भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी भारत गणराज्य के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। वह भारतवासियों के हृदय में एक राष्ट्रवादी चिंतक, प्रखर वक्ता और साहित्यानुरागी राजनेता के रूप में प्रतिष्ठित हैं। उन्होंने अपने दीर्घकालिक राजनीतिक जीवन में भारतीय समाज और संस्कृति के बारे में गहन चिंतन किया है। उनकी राजनीतिक दृष्टि में भारतीयता रची-बसी हुई है। उनकी चिंतन-दृष्टि आज भी हमारे लिए मार्गदर्शन का कार्य करती है। इस पुस्तक में आदरणीय अटलजी के शिक्षा विषयक विचारों को संकलित कर प्रस्तुत किया गया है। यह पुस्तक हमें अटलजी के विचारों के माध्यम से समकालीन संदर्भों में शिक्षा के अर्थ, लक्ष्य, स्वरूप एवं भविष्य को समझने में सहयोग करती है। अटलजी के शिक्षा संबंधित विचारों में उनका लोकचिंतक रूप, समावेशी दृष्टि और भारत के उज्ज्वल भविष्य की परिकल्पना परिलक्षित होती है।
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वर्ष 2019 पूर्व प्रधानमंत्री स्व. श्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती के अवसर पर उनके शिक्षा संबंधित विचारों पर बोलने के लिए मुझे आमंत्रित किया गया। संकोच और विनम्रता के साथ मैंने इस निमंत्रण को स्वीकार तो कर लिया, लेकिन वास्तविक चुनौती थी एक उत्कृष्ट राजनेता, सृजनशील कवि और भारतीय मूल्यों के प्रतिनिधि लोक-चिंतक के शैक्षिक-चिंतन को खोजना, समझना और उस पर व्याख्यान देना। मुझे यह विश्वास था कि उनके दीर्घकालीन सार्वजनिक जीवन में दिए भाषणों और लेखों में इसे खोजा जा सकता है। उनके भाषण एवं लेख इस तथ्य के प्रमाण हैं कि भारतीय सनातन संस्कृति के आलोक में देश-सेवा और समाज-सेवा के द्वारा लोक कल्याण को साकार किया जा सकता है। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर भारतीय राजनीति को अपनी उपस्थिति से विशिष्ट बनाना हो या अपने भाषणों के माध्यम से आम आदमी से जुड़ना हो, भविष्य के भारत की आकांक्षाओं को राज्य की नीतियों में साकार करना हो या समावेशी विकास के लिए प्रतिबद्धता, ये बातें अटलजी के व्यक्तित्व एवं कृतित्व को विशिष्ट बनाती हैं। उनके नेतृत्व में भारत ने 21वीं सदी में कदम रखा। वर्तमान में हम जिन लोक कल्याणकारी सुधारों को देख रहे हैं, उनके मूल में अटलजी की भविष्योन्मुखी दृष्टि निहित है। 21वीं सदी के युवा भारत के लिए आत्मनिर्भरता का लक्ष्य, वैश्विक फलक पर भारत की सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने की आकांक्षा और समरसता पूर्ण राष्ट्र-जीवन का संकल्प, इन सबके शिल्पकारों में अटल बिहारी वाजपेयी का नाम अग्रणी है। इसे ही ध्यान में रखते हुए मैंने इस दुरूह चुनौती को स्वीकार किया, जिसका परिणाम यह पुस्तक है।
वर्तमान शिक्षा देश के युवकों को सही दिशा में नहीं ले जा रही है। वह उनके चरित्र का पूर्ण विकास नहीं कर रही है। वह देश की माटी से, संस्कृति से पीछे चली गई है। यह शिक्षा चरित्र का निर्माण नहीं करती, श्रम की प्रतिष्ठा नहीं करती। यह शिक्षा देशभक्त उत्पन्न नहीं करती।
शिक्षा व्यापार बन गई है। ऐसी दशा में उसमें प्राणवत्ता कहाँ रहेगी? उपनिषदों या अन्य प्राचीन ग्रंथों की ओर हमारा ध्यान नहीं जाता। आज विद्यालयों में छात्र थोक में आते हैं।
शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। व्यक्तित्व के उत्तम विकास के लिए शिक्षा का स्वरूप आदर्शों से युक्त होना चाहिए। हमारी माटी में आदर्शों की कमी नहीं है। शिक्षा द्वारा ही हम नवयुवकों में राष्ट्रप्रेम की भावना जाग्रत् कर सकते हैं।
