सिनेमा का इश्क़ : प्रसिद्ध उर्दू व्यंग्यकार के लेखों का संकलन

पितरस बुखारी

पितरस बुखारी का नाम उर्दू के प्रसिद्ध लेखकों और व्यंग्यकारों में शुमार है। उनके साहित्य को दुनियाभर में पढ़ा जाता है। भले ही वे पाकिस्तान के पेशावर यानी अविभाजित भारत में अंग्रेजी शासन के दौरान पैदा हुए। पितरस बुखारी ने जिस उर्दू में उत्कृष्ट लेखन को अपनाया उसमें हिन्दी के बजाय अरबी और फारसी के शब्दों को वरीयता दी गयी है। यह ठीक उसी तरह है जिस तरह से हिन्दी साहित्य में संस्कृत शब्दों की भरमार कर उसे संस्कृतनिष्ट हिन्दी बना दिया जाए।

शुऐब शाहिद ने उसे ज्यों का त्यों देवनागरी लिपि में रुपांतरित कर हिन्दी पाठकों को उपलब्ध कराने की कोशिश की है। उसे समझाने के लिए उन्होंने उर्दू के लब्धप्रति​ष्ठित और विद्वान लेखक के विचारों को पहुंचाकर हिन्दी और उर्दू के आपसी रिश्तों को भी मजबूत बनाने का प्रयास किया है।

सिनेमा का इश्क़ / पितरस बुखारी
इस पुस्तक में पितरस बुख़ारी के 13 लेख शामिल हैं, जिन्हें पढ़ने से सामाजिक जीवन के कई पड़ावों की हकीकत से तो पाठक एकाकार होता ही है, साथ ही वह लेखक की व्यंग्यात्मक शैली से गदगद और हर्षोल्लास से सराबोर हो उठता है। एक मजमून पेश है -
अगर क़त्ल-ए-इंसानी एक संगीन ज़ुर्म न होता तो ऐसे मौक़े पर मुझसे ज़रुर सरज़द हो जाता लेकिन क्या करूँ अपनी जवानी पर रहम खाता हूँ। बेबस होता हूँ स़िर्फ़ यही कहा सकता हूँ कि,''मिर्ज़ा! भाई लिल्लाह मुझपर रहम करो। मैं सिनेमा चलने को आया हूँ, धोबियों का इन्तज़ाम करने नहीं आया। यार बड़े बदतमीज़ हो पौने छ: बज चुके हैं और तुम जूँ के तूँ बैठे हो।

पुस्तक का संपादन एवं लिप्यंतरण करने वाले शुऐब शाहिद यह स्वीकार करते हैं कि देवनागरी दुनिया के उन अमीर-तरीन रस्मुल ख़ुतूत में से एक है कि जिसमें तलफ़्फुज़ की ग़लती की गुंजाईश तक़रीबन नामुमकिन है। यानी यह पूर्ण वैज्ञानिक लिपि है जहां इंसानी ज़बान से बोले जाने वाला प्रत्येक स्वर लिखा जाना संभव है।

पितरस बुख़ारी पर लिखी इस पुस्तक 'सिनेमा का इश्क़' का प्रकाशन मैन्ड्रेक पब्लिकेशन्स ने किया है।

ललक
सम्पादन एवं लिप्यंतरण : शुऐब शाहिद
प्रकाशक : मैन्ड्रेक पब्लिकेशन्स
पृष्ठ : 146
किताब लिंक : https://amzn.to/3nmn64K