'एक देश बारह दुनिया', उस दुनिया की कहानियाँ हैं जिनको लोग भुला बैठे हैं। ये सच्ची कहानियाँ झकझोरती हैं। इनको पढ़कर हैरानी होती है। आप सोचेंगे कि क्या ये दुनिया आसपास है। यदि है तो फिर ये दुनिया आँखों से ओझल क्यों हो गयी। ये दुनिया लोगों को दिख क्यों नही रही। इस दुनिया के दुख-दर्द इतने अलग क्यों है। इस दुनिया के लोगों के लिये सरकार कुछ कर क्यों नहीं रही। दरअसल इस दुनिया के रहवासी हैं कुपोषण के शिकार आदिवासी, नक्सलियों की हिंसा झेल रहे ग्रामीण, घुमंतू और अपराधी घोषित जातियों के लोग, जमीन छीन लिये गये किसान, शहरीकरण के विस्थापित, गाँव में होने वाले यौन शोषण के खिलाफ आवाज उठाती महिलाएँ और शहरी वेश्याएँ।
दरअसल इस दुनिया की खबरें कुछ साल पहले तक हमें मिलती रहतीं थीं मगर अब मीडिया में टीजी यानी कि टारगेट ऑडियंस का बोलबाला है। हमें वही दिखाना है जो हमारा दर्शक या पाठक पढ़ना चाहता है। सर्वे रिपोर्ट पर तय किए गये इस अजीब से तर्क और बाजारवाद के फेर में अखबार और टीवी चैनलों में इस दुनिया में बसने वालों के समाचार मिलने अब तकरीबन बंद ही हो गये हैं। मगर युवा पत्रकार शिरीष खरे का शुक्रिया कि उन्होंने हमें इस खो सी गयी दुनिया दिखायी। किताब की हर कहानी चौंकाती है और कुछ हद तक रूलाती भी है।
फिर चाहे वो सच्ची कहानी महाराष्ट्र के मेलघाट के गाँवों की हो जहाँ कुपोषित बच्चे की माँ सपाट अंदाज में अपने बेटे की मौत पर कहती है कि वो कल मर गया तीन महीने भी नहीं जिया या फिर छत्तीसगढ़ के दरभा के कस्बों की वो कहानी जहाँ सरकारी अफसर कहता है कि बाहर हाट बाजार लगा है मगर कब यहाँ गोलियाँ चल जायें और कितनी लाशें बिछ जायें कोई नहीं जानता। राजस्थान के बायतु गाँव की वो कहानी भी हिला देती है जिसमें गाँव के बड़े लोगों के बलात्कार का शिकार होने के बाद अदालत के चक्कर काट रही युवती कहती है कि मेरी असली फोटो और नाम ही देना भाई। नहीं तो कुछ मत छापना। गाँव के जिन ताऊ लोगों के सामने लाज शर्म रहती थी जब उनके सामने ही घाघरा उठ गया तो उनसे क्या डर और शर्माना जिनको हम जानते भी नहीं।
सूरत को मैं देश का सबसे सुंदर शहर मानता था वहाँ की सड़कें और फ्लाईओवर के हमेशा गुण गाता था मगर अब सूरत जाऊँगा तो वो मीराबेन याद आयेंगी जिनको महीनों से रात-दिन नींद नहीं आती। बढ़ते शहरीकरण के कारण मीराबेन सरीखी हजारों महिलाएँ बार-बार अपने घर मोहल्लों से उजाड़ी गयीं हैं। बार-बार उनको नयी नयी जगह बसाया गया। अब ये सरकारी गाड़ी देखकर ही डर जाती हैं। जैसे ही बस्ती में नगर निगम बिजली पानी का चार्ज लेना बंद कर देती है ये रहवासी समझ जाते हैं कि अब वो यहाँ कुछ दिनों के मेहमान हैं। यहाँ अल्फ्रेड जैसे लोग हैं जिन्होंने एक दिन में दो-दो हजार झोपड़े और झुग्गियाँ उजड़ते देखें। सड़क, मॉल, फ्लाईओवर के रास्ते में आ रहे इन झोपडों में रहने वालों को हटाकर बसाया जाता है शहर से बाहर जहाँ ना रोजगार होता है और ना रास्ते। किताब में नर्मदा किनारे की रिपोर्ट भी चौंकाती है जहाँ बताया जाता है कि नदी किनारे के रेतीले घाट कैसे मैदान होते जा रहे हैं। चाहे वहाँ रात-दिन चल रहा अवैध रेत उत्खनन हो या फिर नदी किनारे बन रहे कारखाने और थर्मल प्लांट। बेजुबान नदी को चुनरी चादर चढ़ाकर आस्था का ढोंग करने वाले नेता ही उत्खनन और नदी किनारे के कटते पेडों से आँखें मूँदकर बैठे हैं।
अपने आपको घुमंतु पत्रकार कहने वाले शिरीष अपने पाठक को मुंबई के कमाठीपुरा की अँधेरी, बदबूदार कोठरियों में भी ले जाते हैं जहाँ रहने वाली वेश्याओं ये कभी नहीं कहती कि वेश्यावृत्ति ने उनको आजादी का अहसास कराया। वक्त और परिस्थितियों की मारी इन गरीब वेश्याओं को इन कोठरियों में हर वक्त नरक-सी घुटन और बीमारियों के सहारे आने वाली मौत का अहसास होता है।
शिरीष की यह किताब हमें उस दुनिया में ले जाती है जहाँ हम अब जाना नहीं चाहते। मगर शिरीष खरे अपने इन यात्रा-वृत्तांत की मदद से हमें उन इलाकों में ले जाते हैं, वहाँ रहने वालों के दुख-दर्द से परिचित कराते हैं और सवाल उठाते हैं कि बाकी देश के लोगों की तरह इनके दिन क्यों नहीं बदले। इनके अच्छे दिन कब आयेंगे और क्या ये लोग और इनके बच्चे इसी दुनिया में रहने को श्रापित है, कोई इन पर ध्यान क्यों नहीं दे रहा। एक अच्छा पत्रकार अपनी रिपोर्ट में इन सब बातों को बता ही सकता है। सवाल के जवाब सरकार के पास होते हैं जो इन दिनों ऐसे सवाल सुनती कम है।
'एक देश बारह दुनिया' पढ़कर लंबे समय तक याद रखी जाने वाली एक अच्छी किताब।
~ब्रजेश राजपूत.
(लेखक ABP न्यूज़ से जुड़े हैं. उन्होंने कई बेस्टसेलर पुस्तकें लिखी हैं)
एक देश बारह दुनिया
लेखक : शिरीष खरे
प्रकाशक : राजपाल एण्ड सन्ज़
पृष्ठ : 206
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