सफलता के शिखर तक पहुँचाती हैं विनम्रता

सफलता के शिखर तक पहुँचाती हैं विनम्रता

डॉ. रमेश पोखरियाल ​'निशंक' ने अपनी नई प्रेरणादायक पुस्तक 'विनम्रता' में अनेक उदाहरणों, विचारों आदि के द्वारा अपनी बात को समझाने का प्रयास किया है। अलग-अलग मंचों पर युवाओं द्वारा उनसे महानता के लिए क्या लक्षण होने चाहिए, जैसे प्रश्न पूछे गए तो उनके अनुसार इसका सटीक उत्तर हमारे धर्मग्रंथों के पास है। 'विनम्रता' पुस्तक का प्रकाशन किया है प्रभात प्रकाशन ने।

'हमारी संस्कृति, हमारी शाश्वत ज्ञान-परंपरा का एक मूल मंत्र है -विनम्रता! जो नम्र होकर प्रेमपूर्वक समर्पित भाव से जीवन जीते हैं, वही प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते हैं।'

पुस्तक में आठ अध्याय हैं :

1. विनम्रता : अवधारणा एवं महत्त्व
2. जीवन में विनम्रता का विकास
3. भारतीय संस्कृति में विनम्रता की संकल्पना
4. शिक्षा एवं​ विनम्रता
5. विनम्रता एवं जीवन में सफलता
6. विश्व के महान् व्यक्तित्व एवं विनम्रता
7. विनम्रता सभी सद्गुणों का स्रोत
8. विनम्र होने में व्यावहारिक कठिनाइयाँ

पहले अध्याय में रमेश पोखरियाल जी विनम्रता शब्द की व्युत्पत्ति पर चर्चा करते हैं। विषय को और गहराई से समझाते हुए लेखक भृतहरि नीतिशतकम्, मनुस्मृति, कठोपनिषद् आदि से उदाहरण देकर स्पष्ट करते हैं।

कठोपनिषद् की निम्न पंक्तियाँ देखें :-
नाविरतो दुश्चरितान्नाशान्तो नासमाहित:।
नाशान्तमानसो वापि प्रज्ञानेनैनमाप्नुयात।।

अर्थात् दुश्चरित्र से अस्थिर मनवाला, शांति से रहित, चंचल चित्तवाला और तृष्णा में फँसे हुए मनवाला केवल प्रकृष्ट बुद्धि से ईश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता है, अर्थात् सदाचार अथवा समर्पण अथवा नम्र भाव से ही श्रेय की प्राप्ति संभव है।

महाकवि मैथिलीशरण गुप्त की कविता का हवाला देते हुए लेखक कहते हैं कि नम्रता जिस भी व्यक्ति को वरण करती है, वह चंदन तरु की तरह सुवासित हो जाता है। नम्रता की वजह से ही महर्षि दधीचि का त्याग, राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा, राम की पितृभक्ति, कृष्ण का न्यायपोषण और दयानंद की क्षमाशक्ति आदि ऐसे कार्य हैं, जिन्हें बढ़ाते हुए व्यक्ति अपने उद्धार के साथ संसार का भी भला कर लेता है।

भर्तृहरि के नीतिशतक के अनुसार :
नमन्ति फलिनो वृक्षा: नमन्ति सज्जना: जना:।
शुष्क वृक्षा: दुष्टाश्च न नमन्ति कदाचन।।

अर्थात् जिन वृक्षों पर फल होते हैं वे झुकते हैं। सज्जन भी उसी तरह होते हैं। लेकिन सूखे वृक्ष और दुष्ट लोग कभी नहीं झुकते। यानी नम्रता का जीवन में बहुत महत्त्व है।

रमेश पोखरियाल ने महात्मा बुद्ध को पहला शिक्षक बताया है जिन्होंने नैतिकता अथवा नम्रता अथवा सदाचार को धर्म का सार व आधार बताया है।

जब नम्रता अथवा सदाचार नष्ट हो जाता है तो सबकुछ समाप्त हो जाता है। विनम्रता को हासिल करने के लिए मनुष्य को अपने विचारों में पवित्रता लाने की आवश्यकता है। लेखक के अनुसार जिसका मन पवित्र है, वह नम्र है।
विनम्रता रमेश पोखरियाल निशंक
श्रीमद्भगवतगीता से एक श्लोक के जरिए बताया है कि सदाचारी व्यक्ति के लिए जो नियम बनाए गए हैं, आदर्श हैं तथा अनुकरणीय और पालन योग्य हैं। इनके अनुरुप जीवन-यापन करने पर ही नम्रता व्यक्तित्व का विकास करती है।

