टीचर्स : दुनियादारी के पेड़ पर सफलता के फल सही मात्रा में लग सकते हैं

टीचर्स : दुनियादारी के पेड़ पर सफलता के फल सही मात्रा में लग सकते हैं

यह पुस्तक मेरी एक कल्पना है, लेकिन इसका उद्देश्य यह समझने का प्रयास भी है कि आज के समाज में मनुष्य को जीवन जीने के लिए क्या गुण चाहिए और वे क्यों चाहिए। मनुष्य जीवन जीते हुए आज की 21वीं सदी में हम बहुत आगे बढ़ते जा रहे हैं, शायद इतना आगे कि सामान्यतः मनुष्य के फर्ज को भूल ही चुके हैं। पैसा कमाने का एक महान् भूत हमारे मन-मस्तिष्क पर सवार तो हो गया है, पर उसके लिए हम मानवीय गुणों को भूल चुके हैं। ‘टीचर’ हमारे समाज में सबसे अधिक महान् पात्र हैं। कहा जाता है कि फसल वैसी ही होती है, जैसा बीज बोया जाए, उस बीज को बोने का मूलभूत कार्य शिक्षक के कंधों पर होता है, अगर वह काम सही से किया गया और सही रास्ते से किया गया तो दुनियादारी के पेड़ पर सफलता के फल सही मात्रा में लग सकते हैं।

लोग कहते हैं कि हर आदमी को जीवन में आगे बढ़ने के लिए कोई-न-कोई टैलेंट चाहिए, मगर मेरा कहना है कि TEACHERS शब्द के आठ अक्षरों में छुपी आठ सामान्य बातें, जिन्हें अपनाकर हम आगे बढ़ते हैं तो कोई भी टैलेंट नहीं होने पर भी हम जीवन में कामयाब हो सकते हैं।

मैंने आज तक जिन जीवन-चरित्रों का अभ्यास किया है, उनमें श्रीकृष्ण, श्रीराम, पांडुरंग शास्त्री, जैफ केलर, हेल एलर्ट, स्टीव जॉब्स, वॉरेन बफे, सचिन तेंदुलकर, महात्मा गांधी, धीरूभाई अंबानी, डॉ. राधाकृष्णन, सरदार पटेल, हेलन केलर, नेल्सन मंडेला, स्वामी विवेकानंद, नरेंद्र मोदी और अमिताभ बच्चन...जैसे कई महानुभावों के जीवन से भी मुझे कई बातें समझ में आईं और मैंने उन्हीं बातों को प्रस्तुत करने का प्रामाणिक प्रयास किया है।
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‘टीचर’ का मतलब होता है-शिक्षक, जो समाज की धरोहर है। भारत के इतिहास में अगर हम देखते हैं तो कई पात्र ऐसे हैं, जो हमें कुछ-न-कुछ सिखाकर गए या हमें उनके जीवन से कुछ सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। भारत अवतार और ऋषि-मुनियों की भूमि है, जहाँ पर राम और कृष्ण जैसे अद्भुत और अद्वितीय अवतारों ने जन्म लिया; जहाँ वाल्मीकि, याज्ञवल्क्य, पराशर, वसिष्ठ जैसे महान् ऋषियों ने जन्म लिया। जहाँ पर स्वामी विवेकानंद, चाणक्य, पांडुरंग शास्त्री, प्रमुख स्वामी महाराज, महर्षि अरविंद, रवींद्रनाथ टैगोर जैसी महान् विभूतियों ने जन्म लिया। भारत के संत हों या अवतार, विभूति हों या महापुरुष, हर किसी का जीवन ऐसा था कि सिर्फ उनके अध्ययन मात्र से अपना जीवन सँवारा जा सकता है।

भगवान् राम के जीवन से हमें एक पत्नीव्रता, पिता का आदर, भाई का प्यार, समाज की सुरक्षा जैसी कई जीवनोपयोगी बातों की सीख प्राप्त हुई है। श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के दौरान ‘भगवद्गीता’ का संदेश देकर पूरी दुनिया को अंधकार से उजाले की ओर लाने का प्रयास किया। नीति शास्त्र को चाणक्य जैसी विभूति ने शोभायमान किया। विश्व धर्म परिषद् में दोनों बार एक-एक भारतीय तत्त्ववेत्ता, स्वामी विवेकानंद और पांडुरंग शास्त्रीजी ने विश्व भर में भारतीय संस्कृति का नाम ऊपर किया और भगवद्गीता जैसे महान् ग्रंथ को विश्व के सामने समग्र मानवजाति का उद्धार करनेवाले वैश्विक ग्रंथ के स्वरूप में पेश किया। ऐसी अनगिनत विभूतियाँ भारतभूमि पर जनमी, जिनके जीवन-परिचय से ही हमें प्रेरणा मिलती रही है।

ये बातें ऐसे लोगों की थीं, जिनके जीवन से हमें सीख मिलती है, अब बात करते हैं ऐसे शिक्षकों की, जो एक शिक्षक बनकर दुनिया भर में प्रसिद्ध हुए और सच्चे शिक्षक की अनुभूति उन्होंने दुनिया को कराई।

