राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 : भारतीयता का पुनरुत्थान

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 : भारतीयता का पुनरुत्थान

यह पुस्तक भारतीय शिक्षा की समकालीन प्रवृत्तियों एवं चुनौतियों के आलोक में राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की विभिन्न संस्तुतियों का आकलन प्रस्तुत करती है। इस पुस्तक का प्रतिपाद्य है कि शिक्षा को संस्कृति से अलग करके नहीं देखा जा सकता है। इसी अर्थ में भारत की शिक्षा के लक्ष्यों को व्याख्यायित करने और इसकी पुनर्संरचना करने की आवश्यकता है। नई शिक्षा नीति इसी लक्ष्य की पूर्ति करती है। पुस्तक के आरंभ में भारतीय समाज और शिक्षा के संबंधों की ऐतिहासिक व सांस्कृतिक विवेचना प्रस्तुत की गई है। तदुपरांत आरंभिक बाल्यवास्था की शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक के लिए अपेक्षित विभिन्न सुधारों का विश्लेषण किया गया है। इस पुस्तक में कृषि शिक्षा, प्रबंधन शिक्षा, दूरस्थ शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा और शोध जैसे आयामों को भी सम्मिलित किया गया है। भविष्य के भारत के लिए शिक्षा की भूमिका को रेखांकित करते हुए इस पुस्तक के विभिन्न अध्याय राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 की संस्तुतियों के क्रियान्वयन संबंधित सूत्रों को भी प्रस्तुत करते हैं।

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राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 देश भर में, विशेष करके शिक्षा क्षेत्र में व्यापक चर्चा का विषय बनी है। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास आरंभ से ही शिक्षा नीति पर कार्य कर रहा है। न्यास का लक्ष्य है-‘शिक्षा में नया विकल्प देना’; इस हेतु वर्ष 2008 से ही देश भर में चर्चा प्रारंभ कर दी गई थी। इस क्रम में प्रथम लेख दिनांक 4 फरवरी, 2011 को मैंने लिखा था और वह ‘कमल संदेश’ के विशेषांक में छपा था। वर्ष 2016 में शिक्षा में नए विकल्प पर एक छोटी पुस्तिका छापी गई और उस पर देश के शैक्षिक संस्थानों में व्यापक चर्चा आयोजित करके सुझाव लेने का कार्य किया गया। जब वर्ष 2015 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने नई शिक्षा नीति की घोषणा करके उच्च शिक्षा के 20 एवं विद्यालयीन शिक्षा के 13 बिंदु वेबसाइट पर रखकर देश भर से सुझाव माँगे, तब शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के द्वारा देश भर में 35 संगोष्ठियाँ आयोजित की गईं, जिनमें 5 हजार से अधिक शिक्षकों व शिक्षाविदों ने सहभागिता की थी। इन संगोष्ठियों से प्राप्त सुझाव एवं न्यास के द्वारा शिक्षा में नए विकल्प हेतु तैयार किए गए बिंदुओं को जोड़कर तत्कालीन मंत्रालय द्वारा गठित ‘सुब्रमण्यम समिति’ को एक प्रतिनिधि मंडल के स्वरूप में मिलकर सुझाव दिए गए थे। इसके पश्चात् ‘कस्तूरीरंगन समिति’ का गठन हुआ और उन्होंने भी देश भर से सुझाव माँगे। न्यास ने सुब्रमण्यम समिति के प्रस्तुत प्रारूप का अध्ययन करके इनमें जिन बातों का अभाव था, उनको ध्यान में रखकर पुनः सुझाव दिए। कस्तूरीरंगन समिति को विभिन्न रूपों में दो बार प्रत्यक्ष भेंट करके भी कई विषयों की संदर्भ सामग्री के साथ सुझाव दिए गए। पुनः कस्तूरीरंगन समिति के प्रारूप पर भी मानव संसाधन विकास मंत्रालय के द्वारा सुझाव माँगे गए, तब उस प्रारूप का अध्ययन करके आवश्यक सुझाव माननीय मंत्री महोदय को मिलकर दिए गए।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा 29 जुलाई, 2020 को की गई। इस नीति का देश भर में स्वागत किया गया। शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा दिए गए सुझावों में से अधिकतर सुझावों का समावेश इस नीति में किया गया है। यह न्यास के लिए अत्यंत आनंद एवं गौरव का विषय है। स्वतंत्र भारत की यह तीसरी शिक्षा नीति है। प्रथम नीति वर्ष 1968 में, दूसरी नीति 1986 में एवं तीसरी नीति 2020 में प्रस्तुत की गई है। इसी प्रकार शिक्षा में सुधार एवं परिवर्तन हेतु 1948 में राधाकृष्ण आयोग, 1952 में मुदलियार आयोग, 1964 में कोठारी आयोग के साथ-साथ, समय-समय पर कई समितियों, समूहों आदि का गठन किया गया था, उन्होंने कई अच्छी अनुशंसाएँ भी दी थीं। परंतु दुर्भाग्य से इच्छाशक्ति के अभाव में इनको क्रियान्वित नहीं किया जा सका या बहुत अल्प मात्रा में किया गया, जिस कारण से हमारी शिक्षा की गुणवत्ता दिनोदिन खराब होती गई। अतीत के इन अनुभवों को ध्यान में लेकर शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास ने नीति घोषित होने के तुरंत बाद राष्ट्रीय एवं प्रांतीय स्तर पर क्रियान्वयन समिति गठित करने का निर्णय करके राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात वैज्ञानिक डॉ. विजय भाटकर की अध्यक्षता में उच्च शिक्षा एवं विद्यालयीन शिक्षा हेतु दो समितियों का गठन किया। इसी प्रकार राज्यों के स्तर भी इस प्रकार की क्रियान्वयन समितियाँ गठित की गईं। इन समितियों का प्रमुख कार्य सरकारों सहित विभिन्न शैक्षिक संस्थानों को क्रियान्वयन हेतु सुझाव देना एवं सहयोग करना है।

