ज़िंदगी इतनी सस्ती क्यों : चिकित्सा और दवाओं के बारे में उचित सलाह देती एक ख़ास किताब

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दवाओं का कारोबार इतना बड़ा है कि इसने हर किसी को प्रभावित किया है. यही वजह रही है कि दवा कंपनियाँ अपनी दवाई को बेचने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देती हैं. दवाएँ ऐसी भी हैं जो एक रोग को कुछ समय के लिए दबा देती हैं, लेकिन उससे दूसरे कई रोग शरीर को लग जाते हैं. कई बार यह जानलेवा भी साबित होता है. यह किताब एलोपैथी दवाओं से जुड़े हमारे कई सवालों का जवाब देती है. साथ ही यह बताती है कि आयुर्वेद क्यों अन्य चिकित्सा पद्धतियों से अधिक कारगर है...

डॉ. अबरार मुल्तानी की पुस्तक ‘ज़िंदगी इतनी सस्ती क्यों...?’ पाठकों को सचेत करती है कि दवा का व्यापार करने वाली कंपनियां हमें ठगती हैं तथा अपने कारोबार को बढ़ाती हैं। उन्हें इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि रोगी ठीक होगा अथवा नया रोग उत्पन्न होगा। लेखक कहते हैं कि आजकल चिकित्सक रोगी को इतना अधिक डरा देते हैं कि वह खुद को बहुत बीमार मान बैठता है। कंपनियां चाहती हैं कि लोग लंबे समय तक जियें, लेकिन बीमार रहते हुए। किताब का प्रकाशन मैन्ड्रेक पब्लिकेशंस ने किया है।

लेखक ने पहले अध्याय में दवाओं के जानलेवा व्यापार पर विस्तृत चर्चा की है। उन्होंने वाकायदा तथ्य दिए हैं और उन रिपोर्ट्स को साझा किया है जिनसे पता चलता है कि किस तरह दवा कंपनियां अपने-अपने तरीके से दवाओं को बेचती हैं। रोग को कई गुना बढ़ाकर भी बताया जाता है।

लेखक ने सरल शब्दों में उदाहरण देकर यह समझाने की कोशिश की है कि एक रोग ठीक करने के लिए दूसरे रोग उत्पन्न हो जाते हैं। उन्होंने ऐसी दवाओं की सूची प्रकाशित की है जिनसे नए रोग पैदा हो सकते हैं। आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली पेरासिटामोल के बारे में डॉ. मुल्तानी लिखते हैं कि यह शरीर का तापमान कम करती है, जबकि यह सिद्ध हो चुका है कि शरीर का तापमान एक डिग्री बढ़ने से वायरस की ग्रोथ 97 प्रतिशत कम हो जाती है, अर्थात् पेरासिटामोल से वायरस की ग्रोथ और ज़्यादा बढ़ेगी। इसी तरह उन्होंने एंटी एलर्जिक दवाओं का जिक्र करते हुए लिखा है कि ये दवाएं शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को प्रत्यक्ष रुप से कम कर देती हैं जिससे वायरस अधिक तेजी से बढ़ता है। नतीजा यह होता है कि हम ज्यादा बीमार हो जाते हैं।

लेखक ने सलाह दी है कि एंटीबायोटिक्स के बजाय हर्बल दवाओं का अधिक से अधिक प्रयोग किया जाए। रोग प्रतिरोधक क्षमता को विकसित करने के लिए पोषक आहार, व्यायाम, आयुर्वेद का सहारा लें। इससे  एंटीबायोटिक्स से होने वाले दुष्प्रभावों से बचा जा सकता है।

तनाव-और-डिप्रेशन

तनाव और डिप्रेशन से दुनियाभर के लोग पीड़ित हैं। फार्मा कंपनियां भ्रामक प्रचार माध्यमों और सर्वे के जरिए लोगों को प्रेरित करती हैं। रोगियों को डराया भी जाता है कि यदि वे एंटीडिप्रेशेंट दवायें नहीं लेंगे तो वे गंभीर अवस्था में पहुंच सकते हैं तथा उनका जीवन तबाह हो सकता है। यही वजह है कि तनाव और डिप्रेशन कम करने की दवाओं की बिक्री में तेजी से इजाफा हो रहा है। लेकिन आम आदमी को यह ज्ञात नहीं है कि ऐसी दवाओं का साइड इफैक्ट भी होता है। चिंता को कम करने की दवायें हमें अधिक चिंता की ओर धकेल सकती हैं। सिरदर्द, अनिंद्रा, बेचैनी, वज़न बढ़ना आदि समस्याओं से मरीज ग्रसित हो सकता है। लेखक ने यह भी लिखा है कि कई बार आत्महत्या की प्रवृत्ति भी जाग्रत हो सकती है। 

