अंग्रेजी और फ्रेंच में 'जया गंगा' जबरदस्त लोकप्रियता हासिल कर चुकी है। इस पर आधारित फिल्म भी इंग्लैंड और फ्रांस में दर्शकों से असाधारण प्रशंसा पा चुकी है।
प्रख्यात लेखक, फिल्मकार और पटकथा लेखक विजय सिंह के बहुप्रशंसित उपन्यास 'जया गंगा' राजकमल प्रकाशन से हिंदी में प्रकाशित हुई है। अंग्रेजी और फ्रेंच में प्रकाशित होते ही इस किताब ने इन भाषाओं के पाठकों के बीच जबरदस्त लोकप्रियता हासिल की थी। इस पर बनी फिल्म भी फ्रांस और इंग्लैंड में पसंद की गई, जबकि करीब 40 देशों में प्रदर्शित हुई।
राजकमल प्रकाशन ने भारतीय पृष्ठभूमि पर आधारित इस नायाब उपन्यास को हिंदी पाठकों के लिए प्रकाशित किया है।
हिंदी में 'फ्रेंच इंस्टिट्यूट इन इंडिया' के सहयोग से प्रकाशित यह उपन्यास पेरिस में रहने वाले एक युवा भारतीय निशांत की हिमालय में गंगा के उद्गम से शुरू की गई यात्रा की कहानी है।
उपन्यास के हिंदी में प्रकाशन के बारे में भारत में फ्रांस के राजदूत इमैनुएल लेनैन ने कहा, 'जया गंगा का हिंदी में अनुवाद एक चक्र के पूरा होने और भारतीय व फ्रांसीसी संस्कृतियों के बीच परस्पर आदान प्रदान का एक आदर्श उदाहरण है। इसके लेखक विजय सिंह को विभिन्न क्षेत्रों में महारत हासिल है और वे सांस्कृतिक आदान प्रदान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण प्रेरक शक्ति हैं। फ्रांस सरकार इस सहयोग को लेकर उत्साहित है और इसका पूरा समर्थन करती है। मुझे कोई संदेह नहीं है कि इस पुस्तक के प्रकाशन से हिंदी भाषियों को प्रसन्नता होगी।'
यह उपन्यास प्रत्यक्ष तौर पर प्रेम की खोज की यात्रा की कहानी है, लेकिन यह यात्रा भौतिक और आध्यात्मिक दोनों धरातलों पर एक साथ चलती है।
इसका नैरेटर निशांत गंगा के प्रवाह के साथ यात्रा करता हुआ अपनी आत्मीय जया की स्मृति से भी गुजरता जाता है। इसी दौरान उसकी मुलाकात जेहरा से होती है जो तवायफ है। मन के भीतर जया और जेहरा की छवियां लिये वह अपने मार्ग में साधुओं, नाविकों, इंजीनियरों, स्थानीय पत्रकारों, तवायफों और दलालों से भी रू-ब-रू होता है। इसके साथ ही यह यात्रा जीवन और संबंधों के प्रति एक बिलकुल अलहदा नजरिया पेश करने वाले रूपक में बदल जाती है।
उपन्यास के हिंदी में प्रकाशन पर प्रसन्नता जताते हुए इसके लेखक विजय सिंह ने कहा, 'इस किताब को दुनिया में बसते हुए आज 35 साल हो चुके हैं। इसकी फ्रेंच और इंग्लिश में काफी चर्चा भी हुई है। लेकिन इस दौरान मैंने हमेशा महसूस किया है कि इस किताब की जो आत्मा है, जो इसकी रूह है, वह हिंदी में ही पहचानी जा सकती है मंगलेशजी, जिन्होंने इस किताब का हिंदी में अनुवाद किया, भी इस बात से सहमत थे। 'जया गंगा' के हिंदी अनुवाद में आने की मुझे अनहद खुशी है, लेकिन अफसोस यह है कि मंगलेशजी आज मेरे साथ नहीं हैं।'
आत्मकथात्मक यात्रावृत्त की शक्ल में लिखा गया यह उपन्यास जब पहली बार फ्रांस में छपा था तब वहां के साहित्यिक दायरे में इसको काफी प्रशंसा मिली। इसको ऐसी कृति बताया गया जिसमें बाहरी और आंतरिक दुनिया अभूतपूर्व रूप से आपस में घुल मिल गई है। आगे चलकर लेखक ने इस उपन्यास पर एक फिल्म भी बनाई जो फ्रांस और इंग्लैंड के सिनेमाघरों में रिकॉर्ड 49 सप्ताह चली, जबकि दुनिया के 40 देशों में इसे प्रदर्शित किया गया। वास्तव में यह फिल्म एक कल्ट इंडोफ्रेंच फिल्म साबित हुई, जिसके पीछे निश्चित ही इसकी असाधारण कहानी है।
'जया गंगा' के हिंदी में प्रकाशन को एक महत्वपूर्ण साहित्यिक परिघटना करार देते हुए राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, 'हम इस बात से काफी रोमांचित हैं कि 'जया गंगा' भारत में राजकमल द्वारा हिंदी में प्रकाशित हो रही है। यह हमारे लिए एक विशेष मार्मिक क्षण भी है क्योंकि यह प्रसिद्ध कवि मंगलेश डबराल द्वारा अनूदित अंतिम किताब है।' उन्होंने कहा, 'हमें विश्वास है इसमें लिखे हुए शब्द और गंगा दोनों की यात्रा हमेशा चलती रहेगी और पाठक के मन पर निरंतर नए-नए छाप छोड़ेगी।'
'जया गंगा' पहली बार फ्रेंच भाषा में वर्ष 1985 में प्रकाशित हुई थी। इसके बाद यह अंग्रेजी में आई। अब करीब 35 साल बाद, इसका नया अंग्रेजी संस्करण भी जल्द ही प्रकाशित होने वाला है।