New Book : धरती-पुत्र भैरों सिंह शेखावत

धरती-पुत्र भैरों सिंह शेखावत

भारत के पूर्व उप-राष्ट्रपति, वरिष्ठ राजनेता, प्रख्यात समाजधर्मी भैरों सिंह शेखावत जमीन से जुड़े व्यक्ति थे।

राजनीति और सार्वजनिक जीवन में लंबी पारी के दौरान वे पूरी पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ अपने दायित्वों का सफल निर्वहन करते रहे। उनका सौम्य और मृदुल व्यवहार, सदाशयता, भारतीय परंपराओं के प्रति गहरी आस्था ने सबको प्रभावित और प्रेरित किया। उनका सम्मान सभी राजनीतिक दलों द्वारा किया जाना उनकी राजनीतिक स्वीकार्यता का परिचायक है। यह पुस्तक उनके प्रेरक जीवन की मधुर स्मृतियाँ सँजोने का विनम्र प्रयास है।

----------------

किसी भी महान् व्यक्ति के बारे में कुछ भी लिखना उतना ही कठिन कार्य है, जितना कि सूरज की तरफ देखकर उसके विशाल आभामंडल का बखान करना। मेरी इस पुस्तक लेखन के पीछे न तो यह मंतव्य है और न ही मेरी इतनी क्षमता है कि मैं भैरों सिंह शेखावत जैसे महामानव के जीवन पर कुछ प्रकाश डाल सकूँ। दैवयोग से ही मुझे उनका सान्निध्य राजकीय सेवा के दौरान मिल गया और उनकी विशेष कृपा व स्नेह के कारण मुझे वह सान्निध्य उनके अंतिम समय तक मिलता रहा।

उनकी विलक्षण राजनीतिक और सामाजिक सोच की थाह उनके समकालीन किसी व्यक्ति ने पा ली हो, ऐसा मुझे नहीं लगता। यही वजह रही कि मैंने अपना प्रयास भी यहीं तक सीमित रखा है कि उस विराट् व्यक्तित्व के अंदर विद्यमान एक जमीनी व्यक्ति की छोटी-छोटी बातों को इस पुस्तक में शामिल कर सकूँ, जो उन्हें तमाम उम्र इतनी ऊँचाइयों की उड़ान के बावजूद जमीन और आम आदमी से जोड़कर रख सकीं। वे स्वयं एक आम इंसान ही थे। सभी मानवीय रिश्तों और उनके प्रति हृदय की कोमलता का भाव लिये हुए जीनेवाले आम इंसान, जिन्होंने साधारण होते हुए भी असाधारण तरीके से लाखों-लाखों लोगों का जीवन बदल दिया।

मेरा यह पुस्तक लिखना इसलिए और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है कि वे उस पीढ़ी के प्रतिनिधि थे, जिसने गाँवों में ठिकानेदारों का एकछत्र राज देखा था। राज्य और देश में राजाओं व अंग्रेजों का राज देखा और उन परिस्थितियों से निकलकर नई लोकतांत्रिक व्यवस्था के कर्णधार बने। 22 रजवाड़ों के विलय से बने राजस्थान के नवनिर्माण में बतौर विधायक, उन्होंने महती भागीदारी निभाई और फिर शासन की बागडोर भी तीन बार सँभालकर उन सब विचारों व सिद्धांतों को कानूनी रूप से लागू किया, जो उनके जीवन-आदर्श भी थे।

इस पुस्तक में उनके भाषणों से आप जानेंगे कि वे किसानों की बारानी भूमि को अनइकोनॉमिक होल्डिंग कहते हुए सन् 1954 में बननेवाले नए भू-राजस्व कानूनों में उसका लगान माफ करने की माँग करते हैं और फिर स्वयं मुख्यमंत्री बनते ही पूरे प्रदेश में बारानी भूमि से किसानों का लगान हमेशा के लिए माफ कर देते हैं।

धरती-पुत्र भैरों सिंह शेखावत
वे स्वयं इकलौती बेटी के पिता होते हुए, समूचे देश के ऐसे पहले मुख्यमंत्री बनते हैं, जिन्होंने पंचायत चुनावों में यह नियम ही लागू कर दिया कि दो से अधिक संतानवाला व्यक्ति चुनाव ही नहीं लड़ सकता।

एक साधारण राजपूत परिवार में जन्म लेकर गरीबी की त्रासदी भुगतते हुए उस राजनेता ने पहला मौका मिलते ही पूरे प्रदेश में अंत्योदय नाम से वह योजना लागू की, जिसमें बिना किसी जातीय भेदभाव के हर गाँव से अंतिम पंक्ति में बैठे पाँच गरीब परिवारों का चयन कर उनको जीविकोपार्जन के साधन जुटाए। उस योजना की क्रियान्विति देखने स्वयं वर्ल्ड बैंक के चेयरमैन मिस्टर मेक्नमारा राजस्थान आए और इस कार्य हेतु उनको भारत का रोकफेलर बताया।

