किताब 'इकोलॉजिकल बैलेंस' की बात करती है. कल्कि कहता है कि वह पृथ्वी पर संतुलन स्थापित करके रहेगा...
जीवन सवालों से भरा हुआ है। हर मोड़ पर सवाल हैं। उनके उत्तर भी वहीं मौजूद हैं, हमें सिर्फ उन्हें खोजना है। इनसान होने का मतलब है। इनसान की कुछ जिम्मेदारियाँ हैं। कुदरत के नियम हैं। हर नियम इसी वजह से बना है क्योंकि वह जरूरी है। जब कुदरत के नियमों से छेड़छाड़ होगी, इनसान अपने उद्देश्य से भटक जाएगा तो उसे सबक सिखाने का कार्य कुदरत के जिम्मे होगा।
बेस्टसेलर लेखक और अनुवादक आशुतोष गर्ग और उनके बेटे अत्रि गर्ग का उपन्यास 'कल्कि : दसवें अवतार का उदय' एक गहन पड़ताल है इनसान और कुदरत के बीच बने उस रिश्ते के विघटन की जब इनसान ने नियमों से छेड़छाड़ की और खुद भगवान बनने की भूल की। अत्रि गर्ग का यह पहला प्रयास है। उन्होंने मिथकीय कहानी में आधुनिकता को जोड़कर इसे अधिक रोचक बनाने की हर सम्भव कोशिश की है। यही वजह है कि उपन्यास शुरू से अंत तक बाँधे रखता है। पुस्तक का प्रकाशन प्रभात प्रकाशन ने किया है।
उपन्यास बार-बार इनसानों को आगाह करता है कि यदि हमें सुरक्षित रहना है और शांति से जीवन व्यतीत करना है तो गलतियों को सुधारना होगा। खुद से प्रतिज्ञा करनी होगी कि बुरे कर्म बुरे होते हैं तथा इससे विकास नहीं विनाश होता है।
'कल्कि' का यह विचार दिलचस्प अंदाज़ में प्रस्तुत किया गया है। यह एक सफल प्रयोग है जो आनेवाले लेखकों को भी अलग तरह से सोचने पर विवश करेगा।
कहानी संभल गाँव में साल 1919 की फरवरी से शुरू होती है। फिर जुलाई 1914 में चली जाती है जब रमानाथ के पिता विंदेश्वरनाथ त्रिवेदी को अचानक कार्यालय से संदेशा आता है। उन्हें बताया जाता है कि जंग छिड़ चुकी है, इसलिए परदेस यानी इंग्लैंड के लिए अगले दिन रवाना होना है। परिवार इसपर परेशान है। गाँव के एक पंडितजी भी विंदेश्वरनाथ से मना करते हैं, लेकिन वे बख्तरबंद गाड़ी में बैठ अलविदा कहते हैं। इंग्लैंड पहुँचकर उनके पत्र बेटे रमानाथ को मिलते रहते हैं। उसे युद्ध की भयानक कहानियाँ भी पढ़ने को मिलती हैं। इसी तरह कई साल बीत जाते हैं। लड़ाई लंबी थी। फिर एक दिन रमानाथ की मुलाकात कल्कि से होती है जो धीरे-धीरे कई रहस्यों से पर्दा उठाता है। रमानाथ के पिता कब घर लौटेंगे या उनका क्या हुआ? क्या किसी महामारी ने युद्ध को कब्रिस्तान बनाया था या इसके पीछे कोई गहरा राज़ था? जीवन में कर्म और फल का क्या महत्व है? क्या इनसान अपने दुःख-दर्द के लिए खुद ज़िम्मेदार है? ऐसे अनेक प्रश्न बीच-बीच में उठते हैं, जिनका जवाब कल्कि रमानाथ को देता है।
उपन्यास को दो भागों में बाँटा गया है -कल्कि का उदय और कल्कि की वापसी। पहला हिस्सा रमानाथ के सऊदी अरब पहुँचने का है। दूसरे भाग में उसके पौत्र गौरव द्वारा कहानी साल 2005 की जुलाई से शुरू होती है जब वह संभल गाँव में है।
