"हिंदी प्रकाशन का स्वर्णिम युग अब आया है" -पीयूष कुमार

पीयूष कुमार प्रभात प्रकाशन के निदेशक

प्रभात प्रकाशन का 60 वर्ष से अधिक समय से साहित्य में अग्रणी स्थान रहा है। इनके द्वारा प्रकाशित पुस्तकों को लोग पढ़ते हुए बड़े हुए हैं। 

इंटरनेट के आगमन के साथ ही प्रकाशन उद्योग में आए बदलावों के साथ जुड़कर चलते हुए प्रभात प्रकाशन ने अपनी पहुंच को और विस्तार दिया है। ऑनलाइन बुक स्टोर्स पर प्रभात की अधिकतर किताबें बेस्टसेलर सूची में रहती हैं। बीते साल लॉकडाउन के दौरान इन्होंने कम कीमत में किंडल पर इ-बुक्स उतारकर सबको चौंका दिया था। परिणाम यह रहा कि पाठकों ने इ-बुक्स को हाथों-हाथ लिया और हर महीने हजारों की संख्या में केवल किंडल पर किताबों की बिक्री हुई। इ-बुक्स के बाद ऑडियो बुक के क्षेत्र में भी प्रभात प्रकाशन ने नए आयाम स्थापित किए हैं। इन्टरनेट ने किताबों की बिक्री को गति दी है। छह दशक के लंबे सफर से अबतक की यात्रा पर प्रभात प्रकाशन के निदेशक पीयूष कुमार से समय पत्रिका ने खास बातचीत की :

प्रभात प्रकाशन ने एक लंबी यात्रा तय की है तथा प्रकाशन के क्षेत्र में विशेष योगदान दिया है। आप इसे किस तरह देखते हैं?

प्रभात प्रकाशन अब अपने 63वें वर्ष में प्रवेश कर गया है। मात्र 200 रुपए से लगाया गया एक छोटा सा पौधा आज हिंदी प्रकाशन का वटवृक्ष बन चुका है। हमारे पिताजी स्व. श्री श्यामसुंदरजी के अथक परिश्रम, दूरदर्शिता और हिंदी के प्रति अपार प्रेम के कारण ही आज हम प्रतिवर्ष 500 से अधिक नई पुस्तकें प्रकाशित कर रहे हैं, जो आज भारत में अद्वितीय है। कोई भी एक प्रकाशक किसी भी भारतीय भाषा में एक वर्ष में इतनी अधिक गुणवत्ता वाली पुस्तकें प्रकाशित नहीं कर पाते हैं।

इन 500 पुस्तकों में से 400 हिंदी में तथा 100 अंग्रेजी में प्रकाशित होती हैं। इसके अलावा, हम प्रतिवर्ष 1,500 से अधिक इ-बुक और 100 से अधिक ऑडियो बुक्स भी प्रकाशित करते हैं।

हर वर्ष करीब 100 से अधिक अनूदित पुस्तकें भी प्रकाशित करते हैं। शीघ्र ही हम बँगला व तमिल में भी पुस्तकें प्रकाशित करना आरंभ करने वाले हैं।

हम हर वर्ष कम-से-कम 100 पहली बार प्रकाशित होनेवाले लेखकों की पुस्तकें प्रकाशित करते हैं।

पीयूष कुमार प्रभात प्रकाशन

एक प्रकाशन की लेखक से क्या उम्मीद रहती है? उसी प्रकार, एक लेखक की प्रकाशक से क्या उम्मीद होनी चाहिए? 

प्रकाशन लेखक की प्रायः निम्न बातें अपेक्षित करता है -

• प्रकाशित पुस्तक पूर्णतः शुद्ध व कलात्मक दृष्टि से श्रेष्ठ हो।

• अग्रिम भुगतान या वार्षिक रॉयल्टी समय पर प्राप्त हो और लेखक को सदैव रॉयल्टी विवरण में पारदर्शिता का अनुभव हो।

• पुस्तक देश के कोने-कोने में स्थित पुस्तक केंद्रों पर उपलब्ध हो।

• इ-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, जैसे-अमेजन, फ्लिपकार्ट आदि पर पुस्तक प्रमुखता से उपलब्ध हो।

• पांडुलिपि टंकित व प्रूफ रीड की गई हो। अशुद्धियाँ न के बराबर हों।

• हमारी वर्तनी और स्टाइलशीट का अनुकरण करें।

• प्रकाशक को पुस्तक प्रकाशन प्रक्रिया के लिए कम-से-कम छह माह का समय दें।

• पुस्तक यदि किसी पुस्तक केंद्र में उपलब्ध नहीं है तो थोड़ा धैर्य रखें।

क्या बेस्टसेलर होना ही सफलता का पैमाना है? आपकी नजर में सफल लेखक कौन है?