मनुस्मृति के अनुसार विनम्रता से व्यक्ति का व्यक्तित्व विकसित होता है। आयु प्राप्त होती है, योग्य संतान प्राप्ति होती है और सभी पापों का नाश भी होता है। नम्रता के व्यक्ति के विकास के महत्त्व को वेदव्यास ने महाभारत में भी व्यक्त किया है :

श्रूयतां धर्मसर्वस्यं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्।
आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत।।

अर्थात् धर्म के सर्वस्व को सुनो और सुनकर उसे ग्रहण करो। जो अपने लिए प्रतिकूल हो उसे दूसरों के लिए मत करो, अर्थात् नम्रता का व्यक्ति के विकास में कितना महत्त्व है, यह हमारे सभी धर्मग्रंथों में लिखा है। प्रकृति भी दूसरों के लिए समर्पित है।

जीवन में विनम्रता के विकास पर चर्चा करते हुए लेखक कहते हैं कि विनम्र नेता भी समाज या समुदाय को एकजुट करने के लिए अपने कौशल, ज्ञान तथा अनुभव का उपयोग करते हैं। विनम्र लोग निरंतर सीखते रहते हैं। उनके ज्ञान की भूख कभी मिटती नहीं। इसलिए वे नई-नई जानकारी जुटाते हैं, दूसरों से सीखते हैं, उन्हें सिखाते हैं और इस तरह ज्ञान का आदान-प्रदान होता है। यह समाज को विकसित करने में सहायक है।

विनम्र नेतृत्व अपनी टीम के सदस्यों की ताकत पर ध्यान केंद्रित करते हैं और एक अटूट विश्वास के साथ उन्हें स्वीकार करते हैं।

लेखक कहता है कि दूसरों के साथ तुलना करके अपने आत्म-सम्मान को नीचे गिराना नहीं चाहिए। यह व्यक्तित्व को सिकोड़ता है और खूबियों को उजागर नहीं होने देता, जबकि हर व्यक्ति अद्वितीय और अतुलनीय है। इसलिए दूसरों के प्रति दयालुता का भाव होना बेहद जरुरी है।

विनम्रता का भाव बचपन से आता है। यदि हम अपने बच्चों को शुरु से ही ईश्वर के प्रति कृतज्ञता का भाव जगाएं तो उनका जीवन सफल होगा। वे आगे जाकर विनम्रता को जीवन में अपनाएंगे। लेकिन उससे पहले माता-पिता को बच्चों के लिए एक रोल मॉडल की भूमिका में आना चाहिए। गलती करने पर बच्चे की आलोचना के बजाय उसे प्रोत्साहित करें। गलतियों से सीखना बेहद जरुरी है। इस तरह बच्चों के गुणों को विकसित किया जा सकता है। विनम्रता के विकास के लिए छोटे-छोटे प्रयास बेहद सार्थक साबित हो सकते हैं।

भारतीय संस्कृति में विनम्रता की संकल्पना पर विस्तार से लिखा है। रमेश पोखरियाल 'निशंक' ने पुस्तक में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन धर्म के विचारों के जरिए स्पष्ट किया है कि विनम्रता का गुण एक आवश्यक गुण है। यह संपूर्ण मानव जाति के हित की बात करता है। इससे विश्व शांति का संदेश निकलता है।

गीता का एक उपदेश कहता है कि विनम्रता के बिना व्यक्तित्व अहंकारी हो जाता है। यह पतन का कारण बनता है। ऋगवेद के अनुसार आत्मकल्याण तथा विश्वहित साधन ही विनम्र मानव जीवन की सनातन नीति है। सिख धर्म कहता है कि विनम्रता का फल सहजता, शांति और आनंद है। बौद्ध मत है कि विनम्रता और सदाचार परम शांति तक पहुंचाने वाले सोपान हैं। जबकि जैन धर्म के मुताबिक नमस्कार की मुद्रा ही स्वयं में विनम्र होना प्रदर्शित करती है। जैन धर्म में अहिंसा पर सबसे अधिक बल दिया गया है।

