कोरोनाकाल की सच्ची कहानियाँ : उम्मीद जगाने वाला कहानी-संग्रह

कोरोनाकाल की सच्ची कहानियाँ

'कोरोनाकाल की सच्ची कहानियाँ' पुस्तक में कुल उन्नीस कहानियाँ हैं। संग्रह में 'लॉकडाउन टूट गया', 'जीवन भागने में नहीं', 'कर्मबीरा', 'नई सुबह', 'रुपया देना है', 'फिर करीब ले आया कोरोना' आदि कहानियाँ शामिल हैं। ये कहानियाँ एक उम्मीद जगाती हैं, एक विश्वास पैदा करती हैं कि हम विकट परिस्थितियों में भी चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ने का साहस करते हैं। कोई भी महामारी मानव की दृढ़-इच्छाशक्ति के आगे बेबस नजर आती है। मुश्किल दौर में हमने मानवता का धर्म निभाया और मिलकर कठिन दौर का मुकाबला किया।

इस पुस्तक के लेखक हैं डॉ. रमेश पोखरियाल ​'निशंक'। पुस्तक का प्रकाशन प्रभात प्रकाशन ने किया है।

यह पुस्तक क्यों और कैसे लिखी गई, खुद पोखरियाल जी बता रहे हैं : --

कोरोना की इस महामारी ने सारे विश्व को झकझोरकर रख दिया है। हर तरफ से मर्माहत कर देनेवाली खबरें आ रही हैं। कभी ऐसी दर्दनाक और कारुणिक स्थितियां किस्से-कहानियों में सुना करते थे, किंतु इस वैश्विक महामारी ने मानव कल्पना से भी परे की स्थिति पैदा कर दी है। विश्व के बड़े-बड़े चिकित्सा विज्ञान के पुरोधा भी इसके आगे अपने को असहाय से महसूस कर रहे हैं। इधर-उधर से आए दिन जो खबरें आ रही हैं, वे मन को उद्वेलित करनेवाली हैं।

कोरोना का कोई कारगर इलाज न होने के कारण इसके खिलाफ सूझ-बूझ और विवेक से खड़ा होने के अलावा अन्य कोई विकल्प भी नहीं बचता। फलत: इन विपरीत परिस्थितियों में सरकार को देशभर में लॉकडाउन करना पड़ा।

देश में पूर्ण लॉकडाउन होने के साथ ही चारों तरफ भय, हताशा और निराशा का जैसा माहौल बना हुआ था, लोग न अपनों से मिल पा रहे थे और न अपनों की सहायता कर पा रहे थे। मानवता संकट में पड़ी थी और चारों ओर त्राहि-त्राहि मची थी। दुनिया गहरे संकटकाल से गुजर रही थी। संकट के इन पलों में जब अपनों के सहारे की जरुरत होती है तो ऐसे समय में हर कोई अपनी लड़ाई खुद लड़ने को मजबूर था।

एक ओर अनेक प्रकार की दुखद घटनाओं के समाचार नित्य-प्रति रेडियो और टेलीविजन पर मन को भयभीत कर रहे थे, वहीं दूसरी ओर इस सबके बीच कुछ ऐसे भी हैं, जो अपनी जान की परवाह न करके औरों की जान बचाने में जुटे हुए थे, देवदूत बनकर वे अपने दायित्वों का निर्वहन कर रहे थे। इनमें हमारे डॉक्टरों, नर्सों से लेकर सुरक्षाकर्मी, सफाईकर्मी, गैस एवं खाद्यान्न आपूर्तिकर्मी, हर जगह कोरोना को मुस्तैदी से मात देने में जुटे हुए थे। इन कोरोना योद्धाओं की भूमिका सचमुच में अनुकरणीय और अभिनंदनीय रही है।

इस महाविपदा की घड़ी में जान ​हथेली पर रखकर औरों की जान बचाने के लिए प्रयासरत इन योद्धाओं के अवदान के प्रति मानव जाति सदैव ऋणी रहेगी। बेशक आज कोरोना ने हमसे बहुत कुछ छीन लिया है, मगर इससे आसान महाचुनौतियों से जूझने के लिए हमें तैयार भी किया है।

कोरोनाकाल की सच्ची कहानियाँ
कोरोनाकाल के दौरान कई लोग अवसाद की स्थिति में चले गए, कई परिवारों की आर्थिक स्थिति डाँवाडोल हो गई, किंतु समाज के बीच से कुछ ऐसे लोग निकलकर आए, जिन्होंने इस विपदा के समय संयम से काम लेकर एक-दूसरे की मदद की, एक-दूसरे का साथ दिया और एक-दूसरे को धैर्य देकर मानवता की मिसाल पेश की है।

यह अलग बात है कि इसी दौरान कुछ नकारात्मक खबरें भी सुनने को मिलीं। बहुत सारे वीभत्स दृश्य भी देखने को मिले, जो मन को उद्वेलित कर देते। मेरे अंदर का मन भावुक होने के कारण बेचैनी महसूस करने लगता। लॉकडाउन होने के कारण अधिकांश कार्यक्रम और बैठकें ऑनलाइन होने के कारण एक स्थान से दूसरे स्थान जाने पर जो समय लगता था, उस समय का सदुपयोग मैंने भी अपनी सृजनशीलता को दिया। आए दिन प्रसारित होनेवाली सकारात्मक खबरों को मैंने अपनी डायरी में नोट करने का क्रम बनाया, जिसकी परिणति 'कोरोनाकाल की सच्ची कहानियाँ' के रुप में हुई।

मुझे लगा कि यह समय नकारात्मकता का नहीं है, अपितु धैर्य और प्रोत्साहन का है। इसलिए इन कहानियों में मैंने मानवता की उन सकारात्मक पहलुओं और भावनाओं को प्रमुखता दी है, जिनकी बदौलत इस कठिन काल में हमें उभरने का अवसर मिला है। इसमें उन मानवीय संवेदनाओं और मानव-मूल्यों की पैरोकारी की है, जो हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक एकता की वाहक हैं।

यह मात्र काल्पनिक कहानियाँ नहीं, अपितु सच्ची कहानियाँ हैं। इस समयकाल में मुझे जो कुछ भी सकारात्मक घटनाएँ देखने और सुनने को मिलीं, उन्हीं को आधार बनाकर मैंने ये कहानियाँ गढ़ी हैं, किंतु मैंने स्थान और पात्रों के नाम बदले हैं।

विकट परिस्थितियों के ऐसे माहौल में इन कहानियों में कोरोना योद्धाओं के सम्मान, आत्मबल और सुकृत्य को प्रोत्साहन प्राप्त होगा, वहीं दूसरी ओर देश एवं समाज में आशा, विश्वास और धैर्य का एक वातावरण भी बनेगा तथा अन्य लोग भी कोरोना योद्धाओं से प्रेरित होकर इस पावन कार्य में जुटेंगे और अपनी सेवा देने के लिए आगे आएंगे। कोरोनाकाल की इन सच्ची कहानियों के ​जरिए वर्तमान परिस्थितियों और कोरोना की भीषण त्रासदी से उभरने में हमें एकजुट होकर चुनौतियों का सामना करने की शक्ति प्राप्त होगी, ऐसा मेरा विश्वास है।

कोरोनाकाल की सच्ची कहानियाँ
लेखक : रमेश पोखरियाल 'निशंक'
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन
पृष्ठ : 136
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