क्रियान्वयन समितियों के गठन के साथ-साथ देश भर में संगोष्ठियाँ एवं वेबिनारों के आयोजन प्रारंभ किए गए। मुझे यह जानकारी देते हुए हर्ष हो रहा है कि न्यास के द्वारा शिक्षा नीति की समग्रता से लेकर नीति के विभिन्न आयाम, उदाहरण के लिए—उच्च शिक्षा, विद्यालयीन शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, नीति एवं भारतीय भाषाएँ, नीति एवं भारतीय ज्ञान परंपरा आदि विषयों पर विमर्श आयोजित किए जा चुके हैं। इस नीति में बहुत सारे नए विषय भी हैं, जिनको क्रियान्वित करने से पूर्व समझना आवश्यक मानकर न्यास ने बहुविषयक (मल्टी डिस्प्लनरी एप्रोच), राष्ट्रीय अनुसंधान प्रतिष्ठान, समग्रता (होलेस्टिक) की दृष्टि और शिक्षक-शिक्षा में नए आयाम आदि विषयों पर भी विमर्श आयोजित किए। कुल मिलाकर विगत एक वर्ष में 300 से ज्यादा कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास परोक्ष रूप से अधिक कार्य करता है। इस दृष्टि से नीति घोषित होने के पश्चात् क्रियान्वयन योजना हेतु  मा. प्रधानमंत्री, मा. शिक्षा मंत्री, राज्यों के मा. राज्यपाल एवं शिक्षा मंत्रियों को तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) अ.भा.त.शि.प. (AICTE) आदि केंद्रीय संस्थानों के प्रमुखों एवं देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति, भा.प्रौ.सं. (IIT), रा.प्रौ.सं. (NIT), भा.सु.प्रौ.सं. (IIIT) आदि के निदेशकों को पत्र लिखे गए थे। आनंद की बात यह है कि बहुत लोगों ने सकारात्मक प्रतिसाद भी दिए। कुलपतियों एवं निदेशकों को तो नीति की घोषणा के एक वर्ष पूर्ण होने के संदर्भ में भी पत्र लिखे गए हैं। इनमें से बहुत सारे संस्थानों ने नीति के संदर्भ में अपने-अपने स्तर पर एवं न्यास के साथ मिलकर कार्यक्रमों के आयोजन भी किए।

इसी प्रकार न्यास के कार्यकर्ताओं एवं शिक्षाविदों ने उपर्युक्त आयामों पर लेख भी लिखे, जो कई समाचार-पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित होकर चर्चित हुए। इसी क्रम में चिह्नित किए हुए कुछ लेखों का संकलन इस पुस्तक में किया गया है। इस पुस्तक के अध्ययन से आपको ध्यान में आएगा कि जो लेख लिखे गए हैं, वे मात्र शिक्षा नीति या उनके आयामों की जानकारी देने तक सीमित नहीं हैं बल्कि इनके पीछे नीति-नियंताओं की सोच क्या है, उन विषयों की आवश्यकता एवं उपयोगिता क्या है और इनका क्रियान्वयन कैसे किया जा सकता है; इस प्रकार समग्रता के चिंतन के आधार पर अधिकतर विद्वानों ने लेख लिखे हैं। मैं आशा करता हूँ कि यह पुस्तक ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020’ को समझने एवं क्रियान्वयन करने हेतु उपयोगी सिद्ध होगी।

-अतुल कोठारी
(राष्ट्रीय सचिव, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास)

राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 : भारतीयता का पुनरुत्थान 
लेखक : अतुल कोठारी
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 184
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