जीवन में सफलता के हर किसी के अपने मायने होते हैं। किसी के लिए नौकरी पाना और उसे जीना ही ज़िन्दगी में सबकुछ हासिल करना होता है। कोई ड्रीम जॉब की तलाश में रहता है। किसी को लगता है वह कुछ अलग करेगा। मतलब हर किसी का सपना उसके हिसाब से तय होता है और कुछ का नियति करती है। कई बार ऐसी परिस्थितियाँ पैदा हो जाती हैं कि एक जगह से दूसरी जगह, फिर तीसरी जगह दौड़ लगाना मजबूरी होती है। लेकिन इस दौरान एक सबसे अच्छी चीज़ हर किसी के साथ घटती है और वह है ज़िन्दगी के सबक। हर सबक भविष्य के लिए नया खाका तैयार करता है। जो लोग सीख कर समझ को विकसित कर लेते हैं, उनके लिए किसी नए मुकाम को हासिल करना उतना मुश्किल नहीं होता। जीवन जीना सिखाता है, आगे बढ़ना भी और नए तजुर्बे तो खैर चलते रहते हैं।
मनीष भार्गव की पहली किताब 'बेरंग लिफ़ाफे' एक ज़िद है एक इंसान की जिसने ऐसे लक्ष्य तय किये हैं जिनका शायद पूरी तरह उसे भी नहीं मालूम। वह भटका हुआ नहीं है, लेकिन उसका दिल और दिमाग कभी-कभी संशय से गठजोड़ कर लेते हैं। पंकज जैन जिसकी कहानी जितने सस्पेंस के साथ शुरू होती है, उतनी रोचकता के साथ समाप्त कर दी जाती है। लेकिन ऐसा लगता है कि कहानी बाकी है। ज़िन्दगी बेरंग लिफ़ाफे की तरह भी हो जाती है जब सपने बिखर जाते हैं। हमारे प्रयास हमें अपनी मंज़िल पर ले जा सकते हैं लेकिन हमें खुद को समझना होगा।
समस्याएँ सभी एक सी होती हैं। यह एक थ्योरम की तरह हैं। हमारा समस्याओं के प्रति रिएक्शन, उनके समाधान से डायरेक्टली प्रोपोर्शनल होता है। मतलब, कोई व्यक्ति, समस्या क्या है, इससे ज्यादा निर्भर इस बात पर रहता है कि उसे कैसे डील किया जा रहा है।
पंकज ने गाँव से अपनी यात्रा शुरू की। उसने अभावों को देखा। महसूस किया हर उस चीज़ को जिनसे दुनिया दौड़ती है। वह जब पिता को एक पटवारी के आगे हाथ जोड़ते देखता है तो नन्हे पंकज के मन में ढेरों सवाल उत्पन्न होते हैं। वह भी पटवारी बनना चाहता है, खूब इज्ज़त और पैसे कमाना चाहता है। नवोदय विद्यालय में एडमिशन के साथ उसकी किस्मत नया मोड़ लेने लगती है। उसका पहला प्यार मिलता है, मगर बात बन नहीं पाती। उसे पटवारी की नौकरी मिल जाती है। फिर अगली नौकरी और उसके बाद अगली। इस तरह 10 साल में अलग-अलग नौकरियाँ करता है। इसके दिलचस्प कारण किताब पढ़कर जाने जा सकते हैं।
ज़िंदगी बिल्कुल प्याज की तरह है। अगर हम यह जानना चाहें कि प्याज़ क्या है और उसको जानने के लिए हम उसको छीलते जाएँ तो अंत में प्याज़ ख़त्म हो जायेगा और तब हमें एहसास होगा कि जिसे हम छिलका समझ कर हटा रहे थे, वही तो प्याज़ था।
लेखक मनीष भार्गव ने 'सिस्टम' की हलचल को अपने अंदाज़ में बताने की कोशिश की है। किस तरह कागज़ी कार्रवाई होती है। कैसे नेताओं के दवाब में फाइलें घूमती हैं। कैसे सिस्टम काम करता है। मनीष ने अपने अनुभव के आधार पर काफी कुछ बताने का प्रयास किया है।
ज़िन्दगी के प्रति उनका नज़रिया इस उपन्यास को पढ़कर पता चलता है। कुल मिलाकर यह पुस्तक जीवन की तेज चाल में थोड़ा ठहरने और खुद को जानने पर विवश करने की एक अच्छी कोशिश है।
जो अतीत है, वो सब यादें ही हैं। कल्पना तो भविष्य की होती है, जिसे सपने भी कहते हैं। हर कोई भविष्य के सुखद सपनों में जीना चाहता है क्योंकि वो भी यादों की ही तरह अमर हैं, कभी मरते नहीं।
कुछ लोग हमें सुनते हैं, कुछ लोग हमें देखते हैं, कुछ हमें पालते हैं, पर दोस्त हमें जीते हैं, इसीलिए जितना हमें दोस्त समझते हैं, उतना कोई नहीं समझ सकता।