शिक्षा से विनम्रता का विकास होता है। इससे सकारात्मकता आदि का विकास होता है। लेखक के अनुसार विद्यार्थियों में विनम्रता एवं चारित्रिक गुणों के विकास करने तथा उनमें एक आदर्श नागरिक के गुणों को विकसित कर भविष्य में कुशलता के साथ उन्नत सामाजिक जीवन जीने योग्य बनाने में शिक्षक की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

रमेश जी ने पाठ्यक्रम में महापुरुषों की जीवनी एवं उनके कार्यों को सम्मिलित करने पर चर्चा की है। उनका कहना है कि ऐसे प्रसंगों को शामिल किया जा सकता है जिनके अध्ययन से विद्यार्थियों के व्यवहार में विनम्रता का विकास हो। इससे उनमें न्यायप्रियता, सहनशक्ति व सामाजिक उत्तरदायित्व आदि गुणों का विकास होता है।

विनम्रता से व्यक्ति का विकास होता है। विनम्र व्यक्ति अपने जीवन के लक्ष्यों पर केंद्रित रहता है। उसे खुद पर भरोसा होता है। यह भरोसा उसे आगे बढ़ने में प्रेरित करता है। विनम्रता निरंतर सीखने में मदद करती है।

विनम्र व्यक्ति अधिक सफलता अर्जित करते हैं, क्योंकि वह लचीले होते हैं, विभिन्न परिस्थितियों में अनुकूलन बना सकते हैं। एक मिनट में वे एक नेता हो सकते हैं और अलगे मिनट वे एक सहायक की भूमिका अदा कर सकते हैं।

हितोपदेश का एक श्लोक देखें :
विद्या ददाति विनयं विनयात याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनं आप्नोति, धनात्धर्म: तत: सुखम्।।
अर्थात् विद्या नम्रता प्रदान करती है। नम्रता से योग्यता और योग्यता से धन, धन से धर्म और तब अंतत: सुख की प्राप्ति होती है। महान् बनने का पहला गुण ही नम्रता है।

लेखक ने विश्व के महान् व्यक्तित्व एवं उनके द्वारा विनम्रता के कार्यों की विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने भगवान् श्रीराम, हनुमानजी, कबीरदासजी, गुरुनानक देवजी, श्रीवल्लभाचार्यजी, चाणक्य, पं. मदन मोहन मालवीय, नेल्सन मंडेला, पं. दीनदयाल उपाध्याय, डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आदि का उल्लेख किया है।

रमेश जी ने विनम्रता को सभी सद्गुणों का स्रोत बताया है। उनके अनुसार विनम्रता के बिना अन्य गुण विकसित नहीं किए जा सकते। इसके बिना और सबकुछ बिखरा हुआ है। इसके बिना जीवन में सफलता की संभावना नहीं है। इसलिए यह सफल जीवन की कुंजी है।

ऐसा भी नहीं है कि विनम्रता को एकदम से हासिल किया जा सकता है। लेखक कहता है कि विनम्र होना मुश्किल है, इसलिए नहीं कि हम विनम्रता का पर्याप्त मूल नहीं जानते हैं, बल्कि इसलिए कि हम भौतिकवादी दुनिया में रह रहे हैं।

कार्यकुशलता के साथ यदि व्यक्ति में पर्याप्त विनम्रता भी हो तो यह उसको शीघ्र ही अपने क्षेत्र में प्रसिद्धि दिलाता है तथा उसे सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित करने में सहायता करता है।

यह पुस्तक एक प्रेरणादायक किताब है। इसमें विनम्रता पर विस्तार से चर्चा की गई है। उसके पहलुओं को विस्तार से सरल भाषा में समझाया गया है। आखिर में रमेश पोखरियाल 'निशंक' के शब्दों में : विनम्रता का अभ्यास ही समाज में अशांति, विवाद, अलगाव और विरोध को दूर सकता है। मानवता और विनम्रता के गुणों को आत्मसात् करें और लोगों के कल्याण के लिए शांति, सद्भाव और खुशी के साथ रहने के लिए बेहतर काम करें।

विनम्रता
लेखक : रमेश पोखरियाल 'निशंक'
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 142
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