बेस्टसेलर में मुख्य बिंदु -

• पुस्तक का कथानक

• पुस्तक की लेखन-शैली

• पाठकों-लेखकों की साख

• लेखक की सोशल मीडिया में उपस्थिति।

बेस्टसेलर पुस्तक वही है, जिसकी एक वर्ष में 2,000 से अधिक प्रतियाँ बिक जाती हैं। वह लेखक, जिनके लिए पाठक हमें फोन करें या इ-मेल करें कि उनकी नई पुस्तक कब आएगी?

इ-बुक के साथ अब ऑडियो बुक का बाजार तेजी से उभर रहा है। इसे आप किस तरह देखते हैं? भविष्य में कुछ नए विकल्प भी आ सकते हैं। इस पर भी अपनी राय दीजिए।

जी, आपने ठीक कहा कि इ-बुक के बाद अब ऑडियो बुक्स एक बड़ी मार्केट बनती जा रही है। हमने हाल ही में करीब 6 बड़ी ऑडियो बुक्स कंपनियों के साथ करार किया है। पाठकों के लिए हमारी करीब-करीब 200 ऑडियो पुस्तकें उपलब्ध हैं। आज ओटीटी प्लेटफॉर्म अपनी जगह बनाते जा रहे हैं। ऐसे में, हमारी कुछ पुस्तकों पर वेब सीरीज भी बन रही है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि मूवी बनने से पहले उसकी पुस्तक मार्केट में आ रही है।

इंटरनेट ने पुस्तक प्रकाशन उद्योग को कितना प्रभावित किया है?

इंटरनेट ने हिंदी प्रकाशन को बहुत संबल दिया है। आज इ-कॉमर्स पर हिंदी का पाठक वर्ग तेजी से बढ़ रहा है। इ-बुक, ऑडियो बुक आदि भी इंटरनेट के कारण विस्तृत रूप ले रही है। आज बिना पुस्तक केंद्र और पुस्तक मेलों के हम सीधे पाठकों से संवाद कर पा रहे हैं। उनके स्नेह और मार्गदर्शन ने मेरे चरित्र का निर्माण किया तथा मुझे बड़ा, और बड़ा सोचने का विजन दिया।

पीयूष कुमार प्रभात प्रकाशन

प्रकाशक के रूप में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

सबसे बड़ी चुनौतियां हैं :

• गुणवत्ता वाले प्रूफ रीडर एवं संपादक

• सशक्त वितरण प्रणाली

• पाठकों में हिंदी पुस्तकों की माँग बहुत कम है

• समाचार-पत्रों व पत्रिकाओं में नियमित पुस्तकों की समीक्षा

• ऑनलाइन और ऑफलाइन मार्केटिंग प्रयास।

अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन और भारतीय प्रकाशन में क्या फर्क है?

अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन बेहद प्रोफेशनल अंदाज में किया जा रहा है। पाठक में अत्यधिक पठन रुचि के कारण पुस्तकों की प्रिंट संख्या काफी बड़ी होती है। संपादन व प्रूफ रीडिंग जैसे व्यवसाय पाठ्यक्रम में शामिल हैं, जिससे श्रेष्ठ पुस्तकें प्रकाशित होती हैं।

अनेक देशों में एक ही भाषा बोले जाने के कारण भी प्रसार संख्या बढ़ती है। लोगों में पुस्तक संस्कृति विकसित है तथा पुस्तकें उपहार-स्वरूप भी दी जाती हैं।

दूसरी भाषाओं की पुस्तकों के हिंदी अनुवाद से हिंदी के लेखकों पर क्या प्रभाव पड़ा है?

हम प्रायः चार प्रमुख भाषाओं-तमिल, मराठी, गुजराती और बँगला से अनूदित पुस्तकें हिंदी में प्रकाशित करते हैं। पर अभी भी अनेक भारतीय भाषाओं का क्रॉस ट्रांसलेशन होना बाकी है।

क्राइम फिक्शन पर हिंदी में एक-दो नाम हैं। अपराध-गाथाओं को पढ़ने का शौकीन हिंदी का पाठक वर्ग अंग्रेजी पुस्तकों के अनुवाद के सहारे कब तक बैठा रहेगा?

गत दो-तीन वर्षों में क्राइम फिक्शन पर लोगों की काफी रुचि बढ़ गई है। हम भी इस वर्ष क्राइम फिक्शन पर 5 से 7 पुस्तकें प्रकाशित करने वाले हैं।

आप एक मासिक पत्रिका ‘साहित्य अमृत’ प्रकाशित करते हैं, कुछ उसके बारे में बताएँ?

