स्त्रियों के मुद्दे समझ के भी मुद्दे हैं। उन्हें हम समाज के दूसरे हिस्से वाला नहीं कह सकते। जब हम सपना सिंह की कहानियों को पढ़ते हैं, तो हमें स्त्रियों की दुनिया के अलग-अलग रंग पता चलते हैं। हम उन स्त्रियों को जानते हैं या हमारे आसपास ऐसा कुछ घटित हो रहा होता है, जो सपना जी अपनी कहानियों के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश कर रही हैं। उनकी कहानी स्त्री की कहानी है। उनकी कहानी कई बार गहरी बात सरलता से कह देती है, कभी कुछ ऐसे सवाल खड़े कर देती है जिनके लिए बहुत गंभीरता से विचार करने की जरूरत महसूस की जा सकती है। उनके केंद्र में स्त्री है, और उनकी कहानियाँ आम जीवन की कहानियाँ हैं जिनमें प्रेम, घृणा, उत्साह, दुःख, आदि भावों का समावेश है।
पुस्तक की एक कहानी जो सबसे लंबी है, 'अपनी सी रंग दीन्ही रे', जिसके नाम पर पुस्तक का शीर्षक भी है, में सपना सिंह ने स्त्री-जीवन के अलग-अलग भावों आदि को बहुत सूक्ष्मता से प्रस्तुत किया है। सूचि का जीवन विभिन्न आयामों से होकर गुज़रा है। और एक दिन वो अलविदा कह जाती हैं। कई सवाल जो ज़िन्दगी से पूछे जाने चाहिए, यह कहानी उन्हें सामने लाती है। कुछ गहरे, कुछ उथले पक्ष उजागर करती है। इस कहानी में एक जगह सपना जी लिखती हैं - 'मात्र सांस चलना ही जीवित होना नहीं होता।'
'बहुत से कुछ ज्यादा', 'पवित्रा', 'एक नयी कशमकश' आदि कहानियाँ स्त्रियों के आसपास घूमती हैं। उनके जीवन की दुनिया के हिस्सों को बहुत ही रोचकता और विचारपूर्ण ढंग से प्रस्तुत करती हैं।
परिवार, रिश्ते, समाज के लोग सब मिलकर एक घेरा बना लेते हैं। उसमें बहुत कुछ नया-पुराना घटता है। जीवन ऐसे ही चलता है। उसे समझना जरूरी है। सपना सिंह की यह पुस्तक उस घेरे की कहानियों को अपने अंदाज़ में प्रस्तुत कर रही हैं, जिन्हें आज जरूर पढ़ा जाना चाहिए। पुस्तक का प्रकाशन किया है शिवना प्रकाशन ने।
अपनी सी रंग दीन्ही रे
लेखक : सपना सिंह
प्रकाशक : शिवना प्रकाशन
पृष्ठ : 96