माइथोलॉजी सांस्कृतिक सत्यों को उजागर करती है जो कहानियों, संकेतों और कर्मकाण्डों में निहित हैं.
इस किताब के होने के पीछे दो मुख्य वजहें हैं, एक का सन्दर्भ अतीत से और दूसरी का भविष्य से। पहले अतीत से सम्बन्धित वजहों पर ग़ौर करते हैं : ज़्यादातर हिन्दुओं को किसी भी बात की शुरुआत कैसे हुई इसका ठीक-ठीक ज्ञान नहीं होता, जिसके कारण तार्किक आधार पर अपने ही बच्चों को किसी भी हिन्दू रीति-रिवाज या आस्था के बारे में समझाना मुश्किल होता है। ये कोई बहुत आश्चर्य की बात नहीं क्योंकि इस्लाम और ईसाई धर्म की तरह हिन्दू धर्म बहुत व्यवस्थित नहीं है। मुश्किल तब ज़्यादा हो जाती है जब हिन्दू धर्म से सम्बन्धित प्रश्न, विरोधी तेवरों का सामना करते हैं। मामला तब और भी बिगड़ जाता है जब उन जवाबों को नकारा जाता है और हिन्दुओं को रक्षात्मक, क्षमायाचक और यहाँ तक कि अन्धराष्ट्रवादी क़रार दे दिया जाता है। भूमण्डलीकरण की कार्य-पद्धति उन पाश्चात्य मानवीय मूल्यों पर आधारित है जिसमें सामाजिक न्याय पर बल दिया जाता है और जिसकी जड़ें पाश्चात्य धर्म में हैं। एक तरफ़ तो ये अपने धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं और दूसरी तरफ़ उनके धार्मिक मूल्य उस सिद्धान्त पर आधारित हैं जिनके अनुसार ईश्वर क़यामत के दिन फ़ैसला सुनाते हैं। इस विरोधाभास को मानने वाले पाश्चात्य विचारवादी पूर्वी विचारधारा से ख़ासा मतभेद रखते हैं, ख़ासकर हिन्दुओं से जहाँ भगवान कोई जज या न्यायाधीश नहीं होते और कोई क़यामत का दिन नहीं होता। इसी बात को समझाने के लिए इस किताब की ज़रूरत महसूस हुई।
दूसरी वजह भविष्य से सम्बन्धित है। हिन्दुओं को काल, देश, सीमा और पौराणिक पैमानों में विशुद्ध हिन्दू धर्म की तलाश करने की अवधारणा से ऊपर उठना होगा क्योंकि इस वजह से रूढ़िवादिता पैदा होती है। भूमण्डलीकरण के दौर में जहाँ लोग एक जगह से दूसरी जगह पलायन करते हैं, कई लोगों से मिलते-जुलते हैं ऐसे में हिन्दू धर्म को एक विशाल नज़रिये की ज़रूरत है, बदलाव के सन्दर्भ में देखें तो जड़ों से ज़्यादा झुकाव फलों की तरफ़ है। ग्रामीण भारत में पालन किया जाने वाला हिन्दू धर्म शहरी भारत में पालन किये जाने वाले हिन्दू धर्म के समान नहीं होगा, उसी तरह से अमेरिकी, यूरोपीय, ऑस्ट्रेलियाई, अफ्रीकी या चीनी परिवेश में पालन किया जाने वाला हिन्दू धर्म भी अलग होगा। इसका पुनर्निर्माण और पुनर्व्याख्या ज़रूरी है ताकि समसामयिक सन्दर्भों में इसकी प्रासंगिकता बनी रहे। हमें यह याद रखना चाहिए कि कैसे हिन्दू ऋषियों ने, जिन्होंने धर्म ग्रन्थों की रचना की, हमेशा से इस बात पर ख़ासा ज़ोर दिया कि काल, स्थान और पात्र के अनुसार नियमों को अपनाया जाना चाहिए। उस एक सत्य की अवधारणा जो सम्पूर्ण, सीमित, वैश्विक और सभी के लिए प्रासंगिक हो वो हिन्दू मान्यता है ही नहीं। ईश्वर, सत्य और विवेचना में विविधता के लिए एक सहानुभूतिपूर्ण भाव को समझ पाना हिन्दू धर्म को सही अर्थों में समझ पाने की कुंजी है।
आस्था हिन्दू धर्म के सवालों का प्यार और मान से भरा जवाब है। ये उन सभी तथ्यों को उपलब्ध कराती है जो आख़िरकार मेरी व्यक्तिगत समझ, वर्षों के अध्ययन और हिन्दू तथा विश्व के पुराणों के परस्पर तुलनात्मक अध्ययन का परिणाम है। माइथोलॉजी सांस्कृतिक सत्यों को उजागर करती है जो कहानियों, संकेतों और कर्मकाण्डों में निहित हैं। जब आप किताब पढ़ते हैं तो इस बात का ध्यान रखें कि प्रकृति विविधतापूर्ण है, संस्कृति गतिशील है और हमारा मन जो विचारों का आदान-प्रदान करता है, उसकी अपनी सीमाएँ हैं। परिपूर्णता की तलाश न करें, न मंज़िल की। तलाश करें प्रवृत्तियों, बहाव और दिशाओं की, क्योंकि :
अनन्त पुराणों में छिपा है सनातन सत्य,
इसे पूर्णत: किसने देखा है?
वरुण के हैं नयन हज़ार,
इन्द्र के सौ,
आपके मेरे केवल दो।
~देवदत्त पट्टनायक.