शिवोहम् ने बचपन की यादों को ताज़ा कर दिया है। उन्होंने अपनी पुस्तक 'तितलियों के पीछे' में उस मासूमियत, उन शरारतों, उस वक्त को जीवित किया है, जिसे जीने की फिर से ख्वाहिश रहती है। शिवोहम् हमें गाँव में ले जाते हैं, पगडंडियों की सैर कराते हैं, खेत, मिट्टी, तितलियों के पीछे दौड़ना, अल्हड़ मस्ती के दिनों में ले जाते हैं। वे भी क्या दिन थे?
यह बहुत ही दिल से लिखी गयी किताब है जिसे पढ़ना बचपन में लौटना है। किताब का प्रकाशन हिन्द युग्म ने किया है।
खेतों के बीच पगडंडी पर बैठ रोने का फायदा यह होता है कि आस-पास कोई सुनने वाला नहीं होता और जब कोई सुनने वाला नहीं होता तो दुख जल्दी कम हो जाता है.
भूल जाने की कला ही बचपन को बचपन बनाती है.
कहानियाँ केवल सुलाती नहीं बल्कि सिखाती भी हैं.
कहानी में प्रश्न की कोई जगह नहीं हुआ करती. उसमें केवल हामी भरने की जरुरत होती है. उसे वैसे ही सुनना होता है जैसा सुनाने वाला सुनाता है.
तितलियों के पीछे
लेखक : शिवोहम्
प्रकाशक : हिन्द युग्म
पृष्ठ : 128
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