अटलजी के भाषणों और लेखों को देखा जाए तो इनमें उनकी शिक्षा संबंधी दृष्टि भी उपस्थित है। इनकी गहरी मान्यता है कि संस्कृत और संस्कृति अभिन्न हैं। इनके बिना भारत की कल्पना नहीं की जा सकती। इसी के अनुरूप शिक्षा का प्रधान लक्ष्य चरित्र का निर्माण और श्रम की प्रतिष्ठा है; जो शिक्षा इन लक्ष्यों की पूर्ति नहीं कर पाती, वह ऐसे युवाओं को तैयार करेगी जो साक्षर तो होंगे लेकिन वे अपनी संस्कृति के संवाहक नहीं होंगे। इसे ही ध्यान में रखते हुए अटलजी इस बात पर बल देते हैं कि हमें शिक्षा के माध्यम से जीवन बनाना है, न कि इसे जीविका का साधन मात्र समझना है। वे अपनी चिंता प्रकट करते हैं कि हम निरक्षरता का कलंक आज भी नहीं मिटा सके हैं। इस कारण उनका मानना है कि जब तक साक्षरता को एक जन-आंदोलन नहीं बनाएँगे, तब तक बात नहीं बनेगी। प्राथमिक शिक्षा में भी कई बाधाएँ हैं। लड़कियों की शिक्षा की उपेक्षा हो रही है। वे बताते हैं कि जिन राज्यों में शिक्षा की स्थिति अच्छी है, वहाँ आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। वह इस बात के लिए विशेष रूप से चिंतित थे कि 21वीं सदी में शिक्षा व्यापार न बन जाए। इसके लिए उनका सुझाव है कि शिक्षा और संस्कृति के संबंध को गहन करते हुए हमें ऐसी व्यवस्था का विकास करना चाहिए जिसके द्वारा देशवासियों में राष्ट्रप्रेम की भावना उत्पन्न हो, वे समरसतापूर्ण जीवन की ओर अग्रसर हों तथा उनके वैयक्तिक और सामुदायिक जीवन में समृद्धि हो। अटलजी शिक्षकों का भी आह्वान करते हैं कि वे इन लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आगे आएँ। वे याद दिलाते हैं कि भारतीय परंपरा में शासकों के मुकाबले विद्वानों को कहीं ज्यादा आदर प्रदान किया जाता है। जब अध्यापक, ‘गुरु’ का गुरुतर भार स्वीकार करता है, तब वह मिशन में सफलता होता है। मिशन की सफल ही जीवन की सफलता है। अतः अध्यापक का कर्तव्य है कि वह छात्र को ज्ञान के साथ-साथ राष्ट्र-भक्ति और चरित्र-निर्माण की शिक्षा दे। इसी के अनुरूप वे चाहते हैं कि हमारे विश्वविद्यालयों की शिक्षा ऐसी हो जिससे नवयुवकों में उत्तरदायित्व एवं राष्ट्रभक्ति की भावना जाग्रत् हो क्योंकि अपनी अस्मिता की सुरक्षा तभी की जा सकती है, जब भावी पीढ़ी के अंदर राष्ट्र-भक्ति उत्पन्न हो। वे शिक्षा के नीति-निर्माताओं को सचेत करते हैं कि भारत की शिक्षा-नीति, विशेषकर पाठ्यचर्या में राष्ट्रीय एकता का लक्ष्य सर्वोपरि होना चाहिए। शिक्षा और समानता के प्रश्न को लेकर उनका मानना है कि यदि दूरदराज के क्षेत्रों में रहनेवाले और वंचित वर्ग के लोगों को शिक्षा नहीं मिलती है तो देश के विकास की प्रक्रिया अधूरी रह जाएगी।
निरक्षरता का और निर्धनता का बड़ा गहरा संबंध है।
शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिए। ऊँची-से-ऊँची शिक्षा मातृभाषा के माध्यम से दी जानी चाहिए।
वर्तमान शिक्षा देश के युवकों को सही दिशा में नहीं ले जा रही है। वह उनके चरित्र का पूर्ण विकास नहीं कर रही है। वह देश की माटी से, संस्कृति से पीछे चली गई है। यह शिक्षा चरित्र का निर्माण नहीं करती, श्रम की प्रतिष्ठा नहीं करती। यह शिक्षा देशभक्त उत्पन्न नहीं करती।
