ललक : इंसानियत, मानवता और करुणा की कविताएँ

ललक : इंसानियत, मानवता और करुणा की कविताएँ

इन कविताओं में भारतीय समाज के आम चरित्र पूरी संवेदना और करुणा के साथ चित्रित किए गए हैं.

जब हमारे अंतस् से वाह्य चीजें मेल नहीं खातीं, तब मन और मस्तिष्क में विक्षोभ और विद्रोह लाजमी है। युवावस्था में यह स्थिति और भी तीव्रतम होती है। श्री रविन्द्र कुमार के कविता संकलन ‘ललक’ की सभी कविताएँ इसी तीव्रतम अनुभूति की अभिव्यक्ति हैं। फलतः इन कविताओं में समाज में व्याप्त कुरीतियों और विसंगतियों का अभूतपूर्व चित्रण हुआ है। इनमें जहाँ एक ओर, प्रकृति, समाज और मनुष्य को लेकर स्पष्ट अभिव्यक्ति है, वहीं दूसरी ओर, अमीरी-गरीबी, आधुनिकता के दुष्प्रभावों और नैतिकता के निरंतर ह्रास पर कवि ने अद्भुत कविताएँ लिखी हैं। इसके साथ ही साथ वर्तमान की इस अंधी दौड़ के बीच छीजते हुए हमारे मूल्यों और विश्वासों का निरंतर पतन भी अत्यंत शिद्दत के साथ उभरा है। इन कविताओं में कवि का देशप्रेम भी उजागर हुआ है।

रविन्द्र कुमार की इन कविताओं में मनुष्य द्वारा प्राचीन जीवन मनोविज्ञान की सार्थकता को नकार कर एकदम आधुनिक जीवन मनोविज्ञान ग्रहण करने के बाद मनुष्य के मन में जो द्वंद्व उत्पन्न हुआ है, उस वस्तुस्थिति का भी प्रभावशाली चित्रण देखने को मिलता है।

रविन्द्र की कविताएँ इंसानियत, मानवता और करुणा में पगी हुई हैं। इनमें भारतीय समाज के आम चरित्र पूरी संवेदना और करुणा के साथ चित्रित किए गए हैं। कवि ने ‘बंजारा’, ‘रिक्शेवाला’, ‘ताड़ीवाला’, ‘किसान’, ‘मजदूर’, ‘पागल’ आदि के दुरूह जीवन की झाँकियाँ प्रस्तुत की हैं तथा कविताओं में श्रमजीवी वर्ग का संघर्षपूर्ण वर्णन पाठक को संवेदनशील बनाता है। संग्रह की अधिकांश कविताओं में सामाजिक असमानता की व्यथा झलकती है, जिसे युवा कवि ने बेहद प्रभावशाली शब्दों में अभिव्यक्त किया है।
इंसानियत, मानवता और करुणा की कविताएँ

आमतौर पर प्रत्येक कवि न्यूनाधिक परिमाण में अपनी रचनाओं में उपस्थित रहता है। रविन्द्र कुमार भी अपनी कविताओं में अपने समूचे अंतःकरण के साथ उपस्थित हैं। चूँकि इस संग्रह की कविताएँ कवि ने अपनी बाल्यावस्था के दौरान लिखी हैं, इसलिए इनमें कवि के अंतस् की बेबाक, बेलौस और निष्कलुष अभिव्यक्तियाँ उद्घाटित हुई हैं।

-डॉ. अश्वघोष.


ललक
लेखक : रविन्द्र कुमार
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 136
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