उन्होंने वो समय भी देखा, जब किसी राजा या जागीरदार के मुँह से निकला वाक्य ही कानून होता था, लेकिन आजादी के बाद प्रथम विधानसभा में जीतकर आए उन राजाओं और जागीरदारों के सबसे शक्तिशाली गुट राम राज्य परिषद् में शामिल होने से इनकार करते हैं और अपनी पार्टी भारतीय जनसंघ का ही झंडा लिये हुए जागीरदारी उन्मूलन का पुरजोर शब्दों में समर्थन करते हैं। यहाँ भी इनकी दूरदर्शिता ही कही जाएगी कि उसके कुछ ही सालों बाद इन पूर्व शासकों के प्रिवीपर्स खत्म हो जाने व उनकी आर्थिक स्थिति विकट हो जाने पर उनके स्वामित्व के किलों और महलों में उन्हें पर्यटन की एक नई संभावना नजर आती है। वे अपने शासनकाल में इस धरोहर के रखरखाव तथा इनको हेरिटेज होटलों के रूप में संचालित करने हेतु सहज रूप से ऋण व सब्सिडी का प्रावधान कर इन्हें नया जीवनदान भी दे देते हैं। इनकी इस एक ही योजना ने न केवल राजस्थान की हजारों वर्षों की अमूल्य धरोहरों को जीर्ण–शीर्ण होने से बचा लिया, बल्कि पर्यटन क्षेत्र में इसे अग्रिम राज्य बनाकर लाखों लोगों के लिए जीविका कमाने की असीमित संभावनाएँ पैदा कर दीं। आज भारत आनेवाला हर तीसरा विदेशी पर्यटक राजस्थान आता ही है। यदि तुलना की जाए तो मध्य प्रदेश में गढ़-किले व महल राजस्थान से कहीं कम नहीं आँके जा सकते, पर यह उनकी दूरदर्शिता का ही परिणाम था कि राजस्थान पर्यटन के विश्व मानचित्र पर प्रमुख स्थान बना पाया। इसी प्रयास के चलते आज मरुधरा के घुमंतुक, कालबेलिया, ढोली-दमामी, लंगा और मंगणियार परिवार गरीबी की समस्त बाधाओं को पार करते हुए कला जगत् की अग्रिम पंक्ति में सेलिब्रिटी बनकर बैठे नजर आते हैं।

डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के शब्दों में-“उनका निजी जीवन सादगी की गरिमा और तेजस्विता का जीवन है, विवेकपूर्ण सिद्धांतों और प्रबुद्ध आदर्शों को जीने की विनम्र प्रतिबद्धता का जीवन है, सहज मनुष्यता की सतत–अथक-अपराजित श्रेष्ठता का जीवन है, उनका सार्वजनिक जीवन एक अपराजेय अजातशत्रु का जीवन है। स्वतंत्रता के बाद की अवधि में आज वे भारत के ज्येष्ठ और वरिष्ठ राजनेता हैं, इसलिए कई बार श्रद्धापूर्वक उनको समकालीन भारतीय राजनीति का भीष्म पितामह कहकर संबोधित किया जाता है, किंतु उन्होंने भीष्म पितामह की तरह किसी अन्याय को देखकर कभी अनदेखा नहीं किया। न्याय के प्रति उनकी जो अविचल प्रतिबद्धता है, अंत्योदय और सर्वोदय की मनुष्यता से जिस प्रकार उनका स्वभाव और जीवन अनुबंधित है, वही उनकी पहचान हैं। साहस, संकल्प और सहज समझ के वे पर्याय हैं। आश्चर्यचकित होकर उनकी प्रशस्ति मेक्नमारा जैसे विश्वविख्यात विशेषज्ञों ने भी की। यह प्रसाद है उनके विवेक की विरासत का, जिसने उनको एक श्रेष्ठ सार्वजनिक व्यक्तित्व की गरिमा और प्रतिष्ठा दी।”

मैंने उनकी दिनचर्या को बहुत नजदीक से देखा और जीवन व राजनीति के कई सारे उतार-चढ़ाव में भी सहज व समभाव से कार्य करते हुए, हर बाधा को पार करते देखा। इस पुस्तक में मैंने उनके जीवन के राजनीतिक पहलू को कम-से-कम छूने की कोशिश करते हुए उन्हीं बातों, घटनाओं और व्यक्तियों की बात करने का प्रयास किया है, जिनके जरिए उनका मानवीय पहलू उभरकर आता है। वे कहते थे कि किसी भी परिस्थिति में दो व्यक्तियों के बीच के संबंधों का तार हमेशा जुड़ा रहना चाहिए, चाहे उसमें गाँठ पड़ जाए तो भी करंट पास होता रहना चाहिए, क्योंकि परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं, मनुष्यता नहीं बदलती।

राजस्थान में तो कम-से-कम छोटी-मोटी राजनीति करने अथवा सार्वजनिक जीवन से वास्ता रखनेवाला ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा, जो कह दे कि उनसे मैं कभी मिला ही नहीं या देखा ही नहीं। किसी से भी जिक्र कर लीजिए, वह एक किस्सा उनके बारे में जरूर सुना देगा। मैं इसे संयोग नहीं दैवयोग कहूँगा कि पुलिस की साधारण सी नौकरी करते हुए मुझ पर उनकी विशेष कृपा-दृष्टि क्यों और कैसे पड़ी? यह मेरे लिए भी एक गूढ़ पहेली ही है।

-बहादुर सिंह राठौड़.

धरती-पुत्र भैरों सिंह शेखावत 
लेखक : बहादुर सिंह राठौड़
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 232
किताब लिंक : https://amzn.to/2ZLiKvZ