अटलजी ने 21वीं शताब्दी में प्रवेश कर रहे भारत को सबसे पहले यह कहते हुए सचेत किया कि आने वाली सदी ज्ञान आधारित होगी। इसके लिए हमारी शिक्षा को तैयार करना होगा। उनका यह भी मानना था कि हमें विज्ञान, तकनीकी, चिकित्सा, प्रबंधन और मानविकी के क्षेत्रों में उत्कृष्ट शिक्षा केंद्रों की स्थापना कर अपने युवाओं को भविष्य के लिए तैयार करना होगा। इन संस्थानों के माध्यम से हमें अपने बौद्धिक ज्ञान के क्षेत्र को इस तरह बढ़ाना होगा कि इसमें ज्ञान और विशेषज्ञता के भंडार के साथ-साथ मूल्य बोध भी हो। उनके शिक्षा संबंधी भाषणों में प्रायः इस तथ्य का भी उल्लेख है कि हमारी शिक्षा अखिल मानवता के कल्याण के निमित्त हो। इस व्यापक दृष्टि का प्रतिपादन करते हुए वे युवाओं से कहते हैं कि युवा अपनी प्रतिभा से विश्व स्तर पर जिस भारत को स्थापित करेंगे, उसका आधार भारतीय मूल्य होने चाहिए।
अटलजी शिक्षा में भाषा के प्रश्न को स्वराज से जोड़कर देखते हैं। अटलजी का यह मानना था कि जनता का राज, जनता की भाषा में चलना चाहिए। इससे ही राष्ट्रीय एकता स्थापित होगी। वह हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में शिक्षा को राष्ट्रीय एकता का संवाहक मानते हैं। वे शिक्षा के परिसरों से लेकर सत्ता के परिसरों तक भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने का सुझाव देते हैं। यह सर्वविदित है कि अटल बिहारी वाजपेयी ने ‘जय जवान, जय किसान’ के साथ ‘जय विज्ञान’ का नारा दिया था। यदि अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों को देखा जाए तो वे वैज्ञानिकों से बात करते हुए उनसे यह अपेक्षा रखते हैं कि ज्ञान आधारित 21वीं सदी के लिए विज्ञान और वैज्ञानिकों को दो दायित्वों का निर्वहन करना होगा। पहला, इससे आम व्यक्ति के जीवन में सुधार हो सके। दूसरा, भारत को मजबूत आर्थिक शक्ति बनाने के लिए आवश्यक ज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं अन्य संसाधनों की सुलभता हो सके, जिससे भारत की प्रतिभाओं का पलायन रुकेगा और भारत की प्रतिभा भारत के विकास में योगदान कर सकेगी। वे उद्योग जगत् और अकादमिक क्षेत्र के सहयोग से व्यावहारिक अनुसंधान पर जोर देने की बात करते हैं। उनका मानना है कि प्राथमिक स्वास्थ्य, स्वच्छता, जल और भूमि प्रबंधन, ऊर्जा संरक्षण के लिए विज्ञान की भूमिका महती है। इसके लिए परंपरागत और आधुनिक प्रौद्योगिकी के बीच उचित समन्वय होना चाहिए। इन कार्यों में शिक्षा क्षेत्र की भूमिका महत्त्वपूर्ण होगी। इसके लिए उनका यह भी मानना था कि शिक्षा में राजनीति नहीं, राजनीति में ज्यादा-से-ज्यादा शिक्षा होनी चाहिए। शिक्षा सामाजिक विकास में योगदान करे, इसके लिए वे ‘नर सेवा ही नारायण सेवा’ के मंत्र पर बल देते हैं और प्रत्येक भारतीय के सम्मुख ‘आदर्श’ भारत का लक्ष्य रखते हैं। अटलजी का मानना था कि देश की शिक्षा का स्वरूप ऐसा हो जिससे ‘युवा भारत’ का उदय हो, जिसके नागरिकों में अपने राष्ट्र के प्रति गौरवबोध हो, अपनी संस्कृति के प्रति लगाव हो एवं वे शाश्वत विकास की ओर अग्रसर हों। अटलजी के शिक्षा संबंधित विचारों की उपस्थिति राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में देखी जा सकती है। इस नीति का क्रियान्वयन अटलजी के सपनों को साकार करने का माध्यम बनेगी।
-अतुल कोठारी.
(राष्ट्रीय सचिव, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास)
अटल बिहारी वाजपेयी : शिक्षा संवाद
लेखक : अतुल कोठारी
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 112
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