शिक्षा एक सराहनीय चीज है, पर समय-समय पर यह बात याद कर लेनी चाहिए कि ऐसा कुछ भी, जो जानने योग्य है, उसे सिखाया नहीं जा सकता। -ऑस्कार वाइल्ड.
दुनियादारी के पेड़ पर सफलता के फल सही मात्रा में लग सकते हैं

एक छोटी सी कहानी है

दक्षिण भारत के एक छोटे से गाँव में एक बच्चे की माँ अपने बेटे की कुंडली लेकर गाँव के पंडितजी के पास गई। उसे आशा थी कि उसका बेटा पढ़-लिखकर बहुत बड़ा आदमी बने और देश का नाम रोशन करे; पर पंडितजी ने कुंडली देखकर कहा कि इस बच्चे के नसीब में पढ़ाई है ही नहीं, पढ़ाई-लिखाई की रेखा ही नहीं है, यह बच्चा कभी पढ़ेगा नहीं। घर आकर माँ तो रोने लगी, उसे बहुत दुःख हुआ। बेटा घर पर आया और माँ को रोता देख उससे रोने का कारण पूछा, तो माँ ने बताया कि पंडितजी ने कहा है कि तेरी कुंडली में पढ़ने की रेखा ही नहीं है, जबकि मैं तो चाहती थी कि तू पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बन जाए। बेटे ने रसोई में जाकर एक चाकू लिया और चाकू से अपनी हथेली पर पढ़ने की रेखा बना दी, हाथ लहू से भर गया और फिर माँ से बोला, “माँ, तू बोलती थी न कि पंडित ने बोला है कि मेरे हाथ में पढ़ने की रेखा नहीं है, अब तू शांत हो जा, मैंने अपने आप ही वह रेखा हाथ में बना ली है।” और बाद में वह बच्चा मन लगाकर पढ़ने लगा। स्कॉलरशिप लेकर उसने वर्थिस कॉलेज, वेल्लूर में पढ़ाई की, फिर मद्रास कॉलेज से एम.ए. की डिग्री हासिल की। जब वह बीस साल का हुआ, तो उसका ‘एथिक्स ऑफ वेदांत’ का थीसिस प्रकाशित हुआ। कोई उसकी प्रगति को रोक नहीं सका। वह मद्रास यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर बना, बाद में मैसूर यूनिवर्सिटी का प्रोफेसर, फिर आगे जाकर वह मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी में शामिल हुआ और ऑक्सफोर्ड एवं हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों को शिक्षा प्रदान की। भारत वापस लौटने के बाद आंध्र यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर और फिर बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर के पद को शोभायमान किया। वह आदमी और कोई नहीं, बल्कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. राधाकृष्णन थे, जिनको भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था। जिनके जन्मदिन पर हम लोग ‘शिक्षक दिवस’ मनाते हैं। इनसान अगर चाहे तो अपने भाग्य की रेखा अपने आप बना सकता है, यह इस बात का श्रेष्ठ उदाहरण है।

डॉ. राधाकृष्णन के बाद ऐसे ही एक और महान् शिक्षक भारत की भूमि पर पैदा हुए और वे भी राष्ट्रपति बने, वे हैं डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम। उन्हें भी ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया था। अब्दुल कलाम अखबार वितरण करके अपनी पढ़ाई करते थे। इन्हें भारत का ‘मिसाइल मैन’ भी कहा जाता है। जीवन के अंत तक वे अपने शिक्षक होने का प्रभाव भूले नहीं थे। जब वे राष्ट्रपति बने, तब शायद वे ऐसे पहले राष्ट्रपति थे, जिनको अगले दिन तक पता नहीं था कि वे निर्विवाद चुने गए। वे किसी भी राजकीय प्रवृत्ति में शामिल नहीं थे।

ऐसे ही एक महान् व्यक्ति थे, रवींद्रनाथ टैगोर। जिन्होंने खुद किसी स्कूल-यूनिवर्सिटी से डिग्री हासिल नहीं की थी, फिर भी वे आज तक हमारे देश में एक ही इनसान हैं, जिन्हें लिटरेचर में नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ है।

उन्होंने अपने नोबेल पुरस्कार की रकम से स्कूल और यूनिवर्सिटी की स्थापना की और केवल डिग्रीवाली शिक्षा पर ध्यान न देते हुए संगीत, नाट‍्य, पेंटिंग आदि में विद्यार्थियों को प्रोत्साहित किया।

ऐसे ही शिक्षा की दुनिया में महान् कार्य करते हुए 19वीं सदी में सावित्रीबाई फुले और 20वीं सदी में आचार्य विनोबा भावे बहुत बड़ी हस्तियाँ थीं। भारत ऐसा देश है, जहाँ विभूतियों के नाम गिने जाएँ तो गिननेवाले थक जाएँगे, नाम खत्म नहीं होंगे।

