अंजु रंजन की कृतियाँ : गाँव, देश, परदेश और विस्थापन की यादों के रंग

अंजु रंजन की कृतियाँ

अंजु रंजन की तीन कृतियाँ वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुई हैं। दो कविता संग्रह -'प्रेम के विभिन्न रंग' और 'विस्थापन और यादें' तथा एक संस्मरणात्मक लेखों का संग्रह -'वो काग़ज़ की कश्ती' पाठकों तक पहुंचे हैं।

अंजु रंजन ने सोलह साल की उम्र में गाँव छोड़ दिया था। उच्च शिक्षा के लिए शहर का रुख किया। अंजु केमिस्ट्री में स्नातक हैं और स्वर्ण पदक विजेता हैं। उन्होंने एमबीए भी किया है। अंजु रंजन भारतीय सेवा की वरिष्ठ अधिकारी हैं।

विस्थापन और यादें
विस्थापन और यादें
यह एक कविता संग्रह है। अंजु कहती हैं -'मेरी यादों के सहारे आप भी विस्थापन को झुठलाते हुए अपने गांव-देस पहुंच सकते हैं।' उन्होंने कविताओं के माध्यम से बीती यादों को ताज़ा किया है। उन सपनों को फिर से देखने की कोशिश की है जिन्हें वे जीना चाहती थीं। यह पुस्तक उनकी गांव से लेकर देश-विदेश की यात्रा की दास्तान है।

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वो काग़ज़ की कश्ती
वो काग़ज़ की कश्ती
इस पुस्तक अंजु रंजन ने बचपन से लेकर युवावस्था तक के संस्करण बहुत ही रोचक ढंग से लिखे हैं। यह मानना पड़ेगा कि उनकी शैली बेहद सरल, मजेदार और रोचक है। उन्हें पढ़कर अलग आनंद आता है। गांव की पाठशाला का जिक्र करती हैं तो वहीं जब मैट्रिक का परीक्षाफल आता है उसका जिक्र करते हुए एक सस्पेंस-सा उत्पन्न करती हैं।

मैंगो सरीज़ में आम की बात चलती है। पाठक भी उनके साथ हो लेता है। 'आम और अजगर', 'चोरी का आम', 'आम और यूपीएसएसी का इंटरव्यू' आदि को पढ़ना बेहद दिलचस्प है।

दादी सीरीज़ में दादी, गांव और खुद उनके ढेरों किस्से हैं, जैसे 'हां, दादी ने भी प्यार किया!', 'दादी और गाय', 'आलू-गुड़ का हार : मेरा पहला प्यार' आदि अध्याय शामिल हैं। 'मेरी हॉस्टल की ज़िन्दगी' में सपना दी के किस्से मौजूद हैं।

हृदयनारायण दीक्षित के शब्दों में : 'लेखिका ने ग्रामीण भाषा का उपयोग करते हुए बाल्यकाल की घटनाओं का बहुत सफलतापूर्वक वर्णन किया है। उन्होंने हमें वहां की ग्रामीण संस्कृति से भी परिचित करवाया है। परदेश में रहकर स्वदेश की प्रीति, राग का गान स्वाभाविक गीत बना है।'

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प्रेम के विभिन्न रंग / अंजु रंजन
प्रेम के विभिन्न रंग
यह कविता संग्रह प्रेम के छींटों से भीगा हुआ है। यहां प्रेम के अलग-अलग रंग हमें देखने को मिलते हैं। अंजु रंजन कहती हैं : 'चाहे प्रेम प्रियतम से हो, प्रकृति से, बच्चे से या माँ-पिता से, हर व्यक्ति प्रेम चाहता है, प्रेम करना चाहता है व निभाना चाहता है। इसी प्रेम के वशीभूत होकर, कई बार लिखना चाहा, लिखकर मिटा दिया, लेकिन कई भाव जो आँसुओं से अमिट हो गये, उन्होंने अनायास ही कविताओं का रूप ले लिया। विदेश सेवा में घर से दूर, देश से दूर-परदेस में रहने के कारण मैंने रिश्तों की महत्ता समझी-प्रेम के विभिन्न रूपों को पहचाना।'

'मुख्यतः प्रवास में लिखी गयी इन कविताओं में कहीं मूक पुकार है, कहीं क्रन्दन है, कहीं अभिनन्दन है तो कहीं-कहीं मिलन के राग भी हैं। इस कविता संग्रह में एक दशक से जमी देश और अपनों की जुदाई की बर्फ को परत-दर-परत हटाने की कोशिश है, जो कि अपने लोग और स्वदेश प्रेम की यादों की गरमाहट से कभी पिघलती है, तो कभी उस पर और भी तुषारापात हो जाता है।'

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