में थी।

यह मेरे सैन्य जीवन से जुड़ी कहानियों का संग्रह है, जिनमें ज्यादातर कहानियाँ तब की हैं, जब मैं सी.ओ. के पद पर था। इसमें ऑपरेशन, जोखिम, ऑपरेशन में जिंदगी का बाल-बाल बच जाना, बहादुर सहकर्मियों की कहानी और एक सिपाही के जीवन के तमाम अनदेखे पहलू, जिनमें कठोर प्रशिक्षण से लेकर बेहतरीन अस्पतालों तक की कहानियाँ शामिल हैं—सबका जिक्र किया गया है। ये अस्पताल सुनिश्चित करते हैं कि एक सैनिक फिर से युद्ध के मैदान में लौट सके और देश-सेवा कर सके।

अपने सी.ओ. के कार्यकाल के दौरान मैंने जीवन के कई महत्त्वपूर्ण पाठ, रणनीति और सहानुभूति की बातें सीखीं। इन अनुभवों ने मुझे कई बार भावनात्मक रूप से बेहद संवेदनशील बना दिया तो कई बार बेहद ही निर्मम। इसके अलावा, इन अनुभवों ने मुझे अपने सैनिकों एवं ईश्वर पर भरोसा करना सिखाया और सकारात्मक सोच की शक्ति को पहचानना सिखाया। इन सबसे ऊपर, इसने मुझे यह सिखाया कि स्पष्ट राह नजर न आने के बावजूद किस तरह से फैसले लेने चाहिए। मुझे खुशी है कि मेरे अधिकारियों, मेरे सैनिकों और मेरी अंतःवृत्ति ने मुझे कभी निराश नहीं किया।

-लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ (सेवानिवृत्त).

भारत के जाँबाज : भारतीय सेना के अदम्य साहस की कहानियाँ 
लेखक : लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 224
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