शिक्षा का अर्थ है वह जानना, जो आपको पता भी नहीं था कि वह आपको पता नहीं था। -डेनियल जे. बूस्तिन
शिक्षा का अर्थ है जानना

आज के दौर में दुनिया के प्रसिद्ध शिक्षक

वैसे तो ऐरिस्टोटल, अलबर्ट आइंस्टाइन, मार्क ट्वेन, हेलन केलर, बेला बर्तेक, खर्दिजा गयीबोवा, सत्यम, चाणक्य, विलियम गोल्डिंग, डेविड वेइकार्ट, युआन टेंग्फुई, ग्राहम बेल...यह सब नाम ऐसे हैं कि जो दुनिया के एक जमाने के श्रेष्ठ शिक्षक माने जाते हैं, पर हम तो अभी 21वीं सदी में जी रहे हैं तो यह भी देख लेते हैं कि आज के जमाने में श्रेष्ठ शिक्षक कौन हैं और क्यों हैं...? दुनिया के श्रेष्ठ शिक्षकों के लिए 2015 से ‘वार्की फाउंडेशन’ के द्वारा एक अवार्ड दिया जा रहा है, जिसका नाम है-‘ग्लोबल टीचर्स प्राइज’। शिक्षा के लिए जीनियस काम करनेवाले व्यक्ति को हर साल यह अवार्ड मिलता है, जिसकी धनराशि एक मिलियन डॉलर है। इसको शिक्षा की दुनिया का नोबेल पुरस्कार भी माना जाता है, जो 2015 में अमेरिका की नेंसी आट्वेल को, 2016 में पेलेस्टाइन से हनन अल होराब को, 2017 में साल्युट-केनेडा से मेग्गी मेकडोनेल को और 2018 में लंदन से एंड्रीया जफिराकू को मिला। लास्ट इवेंट में भारत के भी दो शिक्षक नॉमिनेट हुए थे।

शिक्षा का उद्देश्य है-लोगों के जीवन को उन्नत बनाना और समाज व दुनिया को कुछ बेहतर बनाकर जाना। -मैरियन राइट एडलमैन
मैरियन राइट एडलमैन

आज के दौर में भारत के प्रसिद्ध शिक्षक

भारत में सिर्फ पहले के जमाने में ही सही शिक्षक थे, ऐसा बिल्कुल नहीं है, बल्कि आज भी कई जगहों पर ऐसे लोग नजर आते हैं, जो अपनी जेब और सुख की चिंता किए बिना, समाज के अनपढ़ लोग पढ़ाई-लिखाई कर कैसे आगे बढ़ें, उसकी चिंता करते हैं और न सिर्फ चिंता, बल्कि इसके लिए प्रयत्न भी करते हैं। ‘सुपर-30’ नाम से एक फिल्म हाल ही में हमारे सामने आई थी, जिसमें ऐसे ही एक शिक्षक आनंद कुमार का जिक्र है। पटना, बिहार के आनंद एक ऐसे अजायबी हैं, जिन्होंने ऑक्सफोर्ड तक और आई.आई.एम. तक जाकर नहीं पढ़ सकते, ऐसे विद्यार्थियों के लिए आई.एस. और आई.पी.एस. की तैयारी करते लोगों को जी-जान से मदद करके उसको सफल बनाने का मकसद हाथ में लिया। आज अनगिनत संख्या में विद्यार्थियों को सफल होने का मंत्र सिखाया है। झारखंड के राँची में आदित्य कुमार नामक एक आदमी ने सिर्फ अपने हौसले और अपनी साइकिल के दम पर गाँव-गाँव जाकर स्कूल नहीं जा सकनेवाले हजारों बच्चों को शिक्षा प्रदान की। दिल्ली में राजेश कुमार शर्मा नाम के एक शख्स ने 2007 में सिर्फ दो बच्चों को यमुना बैंक मेट्रो पिलर के नीचे बैठकर पढ़ाना शुरू किया था, आज वहाँ पर 200 से अधिक गरीब बच्चे खुशी-खुशी पढ़ रहे हैं। विप्रो जैसी कॉरपोरेट कंपनी में काम करनेवाली एक महिला रोशनी मुकर्जी, जो स्कूल में शिक्षकों द्वारा दी जा रही साइंस की शिक्षा के मैथेड से नाराज थी, उन्होंने सिर्फ नाराज न रहकर काम शुरू किया और नौवीं से 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों के लिए सरल तरीके से साइंस के कठिन विषयों पर अपनी वीडियो तैयार की और यूट‍्यूब पर प्रसारित किया। जिनके आज 75,000 से भी ज्यादा सब्सक्राइबर हैं और आज तक 4,000 के आसपास वीडियो उन्होंने बना लिये हैं।

ये हैं हमारे देश के सपूत, जिन पर हमको नाज होने के साथ उनके जीवन से, उनकी सोच और मेहनत से हमें कुछ सीखना भी चाहिए।

-संजय राय ‘शेरपुरिया’.

टीचर्स 
लेखक : संजय राय ‘शेरपुरिया’
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 72
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