गौरव को बीहड़ में एक रहस्यमयी आदमी मिलता है जिसके दोस्त भालू हैं। बाद में पता चलता है कि वह कोई और नहीं स्वयं कल्कि है। वह कबूल करता है कि उसने ही म्यूटा वायरस बनाया था। वह आगे बताता है -"इनसान को सबक सिखाने के लिए मुझे उसी भी भाषा में बात करनी होगी। इसलिए मुझे भी विवश होकर रासायनिक व जैविक हथियारों का इस्तेमाल करना पड़ रहा है। मैंने लगभग सौ साल पहले भी सन 1918 में अपनी शक्ति की एक झलक दिखाई थी। उस समय मैंने 'एस1-एन1' नाम का वायरस तैयार करके मानव समाज को सबक सिखाने का प्रयास किया था। उसे बाद में 'स्पेनिश फीवर' का नाम दिया गया।'
कल्कि की बातों पर गौरव को विश्वास नहीं होता तो वह कहता है-"मैंने मर्ड का वायरस बहुत छोटे स्तर पर बनाया था ताकि इनसान को एक शताब्दी पहले की घटना याद आ जाए और वह सँभल जाए। परन्तु स्थिति में अब भी सुधार नहीं हुआ तो इसका परिणाम बहुत घातक होगा।"
कल्कि ने मनुष्य को सचेत करने के भारी प्रयास किए, लेकिन विफल रहा। लेकिन उसने एक अहम बात कही -"प्रकृति ने इनसानों के लिए धरती पर जितना समय निश्चित किया था, वह पूरा हो चुका है।" कल्कि ने ऐसा क्यों कहा? क्या उसकी बात मौजूद हालात को देखकर सही ठहराई जा सकती है? ऐसे अनेक सवाल पाठक के मन में स्वतः उठते हैं, जिनका उत्तर तलाशने के लिए किताब पढ़ना जरूरी है।
किताब 'इकोलॉजिकल बैलेंस' की बात करती है। कल्कि कहता है कि वह पृथ्वी पर संतुलन स्थापित करके रहेगा। इसलिए गौरव सोचता है-"महामारियों और आपदाओं में बेगुनाह लोग क्यों मारे जाते हैं। मैं जिसे भगवान का दंड समझता था, वह दरअसल प्रकृति द्वारा संतुलन स्थापित करने का तरीका था।"
कहानी जब आगे बढ़ती है तो हम फरवरी 2020 में पहुंच जाते हैं। अखबार में एक वायरस की खबर है जिसे वैज्ञानिकों ने नाम दिया है म्यूटा वायरस। यह यूरोप में कहर बरपा रहा है। यह चमगादड़ से शुरु हुआ है। इसमें म्यूटेशन हुआ और यह एक प्रजाति से दूसरी में फैल गया। यह श्वसन-तंत्र पर हमला करता है। जिन लोगों की रोगप्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी कम है उनमें यह तेजी से फैल रहा है और घातक रुप दिखा रहा है।
उपन्यास में कोरोना वायरस के हमले को अपनी तरह से दिखाया गया है। जिस तरह कोविड-19 वायरस की वजह से दुनिया दहल गयी थी और वायरस का रौद्र रुप फिर से दुनिया को चपेट में ले चुका है। उसी तरह किताब में भविष्य को लेकर भी लिखा गया है। चूंकि यह किताब 2021 की शुरुआत में प्रकाशित हुई है, लेकिन इसमें जो महामारी के बाद भारत की स्थिति दिखाई गई है वह कोरोना की दूसरी लहर के बाद वैसा ही दृश्य प्रस्तुत कर रही है। दफनाने को जगह नहीं है। कहीं जलाने को लकड़ियां कम पड़ गई हैं। शवों को नदियों में बहाया जा रहा है।
आशुतोष गर्ग और अत्रि गर्ग ने मिथकों के साथ आधुनिकता को मिलाकर एक बेहतरीन कृति की रचना की है। इसमें कई संदेश छिपे हैं जो मनुष्यता के लिए उपयोगी हैं। जीवन की सच्चाई और इनसान की जिम्मेदारी का मतलब बहुत स्पष्टता से समझाया गया है। कल्कि के माध्यम से उपन्यास मनुष्य को मनुष्य बना रहने के लिए प्रेरित करता है।