‘साहित्य अमृत’ विगत 26 वर्षों से निरंतर प्रकाशित हो रही है। इसकी स्थापना हमारे पिताजी श्री श्यामसुंदरजी, संस्कृतविद् पं. विद्यानिवास मिश्रजी और तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयीजी द्वारा वर्ष 1995 में की गई थी। आज 10,000 से अधिक प्रसार संख्या के साथ ‘साहित्य अमृत’ ने अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है। पत्रिका में नवोदित लेखकों की रचनाएँ भी प्रकाशित होती हैं।

पीयूष कुमार प्रभात प्रकाशन

प्रभात प्रकाशन ने 5,000 से अधिक लेखकों की पुस्तकें प्रकाशित की हैं। आप कुछ अति विशिष्ट लेखकों के बारे में बताएँ और किसी लेखक के साथ आपके व्यक्तिगत अनुभव साझा कीजिए?

यों तो हमारे सभी लेखक विशिष्ट हैं, पर कुछ अति विशिष्ट लेखक, जैसे-स्वामी विवेकानंद, नरेंद्र मोदी, अटल बिहारी वाजपेयी, महात्मा गांधी, वीर सावरकर, भीमराव आंबेडकर, डॉ. अब्दुल कलाम, मोहनराव भागवत, सरदार वल्लभभाई पटेल, जयशंकर प्रसाद, बंकिमचंद्र चटर्जी, लालकृष्ण आडवाणी, बद्रीनाथ कपूर, शरतचंद्र, प्रेमचंद, रवींद्रनाथ टैगोर, वृंदावनलाल वर्मा, विष्णु प्रभाकर, बराक ओबामा, दीपक चोपड़ा, रॉबिन शर्मा आदि हैं।

मुझे गर्व है कि मैंने डॉ. कलाम के साथ 10 वर्षों से अधिक समय तक लेखक-प्रकाशक के रूप में काम किया। डॉ. कलाम की हमने 30 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं।

क्या आप हिंदी के पाठकों की पठन रुचि से संतुष्ट हैं?

हिंदी की यात्रा अभी बहुत बाकी है। कुछ कारणों से हिंदी पुस्तक-संस्कृति विकसित नहीं हो पाई। अभी भी केवल 20 प्रतिशत काम हुआ है। हिंदी 60 करोड़ लोगों की भाषा है और हम प्रकाशकों को 1,000 प्रतियाँ बेचना मुश्किल हो रहा है। देश में रोल मॉडल्स को पुस्तक-संस्कृति विकसित करने के लिए बड़ा आह्वान करना होगा।

कुछ व्यक्तिगत अपने बारे में बताइए?

मेरी शिक्षा दिल्ली में ही हुई। प्रकाशन में वर्ष 2000 में आने से पूर्व मैंने एक मल्टीनेशनल कंपनी में ट्रेनी के रूप में दो वर्ष कार्य किया। अभी मेरी पहचान केवल प्रकाशक के रूप में है और मैं हिंदी को गौरवशाली व वैभवशाली बनाने के लिए कार्यरत हूँ। किसी भी भाषा और किसी भी विषय की पुस्तकों से हिंदी का पाठक अछूता न रहे, यह मेरा लक्ष्य है।

मैं आज विश्व की सभी अग्रणी प्रकाशन कंपनियों के साथ जुड़ा हूँ। भारत ही नहीं, बल्कि विदेश की सभी अंग्रेजी पुस्तकों पर मेरा ध्यान रहता है। मैं रोज करीब 10 अंग्रेजी व हिंदी के समाचार-पत्र और माह में कम-से-कम दो नई पुस्तकें पढ़ता हूँ।

 15-16 घंटे से अधिक काम करने के बाद भी मैं नहीं थकता।

मुझे योग करने, संगीत सुनने और लंबी वॉक करने में आनंद आता है। मेरी दो छोटी-छोटी प्यारी बेटियां और पत्नी चारु मेरे जीवन का संबल हैं।

आजकल क्या पढ़ रहे हैं?

मेरा प्रायः अध्ययन अंग्रेजी में ही होता है। आजकल मैं एलॉन मस्क की जीवनी और हरीश भट्ट की टाटा स्टोरीज पढ़ रहा हूँ।

प्रकाशक होने के नाते नए लेखकों को क्या सुझाव देना चाहेंगे?

लेखकों के लिए सुझाव :

• लेखक को सभी विषय की पुस्तकें गहराई में जाकर लिखनी चाहिए।

• सभी पांडुलिपि टंकित तथा प्रूफ रीडिंग की हुई होनी चाहिए।

• इंटरनेट सामग्री का उपयोग कम-से-कम हो।

• धैर्य रखें, पुस्तक प्रकाशन की प्रक्रिया थोड़ी लंबी होती है।