लेखक ने डिप्रेशन के प्रमुख कारणों पर नज़र डाली है। इसके लिए उन्होंने चार कारणों पर बात की है जिनमें अव्यवस्थित जीवनशैली का भी जिक्र किया है। हार्मोनल गड़बड़ी और पोषक तत्वों की कमी भी डिप्रेशन का कारण बन सकती है।

डॉ. अबरार मुल्तानी ने कोलेस्ट्रोल की दवाओं पर चर्चा की है। वे लिखते हैं - ‘कंपनियों द्वारा डॉक्टर और रोगी को डरा दिया जाता है। यह डर उन्हें तुरंत कोलेस्ट्रोल को कम करने वाली दवाईयां लेने पर मजबूर कर देता है। यह डर ही है कि जिसने कोलेस्ट्रोल कम करने के लिए ली जाने वाली दवाई ‘स्टेटिन’ को दुनिया भर की सबसे ज्यादा बिकने वाली दवाई की सूची में टॉप पर ला दिया है।’

किताब में कहा गया है कि यदि हम अपनी जीवनशैली में बदलाव लायेंगे तो हमें ऐसी दवाओं की जरुरत नहीं पड़ेगी। डॉ. मुल्तानी नियमित कसरत करने की सलाह देते हैं। स्मोकिंग और शराब से दूर रहने की बात करते हैं। साथ ही रिफाइंड तेल व शक्कर, जंक फूड आदि से बचने को भी जरुरी मानते हैं। कहने का मतलब यह है कि दवाओं का सेवन बहुत ही सोच-समझकर किया जाना चाहिए। वरना यह हमें दूसरी बीमारियां दे सकती हैं। 

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लेखक बताते हैं कि चूंकि चिकित्सा एक व्यापार बन चुका है इसलिए वह भी अपने लिए अच्छे ग्राहकों की तलाश कर रहा है और वह ऐसे ही ग्राहक अपने लिए चाहता है जो उनकी दवाएं रोजाना लें और ज़िंदगी भर लें। किताब में ऐसी चार बीमारियों पर चर्चा की गयी है जिसमें मरीज को ज़िंदगी भर दवाओं पर निर्भर रहना पड़ता है। ये रोग हैं : डाइबिटीज़, थायरॉइड, हायपरटेंशन और हृदय रोग।

डॉ. मुल्तानी ने आयुर्वेद को लेकर पैदा भ्रांतियों पर भी चर्चा की है। आयुर्वेद को लेकर एलोपैथी से जुड़ी कंपनियां जिस तरह का दुष्प्रचार करती हैं, उसपर भी किताब में विस्तार से लिखा गया है। जिम और सप्लीमेंट्स पर भी यहां चर्चा की गयी है। इसे जानना बेहद जरुरी है क्योंकि यह युवाओं से जुड़ा मसला है। सप्लीमेंट्स के विकल्प पर लेखक ने अश्वगंधा, शतावरी, मूसली, मुलेठी आदि जड़ी-बूटियों को प्राकृतिक तौर पर बल एवं भारवर्धक कहा है। 

पुस्तक के माध्यम से लेखक ने हमें बहुत काम की सलाह दी हैं। उन भ्रमों को दूर करने की कोशिश की गयी है जो हमें दवाओं के मकड़जाल में फंसा रहा है। साथ ही अलग-अलग रोगों के बारे में जानकारी देकर, दवाओं से होने वाले साइड इफेक्ट्स और उनके निदान के लिए क्या उपयोगी है, इसपर खुलकर लिखा है। इस किताब को पढ़ा जाना जरुरी है। यह किताब हमारे स्वस्थ जीवन के लिए एक उपयोगी किताब है।

ज़िंदगी इतनी सस्ती क्यों...?
लेखक : डॉ. अबरार मुल्तानी
प्रकाशक : मैन्ड्रेक पब्लिकेशंस
पृष्ठ : 204
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